महाकाल का अदभूत न्याय- क्यों अण्णा बने महानायक व रामदेव को मिला अपयश

महाकाल का अदभूत न्याय-
क्यों अण्णा बने महानायक व रामदेव को मिला अपयश


‘आप सब भी हैरान होंगे कुदरत का अदभूत न्याय को देख कर। ‘आपने देखा कि भारत के दिल में बसी दिल्ली का वही रामलीला मैदान, वही अनशन व वही लाखों समर्थक । परन्तु इसका परिणाम देख कर आप सबकी आंखें फट्टी की फट्टी रह जायेगी। अण्णा हजारे जहां आमरण अनशन के बाद विश्व में लोकशाही के महानायक बन कर उभरे वहीं विश्व विख्यात बाबा रामदेव अपने आमरण अनशन से अर्श से फर्श पर ऐसे पटके गये कि वे ऐतिहासिक कार्य करने के बाबजूद भी अपयश के भागी बन गये। हालत यह है कि आज तक भी वे अनशन या दिल्ली में आंदोलन करने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहे है। वहीं अण्णा हजारे को अपने इन दो आमरण अनशन से पहले बहुत कम प्रबुद्व लोग ही जानते थे, आज वे पूरे भारत की जनता के जहां जननायक हैं अपितु ंविश्व लोकशाही के चमकते सूर्य बन कर पूरे संसार को गांधी के बाद रोशन कर रहे हैं। जहां बाबा राम देव ंसंत भेषधारी होने के बाद 11000 करोड़ रूपये से अधिक सम्पति का सम्राट हैं वहीं अण्णा हजारे के पास कहने को अपना मकान तक नही ं है वे भेषधारी संत भले ही न हो परन्तु पूरे संतों की तरह एक मंदिर के छोटे से कमरे में रह कर जनहित के कार्यो में दशकों से समर्पित हैं। संतों को सम्पति संग्रह से दूर रहने का सिद्वान्त पर बाबा रामदेव नहीं अपितु अण्णा हजारे ही खरे उतरते है।
आमरण अनशन से पहले जहां बाबा रामदेव पूरे विश्व में विख्यात रहे, उनको लोग श्रद्वा से नमन् करते रहे, उनकी आगवानी में सरकारें पलकें बिछाये रहती। वहीं अनशन पर बैठने के एक सप्ताह के अंदर ही वे अर्श से फर्श पर आ गये। उन पर सरकार व पुलिस का कहर ढहा, समर्थकों पर लाठियां चली व अपने समर्थकों को पिटता छोड़ कर बाबा रामदेव अपनी जान बचाने के खातिर महिलाओं के वस्त्र पहन कर भाग रहे थे परन्तु काल कितना निष्ठुर उसने भागने भी नहीं दिया, महिलाओं का भेषधारण किये हुए बाबा रामदेव को पुलिस ने रामलीला मैदान के समीप ही पकड़ लिया और पुरी दुनिया के सामने टीबी चेनलों के माध्यम से उनका यह रूप जब पुरूष प्रधान समाज ने देखा तो वे पचा नहीं पाये, चारो तरफ बाबा रामदेव को देश हित में ऐतिहासिक कार्य करने के बाबजूद अपयश ही मिला। भले ही पूरे देश के लोगों की सहानुभूति उनके साथ व आंदोलनकारियों के साथ रही। परन्तु बाबा रामदेव के प्रकरण मेें महाकाल ने जहां मनमोहन सरकार ने अपना दमनकारी घिनौना चेहरा ऐसा बैनकाब किया कि देश के लोगों ने कांग्रेसी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व उनकी सरकार की पूरे विश्व में थू-थू हुई। कांग्रेसी भी अपनी सरकार के आत्मघाति कृत्य से खुद से नजर तक नहीं मिला पा रहे थे। अपनी ही नजरों में वे खुद को गुनाहगार समझने लगे।
यह एक अदभूत नजारा है महाकाल के महान्याय का। बलि इतने दानी थे, पाताल पठाये गये। कर्ण महाबली थे, वक्त ने अन्यायी कौरवों के साथ खड़ा किया। भगवान राम के हाथों रावण का बध एवं विभिषण को राजतिलक पर इस अदभूत लीला का वर्णन तत्वज्ञानी लोग इस प्रकार से करते हैं ‘ खिजो दिनों परमपद् रिझो दिनों लंक’। भगवान की दया को बहुत कम यानी तत्वज्ञानी लोग ही समझ पाते हैं उन्होंने क्रोधित हो कर जिस रावण का बध किया उसको परम मुक्ति प्रदान की और जिस विभीषण पर प्रसन्न हुए उसे इस सांसारिक जीवन यानी लंका का ताज दिया।
महाकाल के प्रतीक रहे काला बाबा अकसर मुझसे कहते रहते थे देवी काल कभी किसी को डण्डा लेकर मारने नहीं आता है कारण बनाता है। उनके राष्ट्र व मानवता के लिए समर्पित जीवन को देख कर मैं आज चमत्कृत हूॅ। वे कभी किसी सरकार से याचना नहीं करते थे वे खुद सरकारों को बनाते व गिराते थे। मैने अपनी आंखों ंसे उनको वाजपेयी की सरकार को रसातल में धकेलते देखा, सोनिया का देश का ताज सोंपने के लिए कारणों को बनाते देखा। आंधी, तूफान व वारिस को लाते व रोकने की अदभूत शक्ति थी। वे कई बार कहते थे देवी ये दो पेर का जानवर भले ही मेरा कहना ना माने परन्तु मै प्रकृति को डण्डा दे कर काम कराता हॅॅू। मैं संसार में भगवान श्रीकृष्ण के बाद जिससे सबसे अधिक प्रभावित रहा वो काला बाबा हैं जो पाखण्ड, भ्रष्टाचार, शोषण व गैरबराबरी के घोर विरोधी ही नहीं समय पर करारा सबक खुद ही दोषी को सिखाते थे।
यहां पर मैं उनका जिक्र संक्षिप्त में करूंगा। यहां मूल प्रश्न विषय बाबा रामदेव व अण्णा हजारे के राष्ट्रहित में किये गये आमरण्ंा अनशन से एक को मिली विश्वजयी कृति व एक को मिले अपयश पर में अपना चिंतन आपके सामने रख रहा था। दुनिया में एक से कार्य करने वाले सभी आदमियों को एक सी सफलता नहीं मिलती। खुद अण्णा हजारे अपने संबोधन में रामलीला मैदान में कहत हैं कि उन पर भगवान की अपार कृपा है। उनको सेना मे उस समय बचाया जब पाक के जंगी जहाज ने उनकी सारी टुकड़ी का खात्मा कर दिया। उनको सारी उम्र ब्रह्मचर्य का वरण करने का विचार ही नहीं संयोग भी दिया। अण्णा हजारे के अनुसार भगवान ने महान तपस्वी महर्षि विश्वामित्र का तप भंग किया परन्तु उनके ब्रह्मचार्य को बनाये रखने के लिए उन्होंने हमेशा लेश मात्र का भी विचलन नहीं दियंा। हर नारी उनके लिए माता व बहन के समान दिखी । परमात्मा की अपार कृपा से वे सांसारिक हो कर भी जड़ भरत की तरह हर पल भगवान के चरणों में समर्पित रहे। वे गांधी की तरह भगवान पर अटूट विश्वास करते थे। वे सांसारिक रिस्तों से अधिक भगवान पर विश्वास करते है। वही रामदेव, संन्यासी होने के बाबजूद सम्पतियों के संग्रह में व लोकेष्णा में जुट गये, वे महायोगी कह कर स्वयं 200 साल जीने का दंभ भरने लगे। शायद उनकी यही बात देख कर करूणामयी भगवान ने उनको ऐसा आयना दिखाया कि वे अभी तक उस तस्वीर को देख कर उभर नहीं पाये। मै दोनों के आंदोलन को करीब से देख ही नहीं रहा था अपितु उसका सहभागी भी रहा। यही अदभूत लीला देख कर प्रभु को शतः शतः नमन् करने का मन करता है वह कैसे तिवारी, अग्निवेश सहित तमाम लोगों को ंबेनकाब करते है। यही बात मैं सबको समझाता रहता हॅू कि महाकाल के न्याय से डरो, परन्तु सत्तांध कहां सुनने वाले, निशंक भी नहीं मान रहा था । अब चारों तरफ से घिर रहा है।

