ऊर्जा के आड़ में निहित स्वार्थी तत्वों का बांधों से उत्तराखण्ड, तबाह करने का खतरनाक षडयंत्र !


विनाश समर्थकों को कब तक संरक्षण देगी सरकार 


13 मई को धारी में जो गुण्डागर्दी बांध समर्थन के नाम पर पुलिस प्रशासन के शर्मनाक संरक्षण में धारी देवी को यहां पर बन रहे बांध में डूबने से बचाने के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे पर्यावरणविद अग्रवाल व भाजपा नेत्री उमा भारती के साथ अभद्रता व गुण्डागर्दी दिखायी गयी उससे उत्तराखण्डी संस्कृति को कलंकित हुई। इस प्रकरण से आहत उमा भारती ने इसे कम्पनी व सरकार दोनों को सीधे दोषी ठहराया। बांध बनाने वाली कम्पनी या प्रदेश के मुख्यमंत्री को उत्तराखण्ड की जरूरत हो सकती है। परन्तु उनके कार्यो को देख कर अब एक पल के लिए उत्तराखण्ड को ऐसे निहित स्वार्थी तत्वों की कोई जरूरत नहीं है।
आखिर अपने संकीर्ण स्वार्थ के लिए उत्तराखण्ड को बांधों में डूबोने के लिए उतारू निहित स्वार्थी भैडियों को कब तक संरक्षण देती रहेगी सरकार? आखिर करोड़ों जीव जन्तुओं की निर्मम हत्या, हजारों लोगों को बलात विस्थापित करके और हमारे तीर्थ, धार्मिक, व जन्म भूमि को डूबों कर कब तक बांध के नाम पर तबाह किये जायेगे। कभी टिहरी तो कभी धारी देवी तो कल पंचेश्वर सहित उत्तराखण्ड की सेकडों गांवों व घाटियों को ऊर्जा के नाम पर डुबों दिया जायेगा। ऊर्जा अर्जित करने के नाम पर चोतरफी तबाही मचाने वाली कम्पनियों, उनके दलालों द्वारा श्रीनगर के समीप बनाये जा रहे बांध से माॅ धारी देवी का पावन धाम डुबाने का विरोध करने वाले श्रद्धालुओं, राजनेताओं, पर्यावरणविदों का तथाकथित विरोध को सरकार का संरक्षण से साफ हो गया कि सरकार भी प्रदेश को बांधों से डुबोने के लिए उतारू है। सरकार के इसी संरक्षण से ये तत्व निरंतर आरजकता फेला रहे है। जिस टिहरी बांध व अन्य बांधों से उत्तराखण्ड का कितना अंधेरा दूर हुआ उसके सरकारी दावों की पोल तो यहां पर दिन में कई बार अदृश्य हो रही बिजली व अंधेरों में डूबे दूर दराज के गांव तथा महंगी होती बिजली ही उजागर कर रही है। सरकार व बांध समर्थकों को एक बात   ध्यान में रखना चाहिए कि लाखों जीव जन्तुओं की निर्मम हत्या, हजारों लोगों को उनकी जडों से बलात विस्थापित करने से होने को विकास नहीं विनाश कहा जाता है। ऊर्जा मानव की महत्वपूर्ण जरूरत हो सकता है परन्तु ऊर्जा के लिए आत्मघाति विनाश किसी भी सभ्य समाज में कभी स्वीकार नहीं किया जा सकता है। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि मानव सहित सम्पूर्ण सृष्टि किसी ऊर्जा के लिए दाव लगाने के लिए नहीं है। हमे सकारात्मक माध्यमों से ही ऊर्जा को आत्मसात करना चाहिए ना की विनाशकारी माध्यमों से।

