दल या नेताओं के लिए नहीं अपितु जनहित के लिए समर्पित हो लोग
दल या नेताओं के लिए नहीं अपितु जनहित के लिए समर्पित हो लोग
षायद कुछ लोग प्रदेष के हितों व नेताओं के काम का आंकलन किये बिना अंध पार्टी या नेताओं के प्रति मोह से ग्रसित हैं। मेरा कभी न किसी नेता या पार्टी से मोह नहीं रहा। मेरा मानना है कि जनहित, मूल्य, प्रदेष के हित व लोकषाही इन तमाम पार्टी, नेताओं व रिष्ते नातों से बढ़ कर है। जो भी नेता चाहे वह कितना भी बड़ा न हो अगर वह देष प्रदेष सहित मानवता के हितों, न्याय, नैतिक मूल्यों व लोकषाही पर अपने संकीर्ण हितों की पूर्ति के लिए कुठाराघात करता है तो मैने सदैव उसका विरोध किया। नेता चाहे प्रदेष के रहे हो या देष या विदेष के। राव-मुलायम-वाजपेयी, मनमोहन, तिवारी, खण्डूडी, निषंक ही नहीं बुष सहित उन तमाम नेताओं का विरोध किया जो लोकषाही व न्याय का गला घोंटने को उतारू रहे। मैने समय समय पर हरीष रावत, महाराज, कोष्यारी सहित उन तमाम नेताओं, सामाजिक संगठनों के गलत कामों का भी विरोध किया। मैं सदैव जाति, धर्म,लिंग, क्षेत्र के नाम पर संकीर्ण राजनीति करने वालों को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं कर सकता। जहां तक खंडूडी जी की सहित प्रदेष के अब तक के किसी भी हुक्मरान ने प्रदेष के हितों पर कुठाराघात, करके कुषासन व जनांकांक्षाओं का दमन करने के अलावा कुछ भी नहीं किया। आज जिस प्रदेष की जनता ने षहादत दे कर अपने विकास के लिए राज्य बनाया उसको इन हुक्मरानों ने अपनी संकीर्णता व सत्तालोलुपता के लिए तबाह कर दिया। आज देष में उत्तराखण्ड भ्रश्टाचार के मामले में सबसे भ्रश्टत्तम प्रदेष बन गया। इसके लिए तिवारी, खण्डूडी व निषंक जिम्मेदार रहे। आज जनसंख्या पर आधारित परिसीमन थोप कर प्रदेष बनाने की अवधारणा की ही निर्मम हत्या की गयी। परन्तु क्या मजाल तिवारी के बाद खंडूडी के सत्तासीन होने पर उन्होंने इस पर अपने दायित्व का जरा सा भी पालन तक किया हो। प्रदेष में भ्रश्टाचार की गर्त में धकेलने के लिए सारंगी व निषंक जेसे प्रकरण में सिरमोर रहे खंडूडी जी ने भ्रश्टाचार पर अंकुष रखने के नाम पर जो लोकायुक्त को ढिंढोरा पूरे भारत में ईमानदारी के नाम से पीटा, वह भ्रश्ट नेताओं को ही बचाने वाला है। ऐसे व्यक्ति को जो केवल अपनी कुर्सी के लिए बैचेन रहता है ओर प्रदेष के हित के लिए षर्मनाक मौन रहता है प्रदेष की राजनीति में क्या जरूरत हैं। जो ऐसे लोगों के लिए आंसू बहा रहे हैं वे बतायें उन्हे प्रदेष के हितों के प्रति जरा सी भी रहम क्यों नहीं है? क्या जो व्यक्ति प्रदेष के हितों व लोकषाही पर ग्रहण लगाने के लिए तुला हो वह ईमानदार कहां से हो गया। जो जनविष्वास पर कुठाराघात करे वह कहां से ईमानदार हो गया। मुझे माफ करें मेरे लिये व्यक्ति नहीं जनहित महत्वपूर्ण है। मेने छह साल निरंतर राज्य गठन के लिए संसद के समक्ष धरना प्रदर्षन करके अपना जीवन लगा दिया और आज भी राज्य के हितों को साकार करने के लिए इन सत्तालोलुपु दलों से संघर्श कर रहा हॅू। खण्डूडी जी से ही नहीं निषंक सहित उत्तराखण्ड के अधिकांष बड़े नेताओं से जितनी निकटता के बाबजूद मेने जिस दो टूक षब्दों में उनसे उत्तराखण्ड के हितों की रक्षा के लिए बार बार गुहार लगायी होगी यह प्रदेष के बड़े नेता व बडे तमाम पत्रकार सहित उनके दरवारी जानते ही है।
