उत्तराखण्ड की लोकशाही को कांग्रेस भाजपा के जातिवादी दलालों से बचाओ


उत्तराखण्ड की लोकशाही को  कांग्रेस भाजपा के जातिवादी दलालों से बचाओ 
मेरा तमाम बुद्धिजीवियों से निवेदन है कि उत्तराखण्ड की लोकशाही के लिए वे एकजूट हो कर इसको अपनी जातिवादी व पदलोलुपु संकीर्णता से तबाह कर रहे भाजपा व कांग्रेस के आला नेतृत्व के कुकृत्यों के खिलाफ एकजूट हो। तुम तीर पर तीर चलाओ कोई बात नहीं, हम जख्म भी दिखायें तो तुम रो पडे। उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद जिस प्रकार से भाजपा व कांग्रेस के आलानेतृत्व के थोपे गये तिवारी, खण्डूडी व निशंक जैसे पदलोलुपु उत्तराखण्ड विरोधी मोहरों ने भ्रष्टाचार, जातिवाद व क्षेत्रवाद से देश के सबसे भ्रष्टाचारी राज्य बना कर लोकशाही को ही तबाह कर दिया है। भाजपा व कांग्रेस के आला नेतृत्व ने यहां के जमीनी स्थापित नेतृत्व को दरकिनारे करके जिस प्रकार से अपने जातिवादी संकीर्णता को थोपते हुए यहां पर सदियों से स्थापित सामाजिक भाई चारे को तार तार करने का घृर्णित कृत्य किया है। उसको बेनकाब होने पर उत्तराखण्ड के कुछ लोगों को बुरा लग रहा है। होना चाहिए था कि तमाम बुद्धिजीवी एकजूट हो कर यहां पर भाजपा व कांग्रेस के इस षडयंत्र का विरोध करके उत्तराखण्ड की रक्षा में जनता को जागृत करते। परन्तु ये लोग भाजपा व काग्रेस का उत्तराखण्ड को तबाह करने वाला शैतानी चैहरा बेनकाब करने वालों का ही विरोध करने का काम करके समाज को फिर जातिवादी संकीर्णता के गर्त में धकेल रहे है। मै जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा, लिंग व नस्ल के नाम पर अपने को श्र्रेष्ट व दूसरों को हेय समझने वालों को मानवता का ही नहीं ईश्वरीय सृष्टि का दुश्मन मानता हॅू। यह विवाद व्यक्तियों का विवाद नहीं अपितु उत्तराखण्ड को अपनी जागीर समझ कर अपने नक्कारे प्यादों को थोपने वाले भाजपा व कांग्रेस के आलानेतृत्व के जातिवादी सकीर्ण अलोकशाही सोच के विरोध में लोकशाही को स्थापित करने के लिए है। जो लोग इस विवाद को हरीश रावत या विजय बहुगुणा का विवाद मानते है, उनको जनता को यह बताना चाहिए कि वे बताये विजय बहुगुणा को क्यों प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाना चाहिए था, क्या ये इस थोपे गये मोहरे के समर्थन में जनता की आवाज को जातिवादी बताने वाले बतायें कि बहुगुणा जी की किस प्रतिभा से वे उतराखण्ड का विकास करना चाहते है। क्या मुम्बई हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति रहते हुए उनके गौरवशाली सेवाओं के लिए या उत्तराखण्ड समाज के हितों पर मूक रहने के लिए? वे किस मुंह से प्रदेश में तिवारी की नियुक्ति का समर्थन कर रहे है? वे किस मुंह से निशंक को प्रदेश का भाग्यविधाता बनाने का समर्थन कर रहे है? वे क्यों बहुगुणा को बनाये जाने का समर्थन कर रहे है? जबकि हमारा संविधान साफ साफ कहता है कि मुख्यमंत्री बहुमत दल के विधायकों के नेता को बनाया जाता है। जब भाजपा व कांग्रेस में विधायकों की राय को नजरांदाज करके बलात जातिविशेष के लोगों को 12 साल से थोपा जाय तो उसे ये क्यो समर्थन कर रहे है? क्या इनके इन नपाक कृत्यों का विरोध करने वाले जातिवादी हो गये और प्रदेश में जातिवादी अलोकशाही के समर्थक मशीहा हो गये? कितना दुर्भाग्य हे कि ऐसे लोगों की आत्मा कहां दम तोड़ चूकी है? क्यों ये लोग अन्याय का विरोध करते है? हमारी संस्कृति को सिखाती है कि न्यायार्थ निज बंधु को भी दण्ड देना धर्म है और स्व व पर से उपर उठ कर अन्याय का विरोध करना। परन्तु स्व के गुनाहों का पक्ष लेना कभी समाज के हितकर नहीं है।
