भाजपा व कांग्रे्रसियों के चक्रव्यूह को भेद कर 
हिमाचल की रक्षा कर पायेंगे वीरभद्र




भाजपा व कांग्रेसी नेताओं के चक्रव्यूह में फंसे हिमाचल के दिग्गज नेता वीरभद्र ने आखिरकार केन्द्रीय मंत्रीमण्डल से इस्तीफा दे दिया। 23 साल पुराने एक मामले में उन पर आरोप तय होने के बाद उन्होंने नैतिक दृष्टि केन्द्रीय मंत्रीण्डल से इस्तीफा दे दिया। इस पूरे प्रकरण में पर्दे के पीछे कौन सी ताकतें हैं उनको भी वीरभद्र भले ढंग से पहचानते है। वे   परन्तु दिल्ली व हिमाचल में उनके खिलाफ जो हिमाचल की राजनीति से दूर करने का षडयंत्र दशकों से रचा जा रहा है उसको वे उम्र की इस मुकाम में किस प्रकार से पार पाते हैं, यह तो समय ही बतायेगा। परन्तु यह भी सोलह आना सच है हिमाचल की आम जनता इन तमाम आरोपों के बाबजूद यह मानने के लिए कतई तैयार नहीं है कि राजा साहब किसी भी रूप से किसी भ्रष्टाचार में कहीं लिप्त होंगे। उनका यह विश्वास वीरभद्र के चार दशक से अधिक लम्बी हिमाचल की महत्वपूर्ण सेवा को देख कर ही जनता कर रही है।
वही दूसरी तरफ   लगता है कांग्रेस आला नेतृत्व व उनके आत्मघाती दरवारियों ने कुछ माह पहले हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में पार्टी के पतन से कुछ भी सीख नहीं ली है। जिस प्रकार से पंजाब ही नहीं उत्तराखण्ड में कांग्रेस को आशातीत सफलता न मिलने के कारण दिल्ली दरवार के हवाई नेताओं द्वारा जमीनी नेताओं के बजाय अपने प्यादों को विधायकी व चुनाव अभियान में प्रमुखता सौपना रहा। वेसा ही काम फिर हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस कर रहा है। खासकर हिमाचल प्रदेश में वहां की आम जनता से लेकर दिल्ली में बेठे गैर कांग्रेसी राजनेता भी जानते हैं कि हिमाचल के सबसे जनप्रिय व वरिष्ट नेता वीरभद्र है, इसके बाबजूद उनके हाथों में पूरी तरह कांग्रेस की कमान सौंपने के बजाय दिल्ली के हवाई नेताओं को वहां पर थोपने का काम कर रहे है। हालांकि प्रदेश भाजपा सरकार के निशाने पर सदैव रहे वीरभद्र को अपने ही दल के विभिषणों से भी आये दिन दो चार होना पड़ता है। 23 साल पुराने एक मामले में खुद पर आरोप तय होने के बाद वीरभद्र ने कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी से अपने इस्तीफे की पेशकश करते हुए भाजपा पर आरोप लगाया कि वह राजनैतिक द्वेष के कारण छदम् मामलों में फंसाना चाहते है। उन्होंने कहा कि वे षडयंत्रकारियों को बेनकाब करके ही दम लेंगे।
हालांकि भाजपा के षडयंत्रकारियों के अलावा चुनाव के मुहाने पर खड़ी कांग्रेस में वीरभद्र को कमजोर करने के लिए ही षडयंत्र किया जा रहा है उससे वे अनविज्ञ नहीं है। खासकर जिस प्रकार उत्तराखण्ड व दिल्ली में कांग्रेस की लुटिया डुबोने में इन राज्यों में केन्द्रीय प्रभारी चैधरी बीरेन्द्रसिंह का महत्वपूर्ण हाथ रहा, अब उसी के कंधों पर कांग्रेस आला नेतृयत्व ने हिमाचल का केन्द्रीय प्रभार भी सौंप रखा है। खासकर जिस प्रकार से चैधरी बीरेन्द्र ने 70 की विधानसभा सीट में कम से कम 45 सीटों पर सहज ही विजय हासिल करने के लिए तैयार खड़ी कांग्रेस की जडों में हवाई प्रत्याशी दिये उसी का दुष्परिणाम है कि आज  कांग्रेस को बाहरी समर्थन की बैशाखियों के सहारे सरकार बनाने के लिए मजबूर होना पडा।
ऐसा ही हिमाचल प्रदेश में भी जो भूल गत विधानसभा चुनाव में तत्कालीन प्रभारी आर के धवन की सह पर कांग्रेस ने हवाई प्रत्याशियों को थोप कर व हिमाचल में विकास की गंगा बहाने वाले महान भागीरथ प्रथम मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार की तरह हिमाचल में विकास के नये आयाम खडे करने वाले वीरभद्र की उपेक्षा करके की। इसी कारण प्रदेश में वह चुनाव कांग्रेस अपनी इसी भूल के कारण हारी । अब भी कांग्रेस अपनी पिछली भूलों से न तो सीख ले रही है व नहीं उसे अपनी लुटिया डुबोने वालों को हिमाचल चुनाव से दूर रखने का ही काम किया। अपितु इस बार भी यहां पर आनन्द शर्मा जैसे हवाई नेताओं को जिनका हिमाचल जैसे प्रदेश में हिमाचल की आम जनता के दिलों में भी राज करने वाले व विकास व स्वाभिमानी हिमाचल की ठोस नींव रखने वाले वीरभद्र की राह पर कांटे बिछाने के लिए क्यों पूर्व कांग्रेसी नेताओं की तरह आत्मघाती भूल कर रहे है। वीरभद्र देश के उन चंद वर्तमान नेताओं में से एक है जिनका