षायद कुछ लोग प्रदेष के हितों व नेताओं के काम का आंकलन किये बिना अंध पार्टी या नेताओं के प्रति मोह से ग्रसित हैं। मेरा कभी न किसी नेता या पार्टी से मोह नहीं रहा। मेरा मानना है कि जनहित, मूल्य, प्रदेष के हित व लोकषाही इन तमाम पार्टी, नेताओं व रिष्ते नातों से बढ़ कर है। जो भी नेता चाहे वह कितना भी बड़ा न हो अगर वह देष प्रदेष सहित मानवता के हितों, न्याय, नैतिक मूल्यों व लोकषाही पर अपने संकीर्ण हितों की पूर्ति के लिए कुठाराघात करता है तो मैने सदैव उसका विरोध किया। नेता चाहे प्रदेष के रहे हो या देष या विदेष के। राव-मुलायम-वाजपेयी, मनमोहन, तिवारी, खण्डूडी, निषंक ही नहीं बुष सहित उन तमाम नेताओं का विरोध किया जो लोकषाही व न्याय का गला घोंटने को उतारू रहे। मैने समय समय पर हरीष रावत, महाराज, कोष्यारी सहित उन तमाम नेताओं, सामाजिक संगठनों के गलत कामों का भी विरोध किया। मैं सदैव जाति, धर्म,लिंग, क्षेत्र के नाम पर संकीर्ण राजनीति करने वालों को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं कर सकता। जहां तक खंडूडी जी की सहित प्रदेष के अब तक के किसी भी हुक्मरान ने प्रदेष के हितों पर कुठाराघात, करके कुषासन व जनांकांक्षाओं का दमन करने के अलावा कुछ भी नहीं किया। आज जिस प्रदेष की जनता ने षहादत दे कर अपने विकास के लिए राज्य बनाया उसको इन हुक्मरानों ने अपनी संकीर्णता व सत्तालोलुपता के लिए तबाह कर दिया। आज देष में उत्तराखण्ड भ्रश्टाचार के मामले में सबसे भ्रश्टत्तम प्रदेष बन गया। इसके लिए तिवारी, खण्डूडी व निषंक जिम्मेदार रहे। आज जनसंख्या पर आधारित परिसीमन थोप कर प्रदेष बनाने की अवधारणा की ही निर्मम हत्या की गयी। परन्तु क्या मजाल तिवारी के बाद खंडूडी के सत्तासीन होने पर उन्होंने इस पर अपने दायित्व का जरा सा भी पालन तक किया हो। प्रदेष में भ्रश्टाचार की गर्त में धकेलने के लिए सारंगी व निषंक जेसे प्रकरण में सिरमोर रहे खंडूडी जी ने भ्रश्टाचार पर अंकुष रखने के नाम पर जो लोकायुक्त को ढिंढोरा पूरे भारत में ईमानदारी के नाम से पीटा, वह भ्रश्ट नेताओं को ही बचाने वाला है। ऐसे व्यक्ति को जो केवल अपनी कुर्सी के लिए बैचेन रहता है ओर प्रदेष के हित के लिए षर्मनाक मौन रहता है प्रदेष की राजनीति में क्या जरूरत हैं। जो ऐसे लोगों के लिए आंसू बहा रहे हैं वे बतायें उन्हे प्रदेष के हितों के प्रति जरा सी भी रहम क्यों नहीं है? क्या जो व्यक्ति प्रदेष के हितों व लोकषाही पर ग्रहण लगाने के लिए तुला हो वह ईमानदार कहां से हो गया। जो जनविष्वास पर कुठाराघात करे वह कहां से ईमानदार हो गया। मुझे माफ करें मेरे लिये व्यक्ति नहीं जनहित महत्वपूर्ण है। मेने छह साल निरंतर राज्य गठन के लिए संसद के समक्ष धरना प्रदर्षन करके अपना जीवन लगा दिया और आज भी राज्य के हितों को साकार करने के लिए इन सत्तालोलुपु दलों से संघर्श कर रहा हॅू। खण्डूडी जी से ही नहीं निषंक सहित उत्तराखण्ड के अधिकांष बड़े नेताओं से जितनी निकटता के बाबजूद मेने जिस दो टूक षब्दों में उनसे उत्तराखण्ड के हितों की रक्षा के लिए बार बार गुहार लगायी होगी यह प्रदेष के बड़े नेता व बडे तमाम पत्रकार सहित उनके दरवारी जानते ही है।
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