उत्तराखण्ड कांग्रेस में भारी भरकम नेताओं की फौज ही है असंतोष का मूल कारण

-उत्तराखण्ड कांग्रेस में भारी भरकम नेताओं की फौज ही है असंतोष का मूल कारण/
-भाजपा कांग्रेस के निहित स्वार्थ में अधे नेताओं को नहीं रही कभी उत्तराखण्ड की चिंता
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उत्तराखण्ड कांग्रेस में इन दिनों भारी असंतोष है। इन अधिकांश नेताओं में विस्फोटक स्थिति में पंहुचा यह असंतोष का एक भी कारण प्रदेश की जनभावनाओं के प्रति न हो कर इन नेताओं की अपने निहित स्वार्थ ही है। नेता कांग्रेस के रहे हों या भाजपा के इन्होंने कभी प्रदेश के हितों के लिए अपनी एकजूटता नहीं दिखाई जितनी ये अपने पदों के लिए धरती आसमान एक कर देते हे। इन नेताओं की प्रदेश के हितों के प्रति उदासीन रवैये से भाजपा व कांग्रेस के इन 12 सालों के शासन में प्रदेश की स्थिति बद से बदतर हो गयी है।  प्रदेश के हक हकूकों की जो बंदरबांट चल रही है, उससे प्रदेश देश के सबसे भ्रष्टतम राज्यों में सुमार हो गया है। प्रदेश की स्थाई राजधानी बनाने के बजाय इसको देहरादून में ही थोपने के लिए प्रदेश के करोड़ों रूपये बहाये जा चूके है। यही नहीं जनसंख्या पर आधारित परिसीमन से लेकर मुजफरनगर काण्ड के अभियुक्तों को संरक्षण का शर्मनाक काम किया जा रहा है। अपने नकारेपन से जनता का ध्यान हटाने के लिए भाजपा व कांग्रेस यहां पर शर्मनाक जातिवाद का कार्ड खेल कर जनता का ध्यान इनके उत्तराखण्ड विरोधी हथकण्डों से हटाने का कुकृत्य कर रही है। इनके जातिवादी षडयंत्र में फंस कर यहा ंपर स्थापित मीडिया व बुद्धिजीवी भी इनके कुकर्मो पर पर्दा डाल कर इनकी जातिवादी राजनीति को बेपर्दा करने के बजाय इसको जायज ठहराने का कृत्य कर समाज को रसातल में धकेल रहे है।
कांग्रेस में असंतोष का मूल कारण कांग्रेस के नेताओं की भरमार है। वहीं भाजपा में नेताओं का अकाल है। कांग्रेस में आधा दर्जन से अधिक बडे नेताओं की फोज है, जो अब भी मुख्यमंत्री के दावेदार है। इसी कारण कांग्रेस में असंतोष बना रहता। एक बडा नेता माने तो बाकी नाराज हो जाते है। कांग्रेस के पास उत्तराखण्ड में जहां हरीश रावत व सतपाल महाराज जेसे राष्ट्रीय स्तर के बडे नेता है। तो सांसद के रूप में वर्तमान मुख्यमंत्री बिजय बहुगुणा, सांसद प्रदीप टम्टा व केसी बाबा है। वहीं जमीनी विधानसभाई स्तर के नेताओं में जो कांग्रेस के वर्तमान नेता भुवनचंद खण्डूडी, कोश्यारी व निशंक पर भारी पड़ते हैं उनमें डा हरक सिंह रावत ही नहीं यशपाल आर्य, इंदिरा हदेश, शूरवीरसिंह सजवान, महेन्द्र पाल, प्रीतम सिंह, दिनेश अग्रवाल, नव प्रभात  है जिनके आगे भाजपा की प्रथम पंक्ति भी फिकी पडती है। इसके अलावा भाजपा में जो दूसरी पंक्ति के नेता हैं उनके त्रिवेन्द्र रावत, अजय भट्ट, मदन कोशिक, हरवंश कपूर, प्रकाश पंत आदि भी वे कांग्रेस के हीरासिंह बिष्ट, तिलक राज बेहड़ व रणजीत रावत के आगे 19 ही साबित होते।  हालांकि भाजपा में कुछ बडे नेता है मोहन सिंह ग्रामवासी उनको भाजपा ने गुमनामी के गर्त में धकेलने का काम किया है।
