1947 में पाक से कश्मीर में आये लाखों लोगों को नागरिकता से वंचित रखना देश के हुक्मरानों का अक्षम्य अपराध व देश पर कलंक है।
1947 में पाक से कश्मीर में आये लाखों लोगों को नागरिकता से वंचित रखना देश के हुक्मरानों का अक्षम्य अपराध व देश पर कलंक है।
आज 20 मार्च को मैं सांय को साढे तीन बजे जैसे ही संसद की चैखट, राष्ट्रीय धरना स्थल, जंतर-मंतर पर पंहुचा तो वहां पर मेरी नजर एक धरने पर लगे बेनर पर गयी तो मेरा सर शर्म से झुक गया। आजादी हासिल करने के 64 साल बाद भी हम 1947 में देश में शरणार्थी हुए हजारों लोगों को भारत की कश्मीर क्षेत्र की नागरिकता तक नहीं दी । सेकड़ों लोग इस धरने में बेठे थे। उस पर बैनर लगा हुआ था कि 1947 में पाकिस्तान से कश्मीर में आये लाखों लोगों को अभी तक भारत की नागरिकता तक प्रदान नहीं की गयी। इससे बड़ा भारतीयों के लिए दूसरी क्या बात शर्मनाक होगी। देश में आजादी के 64 सालों में भले ही पांच दशक तक कांग्रेसी सरकारें देश की सत्ता में आसीन रही परन्तु देश की सत्ता में जनता पार्टी, भारतीय संस्कृति के स्वयंभू ध्वजवाहक कहने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा पोषित भाजपा नेतृत्व वाली अटल बिहारी वाजपेयी की सरकारें सहित अन्य तीसरे मोर्चे की सरकारें सत्तासीन रही। परन्तु किसी को भी पाकिस्तान से भारत के कश्मीर में 1947 को आये लोगों को आज आजादी के 64 साल बाद भी देश की नागरिकता नहीं मिली। इनका कसूर केवल यही है कि ये हिन्दू धर्मावलम्बी हैं। अगर ये मुस्लिम होते तो इनको बहुत पहले ही देश की नागरिकता प्रदान कर लिया जाता। आज देश में 5 करोड़ से अधिक बंगलादेशी देश के नागरिक है। परन्तु क्या मजाल है कोई जनप्रतिनिधी इस दिशा में एक पल के लिए समर्पित हो। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपनी सरकारों में यह काम क्यों नहीं बता पाये। सत्ता में रहते हुए अटल मनमोहन सरकार को अमेरिका का भान रहता है परन्तु देश की भाषा, संस्कृति, हक हकूकों और देश वासियों के आत्मसम्मान की रक्षा के दायित्व का कैसे भान नहीं रहा। मुझे लगा इसके लिए देश का हर नागरिक और हर राजनेतिक दल गुनाहगार है। आज इस मामले पर अण्णा हजारे क्यों मौन है? आज इस मुद्दे पर संघ व पोषित भाजपा के पास कोई जवाब है। कांग्रेस को तो केवल देश में अल्पसंख्यकों की चिंता के अलावा किसी अन्य लोगों की चिंता ही नहीं रही। देश की मीडिया व पूरी व्यवस्था की शर्मनाक मूकता पर यह बदनुमा कलंक है।
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