गणेश उत्सव व छट की तरह नन्दादेवी महोत्सव बनेगा एक दिन विश्वव्यापी
लगता है युवा उद्यमी व माॅं नन्दादेवी के समर्पित भक्त गणेश सनवाल जी के दिल में अभी भी ‘मुम्बई से उत्तराखण्ड हिमालय के लिए ‘मन्नत द्वारा ’ ले जायी जा रही माॅ श्री नन्दादेवी की डोली के दर्शन को इसी पखवाडे 25-26 मई को दिल्ली के विख्यात ’रामलीला मैदान में आशा व अपेक्षा के हिसाब से बेहद कम उत्तराखण्डियों के पंहुचने का दुख सता रहा है। हालांकि उन्होंने इसका विशेष उल्लेख या शिकायत नहीं की परन्तु चण्डीगढ़ के सफल आयोजन के बाद फेस बुक में उन्होंने मुम्बई के बाद चण्डीगढ़ में रहने वाले उत्तराखण्डी समाज का जो खुली सराहना की उससे दिल्ली में आशा की अपेक्षा कम मिले सहयोग की टीस बिना व्यक्त किये साफ झलकती है। इसमें न तो गलती दिल्ली वालों की थी व नहीं मुम्बई के अग्रणी समाजसेवी गणेश सनवाल जी की। उन्होने दिल्ली में जिस संगठन ‘युगान्तर’ को इसका दिल्ली में स्वागत व कार्यक्रम आयोजन की जिम्मेदारी सोंपी थी, उस संस्था ने केवल एक सप्ताह पहले ही इस आयोजन के बारे में दिल्ली के समाजसेवियों को अवगत कराया। एक सप्ताह में दिल्ली के लाखों लोगों तक इसका वह संदेश नहीं पंहुच पाा जो 1 या 2 महिने के सघन प्रयास से पहंुच सकता था। दूसरा इन दिनों दिल्ली लू से झूलस रही है। ऐसे में प्रमुख अग्रणी समाजसेवी ही माॅं नन्दा के दर्शन के लिए रामलीला मैदान में पंहुच पाये।
हालांकि श्रीी सनवाल जी का दुखी होना जायज है। क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में 30 लाख उत्तराखण्डी समाज निवास करता है। यह समाज दिल्ली की आवादी का सातवें हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। उत्तराखण्ड के बाद दिल्ली में रहने वाले उत्तराखण्डियों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उत्तराखण्ड से 60 से 70 लाख के लगभग उत्तराखण्डी अमेरिका, इग्लैण्ड, अरब, मुम्बई,पुणे, कोलकोता, लखनऊ, अहमदाबाद जयपुर, सहित अन्य नगरों से अधिक उत्तराखण्डी केवल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में रहते है। बडे नौकरशाह ही नहीं उद्यमी, पत्रकार, साहित्यकार, समाजसेवी, राजनीति सहित सभी क्षेत्रों में प्रमुखता से अपना स्थान धीरे घीरे बना रहे है। इन्हीं दिल्ली व लखनऊ में रहने वाली पाच व छह दशक पुरानी पीढ़ी ने अपने बेहद कम साधनों के बाबजूद विकास के लिए उपेक्षित उत्तराखण्ड में अपने गांव व क्षेत्र में विद्यालय, नहर, अस्पताल, बिजली, मोटर रोड़ सहित विकास के बंद हुए द्वारों को खोलने का महत्वपूर्ण कार्य किया। आज भले ही उत्तराखण्ड में सांसद, विधायक, प्रधान सहित विकास की गंगा बहाने वाले अनेक भागीरथ हो गये हैं परन्तु पहले इन्हीं प्रवासियों ने अपने सीमित संसाधनों में सामुहिक अंशदान दे कर न केवल अपने गांव व क्षेत्र में विकास के तमाम द्वार खोलने का काम किया अपितु गांव के गरीब प्रतिभावान छात्रों की पढाई व गरीब बेटी की शादी के साथ साथ बेरोजगारों को रोजगार दिलाने व बीमारों को शहर के अस्पतालों में इलाज कराने का महत्वपूर्ण कार्य किया। इन्हीं पूर्वजों के इस सामुहिक सार्थक प्रयास की बदोलत है कि आज की पीढ़ी दिल्ली जैसे महानगर में अपितु देश विदेश में अपनी प्रतिभा का परचम फेहरा रही है। जो अपनत्व व लगाव पांच व छह दशक पुरानी पीढ़ी में देखने का मिलता था वह आज की पीढ़ी में कहीं देखने को नहीं मिलता है। आज केवल दिल्ली में ही उत्तराखण्डियों की दो हजार से अधिक सामाजिक संगठन हैं। दिल्ली के अधिकांश नगरों में सेकडों की संख्या में रामलीला करने वाला उत्तराखण्डी समाज में अगर एक कमी है तो वह अपने समाज के स्वाभिमान व सामुहिक हितों के प्रति समाज के अधिकांश संगठनों के पदाधिकारी लोग उदासीन है। हाॅं इसका अपवाद रहा उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन, जिसने राज्य गठन के इतिहास में दिल्ली को पांच साल तक आंदोलित करके राज्य गठन के इतिहास में लाखों लोगों ने 2 अक्टूबर 1994 को सडकों पर उतर कर कीर्तिमान ही बना दिया। भारत राज्य गठन के इतिहास में किसी भी राज्य गठन के लिए इतने लम्बे समय तक देश की राजधानी को किसी भी आंदोलन ने प्रभावित नहीं किया।
नन्दादेवी की राजजात को गणेश सनवाल जी उत्तराखण्डी समाज की सामुहिक पहचान के रूप में पूरे विश्व में स्थापित करने का संकल्प लिये हैं। इस डेढ़ महिने से अधिक समय तक 80 लोगों की विशेष टीम को एक लाख 60 हजार रूपये के प्रतिदिन खर्च वहन करके माॅं नन्दादेवी का मुम्बई से दिल्ली, जयपुर व देहरादून व हल्द्वानी सहित अनैक शहरों में रहने वाले लाखों उत्तराखण्डियों को दर्शन कराने का महान कार्य कर रहे है वह बेहद सराहनीय है। यह उत्तराखण्ड की एक ऐसी सांझी विरासत रूपि पर्व के रूप में स्थापित करने की है। जैसी सांझी विख्यात विरासत महाराष्ट्र में आयोजित गणेश उत्सव व बिहार -पूर्वाचंल की छट पूजा ने हासिल कर ली है । आज नहीं तो आने वाले सालों में उत्तराखण्डी समाज अवश्य अपने सामुहिक सम्मान व हितों के प्रति जागरूक होगा।
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