दिशाहीन भ्रष्ट हुक्मरानों से पूरी व्यवस्था में फेली आरजकता
सर्वोच्च न्याय तो केवल परमात्मा ही कर सकता है।हम आप जिस सांसारिक न्याय व्यवस्था में जी रहे हैं वह अभी अपूर्ण है। उसमें आंशिक ही न्याय होता है। जहां तक भारतीय न्याय व्यवस्था की बात है वह तो अभी गुलामी की घनघोर अंधेरी रातों में ही भटकते हुए लोकशाही के सूर्योदय की पहली तेजोमय किरण को भी आत्मसात नहीं कर पा रही है। वह अभी गुलामी की जंजीरों में अपने आप को बांध कर आत्ममुग्ध है। वेसे भी भारत में भ्रष्टाचार व दिशाहीन नेतृत्व से जमीदोज हो चूकी भारतीय व्यवस्था में जिस प्रकार से न्यायाधीशों की नियुक्तियों होती है, उसमें अधिकांश पथभ्रष्ट हुक्मरानों के अपने इशारों या हितों के पोषण करने में साहयक रह सकने वालों को ही प्रायः नियुक्ति मिलती है। जिनका जमीर इन नेताओं व उनके प्यादे बने व्यवस्था के कर्णधारों के पांवों तले आये दिन दम तोड़ता हुआ नजर आता है। जिस प्रकार से आये दिन न्यायाधीशों की भी भ्रष्टाचार में लिप्तता के किसेे सुनने में आ रहे हैं या उससे एक बात स्पष्ट है कि हमें इस न्याय व्यवस्था में सुधार तब तक नहीं हो सकता है जब तक हमारी पूरी व्यवस्था सुधर न जाय। नैतिक मूल्यों के लिए जीने वाले प्रतिभाशाली लोगों को प्रमुख संवैधानिक पदो ंमें आसीन करने के बजाय हुक्मरान अपने गुनाहों कोछुपाने वाले दागदार प्यादों को पदासीन करने की धृष्ठता करते हैं तो उसका हस्र व्यवस्था का पटरी से नीचे उतर जाना ही होता है। यही देश का हाल है और उत्तराखण्ड में तिवारी से लेकर बहुगुणा तक के मुख्यमंत्रित्व काल में जो शर्मनाक पतन यहां की व्यवस्था का हुआ वह लोकशाही को पतन की गर्त में धकेलने वाला ही हो सकता है। जिस व्यवस्था में कर्णधार ही संकीर्ण व भ्रष्ट मानसिकता के सत्तालोलुपु हो तो वहां व्यवस्था के अन्य अंग केसे सुरक्षित रह सकते है। क्योंकि व्यवस्था के कर्णधार अच्छे, योग्य व लोकशाही के लिए समर्पित लोगों के बजाय पथभ्रष्ट, संकीर्ण व दागदार लोगों को अपने कुकर्मो को ढकने व स्वार्थो की पूर्ति के लिए पदासीन करके पूरी व्यवस्था को पतन के गर्त में धकेल देते है। इसी से देश, प्रदेश, समाज व संसार में आरजकता, मंहगाई, भ्रष्टाचार, हिंसा आदि का वातावरण बन जाता है। इसलिए संसार में जब भी कभी पथभ्रष्ट, दिशाहीन व संकीर्ण लोग सत्तासीन होते हैं तो उस देश, समाज या प्रदेश को ही नहीं अपितु पूरी मानव समाज को भी इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ते है। इसलिए मानवीय समाज की रक्षा के लिए जरूरी है कि किसी गलत व्यक्ति को कहीं भी देश, प्रदेश की बागडोर सोंपने से रोका जाय। जनता में ऐसी जागरूकता कि नितांत आवश्यकता है कि वह गलत व्यक्ति को अपने निहित स्वार्थ, प्रलोभन व रिश्ते, जाति, धर्म या क्षेत्र आदि के नाम पर काबिज होने से रोंके। इसका उदाहरण हमारे सामने हैं चंगैज, हिटलर, औरंजेब, सिकन्दर, ही नहीं जार्ज बुश, ओसमा, ने पूरे संसार को अपने आतंक से तबाही के गहरे घाव दिये हैं। आज पाकिस्तान की दुर्दशा के लिए वहां के संस्थापक जिन्ना जहां जिम्मेदार है। वहीं हिमाचल प्रदेश के जमीनी विकास के लिए वहां के विदेही राज जनक के समान जनसेवक वहां के प्रथम मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार द्वारा रखी गयी ईमानदार, विकासोनुमुख लोकशाही समर्थक नीवं प्रमुख कारक रही। वहीं देश भूमि उत्तराखण्ड के राज्य गठन के मात्र 12 साल में देश का सबसे भ्रष्ट्रतम राज्य बन जाने के पीछे वहां के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी व उनके बाद यहां पर आसीन होने वाले संकीर्ण, दिशाहीन व पदलोलुपु लोगों के यहां के भाग्य विधाता बनना रहा। आज उत्तराखण्ड में जहां राजनेता ही नहीं नौकरशाही भी इतनी पथभ्रष्ट हो चूकी है कि उसको जनहितों का रत्तीभर भी भान नहीं है। इसी की परणीति है उत्तराखण्ड के स्वाभिमान व यहां के राज्य गठन के आंदोलन को कुचलने वाले तथा आंदोलनकारियों की निर्मम हत्या करने वालों को दण्डित करने के बजाय यहां के हुक्मरानों द्वारा उनको शर्मनाक संरक्षण मिलना, लोकशाही व भारतीय संस्कृति को कलंकित करने से कम नहीं है। हम इस पतन पर भले ही कितने ही घडियाली आंसू क्यों न बहा लें परन्तु जब तक हम लोकशाही व समाज के हित में निर्णायक क्षणों में जाति, धर्म, दल, रिश्ते, लिंग, भाषा, निहित स्वार्थ आदि के मोह से उपर उठ कर सुयोग्य प्रत्याशी को पदासीन नहीं करेंगे तब तक देश व समाज या विश्व में सुशासन नहीं आने वाला। हमें एक बात समझ लेनी चाहिए कि हम किसी भी कीमत पर किसी दल या जाति या धर्म आदि संकीर्णता के अंध भक्त या प्यादे बनने के बजाय देश, प्रदेश व समाज के व्यापक दूरगामी हितों को ध्यान में रख कर ही अपना फेसला करें। किसी भी कीमत पर गलत व्यक्तियों को समाज, राष्ट्र व प्रदेश तथा छोटे छोटे संगठनों की बागडोर सोंपने से रोकने के लिए अपनी ताकत लगायें। जब दिशावान व लोकशाही को समर्पित लोग पदासीन होंगे तभी व्यवस्था सही दिशा में आगे बढेगी और समाज में विकास की गंगा बहते हुए अमन चैन का सम्राज्य भी होगा। नहीं तो इस दिशा में केवल गाल बजाना व एक दूसरे को कोसना एक प्रकार से विधवा विलाप ही होगा। अन्याय का विरोध करना व लोकशाही के लिए समर्पित लोगों को समर्थन करना ही हमारा पहला धर्म है। यही देश, समाज व प्रदेश के संग मानवता की सर्वोच्च सेवा है। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत् । श्रीकृष्णाय् नमो।
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