-चीन से तिब्बत की आजादी के लिए मेरी आंखों के आगे एक और शहादत


-तिब्बत को खुद आजाद करे चीन!
-चीन से तिब्बत की आजादी के लिए मेरी आंखों के आगे एक और शहादत /
-तिब्बत की त्रासदी से सबक लें उत्तराखण्डी/
आज 26 मार्च सोमवार को  दोपहर बारह बजे के बाद जेसे ही कनाट प्लेस की तरफ से  आंदोलनकारियों से खचा खच भरे जंतर मंतर स्थित राष्ट्रीय धरना स्थल पर पंहुचा ही था, वहां पर चारों तरफ देश के विभिन्न हिस्सों से आये अनेक संगठनों के आंदोलनकारी अपने मंचों से अपनी अपनी मांग को लेकर आंदोलन के समर्थन में सभाये व नारेबाजी कर रहे थे। जैसे ही मैं संसद की चैखट राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर पर पंहुचा तो यकायक वहां पर मैने आग की ज्वालाओं में घिरे एक व्यक्ति को वहां बीचों बीच सडक में आंदोलनकारियों की भीड़ में अपनी तरफ दौडते हुए देख कर स्तब्ध रह गया। मैं अचानक दिखे इस दृश्य को एक पल के लिए समझ भी नहीं पाया था कि तब तक चारों तरफ से लोग व पुलिस वाले उधर दौड पडें। हालांकि भारी भीड के कारण मैं उसका चेहरा नजदीक से नहीं देख पाया। दर्जनों मीडिया व इलेक्ट्रोनिक चैनलों के केमरे उस व्यक्ति की तरफ दोड़े तो तब मुझे समझ में आया ये तो किसी आंदोलनकारी ने यहां पर आत्मदाह कर दिया। उस पर पुलिस वाले व तिब्बती आंदोलनकारी पानी आदि फेंक व बचाव करने का प्रयाश कर रहे थे। बडी मुश्किल से उस काफी जलचूके आंदोलनकारी को 100 नम्बर वाली पुलिस की जिप्सी में चिकित्सालय ले जाया गया। तिब्बती ही नहीं मेरे जैसे सेकडों लोगों की आंखों से इस बलिदान पर बरबस आंसू निकल आये। चारों तरफ तिब्बती ही नहीं आम लोग भी चीन के हुक्मरानों द्वारा तिब्बत में किये जा रहे अन्याय के खिलाफ नारेबाजी व तिब्बत जिन्दाबाद के नारे से जंतर मंतर गूंज गया। पूरा राष्ट्रीय आंदोलन स्थल स्तब्ध रह गया। आत्मदाह करने वाला अपनी शहादत देगया तिब्बत की आजादी के लिए। वहां पर हजारों की संख्या में तिब्बती आंदोलनकारी उद्देल्लित थे। मुझे इस घटना ने झकझोर कर रख दिया। मेरे मानस पटल पर  चीन के सम्राज्यवादी प्रवृति पर गहरा आक्रोश उमड पडा। मुझे उत्तराखण्ड राज्य गठन आंदोलन के समय 1994 -95 के दौरान भी जंतर मंतर के तिकोने पार्के में प्रातःकाल तिब्बती आंदोलनकारी ने तिब्बत की चीन से मुक्ति के लिए इसी प्रकार से अपनी शहादत आत्मदाह करके दी। चीन ने तिब्बत पर बलात कब्जा करके तिब्बतों को अपना गुलाम बना दिया है। लाखों की संख्या में तिब्बती भारत सहित पूरे संसार में निर्वासित जीवन जीने के लिए अभिशापित है। भारत में
धर्मशाला में तिब्बत की निर्वासित सरकार आसीन है। तिब्बतों के सर्वोच्च धर्मगुरू व प्रशासक दलाई लामा भी भारत के धर्मशाला में ही निवास करते है। चीन इसी कारण भारत से नाराज है। आज की परिस्थितियों में जब चीन विश्व की महाशक्ति बन गया। वह अमेरिका सहित विश्व की आर्थिक सम्राज्य पर शिकंजा जकड़ चूका है। सामरिक ताकत इतनी की उसकी हुंकार से अब अमेरिका भी सहम सा जाता है। इस कारण निकट भविष्य में चीन से तिब्बत की मुक्ति की राह अगर कहीं से दिखाई देती तो वह केवल अमेरिका ही है। भारत से तिब्बती यह आश कर नहीं सकते है क्योंकि