त्रिवेन्द्र पंवार को उक्रांद से हटा कर अब एक होंगे ऐरी व भट्ट !


ऐरी सहित 10 नेताओं को भी उक्रांद से निकाला


देहरादून (प्याउ)। उत्तराखण्ड क्रांतिदल के दोनों शीर्ष नेता काशीसिंह ऐरी व साथियों को दल से बर्खास्त करके उक्रांद अध्यक्ष त्रिवेन्द्रसिंह पंवार ने दल से अलग हटाये गये शीर्ष नेता व पूर्व मंत्री दिवाकर भट्ट व काशीसिंह ऐरी को एकजूट हो कर फिर से उक्रांद को एकजूट होने के लिए मजबूर कर दिया। चंद दिनों में इन दोनों की होने वाली एका से जहां उक्रांद से बर्खास्तगी का क्रम भी त्रिवेन्द्र पंवार को दल से ही हटाये जाने से ही जारी रहेगा। उक्रांद में त्रिवेन्द्र पंवार ही एक ऐसा नेता रहा जो दल की नीतियों को अपने निहित सत्तालोलुपता के लिए आये दिन भाजपा व कांग्रेस के हाथों भैंट चढ़ाने वाले काशी सिंह ऐरी व दिवाकर भट्ट को भी अनुशासन का पाठ पढ़ाने का साहस दिखा पाया। यही नहीं उन्होंने न केवल अपने दल के एकमात्र विधायक प्रीतम पंवार जो प्रदेश सरकार में मंत्री पर भी इसी अनुशासन के हंटर चला कर दल से बर्खास्त कर दिया। त्रिवेन्द्र पंवार ही एक ऐसा कठोर नेता रहा जिन्होंने प्रदेश के हितों की उपेक्षा करने वाली वर्तमान कांग्रेस सरकार से दल के वरिष्ट सदस्यों की इच्छा के विरूद्ध जा कर सरकार से समर्थन तक वापस ले कर दल के अवसरवादी नेताओं की सत्ता की मलायी चाटने की हसरत पर ग्रहण लगाया। हालांकि जमीनी कार्यकत्र्ता त्रिवेन्द्र पंवार जैसे कठोर निर्णय लेने वाले नेता की जरूरत लम्बे समय से पार्टी में महसूस कर रहे थे। परन्तु दिवाकर भट्ट व काशीसिंह ऐरी जैसे शीर्ष सत्तालोलुप नेताओं की लम्बे समय से पार्टी पर पकड़ होने के कारण ये दोनों नेता ही इस पार्टी के कई बार टूट के कारण रहे। इन दोनों ने अपनी सत्तालोलुपता के लिए न केवल पार्टी को अपितु प्रदेश की जनभावनाओं को कभी सप, तो कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा के हाथों का खिलोना बना कर रख दिया। इसी कारण भाजपा कांग्रेस के कुशासन व उत्तराखण्ड विरोधी कृत्यों के बाबजूद प्रदेश की जनता उक्रांद के इस आत्मघाती नेतृत्व पर विश्वास नहीं कर पायी। हालांकि आज भी प्रदेश की जनता प्रदेश का शासन भाजपा व कांग्रेस से हट कर किसी मजबूत उत्तराखण्डी हितों के लिए समर्पित दल के हाथों में सौंपना चाहती है परन्तु इस मामले में न उक्रांद व नहीं नव गठित उत्तराखण्ड रक्षा मोर्चा ने भी जनता का विश्वास का विश्वास पर कभी भी खरे नहीं उतर पाये। उक्रांद अध्यक्ष त्रिवेन्द्र पंवार के ठोस निर्णयों के बाबजूद उक्रांद का काशीसिंह ऐरी व दिवाकर के बीना कल्पना करने की स्थिति में आज नहीं है। इस लिए मजबूरी में दिवाकर भट्ट व ऐरी दोनों एकजूट हो कर त्रिवेन्द्र सिंह पंवार को ही दल से बाहर कर देंगे। वेसे दोनों की एकजूटता भी अब जनता के विश्वास जीतने के लिए काफी नहंी होगा। दल के हित में काशीसिंह ऐरी व दिवाकर भट्ट को सक्रिय राजनीति से हट कर उक्रांद का मार्गदर्शक बन जाना चाहिए और त्रिवेन्द्र पंवार को भी अध्यक्षता से इस्तीफा दे कर दल का नेतृत्व जंतवाल या पुष्पेश त्रिपाठी के हाथों सौंप कर सभी उत्तराखण्ड समर्थक दलों की एका करनी चाहिए। नहीं तो उक्रांद जनविश्वास किसी हालत में अर्जित नहीं कर पायेगा।
उत्तराखण्ड के जनहितों को अपनी पदलोलुपता व अपने आकाओं की सनक पूरी करने के लिए भैंट चढ़ाने वाली कांग्रेस व भाजपा राज्य गठन के 12 सालों में जहां सत्ता में काबिज होने में लग कर चर्चाओं में हैं वहीं उत्तराखण्ड की एकमात्र स्थानीय दल होने का दंभ भरने वाली व उत्तराखण्ड राज्य गठन की प्रमुख दल उत्तराखण्ड क्रांतिदल राज्य गठन आंदोलन के दोरान से राज्य गठन के 12 सालों तक चुनावी जंग में प्रदेश में अपना वजूद हाशिल करने के लिए नहीं अपितु दल के टूकडे -टूकडे करने के लिए आये दिन चर्चाओं में रहा। भले ही उक्रांद निकाय चुनाव में उत्तराखण्ड में कोई महत्वपूर्ण स्थान अर्जित नहीं कर पाया। केवल नैनीताल नगर पालिका अध्यक्ष को छोड़ कर वह कहीं अपना वजूद स्थापित नहीं कर पायी। परन्तु निकाय चुनाव परिणाम के आने के बाद अपनी शर्मनाक पराजय पर गंभीर चिंतन मंथन करके आगामी लोकसभा चुनाव के लिए ठोस तैयारी करने के बजाय उत्तराखण्ड क्रांतिदल के अध्यक्ष त्रिवेन्द्र पंवार ने उक्रांद के संस्थापक सदस्य व शीर्ष नेता काशीसिंह ऐरी सहित केंद्रीय महामंत्री हरीश चंद्र पाठक, बहादुर सिंह रावत, जय प्रकाश उपाध्याय, आनंद सिलमाना, आशा शर्मा, देवेंद्र कंडवाल, अजरुन सिंह रावत, धम्रेद्र कठैत और प्रताप सिंह कुंवर को भी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से बर्खास्त कर दिया है।

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