मनमोहन जैसे कमजोर नेतृत्व से देश की सीमा , सम्मान व व्यवस्था खतरे में 

अमेरिका के चक्रव्यूह में फंस कर तबाह होने से बाल-बाल बचे भारत व चीन


19 किमी अंदर भारतीय क्षेत्र पर 15 अप्रैल से  काबिज  चीन पीछे  हटा , पर भाारत को भी पीछे हटने के लिए किया मजबूर

भारतीय भू भाग में कब्जा करने की धृष्ठता करके चीन ने भारतीयों के 1962 के जख्मों को कुरेदा 

प्यारा उत्तराखण्ड की विशेष रिपोर्ट-



मनमोहन व अटल जैसे कमजोर नेतृत्व का दण्ड भारत जैसे मजबूत सेना वाले देश को कितना भोगना पड़ता है। यह चीन द्वारा इसी माह भारतीय सीमा पर बलात किये गये कब्जे व कुछ वर्ष पूर्व में पाकिस्तान द्वारा भारतीय संसद -मुम्बई पर किये गये आतंकी हमले से साबित हो गया। घोर सत्तालोलुपु नेतृत्व की अक्षमता व कायरता की कीमत किसी भी देश को दशकों तक चुकानी पडती है।किसी देश के समग्र विकास के लिए मजबूत नेतृत्व ही सेना के साथ साथ जनता का भी मनोबल बनाता है और देश की सीमा, सम्मान व हितों की रक्षा भी हो सकती है। नहीं तो मनमोहन सिंह जैसे घोर पदलोलुपु नेतृत्व के कारण जहां देश में भयंकर भ्रष्टाचार की गर्त में डूब गया है, जनता मंहगाई व कुशासन से त्रस्त है वहीं चीन, पाक व अमेरिका भारत की अखण्डता को तार तार करने के षडयंत्र को दिन रात अंजाम दे रहे है। परन्तु दिशाहिन नेतृत्व आत्ममुग्ध हो कर इनसे दोस्ती की बीन बजा कर देश के सम्मान को रौंदवा रहा है।
गत माह 15 अप्रैल से भारत की सीमा के 19 किमी अंदर कब्जा जमाये हुए अपनी सेना को रविवार 5 मई की सांय वापस बुला कर चीन ने विवेकपूर्ण कार्य करते हुए विश्व की नयी महाशक्ति चीन व भारत के को झौंकने के अमेरिकी चक्रव्यूह में फंस कर तबाह होने से बच गये। हालांकि चीन ने अपने बढाये हुए कदम से भारत व चीन के बीच 1962 के युद्ध की कम हो रही कडवाहट को न केवल और बढ़ा दी है अपितु इसको तार-तार भी कर दी है। इस बार चीन ने भले ही 1962 की तरह भारत पर हमला करके बडे भू भाग पर कब्जा नहीं किया परन्तु भारत के सम्मान को अपने 15 दिवसीय भारत के अंदर जबरन घुस कर कब्जा करने से रौंद दिया है। वहीं चीनी सेना लद्दाख के देपसांग से तब ,वापस गयी जब वह चीन की इस शर्त के को मानने के लिए भारत राजी हो गया कि भारतीय सेना का चुमार से बंकर नष्ट कर देगी । भारतीय सैनिक मोटोरेबल स्ट्रेच से रोज चुमार पोस्ट से बंकर तक गश्त लगाते है । चुमार पोस्ट के बंकर ढाह देने से अब यह गश्त भी प्रभावित होगीे। हालांकि भारत सरकार चीन को पीछे हटने के मामले में किसी प्रकार की सौदेबाजी की खबरों को सिरे से नकार रही है परन्तु जो खबरे छन कर आ रही है उनके अनुसार चीन ने शर्त रखी थी कि नई दिल्ली पूर्वी लद्दाख में स्थायी निर्माण का काम बंद करे और भारतीय सेना काराकोरम हाईवे पर नजर रखने की अनुमति दे।
गौरतलब है कि पिछले महिने 15 अप्रैल को लद्दाख से लगी चीनी सीमा पर दौलत बेग ओल्डी करीब 50 की तादाद में चीनी सेना वाहनों और कुत्तों से लैस होकर डीबीओ सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार भारतीय सीमा के 19 किलोमीटर अंदर तक घुस आई थी और पांच टेंट गाड़ दिए थे। इससे भारत में भारी आक्रोश बढ़ गया था। संसद से लेकर सडकों में आम आदमी चीन की इस गुण्डागर्दी के खिलाफ भारत सरकार की नपुंसकता को आत्मसम्र्पण मान कर धिक्कार रही थी। इसी के चलते भारतीय सेना ने भी चीनी सेना की ओर रख करके 300 मीटर की दूरी पर अपने टेंट गाड़ दिए थे।
भारत ने ये बंकर चीन को घुसपैठ का जवाब देने के लिए बनाया था। नियंत्रण रेखा पर चार-पांच सालों से भारत द्वारा जो बंकर आदि मजबूत निर्माण करने से भारतीय सेना को यहां पर काफी साहयता मिल रही थी । जिससे चीन काफी नाराज था। उसने कई बार इसका विरोध भी किया था।
