जीर्णोधार की जरूरत नहीं है केदारनाथ धाम की 


अपितु इस क्षेत्र  की पावनता बचाने की जरूरत

किसी पीड़ित गांव या सडक-पुल आदि को गोद लें मोदी व अन्य सरकारें



शांति यज्ञ के साथ प्रायश्चित यज्ञ करके बांध व शराब से बर्बाद करने वाले कृत्यों को रोकने का संकल्प भी ले मुख्यमंत्री बहुगुणा

गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी ने प्राकृतिक आपदा का साक्षी रहा केदानाथ धाम के पुनर्निणाम की जो पेशकश की वह भले ही स्वागतयोग्य है। परन्तु केदारनाथ की पावनता देख कर सनातन धर्मी न तो प्रदेश सरकार व नहीं भारत सरकार से  तथा न हीं किसी अन्य सरकारों से इसकी पुनर्निमाण की याचना करता है। इस मूल मंदिर को कोई खतरा नहीं है। केवल मंदिर के अंदर व बाहर सफाई की जरूरत है। इस प्राचीन धाम की जब जरूरत होगी भगवान शिव सनातनी धर्मियों से खुद ही करा सकता है। श्रीबदरीनाथ केदारनाथ समिति इसमें सक्षम है। केदारनाथ में अगर कुछ जरूरत है तो वह मंदिर के चारों तरफ विनाश के कारण बने मलवे की सफाई करके यहां पर किसी प्रकार के व्यवसायिक गतिविधियों को पुन्न प्रारम्भ न करने की। अंधी व्यवसायिकता से मंदिर की पावनता पर ग्रहण लगा दिया था। जिस प्रकार से मंदिर की पावनता पर यहां पर राजनीति की दखल व धनलोभी कर्मचारियों व मठाधीशों के कारण हो रही है। जिस प्रकार से यहां पर सनातनी परंपरा का निर्वाह करने के बजाय नेताओं व थेलीशाहों के लिए भगवान के दर पर विशेष स्वागत व दर्शन में पक्षपात होता है उस पर तत्काल रोक लगनी चाहिए। मंदिर की पावनता हर कीमत पर रक्षा की जानी चाहिए। 1947 क्या 1950 तक केदारनाथ में किसी प्रकार की व्यवसायिक गतिविधियां या मंदिर के नजदीक आवास धर्मशालायें नहीं थी। अब इतना अवैध निर्माण करके वहां की पावनता को दुषित करने का काम किया गया जिससे भगवान शिव का रूष्ट होना स्वाभाविक ही है। इस त्रासदी में अकाल मारे गये लोगों की आत्मशाति के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा द्वारा किया रहा शांति यज्ञ के साथ साथ विजय बहुगुणा व उनकी सरकार प्रायश्चित यज्ञ करते हुए प्रदेश में पतित पावनी गंगा यमुना आदि नदियों में बलात बनाये जाने वाले बांधों व शराब का गटर बनाने तथा प्रदेश के हक हकूकों के साथ शर्मनाक खिलवाड करने वाले कृत्यों को रोक दें और इसके लिए सच्चे मन से भगवान से माफी मांगते हुए जनसेवा का संकल्प लें । तभी यह शांति यज्ञ सार्थक होगा नहीं तो यह यज्ञ के परिणाम भी भयंकर होंगे।
गौरतलब है कि इसी सप्ताह उत्तराखण्ड में आयी विनाशकारी आपदा में केदारनाथ धाम में जो खौपनाक त्रासदी हुई उससे पूरा देश गमगीन है। जहां इससे उबरने के लिए सेना के हजारों जवान 55 से अधिक हेलीकप्टरों की सहायता से फंसे हुए 70 हजार से अधिक यात्रियों को निकाल कर बचाव कर रहे है। वहीं इस त्रासदी से चमत्कारिक ढ़ग से बच गये केदारनाथ मंदिर में इस आपदा के निशान चारों तरफ दिखाई दे रहे है। चारों तरफ लांशे पड़ी हुई है। एक प्रकार से केदारनाथ का मूल मंदिर छोड़ कर अधिकांश धर्मशालायें आदि नष्ट हो गयी है। मोदी सहित कोई भी प्रदेश का मुख्यमंत्री, उद्यमी या संस्थायें अगर सच में इस त्रासदी से पीड़ित लोगों की सेवा करना चाहते है तो इस क्षेत्र की एक एक रोड़ व एक एक नष्ट हो गये गांवों को गोद ले सकते है। परन्तु न तो उत्तराखण्ड सरकार व नहीं केन्द्र व नहीं गुजरात सहित किसी भी सरकार व संस्था को केदारनाथ मंदिर से किसी भी प्रकार का छेड़ छाड करने का हक नहीं। यह कोई सोमनाथ आदि मंदिर नहीं। इस केदारनाथ धाम में स्वयं भगवान शिव का वास व रक्षक है। वहां किसी को भी श्मशानवासी भगवान शिव के एकांत में खलल डालने की इजाजत नहीं है। जो भी ऐसी धृष्ठता करेगा उसको इसका खमियाजा भोगना पडेगा। वेसे कांग्रेसे की सरकार ने मोदेी को ेकेदारनाथ न जाने दे कर जनता की नजरां में खुद को गुनाहगार साबित कर ही दिया। जिस तत्परता से मोदी खुद व अपने कई दर्जन हेलीकप्टरों को आपदा कार्य में जुटाना चाहते थे उनका सहयोग न ले कर विजय बहुगुणा सरकार ने पीड़ितों के साथ साथ प्रदेश के साथ खिलवाड़ ही किया। कम से कम देहरादून तक कुछ और हजार फंसे हुए यात्री पंहुच जाते। परन्तु कांग्रेस की राजनीति के शिकार हो गये। जो तस्वीर इस लेख में लगायी गयी है वह सन्1882 की है। तब भी सैकडों साल से भगवान केदारनाथ का मंदिर यथावत खडा था आज इस विनाशकारी त्रासदी में जीवंत खडा है। परन्तु बुद्धिहीन पत्रकार भगवान शिव शक्ति द्वारा रक्षित इस पावन धाम के सुरक्षित रहने का कारण इस विनाशकारी तबाही में बह कर आये बडे पत्थर बता रहे है।इन नादानों को इतना भी समझ में नहीं आ रहा है जो इन पत्थरों को मीलों दूर बहा कर ला सकता है वह क्या इस पत्थरों के आगे बेबश पड गया। इन नास्तिकों को लगता है इसे भगवान शिव का साक्षात चमत्कार कहने से उनकी जीभ कहीं छोटी न पड़ जाय। 

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