दंगाईयों से कठोर व निष्पक्ष ठंग से निपटे अखिलेश सरकार


उत्तर प्रदेश के मथुरा के समीप लगे कोसीकलां में 1 जून को हुए साम्प्रदायिक दंगों की रोकथाम व दोषियों को दण्डित करनेे तथा आम जनता को निष्पक्ष शासन देने में प्रदेश की अखिलेश यादव की सरकार विफल रही है। इसके बाद वहां पर आक्रोशित दोनों समाजों के बीच आपसी विश्वास जागृत करने में भी शासन अभी तक नकाम रहा । यह दंगा अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी निष्पक्षता की एक परीक्षा थी। शासन प्रशासन को चाहिए था कि वह दलीय संकीर्णता से उपर उठ कर जो भी समाज की शांति भंग करने की कोशिश करता है उसको सख्त से सख्त सजा दे। जिस प्रकार से समाचार पत्रों व फेस बुक में खबरें आ रही है उससे लगता है कि प्रदेश सरकार खुद ही कटघरे मे खड़ी लगती है। प्रशासन को चाहिए कि जो भी निर्दोष व्यक्तियों की सम्पतियों को दंगाईयों ने नुकसान पंहुचाया उसको मुआवजा प्रदान करे। समाज में ऐसे तत्वों जिनके कारण यह दंगा हुआ या जिन्होंने जनता को उकसाया उनको सजा देनी चाहिए। इसके साथ इन दंगा पीड़ित क्षेत्रों में किसी भी कीमत पर सम्प्रादायिकता को भडकाने के लिए कुख्यात नेताओं या व्यक्तियों को प्रवेश करने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। इसके साथ प्रशासन को इस दंगे के कारणों का विशलेषण करके भविष्य में हर हाल में इनमें प्रतिबंध लगाने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए। इसके साथ प्रशासन को राहत सामाग्री के वितरण व अवैध हथियारों को जब्त करने के कार्य में किसी प्रकार भेदभाव नहीं अपनाना चाहिए और ऐसे तत्वों पर निगरानी रखने के लिए इस संवेदनशील क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थानों पर खुफिया केमरे लगाने चाहिए जिससे प्रदेश के अमन चैन पर कलंक लगाने वाले असामाजिक तत्वों पर प्रशासन बिना पक्ष पात के अंकुश लगा कर प्रदेश में भयमुक्त राज्य स्थापित कर सके। मुख्यमंत्री अखिलेश से प्रदेश की जनता को काफी आशा है उनको चाहिए कि वे अपने दल व शासन में समाज के अमनचैन को ग्रहण लगाने वाले लोगों को भी ऐसे क्षेत्रों से दूर रखना चाहिए। प्रदेश या देश में जो भी व्यक्ति जाति, धर्म, क्षेत्र आदि के नाम से पक्षपाती शासन प्रशासन चला कर प्रदेश की अमन चैन पर ग्रहण लगाने का काम करेगा तो भगवान ही नहीं देश प्रदेश की जनता भी ऐसे व्यक्ति को कभी माफ नहीं करेगी। दंगो में हमेशा बेगुनाह लोग ही न केवल पीड़ित होते है अपितु वे ही मारे जाते है । दंगाईयों का कोई धर्म नहीं होता है अपितु वे मानवता के नाम पर कलंक ही होते है। इन दंगो से हमेशा देश, समाज व मानवता ही शर्मसार ही नहीं अपितु कमजोर ही होती है। इसलिए सभ्य समाज में दंगा होना ही उस समाज के मानसिक दिवालियेपन की पहचान है।

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