जिसके पास विधायकों का समर्थन ही नहीं है। यह उनके शपथ ग्रहण समारोह में उजागर हो गया कि उनके पास केवल आधा दर्जन विधायक है। जो भी विधायक शपथ ग्रहण में दिखे वे अधिकांश विधायक सतपाल महाराज के साथ है। 36 विधायको की समर्थन वाले कांग्रेसी इस सरकार में निर्दलीय व बसपा विधायकों को अगर हटा दिया जाय तो  शपथ ग्रहण में उपस्थित सरकार चलाने के लिए जरूरी विधायकों की संख्या के आधी भी वहां पर उपस्थित नहीं थी।  क्या सच्चाई उजागर करना गलत है? राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड विरोधी नारायण दत्त तिवारी को विधायक न रहते हुए थोपना क्या उत्तराखण्डियों व लोकशाही का गलाघोंटना नहीं था? जबकि उस समय भी अधिकांश विधापयक तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष हरीश रावत के समर्थन कर रहे थे। उसके बाद 2007 में अधिकांश विधायकों के समर्थन के बाद भी भगतसिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाने के बाबजूद भाजपा नेतृत्व ने बलात उत्तराखण्ड में विधायक न रहते हुए भी खंडूडी जी को थोप दिया। उसके बाद लोकसभा चुनाव में जब पूरे प्रदेश से भाजपा का सफाया हो गया तो विधायकों की मांग पर कोश्यारी जी को मुख्यमंत्री बनाने के बजाय जिस तरह से निशंक को मुख्यमंत्री का ताजसोंपा गया उससे उत्तराखण्ड की लोकशाही पर आज भी प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है। अब 2012 के विधानसभा चुनाव में 32 कांग्रेसी विधायकों में से 18 विधायक जब हरीश रावत को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते है तो वे कोन लोकशाही के दुश्मन है जिन्होंने लोकशाही का गला घोंट कर विजय बहुगुणा को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया। यही नहीं इन तीनों मुख्यमंत्री के कार्यकाल में जिस प्रकार से प्रदेश के अधिकांश महत्वपूर्ण पदों पर जातिवादी वर्चस्व रहा उसके आंकडे चीख चीख कर इनके जातिवादी संकीर्णता को उजागर कर रहे हेै। ऐसे लोकशाही को रौंदने वालों का विरोध करने वालों को ही गलत बनाते वालों की आत्मा तब क्यों दम तोड़ जाती है जब प्रदेश में ऐसा अनर्थ हो रहा है। क्यों ये लोग अपनी संकीर्णता को बेनकाब होते देख कर तिलमिला कर लोगों को उत्तराखण्ड की लोकशाही बचाने  व उत्तराखण्ड के हक हकूकों की रक्षा करने वालों का विरोध करने के लिए अपनी प्रतिभा को दुरप्रयोग कर रहे है। मै किसी भ्रष्टाचारी, दुराचारी, जातिवादी व जनहितों को रौदने वाले को आदमी का भाग्य विधाता बनाये जाने के खिलाफ हूूॅ। मै नहीं चाहता हॅू कि कोई ऐसा व्यक्ति प्रदेश का भाग्य विधाता बन कर प्रदेश को तबाह करे। आज प्रदेश के गठन हुए 12 साल हो गये यहां पर यहां की जमीनों को दिल्ली दरवार के आकाओ व माफियाओं को लुटवाया गया, यहां पर जनसंख्या पर आधारित परिसीमन थोपा गया, प्रदेश की राजधानी गैरसेंण में बनाने के बजाय देहरादून में बलात थोपी गयी, मुजफरनगर काण्ड के अभियुक्तों को दण्डित करने के बजाय उनको शर्मनाक संरक्षण दिया गया, प्रदेश की प्रतिभाओं की उपेक्षा कर बाहर के लोगों को यहां पर थोपा गया। यह सब देखने के बाद भी ऐसे गुनाहगारों का विरोध करने के बजाय उनकी पराजय पर विधवा विलाप करने वालो को लोकशाही का दुश्मन ही कला जा सकता है। ऐसे लोग उत्तराखण्ड की जनता से माफी मांगे। वे बतायें कि क्यों उन्होंने लोकशाही पर जातिवादी व भ्रष्टाचारी ग्रहण लगाने वालो को बेनकाब करने वालों का विरोध करके उत्तराखण्ड के शहीदों की शहादत को कलंकित कर रहे है? मुझे आशा है मेरे सारे मित्र अपने इस विषय पर गंभीरता से विचार कर भाजपा व कांग्रेस के आला नेतृत्व की उत्तराखण्ड की लोकशाही को रौंदने वाली जातिवादी व भ्रष्टाचारी मानसिकता का विरोध करने के अपने दायित्व का विरोध करेंगे। जय श्री कृष्ण ।

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