दिल्ली मनमोहनी हम जाने
दिल्ली मनमोहनी हम जाने,
आये यहां वह यहीं बस जाये।।
इसने छाती पर सहे सदियों से
जुल्म चंगेजों और फिरंगियों के।
मोहपाश में इसके फंस कर
देखो मिट गये कई सिकंदर।।
हम भी न जाने किस घड़ी में
बन गये आ कर यहां बंदर।।
इसके आंचल में मिलता है
सबको यहां ठोर ठिकाना।।
इसके मोहपाश में बंध कर
बन जाये जग ही दीवाना ।।
मिलता यहां राजा रंक को
अपने स्वप्न लोक का जीवन।।
जो आये फिर लोट न पाये
देती है सबको दाना पानी।।
तरसे चाहे अपनी घरती को
फिर भी दिल्ली छोड़ न पाये।।
दिल्ली मनमोहनी हम जाने
आये यहां वह यहीं बस जाये ।।
-देवसिंह रावत (प्रातः7.22 बुद्धवार 13 जून 2012)
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