बाबा मोहन उत्तराखण्डी की शहादत व अण्णा का अनशन! आखिर कब तक शहीदों की शहादत पर मूक रहेंगे उत्तराखण्डी
बाबा मोहन उत्तराखण्डी की शहादत व अण्णा का अनशन!
आखिर कब तक शहीदों की शहादत पर मूक रहेंगे उत्तराखण्डी
मैं इस बात से हैरान हॅू कि जहां देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरे देश में एक व्यापक माहौल हैं परन्तु भ्रष्टाचार में आकंण्ठ डूबे उत्तराखण्ड में सरकारी भ्रष्टाचार पर जिस शर्मनाक ढ़ग से यहां की मीडिया व राजनेतिक दलों ने शर्मनाक मौन रखा है उससे पूरे देश के चिंतकों को चिंतित कर दिया है। लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि दिल्ली में तो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मात्र 98 घंटे की आमरण अनशन पर दिल्ली सरकार जाग गयी थी। अण्णा देश के महानायक बन गये। देश की जनता ने उनको हाथों हाथ लिया । परन्तु उत्तराखण्ड में बाबा मोहन उत्तराखण्डी की राजधानी गैरसैंण बनाने की मांग को लेकर चले 29 दिन के आमरण अनशन पर अपनी शहादत देने के बाबजूद तत्कालीन धृतराष्ठ से बने मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी की वासना के गर्त में मरी आत्मा ही जाग पायी व नहीं प्रदेश की जनता ही जागी। वहीं 68 दिनों तक हरिद्वार में भ्रष्टाचार के खिलाफ आमरण अनशन करने वाले स्वामी निगमानंद के अनशन ने भाजपा की वर्तमान प्रदेश सरकार ही जागी व नहीं देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ हुकार भरने वाले संघ व भाजपा के आला नेताओं की आत्मा को ही झकझोर पायी। नहीं प्रदेश की जनता सकड़ों पर उतरी। स्वामी निगमानंद की कुशलक्षेम पूछने के लिए उमा भारती तो दिल्ली से डोईवाला स्थित हिमालयन हॉस्पिटल जौलीग्रांट इसी सोमवार को पहुंची । गौरतलब है कि स्वामी निगमानंद ने हरिद्वार में भ्रष्टाचार के खिलाफ 68 दिनों तक अनशन किया था। हालत बिगड़ने पर उन्हें दो मई को आईसीयू में भर्ती कराया गया था। चिकित्सकों का कहना है कि स्वामी निगमानंद की हालत स्थिर बनी हुई है। यह सब उत्तराखण्ड में की वर्तमान हालत को ही दर्शता है कि लोग आज किस प्रकार से जड़ हो गये है। इस प्रकार की स्थिति को देखते हुए सवाल होता है कि क्या उत्तराखण्ड के लोगों की जिन्होंने सदियों तक इस देश के स्वाभिमान व आत्मसम्मान के लिए अपना सर्वस्व निछावर किया था। जिनकी वीरता व ईमानदारी का डंका पूरे संसार में बड़े ही सम्मान से लिया जाता था। वहां राज्य गठन जनांदोलन में उत्तराखण्ड के स्वाभिमानी लोगों ने उत्तराखण्डी आत्म सम्मान को रौंदने वाले तत्कालीन उप्र के मुख्यमंत्री मुलायम व केन्द्र सरकार के मुखिया राव के अमानवीय दमन को बहादूरी से संगठित हो कर विफल कर देश के हुक्मरानों को पृथक राज्य गठन के लिए विवश कर दिया था। जिस उत्तराखण्ड ने मुगलों व फिरंगी सहित तमाम विदेशी आक्रांताओं को मुंहतोड़ जवाब दिया था। जिस उत्तराखण्ड की बहादूर जनता ने इंदिरा गांधी की थोपशाही के खिलाफ गढ़वाल लोकसभा उपचुनाव में मुहतोड़ जवाब दिया। जिस उत्तराखण्ड की जनता ने उत्तराखण्ड विरोधी नारायणदत्त तिवारी के कुशासन को उखाड़ फेंका था। आज वही उत्तराखण्ड की जनता प्रदेश में एक के बाद एक हो रहे भ्रष्टाचार पर मूक क्यों है। वह क्यों प्रदेश की राजनैतिक ताकत व भविष्य को सदा के लिए जमीदोज करने वाले प्रदेश विधानसभाई परिसीमन को जनसंख्या पर आधार पर थोपने वाले तिवारी व खंडू डी सहित कांग्रेसी नेताओं के कुकृत्य को मूक रह कर सह रहे हैं। वह क्यों प्रदेश की जनांकांक्षाओं की कूंजी स्थाई राजधानी गैरसैंण न बनाने पर तुले प्रदेश की अब तक की सरकारों के षडयंत्रों पर अपना विरोध प्रत्यक्ष रूप से प्रकट क्यों नहीं कर पा रही है। वह क्यों अपने स्वाभिमान को मुजफरनगर काण्ड-94 में रौंदने वाले अपराधियों को दण्डित करने के बजाय मूक रह कर बचाने के कृत्य करने वाले अब तक के शासकों को धिक्कार नहीं रहे है। आखिर