पाल ने लगाया सितारगंज से मुख्यमंत्री की आशाओं पर ग्रहण
कहीं और से चुनाव लड़ सकते हैं मुख्यमंत्री !
कांग्रेस असंतुष्ट विधायकों पर लगी भाजपा व भाजपा के असंतुष्टों पर लगी की वक्रदृष्टि
रूद्रपुर (प्याउ)। सितार गंज विधानसभा सीट से भाजपा की टिकट पर जीते विधायक किरण मंडल को मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के के लिए अपनी विधायकी के पद से इस्तीफे दे कर खाली करने से बाग बाग हो रहे प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा व उनके कांग्रेसी प्रबंधकों की सारी खुशियां उस समय फुर्र हो गयी जब बसपा ने अपने दो बार विधायक रहे दिग्गज नेता नारायण पाल व उनके भाई मोहन लाल को पार्टी से बाहर कर दिया। इसके साथ यह बात भी सामने आयी कि भाजपा कांग्रेस द्वारा भाजपा के विधायक को अपने पाले में ले जाने का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए इस क्षेत्र के दिग्गज नेता नारायणपाल को मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार सकती है। इसी आशंका से कांग्रेस की सारी खुशियों पर एक प्रकार से ग्रहण लगा दिया है। पाल के सितार गंज से कूदने की आशंका से मुख्यमंत्री ही नहीं अपितु उनके रणनीतिकार भी खासे परेशान है। चर्चा यह भी है कि पाल को भी कांग्रेसी पाले में लाने की कोशिशें की जा रही है परन्तु पाल के भाजपा से इतने मजबूत तार जुड गये हैं कि अब उनका सितारगंज से चुनावी दंग में उतरना तय माना जा रहा है। इसी को भांपते हुए कांग्रेसी यहां से मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के लिए सितारगंज की सीट निरापद नहीं मान रहे है। मुख्यमंत्री व उनके सिपाहेसलारों को अब तक यह मानना था कि भाजपा के पास यहां से कोई ऐसा नेता नहीं है जो मुख्यमंत्री के सामने चुनावी दंगल में कहीं दूर तक टिक भी सके। यह सच भी है कि इस क्षेत्र में बंगालियों पर बरसी मुख्यमंत्री की कृपा के बाद व यहां पर मुस्लिम-दलित बाहुल्य समीकरण भी कांग्रेस के दावे को ही मजबूत करता है। यह हकीकत है कि यहां पर भाजपा के शीर्ष नेता पूर्व मुख्यमंत्री खण्डूडी सहित तमाम नेता भी मुख्यमंत्री को टक्कर देने की स्थिति में ही नहीं है। इसी जमीनी सच्चाई को मन से स्वीकार कर भाजपा ने इस क्षेत्र के सबसे मजबूत नेता नारायण पाल को यहां से मैदान में उतारने के लिए अपने पाले में लाने का निर्णय लिया। इसी खेल को भांप कर बसपा के प्रदेश अध्यक्ष मेधराज जरावरे ने पाल बंधुओं को बसपा से बाहर का रास्ता दिखा कर पार्टी की नाक बचाने का काम किया।
नारायणपाल के सितारगंज विधानसभा सीट से उतरने की खबर से सहमें कांग्रेसियों ने अब इस सीट से मुख्यमंत्री के बजाय अपने इस क्षेत्र के वरिष्ठ नेता व किरण मण्डल को कांग्रेस में सम्मलित कराने वाले मिशन के मुख्य सूत्रधार रहे तिलक राज बेहड को चुनावी दंगल में उतारने पर भी गंभीरता से विचार करना शुरू कर दिया है। हालांकि इसी सप्ताह मुख्यमंत्री की यहां पर हुई सफल रेली के बाद अनुमान लगाया जा रहा था कि मुख्यमंत्री इसी रेली में अपने यहां से चुनाव लड़ने की घोषणा करेंगे परन्तु मुख्यमंत्री ने यहां पर इस विषय पर अपने पत्ते तक नहीं खोले। अब सितारगंज से नारायणपाल के उतरने की संभावनाओं को देखते हुए मुख्यमंत्री के लिए कोई अन्य विधानसभा को टटोला जा रहा है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री पर्वतीय क्षेत्र में कांग्रेस के मुख्यमंत्री विरोध्ी नेताओं व जनता के आक्रोश को देख कर पर्वतीय विधानसभा सीट पर उतरने का साहस नहीं जुटा पा रहे है। हालांकि गंगोत्री व कर्णप्रयाग के अलावा विकासनगर व नरेन्द्रनगर की सीटें भी चर्चाओं में है। परन्तु प्रदेश के कांग्रेस व भाजपा के बीच विधायकों के एक के अंतर के कारण कांग्रेस मुख्यमंत्री को किसी कांग्रेसी विधायक से इस्तीफा दिलाने की इजाजत देने की स्थिति में नहीं है। हालांकि प्रदेश भाजपा मुख्यमंत्री द्वारा भाजपा के विधायक को तोड़ने का जवाब कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं