-रामदेव के जनांदोलन से सहमी मनमोहन सरकार

-रामदेव के जनांदोलन से सहमी मनमोहन सरकार
-रामदेव के आंदोलन को कमजोर करने के लिए अण्णा हजारे को भी आंदोलन के लिए मजबूर कर रही है सरकार
-लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्रालय व न्यायाधीशों को रखने से पलटी सरकार
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योगगुरू से देष को भ्रश्टाचार मुक्त करने के देष व्यापी जनांदोलन चलाने वाले बाबा रामदेव के 4 जून को होने वाले आमरण अनषन से लगता है देष को अपने कुषासन से मंहगाई, भ्रश्टाचार व आतंक के गर्त में धकेलने वाली मनमोहनी सरकार बुरी तरह से भयभीत हो गयी है। वह अब बाबा रामदेव के अनषन की धार कमजोर करने के लिए अण्णा हजारे को भी भ्रश्टाचार के मुद्दे पर समान्तर आंदोलन चलाने के लिए मजबूर कर रही है। सरकार कीरणनीति के तहत भ्रश्टाचार के खिलाफ इन दोनों सेना पतियों की आपसी द्वंद में यह जनांदोलन भी दम तोड़ कर रह जाय। इसी रणनीति के तहत सरकार ने यकायक अपने पक्ष से पलटी मारते हुए प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्रालय व उच्चत्तम न्यायपालिका को प्रस्तावित लोकपाल के दायरे से बाहर रखने की मंषा जग जाहिर की। सरकार को इस बात का अंदाज है कि इन तीना बातों के न मानने से अण्णा हजारे मजबूरी में आंदोलन करेंगे, यही सरकार चाह रही है।
बाबा रामदेव के व्यापक जनांदोलन से भयभीत सरकार को अपनी खुफिया तंत्र से इस बात का अंदाजा लग गया है कि इस आमरण अनषन में देष के हर कोने से लाखों लोग सम्मलित होने आ रहे है। यही नहीं देष के हर कस्बे व हर षहर में इस आंदोलन के समर्थन में व्यापक जनांदोलन चलाये जा रहे है। यह देख कर केन्द्र सरकार किसी भी तरह से बाबा रामदेव के दिल्ली के रामलीला मैदान में होने वाले आमरण अनषन को रोकने के लिए तरह तरह के कृत्य कर रही है। इसके पहले महत्वपूर्ण कदम में केन्द्र सरकार की रणनीति के तहत ही बाबा रामदेव के आमरण अनषन स्थल की स्वीकृति को दिल्ली पुलिस द्वारा रद्द किया। परन्तु जब पूरे देष में इसकी कड़ी भ्रत्र्सना हुई तो हार कर केन्द्र सरकार ने इस को पुन्न स्वीकृति प्रदान किन्तु परन्तु करके प्रदान कर ही दी।
अपनी इस रणनीति को असफल होते देख कर केन्द्र की जनविरोधी मनमोहनी सरकार ने आंदोलन के प्रति लोगों का ध्यान बंटाने के लिए सरकार ने यकायक अन्ना हजारे के नेतृत्व वाली समिति को अपने इस बात का यकायक खुलाषा किया कि सरकार लोकपाल कानून में प्रधानमंत्री, न्यायपालिका व रक्षा मंत्रालय को इसके दायरे में किसी भी कीमत पर नहीं रख सकती। सरकार को मालुम है कि अण्णा व उनके साथी अब चाह कर भी इस मांग पर सहमत नहीं हो सकते हैं व वे फिर से आंदोलन की राह पकड़ेगे।
अण्णा हजारे व साथी फिर से आंदोलन करे यह सरकार की रणनीति का अगला महत्वपूर्ण हिस्सा है। सरकारी रणनीतिकारों का मानना है कि अण्णा हजारे व साथियों का अनषन ठीक उसी समय षुरू होने से बाबा रामदेव के चल रहे आमरण अनषन के प्रति देष के लोगों का ध्यान बंटेगा। इससे जहां ये दोनों आंदोलन अपने जनसमर्थन के अभाव में आपस में टकरा कर दम तोड़ देंगे। गौरतलब है कि सरकार की मंषा को भाप कर अण्णा हजारे व उनके सभी साथी नाराज है। नाराज अन्ना 6 जून की बैठक के बाद कर सकते हैं बहिष्कार । वहीं मूल मुद्दे नहीं मानने से अन्ना की प्रतिष्ठा लगी दांव लगी है। परन्तु सरकारी पक्ष का कहना है कि किसी एक व्यक्ति की प्रतिश्ठा को बचाने के खातिर देष के प्रधानमंत्री को लोकपाल के हवाले करके देश को मुसीबत में नहीं डाला जा सकता । संयुक्त समिति में सरकारी पक्ष देश की सुरक्षा का हवाला देते हुए रक्षा मंत्रालय के अफसरों को सरकार ने लोकपाल के दायरे से बाहर रखने का सुझाव दे रहे है।
छह जून को होने वाली अगली बैठक के बाद वह लोकपाल मसौदे के लिए बनी संयुक्त समिति की बैठकों का बहिष्कार भी कर सकते हैं। अन्ना को सरकार की यह बात रास नहीं आई है कि लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को लाने से सरकार देश को ठीक से नहीं चला सकती। वहीं उच्चत्तर न्यायापालिका को भी लोकपाल से बख्शने के लिए सरकार की यह दलील भी कि थोड़े ही जज भ्रष्ट हैं अन्ना ने खारिज कर दी है। जहां सरकार प्रधानमंत्री और बड़े जजों को तथा संसद के भीतर सांसदों के कृत्यों को लोकपाल की मार से बाहर रखने की जिद कर रही है वहीं अन्ना ने भी दो टूक कह दिया है कि बिना इसके मजबूत लोकपाल नहीं बनेगा। इसलिए वह सरकार के साथ इन मुद्दों पर हरगिज समझौता नहीं करेंगे। अन्ना के साथी सरकार की इस पलटी से न केवल अन्ना अपितु उसके सभी समर्थक भी भौचंक्के हैं।
वहीं दूसरी तरफ बाबा रामदेव के भ्रश्टाचार के खिलाफ व्यापक जनांदोलन के समर्थन में पूरे देष से लाखों लोगों के जुटने की तैयारियां जोरों पर है। स्वयं बाबा रामदेव पूरा देष भ्रमण कर चूके है। उनका संगठन पूरे देष के लोगों को इस आंदोलन में जोड़ने की रणनीति को अंतिम रूप दे चूका है। अब देखना है कि बाबा रामदेव को सरकार अण्णा हजारे की तरह अपने किसी दाव में फांसती है या बाबा रामदेव सरकार को अपनी बातों को स्वीकार करने के लिए मजबूर करते। निर्णय जो भी हो इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि बाबा रामदेव व अण्णा हजारे ने पूरे देष के जनमानस को भ्रश्टाचार के खिलाफ संघर्श करने के लिए लामबंद कर दिया है। मृतप्राय देष को जीवंत कर दिया हैं। इसी कारण पूरे देष के हुक्मरान सहमें हुए है। षेश श्रीकृश्ण। श्री कृश्णाय नमो। हरि ओम तत्सत्।

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