उनको मालुम है जो भारत अपनी हजारों एकड़ भू भाग चीन द्वारा बलात हडप जाने पर ही मुंह नहीं खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हो वह चीन से तिब्बत की आजादी के लिए प्रश्न उठाने का साहस तो सपने में भी नहीं कर सकता। परन्तु आज चीन की स्थिति बहुत ही विचलित करने वाली है। वह महाशक्ति बन गया है। अमेरिका पर ही तिब्बतियों को पूरा भरोसा हैं कि एक न एक दिन अमेरिका उसको इस्राइल की तरह ही अपना देश दिला कर दम लेगा। परन्तु अरब देशों पर तो अमेरिका व ब्रिटेन का बस चल गया, परन्तु क्या चीन के साथ ताकत के बल पर अमेरिका व उसके मित्र राष्ट्र ऐसा जोखिम लेने की कोशिश करेंगे। यह भविष्य की बात है। परन्तु तिब्बत की आजादी काफी हद तक अमेरिका पर ही निर्भर कर रही है। मुझे तो भगवान श्रीकृष्ण पर परम् विश्वास है। चीन को न्याय का सम्मान करते हुए तिब्बत को स्वतंत्र कर देना चाहिए। तिब्बत की स्वतंत्रता अमेरिका के हस्तक्षेप से हो यह न तो चीन के लिए हितकर है व नहीं विश्व शांति के लिए। इसलिए चीन को चाहिए कि वह विश्व शांति के लिए अपनी प्रतिबंधता दिखाने के लिए स्वयं तिब्बत को स्वतंत्र कर दे। तिब्बत की आजादी के साथ चाहे तो चीन तिब्बत की सुरक्षा का दायित्व खुद भी उठा सकता है। परन्तु चीन को एक बात समझ लेनी चाहिए कि दमनकारी ताकत व सम्राज्य कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो उसे एक न एक दिन अपने गुनाहों के कारण तबाह होना पडता है। इसलिए दमनकारी प्रवृति पर खुद ही अंकुश लगा कर तिब्बत को खुद ही स्वतंत्र करे चीन। यही इसका सबसे श्रेष्ठ समाधान होगा। चीन के इस कदम से इस क्षेत्र में अपना शिकंजा जकड़ने की अमेरिकी रणनीति पर पूरी तरह से अंकुश लग जायेगा।  परन्तु मुझे लगता है कि अमेरिका के भय से भयभीत चीन तिब्बतियों पर विश्वास नहीं करता है। परन्तु तिब्बतियों का दिल जीतने के लिए चीन खुद ही तिब्बत को स्वतंत्र इस शर्त पर दे कि उसमें अमेरिका सहित किसी अन्य विदेशी ताकत का कोई हस्तक्षेप न हो। चीन केवल इसकी सामरिक सुरक्षा का दायित्व खुद ही उठा सकता है।
तिब्बती शहीदों की शहादत को नमन् करता हॅू। जनभावनाओं के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले महान सपूतों की भावनाओं को मैं समझता हॅू। यह भगवान श्री कृष्ण की अपार कृपा रही जो देश के सत्तांध हुक्मरानों ने उत्तराखण्ड राज्य बना दिया। नहीं तो मेरा क्या हाल होता मैं समझ सकता हॅू। उत्तराखण्ड राज्य के लिए मैने निरंतर 6 साल तक संसद की चैखट पर (1994 से 2000) राज्य गठन तक निरंतर धरना प्रदर्शन व रैलियां आदि करते हुए मैं भी कई बार निराश व आक्रोशित हो जाता था। उस समय मुझे याद है परम रहस्यमय शक्तियों के स्वामी काला बाबा जो कभी कभार हमारे उत्तराखण्ड धरने में मुझे आशीर्वाद व मेरा मनोबल बढ़ाने आते थे , वे अक्सर कहते थे देवी ये तेरे कारण मैं यह उत्तराखण्ड बनवा रहा हॅू। तु देखना उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद लुटेरों के शिकंजे में ही जकड़ जायेगा। तू भी मेरी तरह अपने समर्पण पर रोयेगा। मुझे बाबा अकसर कहते थे कि देवी मैने भी देश की आजादी के लिए अपने आप को तेरी तरह ही समर्पित