इनके अलावा कांग्रेस के  विधानसभा चुनाव के बाद गठित विजय बहुगुणा का मुख्यमंत्री के लिए जब से नाम का ऐलान जबसे कांग्रेस आला कमान ने किया तब से असंतोष कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। मुख्यमंत्री बने विजय बहुगुणा को एक सप्ताह से अधिक समय हो गया मुख्यमंत्री की शपथ ग्रहण किये, उनका दिन का चैन व रातों की नींद हराम हे। मुख्यमंत्री का नाम घोषित होते ही हरीश रावत के समर्थकों के खुले विद्रोह से विजय बहुगुणा व उनके पैरोकारों के पसीने ही छूट गये। आलाकमान के दूतों से लेकर विज बहुगुणा के समर्थक सभी इस असंतोष को सुलझाने में दिन रात एक कर गये परन्तु क्या मजाल असंतोष कम होने का नाम ले। हरीश रावत के एक दर्जन से अधिक समर्थक विधायकों के साथ जैसे ही मुख्यमंत्री के एक प्रबल दावेदार डा हरक सिंह रावत ने भी बाॅलीबुड के फिल्मी डायलागों वाली  हुंकार क्या भरी तो कांग्रेस के बड़े बडे नेताओं के पसीने छूट गये। बड़ी मुश्किल से मुख्यमंत्री की एक और दावेदार इंदिरा हदेश को मनाने में विजय बहुगुणा सफल हुए। इतनी भी लाज विजय बहुगुणा की तब बची जब उनके साथ प्रदेश में हरीश रावत की तरह ही जमीनी मजबूत नेता सतपाल महाराज का पूरा साथ था। मुख्यमंत्री की शपथ ग्रहण से लेकर विधायकों की प्रथम शपथ ग्रहण में जो चंद विधायक उपस्थित दिखे उनमें अधिकांश सतपाल महाराज ग्रुप के विधायक थे।
विजय बहुगुणा व कांग्रेस आला कमान के सुत्रों का सारा ध्यान हरीश रावत के गुट को मनाने में लगा। उनकी मुख्यमंत्री बदलने से लेकर अधिकांश मांगे एक एक कर विजय बहुगुणा मानते रहे परन्तु फिर भी 11 विधायकों का विधायक की शपथ अभी तक भी ग्रहण न करना, विजय बहुगुणा व आला कमान की पतली हालत को ही बयान करती है। हालत यह हो गयी कि विजय बहुगुणा गुट के ही विधायक नवप्रभात, कुंवर प्रणव आदि मंत्री पद न मिलने से उनसे काफी खपा है। वे अब एक एक कर हरीश रावत के घर में भी दस्तक दे रहे हैं। वहीं सबसे पहले विजय बहुगुणा व कांग्रेस का समर्थन करने वाले निर्दलीय विधायक दिनेश धनै को वायदा करके भी मंत्री न बनाये जाने से नाराज धनै समर्थकों ने न केवल विजय बहुगुणा से खुली नाराजगी प्रकट की अपितु कांग्रेस के केन्द्रीय प्रभारी चैधरी बीरेन्द्र सिंह की भी सारी चैधराहट अपनी नाराजगी से उतार कर रख दी। वर्तमान हालतों में हरीश रावत को मुख्यमंत्री बना कर ही कांग्रेस इस स्थिति से उबर सकती है। परन्तु यहां पर जहां डा हरक सिंह मंत्री पद न लेने की हुंकार भर रहे हों, महाराज के ही नहीं स्वयं बहुगुणा के समर्थक मंत्री न बनने से असंतुष्ट नजर आ रहे हो, वहां कैसे कलह दूर हो पायेगा, यह