खण्डूडी की षर्मनाक हार के लिए कोई और नहीं अपितु खुद खंण्डूडी ही जिम्मेदार हैं

खण्डूडी की षर्मनाक हार के लिए कोई और नहीं अपितु खुद खंण्डूडी ही जिम्मेदार हैं
मैं भगवान बदरीनाथ, नरसिंह देवता, माॅं सिंह भवानी, गोलू देवता, पांडव देवता, भूमि को भूमियाल, काल भैरव सहित उत्तराखण्ड के कण कण में व्याप्त 33 करोड़ देवी देवताओं को षतः षतः नमन् करता हूूॅ कि जो उन्होंने मेरी पांच महिने से अधिक पुरानी पुकार सुन कर प्रदेष की सत्ता से खंडूडी के नेतृत्व वाली उत्तराखण्ड विरोधी भाजपा सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया। उत्तराखण्ड विरोधी तिवारी के अधिकांष प्यादों को हरा दिया। क्योंकि इन हुक्मरानों ने उत्तराखण्ड जेसी देव भूमि को मात्र अपनी सत्तालोलुपता का मोहरा समझा। इन्होंने चंद सालों में विधायक बनके यहां पर लूट खसोट का अड्डा समझा। अगर इनमें जरा सी भी उत्तराखण्ड की भूमि से लगाव होता तो ये उत्तराखण्ड में हिमाचल की तर्ज पर यहां पर भू माफियाओं से बचाने वाला सषक्त कानून बनातें। ये यहां पर जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई परिसीमन नहीं थोपने देते। ये यहां पर मुजफरनगर काण्ड के अभियुक्तों का दण्डित करने में इस तरह पीठ नहीं दिखाते। ये प्रदेष की स्थाई राजधानी गैरसैंण बनाने का काम करते। ये प्रदेष के संसाधनों को अपने प्यादों व आकाओं को इतनी बेषर्मी से नहीं लुटाते। इनमें जरा सी भी इंसानियत होती तो ये प्रदेष में प्रतिभा का सम्मान करते न की जातिवाद-क्षेत्रवाद व भ्रश्टाचार की गर्त में प्रदेष को धकेलने का कुकृत्य करते।
यहां पर एक बात मैं साफ कर दॅू कि मैं खण्डूडी जी सहित इन तमाम नेताओं का विरोध केवल इस लिए करता हूूॅ कि इन्होंने प्रदेष की जनांकांक्षाओं पर ग्रहण लगाया। प्रदेष के हितों को रौंदने का काम किया। मेरा प्रदेष के तमाम बडे नेताओं से व्यक्तिगत अच्छा सम्बंध है परन्तु जो प्रदेष के हितकारी न हुए उनको मैं किसी भी कीमत पर माफ नहीं करता।
जहां तक खंण्डूडी जी का प्रष्न है उन्होंने अपने हाथों से अपना ही नहीं पूरे प्रदेष का बुरा किया। उन्होंने कभी भी एक समझदार नेता की तरह निर्णय नहीं लिया अपितु उन्होंने हमेषा आत्मघाति ही नहीं प्रदेष घाति निर्णय लिये है। उनका प्रथम आत्मघाति निर्णय जो निषंक को मुख्यमंत्री बनाने का था, उनके इस निर्णय ने न केवल प्रदेष के हितों को कलंकित किया अपितु उनके राजनैतिक जीवन पर भी ग्रहण लगाने का काम किया। वह तो टीपीएस रावत व उनके मोर्चे का भला हो गया जिनके विरोध के कारण खण्डूडी को पुन्न मुख्यमंत्री भाजपा आला नेतृत्व ने बना दिया। इसके बाद खण्डूडी का दूसरा सबसे आत्मघाति निर्णय कोटद्वार जैसी सीट से चुनाव लडने का रहा। कोटद्वार से भाजपा का जनप्रिय विधायक एस एस रावत वर्तमान विधायक रहे, अपनी पूर्ववर्ती सीट लैन्सीडान से लडने के बजाय खण्डूडी ने अगर सुरक्षित सीट भी खोजनी थी तो उनके लिए यमकेष्वर, श्रीनगर, केदारनाथ, कर्णप्रयाग व धरमपुर सीट सबसे सुरक्षित सीटें थी। कोटद्वार में सुरेन्द्रसिंह नेगी न केवल प्रदेष के पूर्व कबीना मंत्री का चुनावी क्षेत्र हैं अपितु यह उनका मजबूत गढ़ भी माना जाता है। ऐसे मजबूत विरोधी दल के नेता के मांद में आ कर अपने ही विधायक की टिकट काट कर चुनावी जंग में हवाई समर्थकों के भरोसे से चुनावी जंग में उतरना खंडूडी की आत्मघाति भूल है। इसी कारण वे हारे। उन पर जो जातिवाद का आरोप लगता रहा वह उनके मंत्रीमण्डल के गठन, निषंक को सीएम बनवाने, दायित्वधारियों व नौकरषाहों के विभागों का निर्धारण से पहले ही जग जाहिर हो चूका था, परन्तु वर्तमान जनप्रिय भाजपा के ही विधायक एस एस रावत की टिकट काट कर उन्होंने कोटद्वार से लड़ने की बात भी लोग को इसी आरोप की पुश्टि ही लगी। किसी भी व्यक्ति के इच्छा के खिलाफ उसकी बेवजह टिकट काटना किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति को दिल से बुरा नहीं लगेगा। अगर कोई नेता खण्डूडी के साथ ऐसा ही सलूक करता तो क्या खंडूडी उसको दिल से स्वीकार कर सकते। नहीं कभी नहीं। इसलिए खण्डूडी की हार के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो खंडूडी ही है। उनके गलत निर्णय के कारण न केवल उनको खुद अपितु प्रदेष को भी इसका दंष झेलना पडता है। इसके अलावा उनका तीसरा महत्वपूर्ण कदम लोकायुक्त का गठन रहा। जिस प्रकार से इसका प्रचार किया गया और ऐतिहासिक बताया गया जब इस बिल की असलियत सामने आयी तो यह भ्रश्ट राजनेताओं को बचाने वाला लोकायुक्त साबित हो गया। जो प्रदेष की जनता उनको ईमानदार मानती है उसी जनता के साथ ऐसा विष्वासघात करना कम से कम किसी विवेकषील नेता को षोभा नहीं देता।
खण्डूडी के आस पास सजातीय, आम जनता से दूरी रखने वाले अलोकषाही प्रवृति के लोगों का जमघट रहता हैं वे न तो उनको सही सलाह देते हैं व नहीं प्रदेष के हित में उनको सही दिषा में काम करने की सलाह तक दे सकते है। इसी के कारण खण्डूडी जिन पर प्रदेष की जनता का अटूट विष्वास रहा वे इस अमूल्य निधि की भी रक्षा नहीं कर पाये। इसके लिए भीतरघात नहीं अपितु खंडूडी ही जरूरी है।

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