चुनावों में अपनी हालत पतली देख कर मुख्यमंत्री सहित तमाम नेताओं को आयी जनता व कार्यकत्र्ताओं की याद


क्या राज है मुख्यमंत्री बहुगुणा व यशपाल आर्य के कार्यकत्र्ताओं व जनता के लिए चंद दिनों से उमड़ रहे प्यार का

देहरादून (प्याउ)। आगामी लोकसभा चुनाव सर पर देख कर व प्रदेश में कांग्रेस को जनता द्वारा स्थानीय निकाय के चुनाव में बुरी तरह से नकारे जाने के बाद  उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल आर्य दोनों को जनता व कार्यकत्र्ताओं की याद आ रही है। कभी खुद को बंगाली मूल का बताने वाले व आम जनता से दूर रहने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री इन दिनों जनपद स्तर व विकासखण्ड स्तर पर यात्रा करके जहां एक तरफ लोकलुभावनी जनकल्याणकारी घोषणाओं का अम्बार लगा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ अपनी ही पार्टी के शासन में उपेक्षित कार्यकत्र्ताओं का दिल जीतने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों को धमका कर उनको कांग्रेसी कार्यकत्र्ताओं की उपेक्षा न करने की बात कह रहे हैं। केवल मुख्यमंत्री ही नहीं ऐसा नाटक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष यशपाल आर्य भी कह रहे हैं कि संगठन सरकार से उपर है और सरकार को वफादार व वरिष्ठ कार्यकत्र्ताओं को दायित्व सरकार बनने के लम्बा समय गुजर जाने के बाद भी नहीं दिये जाने पर नाराजी जता रहे थे।
हकीकत यह है कि जिन कार्यकत्र्ताओं की मेहनत व आम जनता के विश्वास से प्रदेश में कांग्रेस सरकार सत्तासीन हुई उन कार्यकत्ताओं को ही नहीं आम जनता को भी ये नेता सत्तारूढ़ होते ही न केवल किनारे कर लेते है अपितु उनकी उपेक्षा करके प्रदेश के हितों के खिलाफ गहरा कुठाराघात भी करते है। यह केवल कांग्रेस पार्टी की बात नहीं आज की राजनीति में अधिकांश राजनैतिक दलों की स्थिति इसी प्रकार की हो गयी है। सत्ता मिलते ही नेता सत्तामद में चूर हो कर अपने निहित स्वार्थो में धृतराष्ट्र बन कर अपने बेटे बेटियों, परिजनों को स्थापित करने में ही युद्धस्तर पर जुट जाते है। इनके पास चुनाव से पहले न जनता के लिए समय होता है व नहीं कार्यकत्र्ताओं की ही सुध लेने की फुर्सरत। इनके असली लोकशाही चेहरा इनके आवास या कार्यालय में जाने से आम कार्यकत्र्ता या इनके क्षेत्र की जनता सहज ही देख सकती है। इनमें से अधिकांशों के घर के द्वार ही इन कार्यकत्र्ताओं व जनता के लिए नहीं ख्ुालते है। एकाद नेताओं को छोड़ दे तो इन नेताओं ने जनता व कार्यकत्र्ताओं को अछूत समझ कर घर के दरवाजे से ही बाहर रखने का काम कर दिया है। बिना उद्यम के साधारण परिवारों में पैदा होने वाले इन नेताओं के पास चंद वर्षो की राजनीति में ही कहां से कुबैर के समान अकूत दौलत आ जाती है। अगर इनके दो तीन पीड़ियों की ईमानदारी से जांच की जाय तो इनका असली चेहरा जनता के समझ आ जायेगा। हालांकि जनता इनमें से अधिकांश राजनेताओं की असली कुण्डली जानती है। यह हालत पूरे देश की राजनीति की है। परन्तु उत्तराखण्ड के राजनेताओं की स्थिति तो बेहद शर्मनाक है। चैधरी महेन्द्र सिंह, हीरासिंह बिष्ट व पूर्व सांसद महेन्द्र पाल जेसे अधिकांश  पार्टी के समर्पित निष्ठावान वरिष्ट नेताओं व कार्यकत्र्ताओं को सरकार व संगठन में दायित्व व सहभागी बनाने के बजाय सभी अपने बेटे बेटियों व परिजनों को ही महत्वपूर्ण पदों पर आसीन करने में जुटे रहते है। बेशर्मी की हद तो यह होती कि इनको चुनाव से पहले न तो अपने ही चुनावी घोषणा पत्र का भान रहता है व नहीं जनहितों का।
प्रदेश भाजपा की स्थिति तो कांग्रेस की तरह ही शर्मनाक है। यहां जनसमर्पित नेताओं के बजाय दिल्ली के मठाधीश अपने प्यादों को सत्ता आते ही मुख्यमंत्री थोप देते है। फिर एक के मुख्यमंत्री बनते ही दूसरे नेता इस जनता व संगठन पर थोपे नेता को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए एक जूट  हो जाते है। भाजपा का भी पतन कांग्रेस की तरह है। इनको न तो अपने समर्पित व साफ छवि के जनप्रिय नेताओं के बजाय मठाधीशों के जनता की नजरों मे पूरी तरह से उतरे हुए प्यादे ही प्यारे लगते है। फिर इनके प्यादे सत्तारूढ़ हो कर ऐसे कारनामे करते हैं कि इनका राष्ट्रवाद, सुशासन व रामराज के हवाई दावे सब तार-तार हो जाते । जनता में इनकी इतनी भद पिटती है कि इनको अपने जनविरोधी प्यादों को खुद ही हटाना पडता है या जनता उखाड फेंकती है। परन्तु ठोकरें खाने के बाद भी ये मठाधीश संगठन में भी साफ छवि के अनुभवी व संघर्षशील नेताओं को  पार्टी की दिशा व दशा सुधारने का दायित्व देने के बजाय गुटबाज पीटे व जनता द्वारा नकारे गये नेताओं के प्यादों को ही पार्टी का कमान सौंप देते है।
यही हालत उक्राद की है। इनके नेताओं के भाषणों में भले उत्तराखण्ड के हित की बात सदा गूंजती रहती है परन्तु जैसे ही ये प्रदेश सरकार के साझेदार बनते है इनके नेताओं की पहली प्राथमिकता किसी प्रकार से सत्ता की मलाई में भागेदारी का रहता है। इनकी पूरी ताकत किसी प्रकार एकाद मलाईदार दायित्व मिल जाय। परन्तु राज्य गठन के जनांदोलन के समय से आज तक जब भी जनता को उक्रांद की जरूरत जुई ये जनता के हितों के संघर्ष का नेतृत्व करने के बजाय आपस में ही एक दूसरे से लडते नजर आये। सत्ता में रहते हुए इ्रमानदारी से कभी जनहितों के लिए आर पार की लडाई लड़ने का साहस तक नहीं रहा। हाॅं वर्तमान अध्यक्ष त्रिवेन्द्र पंवार ने जब इन सत्तालोलुपु नेताओं को जनहितों के लिए संघर्ष करने का आईना दिखाया तो तमाम पदलोलुपु नेताओं ने उनको अलग थलग ही कर दिया। 

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