सिनेमा व साहित्य जगत भी, अंग्रेजी की स्वयंभू गुलामी से आजाद हो 


अमिताभ बच्चन से प्रेरणा लें सिनेमा व साहित्य जगत 


काॅस फिल्म महोत्सव में भारत के स्वाभिमान व लोकशाही के प्रतीक हिन्दी में अपने विचार प्रकट करने पर भारतीय सिनेमा जगत के महानायक अमिताभ बच्चन के राष्ट्रीय गौरव बढ़ाने वाले इस कदम का भारतीय भाषा आंदोलन सहित तमाम राष्ट्र भक्त स्वागत करते हुए भारतीय सिनेमा जगत से आवाहन करता है कि उनको जो पहचान, सम्मान व अकूत दौलत जिन भारतीय भाषाओं ने दी उन भारतीय भाषाओं को वे अपने समारोह सहित अपनी निजी जिन्दगी में भी स्थान दें। सहसे शर्मनाक बात यह है कि भारतीय फिल्म जगत के अधिकांश समारोह में ये कलाकार प्रायः जिस भाषा ने इनको इतनी पहचान, सम्मान व दौलत दी उसका तिरस्कार करके केवल अंग्रेजी भाषा में बोलने में अपनी शान समझते है। आशा है भारतीय सिनेमा जगत अपने राष्ट्रीय दायित्व का निर्वहन भविष्य मे अपने तमाम समारोह व अपनी निजी जिन्दगी में करेगा। नहीं तो सिनेमा जगत को भी भारतीय नेताओं, नौकरशाहों व साहित्य कर्मियों की तरह भारतीय भाषाओं को तिरस्कार करने का अपराधी मान कर न केवल आंदोलनकारी धिक्कारेगे अपितु इतिहास भी इनके इस कुकृत्य के लिए इनको स्वयंभू गुलाम ही मानेगा। सबसे दुर्भाग्य यह हे कि आज आजादी के 65 साल बाद जहां शिक्षा व न्याय का देश को तबाही की गर्त में धकेलते हुए यहां के हुक्मरानों ने अंग्रेजीकरण कर दिया है। न्याय का भी गला देश की लोकशाही की तरह ही अंग्रेजी से 65 सालों से घोंटा जा रहा है। जो साहित्यकार व कलाकार भारतीय भाषाओं के कारण इतना मान सम्मान, अकूत दौलत अर्जित करते हैं उनमें भी अधिकांश समारोहों या निजी जीवन में अंग्रेजी के कहार बनते देखा गया है। यही नहीं इनके अपने निजी समारोहों के निमंत्रण पत्र, अपना परिचय पत्र आदि तक अपनी भाषा में नहीं अपितु फिरंगी भाषा अंग्रेजी में छाप कर खुद को स्वयंभू गुलाम घोषित कर देश के सम्मान को रौंदने का निकृष्ठ काम करते हैं।
 

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