सन् 2000 के बाद हुक्मरानों द्वारा उत्तराखण्ड की जमीनों की बंदरबांट को जब्त करे सरकार


उत्तराखण्ड गठन के बाद यहां पर आसीन भाजपाई व कांग्रेसी सरकारों ने जो यहां के संसाधनों की खुली लुट मचाई उस पर अगर श्वेत पत्र इन कृपार्थियों के नाम सार्वजनिक किया जाय तो इन दलों के आकाओं के चेहरे जनता के समक्ष बेनकाब हो जायेंगे। खासकर भाजपा के आला नेता आडवाणी की लाडली हो या तरूण विजय या संघ पोषित संगठनों से जुडे संगठनों के एनजीओ आदि के लिए उत्तराखण्ड की जमीनें कोडियों के भाव लुटाई गयी। अब इस परमपरा को शर्मनाक ढ़ग से तिवारी व बहुगुणा सरकार ने बढ़ाया है। मुख्यमंत्री के चुनाव क्षेत्र में जिस प्रकार से भूमिधरी के पट्टे नवाजे गये उससे साफ हो गया कि यहां के हुक्मरान प्रदेश के संसाधनों की बंदरबांट करना अपना बपौती अधिकार समझते है। इस समस्या कितनी बिकराल हो गयी है कि इसके समाधान के लिए अब राज्य गठन जनांदोलन के प्रमुख आंदोलनकारी संगठन ‘उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा’ ने पुरजोर मांग की है कि सन2000 राज्य गठन के बाद  यहां की  जमीनो का यहां के हुक्मरानों ने जो भी बंदरबांट की है  उनके नाम सार्वजनिक करने के बाद उनका सरकार अधिग्रहण करे। प्रदेश में जिस प्रकार से यहां के हुक्मरानों तिवारी व खण्डूडी ने यहां के वर्तमान व भविष्य को नजरांदाज करते हुए जनसंख्या पर आधारित परिसीमन थोपने में शर्मनाक मौन रखा, उससे उत्तराखण्डियों के राजनैतिक शक्ति व सामाजिक तानाबाने पर एक प्रकार से ग्रहण लग गया है। अब विजय बहुगुणा की सरकार जिस प्रकार से यहां के मूल निवासियों के हक हकूकों पर ग्रहण लगाने का काम कर रही है उससे प्रदेश की स्थिति कश्मीर व आसाम की तरह होने की आशंका बलवती हो रही है। इसी आशंका से सावधान होते हुए उजसमों ने प्रदेश की जनता से अपील की कि वे अपने क्षेत्रों में किसी प्रकार से किसी अनजान , अराजक व अपरिचित रहस्यमय लोगों को किसी प्रकार का आश्रय न दे। यह सीमान्त क्षेत्र में सामाजिक व राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकते है।

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