अपने स्वाभिमान व हक हकूकों को रोंदने वाले तिवारी से लेकर निशंक तक के तमाम सत्तासीनों से दो टूक सवाल क्यों नहीं किया। आज यह सवाल वर्तमान के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है अपितु यह सवाल उत्तराखण्ड के भविष्य को भी प्रभावित करेंगे। जिस प्रकार से निशंक सरकार के भ्रष्टाचार व कुशासन एक के बाद एक उच्च न्यायालय में खुल रहे हैं उस पर शर्मनाक ढ़ग से उनको राजनैतिक संरक्षण मिल रहा है तथा मीडिया का मूक समर्थन मिल रहा है वह उत्तराखण्ड के भविष्य के साथ साथ देश की लोकशाही के लिए काफी खतरनाक है।
आखिर आमरण अनशन में ही शहादत देने वाले श्री देव सुमन की शहादत के बाद टिहरी की जांबाज जनता ने टिहरी से राजशाही का कलंक सदा के लिए दफन कर लोकशाही का स्थापित कर दिया था। परन्तु आज शहादत से गठित हमारे प्रदेश में, देश भूमि कहलाये जाने वाली पावन धरती उत्तराखण्ड में आज यहां की जनता को क्या हो गया कि वह प्रदेश के हितों को निर्ममता से रौंदे जाने पर भी मूक क्यों हैं। आज यहां इन सत्ता के सौंदागर प्रदेश के हक हकूकों को अपने निहित स्वार्थ के लिए जिस प्रकार से बंदरबांट कर रहे है। यहां पर प्रतिभा के बजाय जातिवाद व क्षेत्रवाद का जो अंधा कुशासन चल रहा है वह प्रदेश के विकास को ही नहीं यहां पर सदियों से स्थापित समाजिक सौहार्द को भी तहस नहस कर दिया। यहां की प्रतिभाओं को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने के बजाय अपने प्यादों व दिल्ली के आकाओं के प्यादों को उत्तराखण्ड में थोपा जा रहा है। ऐसे में प्रदेश की जनता जो कभी अपनी ईमानदारी के लिए विश्व विख्यात रही। ऐसे उत्तराखण्ड की जनता लगता है चुनाव के समय भ्रष्टाचारियों को कड़ा सबक सिखायेगी। परन्तु चुनाव में तो जनता अवश्य इनके मनसूबों को तहस नहस करने के लिए खुल कर न केवल आवाज उठायेंगी अपितु इन कुशासकों के भ्रष्टाचार को मूक समर्थन देने वाली मीडिया पर भी सही जवाब देगी। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।
आखिर कब तक शहीदों की शहादत पर मूक रहेंगे उत्तराखण्डी
मैं इस बात से हैरान हॅू कि जहां देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरे देश में एक व्यापक माहौल हैं परन्तु भ्रष्टाचार में आकंण्ठ डूबे उत्तराखण्ड में सरकारी भ्रष्टाचार पर जिस शर्मनाक ढ़ग से यहां की मीडिया व राजनेतिक दलों ने शर्मनाक मौन रखा है उससे पूरे देश के चिंतकों को चिंतित कर दिया है। लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि दिल्ली में तो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मात्र 98 घंटे की आमरण अनशन पर दिल्ली सरकार जाग गयी थी। अण्णा देश के महानायक बन गये। देश की जनता ने उनको हाथों हाथ लिया । परन्तु उत्तराखण्ड में बाबा मोहन उत्तराखण्डी की राजधानी गैरसैंण बनाने की मांग को लेकर चले 29 दिन के आमरण अनशन पर अपनी शहादत देने के बाबजूद तत्कालीन धृतराष्ठ से बने मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी की वासना के गर्त में मरी आत्मा ही जाग पायी व नहीं प्रदेश की जनता ही जागी। वहीं 68 दिनों तक हरिद्वार में भ्रष्टाचार के खिलाफ आमरण अनशन करने वाले स्वामी निगमानंद के अनशन ने भाजपा की वर्तमान प्रदेश सरकार ही जागी व नहीं देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ हुकार भरने वाले संघ व भाजपा के आला नेताओं की आत्मा को ही झकझोर पायी। नहीं प्रदेश की जनता सकड़ों पर उतरी। स्वामी निगमानंद की कुशलक्षेम पूछने के लिए उमा भारती तो दिल्ली से डोईवाला स्थित हिमालयन हॉस्पिटल जौलीग्रांट इसी सोमवार को पहुंची । गौरतलब है कि स्वामी निगमानंद ने हरिद्वार में भ्रष्टाचार के खिलाफ 68 दिनों तक अनशन किया था। हालत बिगड़ने पर उन्हें दो मई को आईसीयू में भर्ती कराया गया था। चिकित्सकों का कहना है कि स्वामी निगमानंद की हालत स्थिर बनी हुई है। यह सब उत्तराखण्ड