4जून को राज्य गठन आंदोलनकारियों के साथ दिल्ली में मुख्यमंत्री की हुई  महत्वपूर्ण बैठक 


राज्य गठन आंदोलनकारियों के सम्मान की अनैक घोशणायें

आंदोलनकारियों को सम्मान करने से अधिक जरूरी है राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करना


आखिरकार 4 जून को राज्य गठन के 12 साल बाद पहली बार उत्तराखण्ड राज्य के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने राज्य गठन के लिए दिल्ली में ऐतिहासिक जनांदोलन करने वाले उत्तराखण्ड राज्य गठन के अग्रणी आंदोलनकारियों के साथ बैठक सम्पन्न हुई। इसके सूत्रधार उत्तराखण्ड राज्य गठन के अग्रणी आंदोलनकारी व प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता धीरेन्द्र प्रताप थें। इसमें प्रमुख आंदोलनकारी संगठनों ने भाग लिया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री के समक्ष प्रमुख आंदोलनकारी संगठनों ने राज्य हित में महत्वपूर्ण विचार प्रकट किये। इस अवसर पर उत्तराखण्ड के मुख्यमन्त्री विजय बहुगुणा ने दिल्ली स्थित उत्तराखण्ड निवास में उत्तराखण्ड राज्य निर्माण आन्दोलनकारियों से भेंट कर, नवोदित राज्य के विकास में सहकार मांगा।उन्होंने राज्य निर्माण के शहीदों के योगदान को अविस्मरणीय बताया व राज्य के  विकास के लिए देश भर में व दुनिया भर में रह रहे उत्तराखण्डियों से सहयोग मांागा। उन्होेंने कहा कि ‘राज्य’ आन्दोलनकारियों और शहीदों की धरोहर है, हमें सदैव जहाॅ उनका सम्मान करना है। वही उनके सहयोग के बिना, शहीदों के सपने पूरे नही हो सकते।उन्होने सकल्प व्यक्त किया जहां सरकार शहीदो के सपनो को पेरा करने को प्रतिबद्व है वही देश भर में आन्दोलनकारियों के सम्मान की प्रक्रिया को भी बढाया जाएगा !
मुख्यमंत्री ने बैठक में घोषणा करते हुए दिल्ली के विभिन्न राज्य आन्दोलनकारी संगठनों से 2-2 सदस्यों के नाम दिये जाने का आह्वान किया, जिनसे कि राज्य आन्दोलनकारियों की समस्याओं के निराकरण हेतु एक समन्वय समिति का गठन किया जायेगा। यह समिति आन्दोलनकारियों की विभिन्न मांगों के विषय में राज्य सरकार को सुझाव देगी। मुख्यमंत्री ने राज्य आन्दोलनकारियों के चिन्हिकरण में पुराने मानकों में शिथिलता के सुझाव का भी आश्वासन दिया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने ऐलान कियका कि प्रत्येक आंदोलनकारी संगठनों से 5-5 प्रमुख आंदोलनकारियों की सूचि देने का अनुरोध किया जिनको वे खुद सम्मानित करेंगे।  मुख्यमंत्री ने कहा कि आगामी जुलाई माह से दिल्ली में एक अधिकारी की तैनाती की जायेगी जो कि प्रवासी उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलनकारियों की विभिन्न समस्याओं को सुनेंगे जिससे की उनकी बात राज्य सरकार तक आसानी से पंहुच सके। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा कि आगामी अक्टूबर माह में पूरे देश के प्रवासी उत्तराखण्ड आन्दोनकारियों का एक सम्मेलन आयोजित किया जायेगा। गैरसेंण के मुद्दे पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि राज्य सरकार प्रदेश की जनकांक्षाओं का सम्मान करने हेतु वचनबद्ध है।