Comments

  1. bahut achchi jankari di hai aap ne !! dhanyawad please join my blog http://ajaychavda.blogspot.com/

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  2. i used to think that you write well and i was visiting your site regularly but after reading i understood that you are just anna bhakt who has done nothing but bad for bharat mata..... every thing written here is crap.. Jai baba ji ki...

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  3. ज़रा आप विचार करिये.....अन्ना टीम द्वारा 16 अगस्त का अनशन जिन मांगों को लेकर किया गया था. उन मांगों पर आज हुए समझौते में कौन हारा कौन जीता? देशवासियों ने किस मिशन से भटक कर क्या पाया? इ***ा फैसला आप करिए....
    पहली मांग थी : सरकार अपना कमजोर बिल वापस ले.
    नतीजा : सरकार ने बिल वापस नहीं लिया.
    दूसरी मांग थी : सरकार लोकपाल बिल के दायरे में प्रधान मंत्री को लाये.
    नतीजा : सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं किया. अन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में भी इ***ा कोई जिक्र तक नहीं.
    तीसरी मांग थी : लोकपाल के दायरे में सांसद भी हों :
    नतीजा : सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं किया. अन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में भी इ***ा कोई जिक्र नहीं.
    चौथी मांग थी : तीस अगस्त तक बिल संसद में पास हो.
    नतीजा : तीस अगस्त तो दूर सरकार ने कोई समय सीमा तक तय नहीं की कि वह बिल कब तक पास करवाएगी.
    पांचवीं मांग थी : बिल को स्टैंडिंग कमेटी में नहीं भेजा जाए.
    नतीजा : स्टैंडिंग कमेटी के पास एक के बजाय पांच बिल भेजे गए हैं.
    छठी मांग थी : लोकपाल की नियुक्ति कमेटी में सरकारी हस्तक्षेप न्यूनतम हो.
    नतीजा : सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं किया तथा अन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में भी इ***ा कोई जिक्र तक नहीं.
    सातवीं मांग : जनलोकपाल बिल पर संसद में चर्चा नियम 184 के तहत करा कर उ***े पक्ष और विपक्ष में बाकायदा वोटिंग करायी जाए.
    नतीजा : चर्चा 184 के तहत नहीं हुई, ना ही वोटिंग हुई.
    इन सबके अतिरिक्त वे 'तीन अन्य मांगें' जिनका जिक्र सरकारद्वारा आज अन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में किया है,
    इस प्रकार हैं:(1) सिटिज़न चार्टर लागू करना.(2) निचले तबके के सरकारी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाना.(3) राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति करना.प्रणब मुखर्जी द्वारा इस संदर्भ में आज शाम संसद में दिए गए बयान में स्पष्ट कहा गया कि इन तीनों मांगों के संदर्भ में सदन के सदस्यों की भावनाओं से अवगत कराते हुए लोकपाल बिल में संविधान की सीमाओं के अंदर इन तीन मांगों को शामिल करने पर विचार हेतु आप (लोकसभा अध्यक्ष) इसे स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजें.

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  4. why don't you reply to above two comment buddy?

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