सितारगंज में मतदाताओं को दिये गये खुले आम प्रलोभन पर मूक क्यों चुनाव आयोग 
सितारगंज से विजय बहुगुणा को मिलेगी भारी विजय 

देहरादून (प्याउ)। सितारगंज हो रहे उप चुनाव में जहां विजय बहुगुणा का जीतना तय माना जा रहा है वहीं इस सीट पर हो रहे उप चुनाव में चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा पूरी तरह से दाव पर लग चूकी है। चुनाव आयोग ने सितारगंज विधानसभा उपचुनाव की अधिसूचना जारी करते हुए वहां पर 13 जून से 20 जून तक नामांकन भरने  व 21 जून को नाम वापसी का दिन घोषित करने के साथ 8 जुलाई को चुनाव तथा 11जुलाई को मतगणना करने का ऐलान कर दिया हो। पर सितारगंज चुनाव भले ही उपचुनाव हो परन्तु यह चुनाव जहां प्रदेश की राजनीति की दिशा तय करेगा वहीं देश के चुनाव आयोग की अग्नि परीक्षा भी करेगा। हालांकि यहां पर जिन परिस्थितियों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं इस सीट पर कांग्रेसी मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा का जितना तय माना जा रहा है। परन्तु चुनाव जीतने के लिए जिस प्रकार से यहां पर भाजपा अपने विधायक को अपने पक्ष में करने के लिए कांग्रेस सहित मुख्यमंत्री पर सीधे खरीद फरोख्त का आरोप लगा रही है वहीं सितारगंज के बहुसंख्यक मतदाताओं को भूमिधरी का प्ट्टा चुनाव अधिसूचना के ठीक एक पखवाडे पहले ही नवाजना क्या मतदाताओं को सीधा प्रलोभन देना ही मान कर इसका प्रदेश के अधिकांश राजनैतिक दल, बुद्धिजीवी, आंदोलनकारी संगठन कर रहे हैं क्या चुनाव आयोग चुनाव जीतने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री के द्वारा अपनी सरकार से कराये गये इस फेसले को संज्ञान में लेने का साहस जुटा कर अपने निष्पक्ष चुनाव कराने के दायित्व का निर्वहन कर पायेगा। आज चुनाव आयोग की इसी कदम पर पूरे देश की निगाहें लगी हुई है। प्रदेश की राजनीति में मुख्यमंत्री के इस कदम का विरोध जहां खुले आम उनकेे सरकार मे ंसहयोगी उक्रांद पी भी कर रही है। उक्रांद पी के अध्यक्ष त्रिवेन्द्र पंवार इस सीट पर अपना प्रत्याशी खडा करने का ऐलान कर रहे है। वहीं बसपा की चुनौती को पहले ही कुंद करने के लिए मुख्यमंत्री ने इस क्षेत्र के बसपा क्षत्रप नारायण पाल का समर्थन हासिल करने में सफलता हासिल की है। भाजपा के लिए यह सीट अस्तित्व बचाने व चुनौती स्वीकार करने की है। जिस प्रकार से मुख्यमंत्री ने उनके विधायक को अपने पाले में ले जा कर भाजपा को खुली चुनौती दी है उसका मुहतोड़ जवाब भाजपा अभी भले ही देने की स्थिति में नहीं दिखाइै दे रही है। भाजपा के कमजोर नेतृत्व के कारण जहां विजय बहुगुणा की सरकार कांग्रेस में भारी असंतोष के बाबजूद बनी हुई हैं। वहीं बसपा से निकाले गये नारायण पाल तक को भाजपा अपने पाले में ला कर मुख्यमंत्री को कड़ी चुनौती नहीं दे पायी। अब अंधेरे में हाथ पांव मारते हुए भाजपा जिस प्रकार से भाजपा के दिग्गज नेता वरूण गांधी की बंगाली पत्नी को उतारने के बारे मे ंसोच रही है उससे साफ हो गया कि इस विधानसभा चुनाव क्षेत्र से भाजपा के दिग्गज खण्डूडी सहित क्षेत्र का कोई कद्दावर नेता जोखिम लेने को तैयार नहीं है।
भले ही चुनाव आयोग का दायित्व देश में लोकशाही की रक्षा करने के लिए देश में निष्पक्ष चुनाव कराना हो परन्तु जिस प्रकार से उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को विधानसभा सदस्य बनाने लिए प्रदेश की 68 नम्बर की विधानसभा क्षेत्र सितारगंज में उपचुनाव 8 जुलाई को हो रहा है उस पर निर्वाचन आयोग की अग्नि परीक्षा होगी। ै विधानसभा के आम चुनाव में यह सीट भाजपा की झोली में यहां के मतदाताओं ने डाली थी। परन्तु जिस प्रकार से यह सीट कांग्रेसी मुख्यमंत्री को विधानसभा सदस्य बनने के लिए भाजपा के किरण मंडल ने छोड़ी। जिस प्रकार से वहां पर मुख्यमंत्री को विजयी बनाने के लिए एक पखवाडे पहले ही प्रदेश सरकार ने यहां पर बहुसंख्यक बंगाली समाज को प्रभावित करने के लिए उनको भूमिधरी का अधिकार देने का कार्ड खेला। क्या वह चुनाव आयोग के संज्ञान में चुनाव को सीधे प्रभावित करने वाला प्रलोभन नहीं है?  सरकार जनकल्याण के कार्य करे परन्तु चुनाव जीतने के लिए सीधे मतदाताओं को लुभाने के लिए उनको भूमिधरी का प्रलोभन देना सीधे सीधे चुनाव व मतदाताओं को प्रभावित करने वाला प्रलोभन है। । हालांकि यह सीट मुख्यमंत्री के लिए जितनी सहज है उससे विकट इस सीट पर कांग्रेस सरकार द्वारा मतदाताओं को दिया गया खुले आम प्रलोभनों को नजरांदाज करना चुनाव आयोग के लिए मुश्किल है। जहां तक इस सीट के परिणाम के बारे में वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह सीट विजय बहुगुणा के पक्ष में मानी जा रही है क्योंकि यहां पर उनके दल के विरोधी भी किसी भी कीमत पर यहां पर भीतरघात करने की स्थिति में दिखाई नहीं दे रहे है। हालांकि पहले यह आशंका प्रकट की जा रही थी कि जिस प्रकार से कांग्रेस आला कमान ने जनभावनाओं व अपने  अधिकांश विधायकों की भावनाओं को रौंदेते हुए सांसद विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री के पद पर थोपा है उसको देख कर उनका किसी भी सीट से उप चुनाव में विजय होना काफी विकट लग रहा था। खासकर कांग्रेसी आपसी कलह को देख कर।


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