-काला बाबा से सीख लें श्री श्री रविशंकर सहित पंचतारा संत/
-सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वालों की मिले सरकारी नौकरी/
-काला बाबा से सीख लें श्री श्री रविशंकर सहित पंचतारा संत/
भले ही दुनिया में अरबों की दौलत व लाखों भक्तों से सम्पन्न विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरू रविशंकर जी अथाह दौलत व सौहरत पाने के बाद देश के 40 प्रतिशत गरीब लोगों के भविष्य पर कुठाराघात करते हुए ‘सरकारी स्कूलों को नक्सली विचार की फेक्टरी बता कर, सरकारी स्कूलों को बंद करके विद्या का व्यापार करने की बिना मांगे आत्मघाति सलाह सरकार को देने की हिमालयी भूल करते। एक तरफ में आज के इन पंचतारा तथाकथित स्वामियों को देखता हूूॅ तो मुझे बरबस याद आती है महान रहस्यमय शक्तियों के स्वामी काला बाबा की। जो देश की दुर्दशा पर कहते थे ‘ इस देश में विद्या व्यापार, धर्म व्यापार, राजनीति व्यापार व न्याय-चिकित्सा व्यापार बन गयी हे। इन देश के लूटेरे बने हुक्मरानों ने देश को मजबूत बनाने वाली हर संस्था व्यापार में तब्दील कर दी हे।’ काला बाबा आज के तथाकथित पंचतारा संस्कृति में जीने वाले तथाकथित साधुओं को भेसधारी कह कर उपहाश उडाते थे। काला बाबा हमेशा खण्डरों में, खुले आकाश के नीचे व धूनी में धूप, सर्दी व बारिश में अर्ध नग्न बदन, रूखा सुखा खाने वाले व जनहित व राष्ट्रहित के लिए गुनाहगारों को दण्डित करने का काम करते थे। काला बाबा से देश के इंदिरा, अटल, मुरार जी, राव बीपी सिंह सहित अधिकांश हुक्मरान ही नहीं चंद्रां स्वामी जेसे तांत्रिक भी भयभीत रहते थे। वे जनहितों पर कुठाराघात करने वाले हुक्मरानों को जहां जमीदोज करते थे वहीं जनहित के कार्यो में हर पल रत रहते थे।
परन्तु आज भी देश की अधिसंख्यक जनता की आर्थिक स्थिति इतनी नहीं है कि वे अपने बच्चों को मोटी फीस लेकर अभिवाहकों को लूटने वाले निजी स्कूलों में पढ़ा पाये। लगता है कि आज इस देश के तमाम आध्यात्मिक लोग इस धरती पर नहीं अपितु स्वर्ग में रहते हैं, इनको इस दुनिया का तो कम से कम भान है ही नहीं। अगर इन्होंने अपनी आंखे व दिमाग खोल कर भारत का जमीनी दर्शन किया होता तो वे केवल यही कहते इस देश में विद्या का व्यापार करने वाले इन निजी स्कूलों को तत्काल बद करके केवल उन्हीं लोगों को सरकारी सेवाओं में लिया जाना चाहिए जो सरकारी विद्यालयों में ही पढ़ा हो।
-काला बाबा से सीख लें श्री श्री रविशंकर सहित पंचतारा संत/
भले ही दुनिया में अरबों की दौलत व लाखों भक्तों से सम्पन्न विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरू रविशंकर जी अथाह दौलत व सौहरत पाने के बाद देश के 40 प्रतिशत गरीब लोगों के भविष्य पर कुठाराघात करते हुए ‘सरकारी स्कूलों को नक्सली विचार की फेक्टरी बता कर, सरकारी स्कूलों को बंद करके विद्या का व्यापार करने की बिना मांगे आत्मघाति सलाह सरकार को देने की हिमालयी भूल करते। एक तरफ में आज के इन पंचतारा तथाकथित स्वामियों को देखता हूूॅ तो मुझे बरबस याद आती है महान रहस्यमय शक्तियों के स्वामी काला बाबा की। जो देश की दुर्दशा पर कहते थे ‘ इस देश में विद्या व्यापार, धर्म व्यापार, राजनीति व्यापार व न्याय-चिकित्सा व्यापार बन गयी हे। इन देश के लूटेरे बने हुक्मरानों ने देश को मजबूत बनाने वाली हर संस्था व्यापार में तब्दील कर दी हे।’ काला बाबा आज के तथाकथित पंचतारा संस्कृति में जीने वाले तथाकथित साधुओं को भेसधारी कह कर उपहाश उडाते थे। काला बाबा हमेशा खण्डरों में, खुले आकाश के नीचे व धूनी में धूप, सर्दी व बारिश में अर्ध नग्न बदन, रूखा सुखा खाने वाले व जनहित व राष्ट्रहित के लिए गुनाहगारों को दण्डित करने का काम करते थे। काला बाबा से देश के इंदिरा, अटल, मुरार जी, राव बीपी सिंह सहित अधिकांश हुक्मरान ही नहीं चंद्रां स्वामी जेसे तांत्रिक भी भयभीत रहते थे। वे जनहितों पर कुठाराघात करने वाले हुक्मरानों को जहां जमीदोज करते थे वहीं जनहित के कार्यो में हर पल रत रहते थे।
परन्तु आज भी देश की अधिसंख्यक जनता की आर्थिक स्थिति इतनी नहीं है कि वे अपने बच्चों को मोटी फीस लेकर अभिवाहकों को लूटने वाले निजी स्कूलों में पढ़ा पाये। लगता है कि आज इस देश के तमाम आध्यात्मिक लोग इस धरती पर नहीं अपितु स्वर्ग में रहते हैं, इनको इस दुनिया का तो कम से कम भान है ही नहीं। अगर इन्होंने अपनी आंखे व दिमाग खोल कर भारत का जमीनी दर्शन किया होता तो वे केवल यही कहते इस देश में विद्या का व्यापार करने वाले इन निजी स्कूलों को तत्काल बद करके केवल उन्हीं लोगों को सरकारी सेवाओं में लिया जाना चाहिए जो सरकारी विद्यालयों में ही पढ़ा हो।
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