 4 जून को सांयकाल 4 बजे से प्रारम्भ हुई यह बैठक दिल्ली के चाणक्यपुरी स्थित उत्तराखण्ड निवास के सभागार में हुई। इस बैठक में दिल्ली के अग्रणी आंदोलनकारी संगठनों में 6 साल तक संसद की चैखट पर निरंतर धरना प्रदर्शन रैलियां व गोष्ठियां करने वाला व दिल्ली सहित देश के दर्जनों संगठनों की सहभागिता वाले ‘ उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा’  के अलावा, उत्तराखण्ड जन मोर्चा, उत्तराखण्ड महासभा व उत्तराखण्ड राज्य लोकमंच प्रमुख आंदोलनकारी संगठन सहित कांग्रेस से जुडे  राज्य गठन आंदोलनकारी भी उपस्थित थे। बेठक की अध्यक्षता पूरण सिंह डंगवाल ने की और संचालन धीरेन्द्र प्रताप ने किया। इस बैठक में  उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष देवसिंह रावत, संयोजक अवतार रावत, उत्तराखण्ड क्रांतिदल के महासचिव प्रताप षाही, उत्तराखण्ड राज्य लोक मंच के अध्यक्ष बृजमोहन उप्रेती व उदय राम ढोंडियाल, उत्तराखण्ड जनमोर्चा के जगदीश नेगी व अध्यक्ष रवीन्द्र बिष्ट,, प्रमुख थे। अन्य प्रमुख आंदोलनकारियों में उजसमो के महासचिव जगदीश भट्ट, व खुशहाल सिंह बिष्ट, उपाध्यक्ष विनोद नेगी,  देशबंधु बिष्ट, सतेन्द्र रावत, जगमोहन रावत,  महासभा के अनिल पंतर, करण बुटोला, व रामेष्वर गौस्वामी, उत्तराखण्ड जनमोर्चा के  हर्श बर्धन खण्डूडी, रामभरोसे ढोंढियाल, नरेन्द्र बिश्ट, प्रभाकर पोखरियाल, डा एस एन बसलियाल, हर्ष बर्धन खण्डूडी, श्रीमती बीना बिष्ट, दलबीर रावत,  उषा नेगी, हुक्मसिंह कण्डारी, कांग्रेस के उमा जोशी, पुरूशोत्तम चोनियाल,राधा माया, नन्दन घुघत्यिाल, बाली मनराल, उत्तराखण्ड परिर्वतन पार्टी के सुरेष नौटियाल व प्रेम सुन्दरियाल,  पवन भट्ट, राधेष्याम ध्यानी, सिन्दुरी बडोला, उमेष रावत, पत्रकार दाता राम चमोली, रामप्रसाद पोखरियाल, चन्द्र षेखर जोषी, मनमोहन षाह, महेष मठपाल, रामप्रसाद पौखरियाल, श्रीमती रामी भारद्वाज, रिखी रावत, षिवसिंह रावत, ईष्वर रावत, के एम पाण्डे,  बाली मनराल आदि उपस्थित थे।  इसमें कांग्रेस के पूर्व मंत्री षूरवीर सिंह सजवाण, सरदार महेन्द्रसिंह, नन्दन घुघत्यिाल,  षिल्पी अरोड़ा, कुंवर प्रणव चैंपियन, ब्रहम स्वरूप ब्रहमचारी, के सी पाण्डे,  कमल नेगी, संजय  पालीवाल आदि प्रमुख कांग्रेसी नेता एवं  पत्रकार विजेन्द्र रावत व दाताराम चमोली  भी  उपस्थित थे। इसके अलावा ज्योति सेतिया, समाजसेवी यषवंत नेगी, गंभीरसिंह नेगी , महादेव प्रसाद बलूनी, पीड़ी तिवारी व देवेष्वर प्रसाद जोषी प्रमुख थे।

