बांधों से तबाह करने के लिए नहीं बनाया गया है उत्तराखण्ड
झुनझुनवाला व अविरल गंगा समर्थकों पर हुए हमले से कटघरे में बहुगुणा सरकार
आज मै एक दो टूक सवाल में उत्तराखण्ड को ऊर्जा के नाम पर सैकडों बांधों से जलसमाधी दे कर तबाह करने के लिए नहीं बना है। लाखों लोगों को उनकी जन्म भूमि से जबरन विस्थापन के लिए नहीं बना है। खासकर जिस ऊर्जा के उत्पादन के नाम पर सकडों बांधों को बना कर अपनी तिजोरी भरने का दिवास्वप्न देख रहे उत्तराखण्ड के दिशाहीन हुक्मरान, नौकरशाह व बांध बनाने वाले थेलीशाह एवं उनके दलाल बताये कि आखिर उत्तराखण्ड को डुबाने को क्यो तुले है। ऊर्जा मानव विकास के लिए है न की मानव विनास के लिए। प्रदेश को कितनी ऊर्जा चाहिए। इसका कोई उतर अभी तक प्रदेश की जनता को नहीं बताया गया। टिहरी बांध से कितनी ऊर्जा उत्पन्न हुई और उत्तराखण्ड को कितनी मिल रही है। अब कुछ समय बात पंचेश्वर बांध से लाखों लोगों को उजाडा जायेगा। एक बात देश व प्रदेश के हुक्मरान सुनलें कि उत्तराखण्ड जलसमाधी देने के लिए हरगिज नहीं है।
उत्तराखण्ड में बन रहे अंधाधुंध बांधों को बना कर यहां के लोगों को जबरन विस्थापित करने के अन्तरराष्ट्रीय षडयंत्र का विरोध उत्तराखण्ड के प्रबंद्ध लोग दशकों से करते आये है। परन्तु जिस प्रकार से शुक्रवार 22 जून को धारी देवी में माॅं के दर्शन करने गये गंगा में बांध बनाने की शांतिपूर्ण ढ़ग से आवाज उठाने वाले प्रो अग्रवाल, जलपुरूष राजेन्द्रसिंह, देश के वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक व ख्यातिप्राप्त डा भारत झुनझुनवाला के साथ दुरव्यवहार ही नहीं अपितु 19 किलोमीटर तक तथाकथित बांध समर्थकों ने डा भरत झुनझुनवाला के लछमोली स्थित आवास तक न केवल पीछा किया अपितु उन पर कातिलाना हमला करने के उदेश्य से पथराव भी किया गया। पर्वतीय राहों पर इस प्रकार का हमला सीधे बड़ी दुघर्टना का कारण बन सकती थी। जिस प्रकार इन तथाकथित उत्तराखण्ड के हितैषियों ने बांध निर्माण के विरोध करने के कारण प्रो. अग्रवाल व उनके मित्र झुनझुनवाला पर कालिख पोतले का प्रयास किया और झुनझुनवाला के घर पर तोड़ फोड़ की। जिस प्रकार से खबरे आ रही है कि झुनझुनवाला की पत्नी से भी दुरव्यवहार किया गया वह नितांत न केवल निंदनीय है अपितु इसमें शांतिपूर्ण ढ़ग से विरोध की आवाज दबाने का सरकारी निंदनीय षडयंत्र की भी बूॅ आ रही है। अगर इन विरोध करने वालों को सरकारी सह नहीं था तो इनको इनके खिलाफ 19 किलोमीटर तक पीछा करने की खुली छूट प्रदेश के शासन प्रशासन ने क्यों दी। क्यों नहीं इन विरोध करने वालों को धारी देवी में विरोध कर अपनी बात कहने के बाद प्रो अग्रवाल व साथियों का पीछा करने से रोका नहीं गया।
जो लोग आज बांध बनाने के समर्थन में खडे हैं और जो इसे उत्तराखण्ड के हितों पर प्रहार बता कर इसका किसी भी सीमा पर विरोध करने की बात कह रहे हैं वे लोग तब कहां थे जब प्रदेश में तिवारी व खंडूडी सरकार ने प्रदेश के भविष्य को तबाह करने वाले जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई परिसीमन को रौंकने के लिए अपनी जुबान तक नहीं खोली। ये उत्तराखण्ड के हितैषी उस समय कहां थे जब तिवारी सरकार के राज मुजफरनगर काण्ड के आरोपी अनन्त कुमार को बरी करने का देश की न्याय व्यवस्था को कलंकित करने वाला षडयंत्र किया गया। उस समय ये उत्तराखण्ड के हितैषी कहां थे जब उत्तराखण्ड की खण्डूडी सरकार में बुआसिंह को लाल कालीन प्रदेश के शासन दे उत्तराखण्ड में बिछाया। आज गैरसैण के लिए अपनी शहादत देने वाले बाबा मोहन उत्तराखण्डी