-कुर्सी के लिए देश को तबाह करने से बाज आये हुक्मरान


-कुर्सी के लिए देश को तबाह  करने से बाज आये हुक्मरान/
-पंजाब को फिर आतंकबाद की गर्त में धकेलने का षडयंत्र/

 देश की हालत बहुत ही बद से बदतर हो रही है। एक तरफ संसद हमले के दोषी अफजल गुरू को फांसी देने में केन्ट्र सरकार के हाथ कांप रहे है। केन्द्र सरकार को भय है इससे मुस्लिम समाज नाराज हो जायेगा। बादल के नेतृत्व में अकाली सिखों को लुभाने के लिए बेअंत के हत्यारे को माफी का आंदोलन चला रहे है। वहीं तमिलनाडू में राजीव गांधी की हत्यारों को माफ करने की मांग रह रह कर उठ रही है। फिर भारत की रक्षा का दायित्व क्या अमेरिका पूरा करेगा? आज देशवासियों को यह सवाल मनमोहन सिंह, बादल व अब्दुला से पूछना चाहिए? यही सवाल भाजपा सहित हर दल के प्रमुख से पुछना चाहिए। कांग्रेस में जिस प्रकार से बटाला प्रकरण को राजनैतिक लाभ के लिए हवा देने का शर्मनाक कृत्य समय समय पर किया जाता है। भाजपा जिस प्रकार से पंजाब के आतंकवादियों को सम्मानित करने के प्रकरण पर मूकता रखती है, जिस प्रकार से जम्मू कश्मीर सरकार संसद हमले के दोषी अफजल को फांसी देने का विरोध करती, उससे साफ हो गया कि इन सभी राजनैतिक दलों को केवल कुर्सी की चिंता है देश की अखण्डता व एकता की कोई चिंता नहीं है। लालू, पासवान, मुलायम, माया आदि नेताओं से देश के हितों की सुरक्षा के लिए राजनीति करने की आश करना भी एक प्रकार बेईमानी ही होगी। आखिर देश के लिए राजनीति ये दल कब करेंगे।
जिस प्रकार से अकाली दल की समर्थक धार्मिक संस्था सिरोमणी गुरूद्वारा प्रबंधक समिति व अन्य धार्मिक संस्थाये पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे की फांसी की सजा को माफ करने के लिए आवाज उठा रही है, धरना प्रदर्शन कर रही हैं। उससे एक बार फिर पंजाब में आतंकवाद को सर उठाने के लिए अवसर मिल जायेगा। जब आतंकी घटनाओं में लिप्त लोगों को यह संदेश मिलेगा कि उनके कृत्यों के बचाव में उनका पूरा समाज व धर्म है तो वे देश के कानून की परवाह क्यों करेंगे। बेअंत सिंह ने अपनी शहादत दे कर भारत की रक्षा की, देश में आतंकवाद को कुचला। उनके हत्यारों को माफ करने की बात करने वालों को उस समय क्यों सांप सुंघ जाता है जब पंजाब में आतंकवाद की आड में हजारों निर्दोष हिन्दुआंें व सिखों को मारने वाले पाकिस्तान के समर्थक आतंकियों को दण्डित करने की बात उठती है। जब से पंजाब में अकाली सरकारें आये तब से आतंक को कुचलने में लगे जांबाज पुलिस अधिकारियों व देश के लिए समर्पित लोगों पर एक प्रकार से कहर ही टूटने लगा है। उनको प्रताडित किया जा रहा है। आतंकियों को सम्मानित करना, उनको शासन प्रशासन द्वारा संरक्षण देना एक प्रकार का देश के खिलाफ खतरनाक षडयंत्र है। इसको किसी जाति, धर्म या प्रदेश से नहीं जोड़ना चाहिए। पंजाब में जिस प्रकार से कांग्रेस व भाजपा ने इस मांग के खिलाफ अपना प्रचण्ड विरोध न किया जाना भी इन दोनों दलों की नपुंसकता का परिचय है। इसीकारण पंजाब में आज कांग्रेस को हाथ में आयी सत्ता भी फिर अकालियों के हाथ चले गयी। जिस प्रकार से पंजाब में तथाकथित खालिस्तानी राष्ट्रपति को विधानसभा में श्रद्धाजलि दी गयी। अनैक आतंकियों को माफी दी गयी, उससे देश की एकता व अखण्डता पर एक प्रकार का बज्रपात ही हुआ।
कांग्रेस का ढुलमुल रवैया व भाजपा का सत्तांध होने के कारण ही बादल को देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी का अहसास तक नहीं किया गया। पंजाब में कांग्रेस की इस कायरना स्थिति को भांपते हुए बाबा राम रहीम ने इन चुनाव में कांग्रेस से अपना हाथ उठा दिया। क्योंकि गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को समर्थन देने के कारण अलालियों के कोप भाजन का जब शिकार बाबा राम रहीम हुए तो कांग्रेस ने उनका साथ देने के बजाय उनको उनके हाल में छोड दिया था। तब से बाबा को सबक मिल गया था कि भूल कर कांग्रेस का साथ किसी को भी नहीं देना चाहिए।