को अपने पाले में लो कर देना चाहती है। बताये जाते है गढ़वाल लोकसभा सीट व हरिद्वार संसदीय सीट के दो कांग्रेसी दिग्गज नेता भाजपाईयों के सम्पर्क में भी है। परन्तु किरण प्रकरण से मात खाये हुए भाजपा अब अपने हर कदम को बहुत ही सावधानी से उठाना चाहते हे। वहीं कांग्रेस भी भाजपा के इस दाव की आशंका से विज्ञ है इसी लिए वह भी भाजपा के कई विधायकों से सम्पर्क साध कर उन्हैं भी किरण मंडल की तरह कांग्रेस के पाले में लाने के फिराक में है। कांग्रेस व भाजपा के इस आपसी जंग ने प्रदेश की राजनीति को गोवा व झारखण्ड की तरह पतन के गर्त में धकेल दिया है। इससे विधायक जनसेवक न रह कर मंडी में बिकने वाला एक अदना सा प्यादा बन कर रह जाता है। प्रदेश में भाजपा व कांग्रेस में पनप रही इस प्रवृति से यहां के बुद्धिजीवी भी काफी खपा है। अपनी कुर्सी के लिए तमाम सिद्धातों व लोकशाही के मूल्यों को दाव पर लगाने की प्रवृति प्रदेश की लोकशाही को कितना दूषित करेगी यह तो समय ही बतायेगा। परन्तु लोगों की नजरों में आज पार्टियां सत्ता की सौदागर सी बन गयी है। सितारगंज में पाल के कूदने की आशंका से मुख्यमंत्री व उनके सिपाहेसलार सहमे हुए है। इसीलिए अब बेहड का नाम भी यहां से कांग्रेसी प्रत्याशियों के रूप में उछाला जा रहा है। परन्तु नारायणपाल की स्थिति यहां 21 ही नजर आ रही है।
इसी कारण मुख्यमंत्री खेमा अब उतना सहज महसूस नहीं कर रहा है जिसका दावे वे पहले कर रहे थे। प्रदेश भर में नारायणपाल के चुनावी दंगल में उतरने की आशंका से पहले सितारगंज से मुख्यमंत्री का चुनावी दंगल में उतरना तय माना जा रहा था परन्तु अब लगता है फिर से मुख्यमंत्री अपने लिए कोई अन्य सीट देखें। हालांकि सबसे पहले देहरादून के सहस्रपुर विधानसभा सीट पर भी मुख्यमंत्री की नजर थी। परन्तु भाजपाईयों के चैकन्ने होने व वहां से मिली कांग्रेस को करारी हार के कारण यहां से उतरने का साहस भी मुख्यमंत्री व उनके सिपाहेसलार जुटा नहीं पा रहे है।
कहीं और से चुनाव लड़ सकते हैं मुख्यमंत्री !
कांग्रेस असंतुष्ट विधायकों पर लगी भाजपा व भाजपा के असंतुष्टों पर लगी की वक्रदृष्टि
रूद्रपुर (प्याउ)। सितार गंज विधानसभा सीट से भाजपा की टिकट पर जीते विधायक किरण मंडल को मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के के लिए अपनी विधायकी के पद से इस्तीफे दे कर खाली करने से बाग बाग हो रहे प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा व उनके कांग्रेसी प्रबंधकों की सारी खुशियां उस समय फुर्र हो गयी जब बसपा ने अपने दो बार विधायक रहे दिग्गज नेता नारायण पाल व उनके भाई मोहन लाल को पार्टी से बाहर कर दिया। इसके साथ यह बात भी सामने आयी कि भाजपा कांग्रेस द्वारा भाजपा के विधायक को अपने पाले में ले जाने का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए इस क्षेत्र के दिग्गज नेता नारायणपाल को मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार सकती है। इसी आशंका से कांग्रेस की सारी खुशियों पर एक प्रकार से ग्रहण लगा दिया है। पाल के सितार गंज से कूदने की आशंका से मुख्यमंत्री ही नहीं अपितु उनके रणनीतिकार भी खासे परेशान है। चर्चा यह भी है कि पाल को भी कांग्रेसी पाले में लाने की कोशिशें की जा रही है परन्तु पाल के भाजपा से इतने मजबूत तार जुड गये हैं कि अब उनका सितारगंज से चुनावी दंग में उतरना तय माना जा रहा है। इसी को भांपते हुए कांग्रेसी यहां से मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के लिए सितारगंज की सीट निरापद नहीं मान रहे है। मुख्यमंत्री व उनके सिपाहेसलारों को अब तक यह मानना था कि भाजपा के पास यहां से कोई ऐसा नेता नहीं है जो मुख्यमंत्री के सामने चुनावी दंगल में कहीं दूर तक टिक भी सके। यह सच भी है कि इस क्षेत्र में बंगालियों पर बरसी मुख्यमंत्री की कृपा के बाद व यहां पर मुस्लिम-दलित बाहुल्य समीकरण भी कांग्रेस के दावे को ही मजबूत करता है। यह हकीकत है कि यहां पर भाजपा के शीर्ष नेता पूर्व मुख्यमंत्री खण्डूडी सहित तमाम नेता भी मुख्यमंत्री को टक्कर देने की स्थिति में ही नहीं है। इसी जमीनी सच्चाई को मन से स्वीकार कर भाजपा ने इस क्षेत्र के सबसे मजबूत नेता नारायण पाल को यहां से मैदान में उतारने के लिए अपने पाले में लाने का निर्णय लिया। इसी खेल को भांप कर बसपा के प्रदेश अध्यक्ष मेधराज जरावरे ने पाल बंधुओं को बसपा से बाहर का रास्ता दिखा कर पार्टी की नाक बचाने का काम किया।