हालांकि मेरा मानना है कि इस प्रकार की  बैठक राज्य गठन के बाद पहली मनोनीत व पहली निर्वाचित सरकार ने राज्य नवनिर्माण व विकास में राज्य आंदोलनकारियों के सुझाव व सहयोग के लिए की जानी चाहिए थी। प्रदेश की सरकारों को इतनी भी सुध नहीं रही कि जिन आंदोलनकारी संगठनों ने राज्य गठन में अग्रणी भूमिका निभायी उनको ओपचारिक धन्ववाद देते हुए राज्य की दिशा व दशा राज्य गठन की जनांकांक्षाओं के अनुरूप देने के लिए उनके सुझाव लेने का सकारात्मक काम करते। दिल्ली के अग्रणी आंदोलनकारी संगठनों में 6 साल तक संसद की चैखट पर निरंतर धरना प्रदर्शन रैलियां व गोष्ठियां करने वाला व दिल्ली सहित देश के दर्जनों संगठनों की सहभागिता वाले ‘ उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा’  के अलावा, उत्तराखण्ड जन मोर्चा, उत्तराखण्ड महासभा व उत्तराखण्ड राज्य लोकमंच प्रमुख आंदोलनकारी संगठन रहे। इसके अलावा दिल्ली में राजनैतिक दल के रूप में उत्तराखण्ड क्रांतिदल, कांग्रेस की पर्वतीय सेल, भाजपा की उत्तराखण्ड प्रकोष्ठ व हिमनद संगठन तथा बहादूर राम टम्टा के नेतृत्व वाला उत्तराखण्ड विकास संगठन प्रमुख थे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, माले व उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति के अलावा जनसंघर्ष वाहिनी भी राज्य गठन जनांदोलन में सक्रिय रही।
दिल्ली में उत्तराखण्ड राज्य गठन आंदोलनकारी संगठन जिन्होने दिल्ली में राज्य गठन के जनांदोलन को अपने जुझारू तेवरों से ऐतिहासिक व सफल बनाने के साथ राज्य गठन के बाद इन 12 सालों तक भी उत्तराखण्ड जनांकांक्षाओं की उपेक्षा कर रही प्रदेश सरकार को जगाने के लिए निरंतर धरना प्रदर्शन करती रही। इन 12 सालों में राज्य को अपना नाम उत्तराखण्ड दिलाने का सफल संघर्ष हो या राजधानी र्गैरसैंण बनाने की मांग हो या प्रदेश में जनसंख्या पर आधारित विधानसभा परिसीमन को उत्तराखण्ड में थोपने का विरोध, प्रदेश के जल, जंगल, जमीनों पर काबिज हो रहे माफियाओं से बचाने के लिए आवाज उठाना हो या मुजफरनगर काण्ड सहित राज्य गठन के आंदोलनकारियों का दमन करने वाले गुनाहगारों को सजा दिलाने की पुरजोर मांग आज 19 सालों से करते आ रहे है। इसके साथ दो अक्टूबर को मुजफरनगर काण्ड के शहीदों को श्रद्धांजलि देने व इस काण्ड के गुनाहगारों को सजा देने में असफल रही देश की व्यवस्था को धिक्कारने के लिए  उत्तराखण्ड राज्य गठन आंदोलनकारी संगठनों की समन्वय समिति के बेनरतले संसद की चैखट पर काला दिवस के रूप में मनाते है।
वेसे भी राज्य आंदोलनकारियों को पहचान व सम्मान दिलाने के लिए धीरेन्द्र प्रताप पहली निर्वाचित सरकार के समय से ही लगे हुए है। उनको आंदोलनकारी कल्यार्ण का राज्य मंत्री का दर्जा वाला जो दायित्व तिवारी सरकार में सोंपा गया था। उसी दायित्व का निर्वहन करते हुए उन्होंने राज्य गठन आंदोलनकारियों को सम्मानित करने की सलाह तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को दी। मुख्यमंत्री तिवारी ने उनकी सलाह पर आन्दोलनकारियों के कल्याणार्थ एवं सम्मानार्थ अनेक योजनाए बना कर,उनका लागू किया। इसके तहंत ही  राज्य आन्दोलन के दौरान एक सप्ताह जेल जाने वाले या घायल आन्दोलनकारियों को उत्तराखण्ड सरकार की ग व घ नौकरियों में पक्की नौकरी,50 वर्ष से ज्यादा आन्दोलनकारियों को पैन्षन,सभी आन्दोलनकारियों को आन्दोलनकारी सम्मान प़त्र,जिससे आन्दोलनकारी परिवारों को निषुल्क षिक्षा,चिकित्सा व परिवहन की सुविधाए दी गई थी । इसके अलावा सरकारी नौकरियों में धीरेन्द्र प्रताप के सुझाव पर 10 प्रतिषत क्षैतिज आरक्षण भी दिया गया था,जो आज भी जारी है !
राज्य गठन जनांदोलन का एक सिपाही होने के नाते मेने अपने संबोधन में कहा कि मै व मेरा संगठन हमेशा हर सरकार से राज्य गठन आंदोलनकारियों का सम्मान करने की मांग करने के बजाय राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करने की पुरजोर मांग करता रहा और आगे भी करता रहेगा। अगर उत्तराखण्ड की सरकार प्रदेश के हितों व जनांकांक्षाओं को रौंदती है तो हम ऐसे किसी भी सम्मान को किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करते। हमने राज्य गठन जनांदोलन में किसी सम्मान या प्रमाणपत्र लेने के लिए राज्य गठन जनांदोलन में अपने आप को समर्पित नहीं किया हुआ है। हमारे अनैक साथी इस संघर्ष में शहीद हो गये और कई साथी विकलांग हो गये, हमारा पहला दायित्व है कि राज्य जनांकांक्षाओं को साकार करने के लिए काम करना।
राज्य सरकार को एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि राज्य गठन आंदोलनकारियों के सम्मान के नाम पर जो मापदण्ड व राह उन्होने रखी हुई है यह राज्य गठन आंदोलनकारियों का धोर अपमान है और आंदोलनकारी जेल जाने के लिए के लिए नहीं अपितु राज्य गठन जनांदोलन को तेज करके राज्य गठन के उदेश्य से आंदोलन में समर्पित थे। जो वर्षो वर्ष राज्य गठन आंदोलन में दिन रात समर्पित रहे उनकी उपेक्षा करके केवल एक सप्ताह जेल जाने वालों को ही आंदोलनकारी मानना एक प्रकार से राज्य गठन आंदोलनकारियों का घोर अपमान है। वहीं इस प्रमाणपत्र के लिए जो चक्कर आंदोलनकारियों को जेल, जिलाधिकारी व सरकार के दर पर भटकना पड रहा है वह आंदोलनकारियों का सम्मान के बजाय अपमान से कम नहीं। सरकार को चाहिए था कि आंदोलनकारी संगठनों व सरकार की वो ऐजेन्सियां जो इस आंदोलन को देख रही थी उनकी रिपोर्ट के आधार पर होना चाहिए था। परन्तु आंदोलनकारियों को जेल व जिलाधिकारी के कार्यालय में अपना प्रमाणपत्र लेने के लिए दर-दर भटकाया जा रहा है। यह किसी अपमान से कम नहीं है।  शेष श्री कृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्री कृष्णाय् नमो।


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