ऊर्जा विकास की मूलभूत आधार है। ऊर्जा मानव जीवन का ही नहीं सारी सृष्टि का प्राणाधार है। ऐसा नहीं कि ऊर्जा केवल मानव मात्र की जरूरत है। ऐसा भी नहीं कि ऊर्जा का प्रादुर्भाव बांध बनाने के बाद से ही इस सृष्टि को हासिल हुई। कुछ लोगों को लगता है कि विकास की पर्याय ऊर्जा केवल बांधों से ही मिल सकती है। इस सकल सृष्टि को संचालित जो परमात्मा या प्रकृति संचालित करती है वह भी ऊर्जा है। वह किसी बांध से बनने वाली विद्युत ऊर्जा की मोहताज नहीं है।  ऊर्जा का मूल केवल बांध ही नहीं है। इस सृष्टि को संचालित करने के लिए प्रकृति अनादिकाल से विभिन्न रूपों में जो ऊर्जा का संचार करती है वह किसी मानव निर्मित बांध ऊर्जा की मोहताज नहीं है।  ऊर्जा का विरोधी कोई नहीं है।  यह सकारात्मक हो तो इसका स्वीकार किया जा सकता हैं । विरोध केवल उस विनाशकारी प्रवृति का है जो ऊर्जा अर्जित करने के नाम पर पूरे उत्तराखण्ड को सैकडों बांधों में डूबो कर यहां के लाखों लोगों को जबरन विस्थापित करने व करोडों अरबों जीव जन्तुओं की निर्मम हत्या करने तथा उत्तराखण्ड जैसे भूकम्प की दृष्टि से अति संवेदनशील क्षेत्र में असंख्य बांध बना कर यहां पर प्रकृति संन्तुलन से आत्मघाती खिलवाड़ करने का है। टिहरी से पंचेश्वर बांधों की जो श्रृखला उत्तराखण्ड में बांधों के नाम पर थोपी जा रही है वह सरकार के ऊर्जा के दावों को खुद बेनकाब करने के लिए काफी है। इस सृष्टि के रचनाकार ने बहुत ही सलीके से इस सृष्टि की रचना की है। जहां समुद्र की जरूरत है वहां समुद्र बनाया है और जहां पर्वत श्रृखला की जरूरत है वहां पर्वत बनाये है। प्रकृति के इस सृष्टि चक्र के साथ बेहद गंभीर खिलवाड़ विनाश आमंत्रण से कम नहीं है।
अगर यहां प्राथमिकता ऊर्जा की नहीं अपितु ऊर्जा के नाम पर यहां पर भ्रष्टाचार का अंधा खेल खेलने का है। जोग इस बांध निर्माता कम्पनी, राजनेताओं व ठेकेदारों व उनके प्यादों के द्वारा खेला जा रहा है। जो विकास कत्लखानों, समाजिक न्याय का गला घोंटने, जनहितों , स्वाभिमान, स्वतंत्रता व सामाजिक मान्यताओं को रौंदकर, नशा, गुटका, शराब की भट्टियों व माफियाओं की तिजोरियों से बहे उसको कोई भी सभ्य समाज कभी स्वीकार नहीं करता है। विकास वही जो दुख दर्द हरे व खुशहाली लाये। जो विकास आज बांधों से उत्तराखण्ड में थोपा जा रहा है वह लाखों लोगों को बलात विस्थापन, चंद राजनेताओं, थैलीशाहों, नौकरशाहों व उनके प्यादों की तिजोरी भरने वाला है। ऊर्जा के लिए चंद बांध बनते तो समझ में आता। परन्तु सैकडों बांधों से उत्तनाखण्ड की पावन देवभूमि को जलसमाधि देने की धृष्ठता करने वालों की मंशा कभी जनकल्याण या ऊर्जा नहीं अपितु अपने निहित स्वार्थ रूपि तिजोरियों को ही भरना मात्र है।
ऊर्जा केवल बांधों में ही नहीं रहती है। यह आदम काल से आज इस तथाकथित विकसित युग में भी ऊर्जा के अनैक विकल्प मनुष्य व सृष्टि के पास उपलब्ध रहे। मनुष्य ने अपनी बुद्धि व कोशल से इसको अपनाया। ऊर्जा के स्रोत असंख्य है। सूर्य, जल, वायु, कोयला, तेल, गैस, भूतापीय,परमाणु सहित अनैक स्रोत्रों से जीव मात्र से लेकर मनुष्य ही नहीं अपितु सम्पूर्ण सृष्टि के जीव जन्तु व वनस्पति आदि अपनी जरूरत व विवेक के आधार पर ग्रहण करते रहें। मनुष्य हमेशा अपने ज्ञान व आवश्यता के अनुसार ऊर्जा के बेहतर विकल्पों की ढूढ़ करता रहा। उसकी इस खोज में किसी विकल्प को सबसे श्रेष्ठ व अंतिम मानना भूल है। जो लोग इस विनाश