प्रभु के हो तुम,
प्रभु के हो तुम,
प्रभु के हो तुम,
ना बनो किसी और के आदमी।।
ना किसी दल के, ना किसी बल के
बनो ना मोहरे तुम किसी के स्वार्थ के।।
सत्य, न्याय के लिए रहो समर्पित
दो दिन के सफर के तुम हो राही।।
छोड़ो ममत्व, स्वार्थ व संकीर्णता
बनो सदा सतपथ के राही।।
मूक न रहो अन्याय को देख कर
सिपाई ही बनो सदा कुरूक्षेत्र के ।।
हो सबेरा सबके लिए जग में
इसी मार्ग पर जीवन समर्पित करो।।
देश, धर्म व स्वहितों के लिए भी
कभी सत्य-न्याय को गला न घोंटना।।
सवमें प्रभु है जान ले
सबकी खुशी में जीना सदा।।
प्रभु के हो तुम
ना बनो और किसी के आदमी।।
-देवसिंह रावत(1अप्रेल 2012, प्रातः सवा आठ बजे)
www.rawatdevsingh.blogspot.com
प्रभु के हो तुम,
ना बनो किसी और के आदमी।।
ना किसी दल के, ना किसी बल के
बनो ना मोहरे तुम किसी के स्वार्थ के।।
सत्य, न्याय के लिए रहो समर्पित
दो दिन के सफर के तुम हो राही।।
छोड़ो ममत्व, स्वार्थ व संकीर्णता
बनो सदा सतपथ के राही।।
मूक न रहो अन्याय को देख कर
सिपाई ही बनो सदा कुरूक्षेत्र के ।।
हो सबेरा सबके लिए जग में
इसी मार्ग पर जीवन समर्पित करो।।
देश, धर्म व स्वहितों के लिए भी
कभी सत्य-न्याय को गला न घोंटना।।
सवमें प्रभु है जान ले
सबकी खुशी में जीना सदा।।
प्रभु के हो तुम
ना बनो और किसी के आदमी।।
-देवसिंह रावत(1अप्रेल 2012, प्रातः सवा आठ बजे)
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