में की वर्तमान हालत को ही दर्शता है कि लोग आज किस प्रकार से जड़ हो गये है। इस प्रकार की स्थिति को देखते हुए सवाल होता है कि क्या उत्तराखण्ड के लोगों की जिन्होंने सदियों तक इस देश के स्वाभिमान व आत्मसम्मान के लिए अपना सर्वस्व निछावर किया था। जिनकी वीरता व ईमानदारी का डंका पूरे संसार में बड़े ही सम्मान से लिया जाता था। वहां राज्य गठन जनांदोलन में उत्तराखण्ड के स्वाभिमानी लोगों ने उत्तराखण्डी आत्म सम्मान को रौंदने वाले तत्कालीन उप्र के मुख्यमंत्री मुलायम व केन्द्र सरकार के मुखिया राव के अमानवीय दमन को बहादूरी से संगठित हो कर विफल कर देश के हुक्मरानों को पृथक राज्य गठन के लिए विवश कर दिया था। जिस उत्तराखण्ड ने मुगलों व फिरंगी सहित तमाम विदेशी आक्रांताओं को मुंहतोड़ जवाब दिया था। जिस उत्तराखण्ड की बहादूर जनता ने इंदिरा गांधी की थोपशाही के खिलाफ गढ़वाल लोकसभा उपचुनाव में मुहतोड़ जवाब दिया। जिस उत्तराखण्ड की जनता ने उत्तराखण्ड विरोधी नारायणदत्त तिवारी के कुशासन को उखाड़ फेंका था। आज वही उत्तराखण्ड की जनता प्रदेश में एक के बाद एक हो रहे भ्रष्टाचार पर मूक क्यों है। वह क्यों प्रदेश की राजनैतिक ताकत व भविष्य को सदा के लिए जमीदोज करने वाले प्रदेश विधानसभाई परिसीमन को जनसंख्या पर आधार पर थोपने वाले तिवारी व खंडू डी सहित कांग्रेसी नेताओं के कुकृत्य को मूक रह कर सह रहे हैं। वह क्यों प्रदेश की जनांकांक्षाओं की कूंजी स्थाई राजधानी गैरसैंण न बनाने पर तुले प्रदेश की अब तक की सरकारों के षडयंत्रों पर अपना विरोध प्रत्यक्ष रूप से प्रकट क्यों नहीं कर पा रही है। वह क्यों अपने स्वाभिमान को मुजफरनगर काण्ड-94 में रौंदने वाले अपराधियों को दण्डित करने के बजाय मूक रह कर बचाने के कृत्य करने वाले अब तक के शासकों को धिक्कार नहीं रहे है। आखिर अपने स्वाभिमान व हक हकूकों को रोंदने वाले तिवारी से लेकर निशंक तक के तमाम सत्तासीनों से दो टूक सवाल क्यों नहीं किया। आज यह सवाल वर्तमान के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है अपितु यह सवाल उत्तराखण्ड के भविष्य को भी प्रभावित करेंगे। जिस प्रकार से निशंक सरकार के भ्रष्टाचार व कुशासन एक के बाद एक उच्च न्यायालय में खुल रहे हैं उस पर शर्मनाक ढ़ग से उनको राजनैतिक संरक्षण मिल रहा है तथा मीडिया का मूक समर्थन मिल रहा है वह उत्तराखण्ड के भविष्य के साथ साथ देश की लोकशाही के लिए काफी खतरनाक है।
आखिर आमरण अनशन में ही शहादत देने वाले श्री देव सुमन की शहादत के बाद टिहरी की जांबाज जनता ने टिहरी से राजशाही का कलंक सदा के लिए दफन कर लोकशाही का स्थापित कर दिया था। परन्तु आज शहादत से गठित हमारे प्रदेश में, देश भूमि कहलाये जाने वाली पावन धरती उत्तराखण्ड में आज यहां की जनता को क्या हो गया कि वह प्रदेश के हितों को निर्ममता से रौंदे जाने पर भी मूक क्यों हैं। आज यहां इन सत्ता के सौंदागर प्रदेश के हक हकूकों को अपने निहित स्वार्थ के लिए जिस प्रकार से बंदरबांट कर रहे है। यहां पर प्रतिभा के बजाय जातिवाद व क्षेत्रवाद का जो अंधा कुशासन चल रहा है वह प्रदेश के विकास को ही नहीं यहां पर सदियों से स्थापित समाजिक सौहार्द को भी तहस नहस कर दिया। यहां की प्रतिभाओं को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने के बजाय अपने प्यादों व दिल्ली के आकाओं के प्यादों को उत्तराखण्ड में थोपा जा रहा है। ऐसे में प्रदेश की जनता जो कभी अपनी ईमानदारी के लिए विश्व विख्यात रही। ऐसे उत्तराखण्ड की जनता लगता है चुनाव के समय भ्रष्टाचारियों को कड़ा सबक सिखायेगी। परन्तु चुनाव में तो जनता अवश्य इनके मनसूबों को तहस नहस करने के लिए खुल कर न केवल आवाज उठायेंगी अपितु इन कुशासकों के भ्रष्टाचार को मूक समर्थन देने वाली मीडिया पर भी सही जवाब देगी। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।
Comments
Post a Comment