को विकास का पर्याय मान की दूसरों को इसे स्वीकार करने की सीख दे रहे हैं उनको सृष्टि को संचालित करने वाली विलक्षण ऊर्जा प्रणाली पर भी एक नजर दौडानी चाहिए। यहां तो कण-कण में वह दिव्य ऊर्जा का संचार है जिससे मानव सहित सकल सृष्टि के करोड़ों जीव अनादिकाल से लाभान्वित होते रहे। पत्थरों से गोबर तक यानी सभी जड़ चेतन उसी दिव्य ऊर्जा का स्रोत है। इसलिए केवल बांध से उत्पन ऊर्जा को अंतिम व सर्वश्रेष्ठ विकल्प मानना कहां तक उचित है यह तो इस विषय पर दुराग्रह व अज्ञानता छोड़ कर समझा जा सकता है। आज संसार के विभिन्न देशों में पवन, जल, सौर, भूतापीय  व परमाणु ऊर्जा आदि के विभिन्न स्रोतों पर गंभीर खोज व अनुसंघान हो रहे है। परन्तु बांध माफिया और तेल माफिया सिन्डिकेट इनके विकल्पों की खोजों को असफल सिद्ध करने के लिए तमाम प्रकार के हथकण्डे अपना रहे है।
आज उत्तराखण्ड की राजनीति में बांध निर्माता कम्पनी के थैलीशाहों ने चंद निहित स्वार्थी असरदार राजनेताओं, नौकरशाहों, ठेकेदारों, समाजसेवी व पत्रकारों की जमात को अपने चुंगुल में लेकर यहां पर प्रदेश के हक हकूकों की रक्षा के लिए उठ रही आवाज को दबाने के लिए जो गुडागर्दी मचा रखी है। यह दिल्ली में बांध समर्थन रेली से लेकर धारीदेवी में बांध समर्थकों के नाम पर मचायी गयी गुण्डागदी्र से खुद ही बेनकाब हो रही है।
जिस प्रकार से टिहरी बांध विद्युत ऊर्जा के लिए कम अपितु राजनेताओं, ठेकेदारों व यहां के दागदार लोगों के अकूत सम्पति लूटने के लिए जाना जा रहा है। उस टिहरी बांध से क्या टिहरी की प्यासी धरती के लिए सिचाई का जल तक भी कई दशक बाद भी नहीं मिला। जिस ऊर्जा के लिए अपना अस्तित्व व इतिहास को डूबों देने वाले टिहरी की जनता को बिजली कितनी मिलती है यह वहां के ग्रामीण भी अच्छी तरह से जानते है। हाॅं टिहरी के आस पास के लोगों को इस बांध बनने के बाद कितनी परेशानी उठानी पड़ती है यह प्रतापनगर क्षेत्र के वासियों सहित इस क्षेत्र के पीड़ित लोगों का दर्द देख कर समझा जा सकता है। तिवारी, खण्डूडी, निशंक, व बहुगुणा जेसे संकीर्ण स्वार्थौ में डूबे जनहितों से रौंदने वाले रहे मुख्यमंत्रियों से क्या आशा की जा सकती है। ऐसा ही हाल यहां के सतपाल महाराज व हरीश रावत जैसे दिग्गज नेताओं का भी है। सबसे दुखद बात यह है चंद नेता जिनको यहां की जनहितों की जमीनी समझ है उनको उनके दलों में ही नहीं जनता ने भी हाशिये पर धकेल रखा है। आज जरूरत हे प्रदेश में इस शराब, भू, बांध सिन्डिकेट व उनके दलालों से उत्तराखण्ड को बचाने की।
यह मात्र उत्तराखण्ड का ही सवाल नही है अपितु यह सवाल उन तमाम असहाय, उपेक्षित व पीड़ित धरती पुत्रों का है जो धनलोलुपु सत्तांधों के इस प्रकार से शिकार बनते है।  आज जरूरत है ऐसे सत्तांधों व उनके प्यादों को राजनीति से दूर रखने की। जरूरत है इस प्रकार के तत्वों के भ्रमजाली षडयंत्र से उत्तराखण्ड सहित पूरी सृष्टि को बचाने की। शेष श्री कृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णायृ नमो।

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