‘मौण -मछली मार मेले में हजारों लोग उमडे
उत्तरकाशी(प्याउ)। उत्तराखण्ड अपने प्राकृतिक सौन्दर्य, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए पूरे विश्व में देवभूमि के नाम से पूरे विश्व विख्यात है। यहां कदम कदम पर देवी देवताओं के पावन मंदिर व जनलोक संस्कृति पूरे विश्व के लोगों को बरबस ही आकृष्ठ करते है। यहां पर असंख्य देवी देवताओं को समर्पित मंदिर व त्योहार शेष विश्व के लोगों को अचंम्भित करके बरबस अपनी तरफ आकृष्ठ करता है। उत्तराखण्ड का सीमान्त जनपद उत्तरकाशी अपनी समृद्ध पांडवीय संस्कृति के लिए पूरे देश में विख्यात है। यहां लाखा मण्डल से लेकर यहां के कई क्षेत्रों में पांडव कालीन संस्कृति की अमीट छाप आज भी देखने को मिलती है। जहां यहां के लोग सहृदयी, मेहनती व सरल स्वभाव के साथ साथ गहरी धार्मिक आस्था के होते है।
इसी 2 जून को सीमान्त जनपद उत्तरकाशी के विकास खण्ड मोरी के गडुगाड़ पट्टी में भी मोण का प्रसिद्ध मछली मार त्यौहार बहुत ही हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। हर साल अच्छी फसलों की मनोकमाना के लिए केदारगंगा के तट पर भद्रासु की रेणुका देवी की पूजा अर्चना के बाद लोग सुरई का दुध व टिमरू का पाउडर डाल कर मछलियों को मारने के लिए उमड पडते है। इससे पहले ये डोभाल गांव, नानाई, बिंगसारी, खरसाड़ी व रमालगावं सहित 13 गांव के हजारों लोग ढोल नागाडों की गगनभूदी तालों के साथ हाथ में लाठी लेकर व लोक गीतों, लगाते हुए मेले के रूप में केदारगंगा के तट पर भद्रासु पहुंचते हैं। लोगों का विश्वास है कि इस से उनकी फसल की चूहों व अन्य जंतुओं से रक्षा होने के साथ के साथ अच्छी फसल भी होती है। हालांकि कई लोग इस मेले के बाद मछली मारने की परंपरा को बंद करने के पक्ष में हैं परन्तु बुजुर्ग इसे आस्था का प्रश्न बना कर इसको जारी रखने पर ही जोर देते है। वहीं नौजवानों का मानना है कि इस पर्व को रेणुका देवी के पूजन तक ही सीमित कर देना चाहिए।
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