व मुजफरनगर काण्ड के विरोध में मुलायम के दलालों का विरोध करने में शहीद हुए राजेश रावत के आरोपियों को सजा दिलाने के बजाय उनको गले लगाने हुक्मरानों का विरोध तक करने का साहस प्रदेश में नहीं किया गया। आज प्रदेश में जबरन जब भूगोल बदला गया, यहां के संसाधनों की खुली बंदरबांट की गयी, प्रदेश में जबरन नाम ही नहीं यहां पर लोकशाही को दफन करके मुख्यमंत्री तक थोपे गये, शराब माफियाओं के हितो ंके लिए पूरा प्रदेश को शराब के ठेकों का जाल ही बिछाये जाने पर भी कोई नहीं बोला। क्या केवल ऊर्जा के लिए पूरे प्रदेश के अधिकांश लोगों को बलात विस्थापित कर देना व अरबों खरबों जीव जंतुओं तथा वृक्ष-वनस्पतियों को जल समाधि दे कर हत्या करना कहां श्रेयकर है। उत्तराखण्ड में बनने वाले प्रस्तावित सैकडों बांधों से न केवल उत्तराखण्ड का ही नहीं अपितु हिमालयी राज्यों सहित पूरे विश्व की पर्यावरण पर गंभीर खतरा मंडराने लग जायेगा। चीन से लगे इस सीमान्त प्रदेश में थोक के भाव से बनाये जा रहे इन बांधों से प्रदेश सहित उत्तर भारत की सुरक्षा पर गंभीर खतरा भी मंडराने लगा है। परन्तु जिस प्रकार से इन तमाम उत्तराखण्ड के हितों के लिए इन समर्थकों ने कभी न तो यहां के हुक्मरानों का इतना विरोध किया । आज इन बांध समर्थकों के ये तेवर कभी जनता की भारी मांग के बाबजूद प्रदेश की स्थाई राजधानी गैरसैंण न बनाने वाले , मुजफरनगर काण्ड के अभियुक्तों को शर्मनाक संरक्षण देने वाले व प्रदेश के स्वाभिमान व हक हकूकों को रौदने वाले अब तक हुक्मरानों पर कभी कालिख तक फेंकने का काम तो रहा दूर सार्वजनिक रूप से कभी भरी जनता में इनकी उपस्थिति में धिक्कारने का काम भी किया। नहीं किया कभी नहीं, इनकी आवाज इन उत्तराखण्ड के हितों को रौंदने वाले हुक्मरानों के सम्मुख निकली ही नहीं। उत्तराखण्ड का कोई अब तक का मुख्यमंत्री या नेता ऐसा नहीं जिसको खुद मैने व मेरे आंदोलनकारी साथियों ने उपरोक्त उत्तराखण्ड विरोधी कृत्यों के लिए दुत्कारा न हो। जहां तक उत्तराखण्ड राज्य की खुशहाली के लिए मैने व मेरे आंदोलनकारी साथियों ने अपना जीवन ही कुर्वान किया, न की ऊर्जा के नाम पर बडे बडे ठेकेदारों, नेताओं, नौकरशाहों व दलालों की तिजोरी भरने के लिए बनाये जाने वाले बांधों में उत्तराखण्ड को तबाह करने के लिए। प्रदेश सरकार को अगर प्रदेश के हितों की चिंता होती तो यह यहां पर भूतापीय ऊर्जा, घराटों व छोटी जल विद्युत परियोजनाये जिनमें स्थानीय गांव के लोगों की सहभागिता से प्रदेश की ऊर्जा संस्थान के सांझे सहयोग से ऊर्जा का पर्याप्त उत्पादन किया जा सकता है। यहां पर पवन ऊर्जा सहित अन्य प्राकृतिक ऊर्जा के विकल्पों से ऊर्जा का निर्माण किया जा सकता है। एक बात का याद रखना चाहिए कि प्रकृति के साथ अंधाधुध छेडछाड से प्रदेश में तबाही के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होगा। बांध समर्थक चंद ठेकेदारों व उनके समर्थकों को एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि देश में लोकशाही है न की तानाशाही। तानाशाह बन कर जनता की गांधीवादी आवाज का दमन करने वालो का हस्र जनता सत्ताच्युत करके ही करती है। देवभूमि उत्तराखण्ड के लोग बुद्धिजीवी है वे अपना हित खुद समझते हैं। अगर जो लोग यहां के हितों को रौंदने के नाम पर कार्य करेंगे तो यहां के लोग उनको तर्को से पराजित करने की बुद्धि रखते। तर्क से शांतिप्रिय ढ़ग से इनके विचारों का जवाब देना चाहिए था न की पथराव व मारपीट करके। देवभूमि को अपनी तिजोरी भरने के खातिर ऊर्जा के नाम पर बडे बांधों का अंधाधुंध