सम्मान जनता ही नहीं उनके विरोधी राजनेता हिमाचल व देश में भी करते है। यही नहीं वे ही देश में हिमालयी राज्यों की समस्याओं के निदान व वहां पर विकास की गंगा कैसे बहायी जाय इसके लिए सबसे योग्य राजनेता, प्रशासक व जमीनी नेता है। यह भी सच है कि आज वीरभद्र भाजपा के ही नहीं अपनों के भी चक्रव्यूह में बुरी तरह फंेसे हुए है। चुनावी रणभेरी भी बजने वाली है और न्यायालय से उनके खिलाफ सजा भी सुनायी देने वाली है। हालांकि वीरभद्र इस23 साल पुराने  मामले को भाजपा द्वारा फर्जी वाद बनाने का आरोप लगा रहे है। परन्तु अगर सज में वीरभद्र ने भ्रष्टाचार किया तो उनको सजा तो होनी ही चाहिए परन्तु उन्होंने हिमाचल के विकास के लिए इतना कार्य किया, उनके बेदाग राजनैतिक जीवन को देख कर सहज ही विश्वास नहीं आता। परमात्मा दुध का दुध व पानी का पानी करे। जो भी गलत कार्य करे उसको सजा हर हाल में मिले चाहे वह कोई भी क्यों न हो। हाॅं हिमाचल में उनके कार्यो को देख कर मुझे आशा है कि जनता उनको एक ही सजा दे वह हिमाचल को और विकास के पथ पर अग्रसर करने के लिए प्रदेश की सरकार संभालने की सजा।
आज जिस प्रकार से जमीनी राजनीति व हिमाचल के विकास की गाथा से अनविज्ञ टीम अण्णा के सिपाहेसलार हिमाचल में प्रचार करने में लगे है अगर दिल्ली दरवार के कांग्रेसी तिकडमियों ने वीरभद्र की राह में कांटे बिछाने का काम नहीं किया तो उत्तराखण्ड की तरह हिमाचल में भी टीम अण्णा को ही नहीं बाबा रामदेव को भी मुंह की खानी पडेगी। मुझे यह जान कर अफसोस होता है कि जमीनी नेताओं की जड़ों में मट्ठा डालने का काम उत्तराखण्ड की तरह हिमाचल में करने की जानबुझ कर भूल कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी व राहुल गांधी क्यों करने दे रहे है। एक बात जो हिमाचल की ही नहीं दिल्ली के राजनैतिक गलियारों में कई सालों से गूंज रही हे कि अगर हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस तभी सत्तासीन हो सकती है जब वह प्रदेश चुनाव की कमान वीरभद्र के हाथों में पूरी तरह से सोंप कर उनको ही चुनाव के बाद मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान करे। परन्तु लगता है दिल्ली दरवार के नेताओं के अपने स्वार्थ प्रदेश व पार्टी के हितों से बढ़कर होते हैं वे उत्तराखण्ड की तरह पूरे देश में ऐसे नेताओं को शासन प्रसासन की कमान सोंपते हैं जिनको न प्रदेश व नहीं देश का कहीं दूर तक भान होता है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व मोंटेक सिंह आलुवालिया इसी मानसिकता का द्योतक है। वीरभद्र कांग्रेस के ही नहीं अपितु देश के सबसे अनुभवी व विकास के लिए समर्पित नेताओं में जाने जाते है। अगर उनकी सलाह पर उत्तराखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री स्वामी जरा भी अमल करते तो उत्तराखण्ड भी हिमाचल की तरह आज विकास व सुशासन की कुचालें भरता नजर आता परन्तु दुर्भाग्य है दिल्ली दरवार के संकीर्ण नजरिया वाले उत्तराखण्ड के अब तक के भाजपा व कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने उत्तराखण्ड में हिमाचल की तरह विकास की नींव रखने व यहां के संसाधनों की रक्षा करने के बजाय यहां के संसाधनों को अपने आकाओं व अपने राजसी ठाठ में ही लुटवाने का काम किया। आज हिमाचल की कोई भी सरकार रहे उसके मंत्री या विधायक या नौकरशाह उत्तराखण्ड के नेताओं व नौकरशाहों की तरह दिल्ली के लिए अंधी दौड लगा कर प्रदेश के संसाधनों को लुटवाते नहीं देखे जा सकते है। यही नहीं उत्तराखण्ड प्रदेश की तरह हिमाचल प्रदेश में दिल्ली दरवार के संकीर्ण नेताओं के प्यादों को प्रदेश में संवैधानिक पदों पर आसीन करके प्रदेश की संस्थानों का तबाह करने का काम ही किया जाता। इसी कारण दिल्ली दरवार के नेता चाहे भाजपा हो या कांग्रेस देश में किसी जमीनी नेता को मुख्यमंत्री या केन्द्र में मंत्री बनाने के बजाय अपने जनाधार बिहिन हवाई प्यादों को महत्वपूर्ण पदों में आसीन कर उस प्रदेश या मंत्रालय का जम कर दोहन करते है। इसी कारण आज उत्तराखण्ड देश के सबसे भ्रष्टतम राज्यों में मात्र राज्य गठन के दस साल में बन कर अपने भविष्य को तबाह होते देख कर आंसू बहा रहा है। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।

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