कर दिया, आज यह आजादी लुटेरों के हाथों में जकड गयी। मुझे लगता कि अगर तेलांगना की तरह ये हुक्मरान उत्तराखण्ड राज्य नहीं बनाते तो हम भी आज भी उसी आंदोलन में जुटे रहते। परन्तु मेरा तो भगवान श्रीकृष्ण पर अपार विश्वास रहा। उन्हीं की कृपा से ये राज्य बन गया। नहीं तो आज क्या स्थिति होती इसकी कल्पना करके भी मै कई बार में विचलित हो जाता हॅू। आज जब मैं प्रदेश के हुक्मरानों द्वारा प्रदेश के हक हकूकों को रौंदते हुए देखता हूूॅ तो मुझे राज्य गठन के लिए अपने साथियों द्वारा सहा गया दमन, दी गयी शहादत व संघर्ष के वे विचलित करने वाले दिन व परिस्थितियां एक एक करके मुझे कई बार उद्देल्लित करती है। कई बार मेरे आंदोलन के साथी या जानकार लोग यह कह कर मुझे झकझोरने की कोशिश करते हैं कि क्या इसी के लिए हमने धूप, सर्दी बरसात, पुलिसिया, दलीय गुलामों व उत्तराखण्ड विरोधियों का दमन सहा। मैं चुप हो कर भगवान श्रीकृष्ण के न्याय पर विश्वास रखता हॅू। मुझे मालुम है कि उसने किस प्रकार उत्तराखण्ड से खिलवाड करने वाले राव, मुलायम, माया, वाजपेयी, तिवारी, खंडूडी, निशंक आदि को एक एक करके दण्डित किया। अब सोनिया गांधी ने जिस बेशर्मी से जनादेश का मजाक उडा कर विधायकों की भावना को नजरांदाज करते हुए विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री के रूप में थोपा उससे उनको भी 2014 में जहां देश की सत्ता से हाथ धोना पडेगा। वहीं बहुगुणा की सरकार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पायेगी।
तिब्बती अमर सपूत के देश की आजादी के लिए दिया गया शहादत से मुझे एक बात विचलित कर रही है कि अगर उत्तराखण्डियों ने अपने हक हकूकों के प्रति इसी प्रकार दलीय बंधुआ गुलाम बन कर उदासीन रहे तो वह दिन दूर नहीं जब उत्तराखण्डियों की स्थिति तिब्बतियों की तरह अपनी जन्म भूमि के लिए मोहताज हो जाये। जिस प्रकार उत्तराखण्डियों ने मूक रहते हुए गैरसैंण राजधानी गठन के विषय पर मूकता दिखाई, जिस प्रकार मुजफरनगर काण्ड के अभियुक्तों को दण्डित कराने के बजाय उनको शर्मनाक संरक्षण दिये जाने पर शर्मनाक मूकता दिखाई, जिस प्रकार जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई क्षेत्रों का परिसीमन को शर्मनाक मूकता के साथ स्वीकार किया गया, जिस शर्मनाक ढ़ग से प्रदेश में भाजपा व कांग्रेस जातिवाद का जहर जबरन थोप रहे है, परन्तु इसको उजागर करके विरोध करने वालों का समर्थन करने के बजाय उनको ही जातिवाद का प्रतीक बताने का कृत्य किया जा रहा है। इन सब बातों से किसी भी स्वाभिमानी उत्तराखण्डी का सर शर्म से झुक जायेगा। प्रदेश में भ्रष्टाचार का तांडव ही मचा हुआ है। प्रदेश के संसाधनों को जिस प्रकार से लुटवाया जा रहा है उसको देख कर प्रदेश के जागरूक लोगों को एकजूट हो कर भाजपा व कांग्रेस की जबरन लूट पर अंकुश लगाने के लिए भारी जनदवाब बनाना चाहिए। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब उत्तराखण्डी तिब्बतियों की तरह दर दर की ठोकरे खाने के लिए अभिशापित हो जाय। शेष श्री कृष्ण । हरि औम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।

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