निर्माण करके प्रदेश की जनता को विस्थापित करने व लाखों जीव जन्तुओं की निर्मम हत्या करने वाले बडे ठेकेदारों, राजनेताओं व भ्रष्ट नौकरशाहों के षडयंत्र को अब जनता जान चूकी है। इसलिए ऊर्जा के नाम केवल बडे बंाध बनाने की हटधर्मिता ही इनके मुखोटों को बेनकाब करने के लिए काफी है। अगर इनको सच में प्रदेश में ऊर्जा की चिंता होती तो ये प्रदेश को बडे बांधों के नाम पर घाटी की घाटी डुबो कर तबाह करने की धृष्ठता करने के बजाय भू तापीय ऊर्जा, छोटी जल विद्युत परियोजनाओं व घराट ऊर्जा, पर्वन व सौर ऊर्जा आदि विकल्पों पर गंभीरता से कार्य करते। परन्तु इनको तो केवल हजारों करोड़ रूपये का बांध बनाना है जिससे इनकी तिजोरी भरे प्रदेश जाय भाड़ में।
जहां तक यह तर्क देना कि अब काम 80 या 90 प्रतिशत हो चूका है अब विरोध जायज नहीं है। सवाल यह है कि आत्महत्या को उतारू आदमी कहे कि मुझे फांसी का फंदा डालने के बाद रोकना गलत है,? अगर वह भी यह रोकना ही था तो शुरूआत में रोकते। या परमाणु बम को दूसरे देश को तबाह करने वाले शासक को अंतिम बटन दबाने से पहले रोकना या उस अस्त्र को बीच रास्ते में ही नष्ट करना गलत है। वह देश भी कह सकता है कि हमने इस बम बनाने में हजारों करोड़ रूपये खर्च किये अब तो हमको परमाणु बम विस्फोद करने दो। गलत काम का विरोध करना जायज है चाहे वह किसी भी स्थिति में है। यही नहीं काम पूरा होने के बाद भी इसका विरोध करना कहीं भी गलत नहीं है। पूरे गांव या क्षेत्र को शराब से तबाह करने वाले शराब माफियाओं व दावानल से पूरे जंगलों को जगाने वालों की तरह पूरे प्रदेश को बांधों से तबाह करने वालों का ठेके खोलने के बाद भी विरोध करना गलत नही है। जहां तक ऊर्जा के नाम पर पूरे प्रदेश में सेकडों बांधों से राद देना कहां तर्क संगत हैं। प्रदेश की ऊर्जा के लिए टिहरी जैसा बांध ही काफी था। उसको बनाने में देश व प्रदेश के संसाधनो को जिस प्रकार से लुटवाया गया उसकी अगर खुली जांच की जाय तो बांध बनाने वाले अधिकांश मठाधीश सलाखों के पीछे बंद होंगे और देश की आंखे खुल जायेगी। जहां तक बेकल्पिक ऊर्जा पर न तो अभी तक ईमानदारी से प्रदेश सरकार ने काम ही नहीं किया। विश्व में भू तापीय ऊर्जा के अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सूर्य प्रकाश कपूर की तमाम कोशिशों के बाबजूद प्रदेश सरकारो ने न तो अभी तक इस दिशा में ध्यान तक नहीं दिया। जबकि अमेरिका सहित इंडोनेशिया सहित दो दर्जन देशों में अब बड़ी तेजी से इस भूतापीय ऊर्जा संयंत्रों पर काम चल रहा है। इस बात को समझ लेना चाहिए कि उत्तराखण्ड में सैंकडों बांधों को बना कर तबाह करना कहां तर्क संगत है। उत्तराखण्ड केवल ऊर्जा के लिए डुबोने के लिए नहीं है। यहां पर सत्ता पर कुण्डली मारे नेता, नौकरशाह व बांध बनाने वाली बड़ी कम्पनियां तथा इनके दलाल जनता की आंखों में ऊर्जा के सब्जबाग बना कर मात्र अपनी तिजोरी भरने की है। प्रदेश की एक भी जनसमस्याओं को जिनके लिए अभी तक राज्य बना उनमें से एक का भी समाधान राज्य गठन के 12 सालों में यहां के हुक्मरानों ने निकाला तो रहा दूर इस दिशा में एक कदम भी ईमानदारी से बढ़ाने की कोशिश तक नहीं की। पूरे प्रदेश के लाखों लोगों को जबरन विस्थापित करके व घाटियों को बलात डुबो कर लाखों करोड़ की सम्पति को नष्ट करके चंद दशकों के लिए मात्र ऊर्जा अर्जित करना कहां तक तर्क संगत है। विकास का अर्थ तबाही नहीं जनकल्याण ही होना चाहिए। शेष श्री कृष्णाय् नमो। हरि ओम तत्सत्। श्री कृष्णाय् नमो।
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