विजय बहुगुणा के लिए बहुत ही दुखद स्थिति है। सबसे और दुखदाई सवाल यह भी है कि पर्वतीय जनपदों से कोई भी मंत्री नहीं बनाया गया। अधिकांश तराई क्षेत्र से ही बने है। कांग्रेसी पर्वतीय क्षेत्र के विधायकों में से चमोली, रूद्रप्रयाग, टिहरी उत्तरकाशी, पिथोरागढ़, चम्पावत, पौडी अल्मोडा से प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। जो दिया गया वह उक्रांद व निर्दलीय विधायकों के द्वारा है। इससे पर्वतीय क्षेत्रों में गहरा असंतोष है। सुरेन्द्रसिंह नेगी, अमृता रावत, इंदिरा हदेश व यशपाल आर्य सभी तराई क्षेत्र से है।
अब सबसे हास्यापद स्थिति कांग्रेस ने प्रदेश की बना दी है। यहां पर आपसी कलह दूर होने का नाम ही नहीं ले रहा है। इसका कारण आला नेतृत्व का अक्षम्य व निहित स्वार्थी सलाहकार। जिनकी आत्मघाती सलाह पर कांग्रेस राज्य गठन के बाद प्रथम सरकार से आज तक आपसी द्वंद में झुलस रही हे। तिवारी से लेकर बहुगुणा तक जिस प्रकार से यहां के जमीनी नेता हरीश रावत व सतपाल महाराज को दर किनारे करके थोपे गये उससे इस विवाद को और हवा दी। वहीं भाजपा भी कांग्रेस की तरह जातिवादी कार्ड ही खेलती रही। यहां पर भी भाजपा के जमीनी दिग्गज नेता भगतसिंह कोश्यारी व मोहनसिंह ग्रामवासी, केदारसिंह फोनिया के बजाय विधायको के राय को दर किनारे करके कभी भुवनचंद खंडूडी व कभी निशंक जेसे नेताओं को थोप कर चलाने की धृष्ठता ही करके प्रदेश की ऐसी कम तेसी करते रहे। भाजपा व कांग्रेस के इस जातिवादी कार्ड से ही नहीं मंत्रीमण्डल से लेकर शासन प्रशासन में इन चारों के राज में अधिकांश पदों पर केवल अपनी जाति के लोगो व बाहरी लोगों को थोपने के कारण प्रदेश के लोगों में यह भावना घर बना गयी कि प्रदेश में प्रतिभा व भागेदारी को वरियता देने के बजाय केवल जातिवाद ही चलाया जा रहा है। इससे समाज में विखराव की स्थिति हो गयी है। इससे ज्यादा शर्मनाक बात यह हो गयी कि मीडिया जनता को सच्चाई बताने के बजाय व कांग्रेस भाजपा के इस हथकण्डे को बेनकाब करने के बजाय इस बुराई को जगजाहिर करने वालों को ही जातिवादी बताने की धृष्ठता कर रहे हे। जनता को चाहिए कि इस स्थिति का खुलेआम विरोध करे। सरकार पर हर पल खतरा मंडरा रहा है। इसी कारण यह सरकार नौकरशाही पर भी अंकुश नहीं बना पायेगी। सरकार में जिस प्रकार से गैरउत्तराखण्डी लोग विजय बहुगुणा की कटोरी बन कर हावी हैं उससे सरकार की स्थिति बहुत ही भयावह है। कभी भी यह सरकार अपना दम तोड़ सकती है। जब तक कांग्रेस में बडे नेताओं को कांग्रेस से बाहर का रास्ता नहीं दिखाया जाता तब तक कांग्रेस में भी अंतरकलह दूर होने का नाम नहीं ले सकता। वहीं दूसरे और भाजपा व कांग्रेस के नेताओ ंको अभी सबसे अधिक लोकशाही का पहला पाठ सिखने की आवश्यकता भाजपा के नेताओं की तरह है।

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