मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के दोषियों को सजा देने के बजाय शर्मनाक संरक्षण देने वाली व्यवस्था के खिलाफ रोषयुक्त ज्ञापन

मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के दोषियों को सजा देने के बजाय शर्मनाक संरक्षण देने वाली व्यवस्था के खिलाफ रोषयुक्त ज्ञापन




श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल जी,
महामहिम राष्ट्रपति -भारत
नई दिल्ली
महोदया,

ज्ञापनः-भारतीय संस्कृति व लोकशाही को कलंकित करने वाले मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के दोषियों को
सजा देने के बजाय शर्मनाक संरक्षण देने वाली व्यवस्था के खिलाफ रोषयुक्त ज्ञापन

जय हिन्द! जैसे की आपको विदित ही होगा कि देश की एकता, अखण्डता व विकास के लिए समर्पित रहे ‘उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन’ में गांधी जयंती की पूर्व संध्या 1 अक्टूबर 1994 को, 2 अक्टूबर 1994 को आहुत लाल किला रेली में भाग लेने आ रहे शांतिप्रिय हजारों उत्तराखण्डियों को, मुजफ्फरनगर स्थित रामपुर तिराहे पर अलोकतांत्रिक ढ़ग से बलात रोक कर जो अमानवीय जुल्म, व्यभिचार व कत्लेआम उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार व केन्द्र में सत्तासीन नरसिंह राव की कांग्रेसी सरकार ने किये, उससे न केवल भारतीय संस्कृति अपितु मानवता भी शर्मसार हुई। परन्तु सबसे खेद कि बात है कि जिस भारतीय गौरवशाली संस्कृति में नारी को जगत जननी का स्वरूप मानते हुए सदैव वंदनीय रही है वहां पर उससे व्यभिचार करने वाले सरकारी तंत्र में आसीन इस काण्ड के अपराधियों को दण्डित करने के बजाय शर्मनाक ढ़ग से संरक्षण देते हुए पद्दोन्नति दे कर पुरस्कृत किया गया।
सबसे हैरानी की बात है कि जिस मुजफ्फरनगर काण्ड-94 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मानवता पर कलंक बताते हुए इसे शासन द्वारा नागरिकों पर किये गये बर्बर नाजी अत्याचारों के समकक्ष रखते हुए इस काण्ड के लिए तत्कालीन मुजफ्फनगर जनपद(उप्र) के जिलाधिकारी व पुलिस अधिकारियों को सीधे दोषी ठहराते हुए इनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने का ऐतिहासिक फैसला दिया था। यही नहीं माननीय उच्च न्यायालय ने केन्द्र व राज्य सरकार को उत्तराखण्ड के विकास के प्रति उदासीन भैदभावपूर्ण दुरव्यवहार करने का दोषी मानते हुए दोनों सरकारों को यहां के विकास के लिए त्वरित कार्य करने का फैसला भी दिया था। जिस काण्ड पर देश की सर्वोच्च जांच ऐजेन्सी सीबीआई ने जिन अधिकारियों को दोषी ठहराया था, जिनको महिला आयोग से लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग दोषी मानता हो परन्तु दुर्भाग्य है कि इस देश में जहां सदैव ‘सत्यमेव जयते’ का उदघोष गुंजायमान रहता हो, वहां पर उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद अपराधियों व उनके आकाओं के हाथ इतने मजबूत रहे कि देश की न्याय व्यवस्था उनको दण्डित करने में आज 17साल बाद भी अक्षम रही है। भारतीय व्यवस्था के इसी बौनेपन से आक्रोशित देश विदेश में रहने वाले सवा करोड़ उत्तराखंडी 1994 से निरंतर आज तक देश की व्यवस्था के शीर्षपदों पर आरूढ़ सत्तासीनों की सोई हुई आत्मा को जागृत करने के लिए एवं उनको उनके दायित्व बोध कराने के लिए निरंतर 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन काला दिवस मना कर न्याय की गुहार लगाते है
इस काण्ड से पीड़ित उत्तराखण्ड की सवा करोड़ जनता को आशा थी कि राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड की राज्य सरकार इस काण्ड के दोषियों को सजा दिलाने को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का काम करेगी। परन्तु हमारा दुर्भाग्य रहा कि वहां पर स्वामी, कोश्यारी, तिवारी, खंडूडी व निशंक जैसे पदलोलुप नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन रहे। इनके शासन में इस काण्ड के अपराधियों को दण्डित करने के बजाय उनको संरक्षण देने की शर्मनाक कृत्य किया गया।
महोदया, हमें आपकी देश भक्ति व न्यायप्रियता पर गर्व है परन्तु आश्चर्य है कि अभी तक आपने एक महिला होते हुए भी महिलाओं के साथ भारतीय शासन व्यवस्था द्वारा किये गये जघन्य अत्याचार पर न्याय करने के लिए अपने प्रभाव का क्यों सदप्रयोग नहीं किया। हमे आशा है कि अब भी आप अपने अन्तर आत्मा की आवाज सुन कर देश की व्यवस्था व मानवता को कलंकित करने वाले इस काण्ड के अपराधियों को दण्डित करने का कार्य करेंगी।
आपसे न्याय की यही आश लगाये सवा करोड़ उत्तराखण्डियों की तरफ से न्याय की एक फरियाद!

उत्तराखण्ड आंदोलनकारी संगठनों की समन्वय समिति
उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा उत्तराखण्ड जन मोर्चा उत्तराखण्ड राज्य लोकमंच उत्तराखण्ड महासभा
एवं म्यर उत्तराखण्ड सहित उत्तराखण्ड के लिए समर्पित संगठन

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