गौरतलब है कि 12 अक्टूबर, 2010 को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने कांग्रेस नेता और पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मुख्य आरोपी हवारा के मृत्युदंड को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था। इससे पहले आरोपी हवारा, राजोआणा सहित अन्य को निचली अदालत ने 2007 में मौत की सजा सुनाई थी लेकिन हाईकोर्ट ने अन्य आरोपियों के समान राजोआणा की सजा को कम नहीं किया। राजोआणा ने इस हत्याकांड को अकेले अंजाम देने का इकबालिया बयान दिया था। गौरतलब है कि 31 अगस्त, 1995 को हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री के हत्याकांड के आरोपी हवारा की सजा कम करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि उसे तब तक कैद की सजा दी जाती है, जब तक कि उसकी मौत न हो जाए। इसके बाद राजोआणा को छोड़कर अन्य सभी ने निचली अदालत की ओर से दी गई सजा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जबकि एजेंसी की ओर से भी हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी।
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के जुर्म में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट से मौत की सजा मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाने वाले आतंकी बलवंत सिंह राजोआणा के मृत्युदंड पर रोक लगाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका में कहा गया है कि जिस फैसले में राजोआणा को फांसी की सजा दी गई है उसी फैसले में मुख्य अपराधी जगतार सिंह हवारा की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील किया गया है। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सीबीआई की अपील सर्वोच्च अदालत में लंबित है। ऐसे में राजोआणा को सूली पर चढ़ाया जाना गैरकानूनी होगा। यह हो सकता है कि हवारा को मौत की सजा देने की सीबीआई की अपील में सुप्रीम कोर्ट को यह महसूस हो कि अन्य आरोपियों को भी मृत्युदंड नहीं दिया जाना चाहिए। दोषी राजोआणा को 31 मार्च को फांसी दी जानी है। लायर्स फॉर ह्यूमन राइट इंटरनेशनल की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि राजोआणा को सूली पर चढ़ाने से पहले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जाना चाहिए। भले ही मुजरिम की ओर से अपील दायर की गई हो या नहीं। याचिका में कहा गया है कि मृत्युदंड सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना नहीं दिया जाना चाहिए। हालांकि हाईकोर्ट की पुष्टि के बाद मौत की सजा का प्रावधान है लेकिन उसी केस से संबंधित अपील का निपटारा न होने तक मृत्युदंड उचित नहीं है। न्याय करने वालों के सर पर जब इस प्रकार का आतंक मंडराने लगे तो कोन निष्पक्ष न्याय देगा। आज अकाल तख्त को गुरू गोविन्द सिंह सहित गुरूओं के त्याग व बलिदान का अर्थ समझना चाहिए। परन्तु इस देश में अब इमान की बात करने वाले या सिद्धात के लिए मर मिटने वालों की कोई सुनवाई नहीं होती।
इन याविका लगाने वालों को पंजाब में खालिस्तानी आतंक से मारे गये हजारों निर्दोष लोगों की मौत का शायद कहीं कोई भान हो। इनकी नजरों में इन मारे गये निर्दोष लोगों का कहीं कोई मानवाधिकार का अहसास हो। इन मारे गये लोगों के शोकाकुल परिजनों की भावनाओं का जरा सा भी अहसास हो। पाकिस्तान की शह पर इस देश को तबाह करने वालों के पेरोंकारों को क्या नाम दिया जाय। अगर यही हाल रहा तो देश के लिए कौन कुर्वान होगा। क्या सोचकर लोग देश के दुश्मनों से लडने का साहस करेगा। जो देश व समाज अपने लिए कुर्वान होने वाले या समर्पित लोगों का सम्मान नहीं कर सकता है उस देश को तबाह होने से कोई रोक नहीं सकता। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि औम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।

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