नारायणपाल के सितारगंज विधानसभा सीट से उतरने की खबर से सहमें कांग्रेसियों ने अब इस सीट से मुख्यमंत्री के बजाय अपने इस क्षेत्र के वरिष्ठ नेता व किरण मण्डल को कांग्रेस में सम्मलित कराने वाले मिशन के मुख्य सूत्रधार रहे तिलक राज बेहड को चुनावी दंगल में उतारने पर भी गंभीरता से विचार करना शुरू कर दिया है। हालांकि इसी सप्ताह मुख्यमंत्री की यहां पर हुई सफल रेली के बाद अनुमान लगाया जा रहा था कि मुख्यमंत्री इसी रेली में अपने यहां से चुनाव लड़ने की घोषणा करेंगे परन्तु मुख्यमंत्री ने यहां पर इस विषय पर अपने पत्ते तक नहीं खोले। अब सितारगंज से नारायणपाल के उतरने की संभावनाओं को देखते हुए मुख्यमंत्री के लिए कोई अन्य विधानसभा को टटोला जा रहा है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री पर्वतीय क्षेत्र में कांग्रेस के मुख्यमंत्री विरोध्ी नेताओं व जनता के आक्रोश को देख कर पर्वतीय विधानसभा सीट पर उतरने का साहस नहीं जुटा पा रहे है। हालांकि गंगोत्री व कर्णप्रयाग के अलावा विकासनगर व नरेन्द्रनगर की सीटें भी चर्चाओं में है। परन्तु प्रदेश के कांग्रेस व भाजपा के बीच विधायकों के एक के अंतर के कारण कांग्रेस मुख्यमंत्री को किसी कांग्रेसी विधायक से इस्तीफा दिलाने की इजाजत देने की स्थिति में नहीं है। हालांकि प्रदेश भाजपा मुख्यमंत्री द्वारा भाजपा के विधायक को तोड़ने का जवाब कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं को अपने पाले में लो कर देना चाहती है। बताये जाते है गढ़वाल लोकसभा सीट व हरिद्वार संसदीय सीट के दो कांग्रेसी दिग्गज नेता भाजपाईयों के सम्पर्क में भी है। परन्तु किरण प्रकरण से मात खाये हुए भाजपा अब अपने हर कदम को बहुत ही सावधानी से उठाना चाहते हे। वहीं कांग्रेस भी भाजपा के इस दाव की आशंका से विज्ञ है इसी लिए वह भी भाजपा के कई विधायकों से सम्पर्क साध कर उन्हैं भी किरण मंडल की तरह कांग्रेस के पाले में लाने के फिराक में है। कांग्रेस व भाजपा के इस आपसी जंग ने प्रदेश की राजनीति को गोवा व झारखण्ड की तरह पतन के गर्त में धकेल दिया है। इससे विधायक जनसेवक न रह कर मंडी में बिकने वाला एक अदना सा प्यादा बन कर रह जाता है। प्रदेश में भाजपा व कांग्रेस में पनप रही इस प्रवृति से यहां के बुद्धिजीवी भी काफी खपा है। अपनी कुर्सी के लिए तमाम सिद्धातों व लोकशाही के मूल्यों को दाव पर लगाने की प्रवृति प्रदेश की लोकशाही को कितना दूषित करेगी यह तो समय ही बतायेगा। परन्तु लोगों की नजरों में आज पार्टियां सत्ता की सौदागर सी बन गयी है। सितारगंज में पाल के कूदने की आशंका से मुख्यमंत्री व उनके सिपाहेसलार सहमे हुए है। इसीलिए अब बेहड का नाम भी यहां से कांग्रेसी प्रत्याशियों के रूप में उछाला जा रहा है। परन्तु नारायणपाल की स्थिति यहां 21 ही नजर आ रही है।
इसी कारण मुख्यमंत्री खेमा अब उतना सहज महसूस नहीं कर रहा है जिसका दावे वे पहले कर रहे थे। प्रदेश भर में नारायणपाल के चुनावी दंगल में उतरने की आशंका से पहले सितारगंज से मुख्यमंत्री का चुनावी दंगल में उतरना तय माना जा रहा था परन्तु अब लगता है फिर से मुख्यमंत्री अपने लिए कोई अन्य सीट देखें। हालांकि सबसे पहले देहरादून के सहस्रपुर विधानसभा सीट पर भी मुख्यमंत्री की नजर थी। परन्तु भाजपाईयों के चैकन्ने होने व वहां से मिली कांग्रेस को करारी हार के कारण यहां से उतरने का साहस भी मुख्यमंत्री व उनके सिपाहेसलार जुटा नहीं पा रहे है।
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