-इंदिरा नहीं, देश व कांग्रेस के गुनाहगार है राव व मनमोहन

-इंदिरा नहीं, देश व कांग्रेस के गुनाहगार है राव व मनमोहन
-इंदिरा गांधी पर अगुली उठाने के कारण सोनिया व प्रणव इस्तीफा दें
नई दिल्ली(प्याउ)। कांग्रेस की 125 वीं साल गिरह पर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता प्रणव मुखर्जी के सम्पादन में जिस कांग्रेसी पुस्तक में कांग्रेस को कमजोर करने के लिए इंदिरा गांधी को गुनाहगार माना है, उस किताब का यह आरोप देश विदेश के करोड़ों की संख्या में आम समर्पित कांग्रेसियों के गले ही नहीं उतर रही है। आम कांग्रेसी इस बात से हैरान है कि जिस इंदिरा गांधी के राष्ट्रहित व आम जनमानस के कार्यो की दुहाई दे कर वर्तमान सत्तांध कांग्रेसी देश की सत्ता में काबिज है आज बेशर्मो की तरह उसी इंदिरा गांधी को कटघरे में रखने की धृष्ठता कोई कांग्रेसी सरकार कैसे कर सकती है। आम कांग्रेसी कार्यकत्र्ताओं की नहीं देश की आम जनमानस की भी यह भावना है कि इंदिरा गांधी ने भले ही अपने राजनैतिक विरोधियों को पछाड़ने के लिए कुछ भी किया हो परन्तु उन्होंने कभी देश व आम जनता के हित से किसी भी कीमत पर खिलवाड़ नहीं होने दिया। जबकि आज देश की स्थिति इतनी शर्मनाक है कि देश में चारों तरफ मंहगाई, भ्रष्टाचार व आतंक की भीषण ज्वाला में दहक रहा है और बेशर्मों की तरह मनमोहन सिंह सरकार देश की आम जनता का तमाशा देख रही है। ऐसी निकम्मी सरकार जो देश के हितों को अमेरिका के आगे रौंदवा रही हो उस सरकार के एक प्रमुख कबीना मंत्री प्रणव मुखर्जी के सम्पादन में प्रकाशित कांग्रेस संगठन की पुस्तक में इंदिरा गांधी जैसे देश हितों के लिए अमेरिका से टक्कर लेने वाली महानायिका पर प्रश्न उठाने का दुसाहस एक प्रकार से कांग्रेस व देश के हितों से खिलवाड करने की धृष्ठता है। खासकर उस समय जब इंदिरा गांधी आपात काल लगा रही थी उस समय प्रणव मुखर्जी क्यों मूक रहे। क्यों उसके जब इंदिरा गांधी 1878 के बाद सत्ता में आयी तो प्रणव मुखर्जी सत्ता में सहभागी बने। गौरतलब है कि इस विवादस्थ कांग्रेसी किताब में दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के देश में आपातकाल लगाने के निर्णय की कड़ी आलोचना करने के साथ ही उसे खतरनाक, ऐतिहासिक भूल और भयावह अनुभव करार देते हुए संजय गांधी और उनकी मंडली की संविधानेत्तर सत्ता पर निशाना साधा गया है।इस पुस्तक का प्रकाशन पार्टी की स्थापना के 125 वर्ष पूरे होने के अवसर पर किया गया है। इस पुस्तक के विभिन्न अध्यायों में स्वतंत्र लेखकों ने अपना योगदान दिया है और इसमें वर्ष 1964 से 1984 के उस दौर में घटी घटनाओं का विश्लेषण किया गया है जिसमें इंदिरा गांधी का देश की राजनीतिक परिदृश्य पर प्रभुत्व था।।
कांग्रेस ने पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रणव मुखर्जी के नेतृत्व वाले संपादकों के समूह द्वारा कांग्रेस के इतिहास के पांचवें अंक में व्यक्त विचारों को व्यक्तिगत लेखकों एवं इतिहासकारों की राय बताते हुए कहा है कि इसे पार्टी के विचार के रूप में नहीं लिया जा सकता।
भले ही अब इस विवाद के तुल पकड़ने पर कांग्रेस इस पुस्तक में इस लेख को स्तभ लेखक इंदर मल्होत्रा के अपने विचार बता कर पल्ला छाड रही हो परन्तु आम कांग्रेसी ही नहीं आम आदमी भी हैरान यह हे कि ऐसा लेख कांग्रेसी पुस्तक में कैसे स्थान पा सका।आपात काल की गलती का अहसास इंदिरा गांधी को भी स्वयं था। परन्तु ऐसी परिस्थितियां का निर्माण राजनैतिक दलों ने किया था उसके लिए वे लोग भी कम जिम्मेदार नहीं थे। इस पुस्तक ने साफ कर दिया कि कांग्रेस नेतृत्व इतना दिशाहीन हो चूका है कि उसे आत्म चिंतन के नाम पर अपनी कमजोरियों को छूपाने के लिए मनमोहन सिंह व राव जैसे जनविरोधी शासकों की तरफ अंगुली उठाने का साहस तक नहीं रहा और कांग्रेसी का प्राण समझी जाने वाली इंदिरा गांधी को कटघरे में खडा कर आत्महत्या करने को कैसे उतारू हो रही है, यही देखने की सबसे बड़ी बात है।

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