भारत सरकार द्वारा चीन की इस गुण्डागर्दी के खिलाफ चीन से भारतीय क्षेत्र से हटने की गुहार को चीन ने बार-बार बडी धृष्ठता से ठुकरा कर दो टूक शब्दों में इसे चीन का ही क्षेत्र मानते हुए यहां से हटने से मना कर दिया था। इस विवाद को सुलझाने के लिए भारत व चीन की सीमा पर कई बार सेना कमाण्डरों की झण्डा बैठक का भी आयोजन हुआ जिसमें चीन ने अपने पूर्व रूख पर न केवल दोहराया अपितु उसने एक और टेण्ट वहां पर गाढ़ दिया। आखिरकार भारतीय जनमानस में उमड़ रहे जनाक्रोश व भारत चीन के बीच छिड़ सकने वाले युद्ध की विभिषिका के लिए अमेरिकी मंशा को भांप कर चीन ने अपने रूख में परिवर्तन लेते हुए चीनी सैनिकों को 15 अप्रैल से पूर्व की स्थिति में तैनात रखने का निर्णय स्वीकार कर लिया। परन्तु इस पीछे हटने के कदम लेते हुए चीन ने भारत से भी अपनी धरती पर वर्तमान स्थान से पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। जब भारत भी अपनी धरती पर पीछे हटने के लिए राजी हुआ तभी चीन ने भी 15 अप्रैल से पूर्व की स्थिति में लौटने को तैयार हुआ।
इस प्रकार से चीन ने भले ही अमेरिका के भारत व चीन को आपस में लड़ा कर विश्व में अमेरिकी बर्चस्व को मिल रही चीन व भारत से कड़ी चुनौती को जमीदोज करने के चक्रव्यूह में फंसने से इस बार बच गये। परन्तु चीन द्वारा बलात भारत की सीमा पर काबिज होने के गैर जरूरी कदम से भारत व चीन के बीच पनप रहे नयी दोस्ती की एक संभावना की भी निर्मम हत्या हो गयी। अब भारतीय 1962 के चीन युद्ध से मिले जख्मों को व 15 अप्रैल 2013 के इस दुशाहसिक कृत्य को कभी नहीं भूला सकता है। यह तो मनमोहन सरकार की कायरता रही नहीं तो चीन ने तीन सप्ताह तक भारतीय भू भाग पर 19 किमी अंदर घुस कर कब्जा करके दोनों देशों को विनाशकारी युद्ध की भट्टी में झोंकने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। हालांकि कुछ दिनों बाद भारत के विदेशमंत्री के चीन दौरे को देखते हुए चीन ने अपने बलात कब्जा जमाने के रवैये में परिवर्तन किया परन्तु चीन के इस बलात कब्जा करने वाले रवैये से उसने समय के थपेडों से कम हो रही भारतीय जनता के दिलों में 1962 के चुद्ध से उपजी नफरत व शत्रुता की दरार को और गहरी करने का काम करके अमेरिका के हाथों को मोहरा बन गया।
भारत सरकार को चाहिए कि वह अपने देश रक्षा के मूल दायित्व के बजाय चीन से कायराना मैत्री की पींग बढ़ा रही है उससे देश की सुरक्षा व हितों की रक्षा होने के बजाय चीन की धृष्ठता बढ़ाने का ही कारण बनेगी। भारत सरकार को चाहिए कि वह तुरंत विदेश मंत्री का चीन दौरा को ही न रद्द करे अपितु चीन प्रधानमंत्री के भारत दौरे व संयुक्त सेना अभ्यास को भी रद्द करके अपनी सामरिक तैयारी को और मजबूत करे।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, उनकी सरकार व देश के तमाम राजनेताओं को एक बात गांठ बांध लेनी चाहिए कि मेत्री देश के हितों को दाव पर लगा कर व कायर बन कर नहीं की जा सकती। खासकर चीन जिसने पहले ही लाखों वर्ग किमी भारतीय भू भाग हडपा है उससे दोस्ती तो इस नपुंसकता वाली प्रवृति से नहीं की जा सकती। चीन वाले प्रकरण से भारत की छवि पूरे विश्व में जो गहरा धक्का लगा उसको उबारने के लिए चीन को सही समय पर माकूल जवाब देना जरूरी है। हालांकि अभी चीन से सीधा टकराव न भारत के हित में था व नहीं चीन के । परन्तु जिस प्रकार से आत्मसम्मान व भारत की एकता व अखण्डता को रौंद कर चीन ने भारत की सीमा के 19 किमी अंदर कब्जा कर डेरा जमा दिया था उसका मुंहतोड़ जवाब देने के बजाय भारत सरकार ने जो कायरता दिखाई उससे देश की छवि को पूरे विश्व में धूमिल हो गयी है। आज देश ने इस प्रकरण से इस बात को महसूस किया कि भारत की मजबूत सेना के होने के बाबजूद जिस प्रकार हमारा कमजोर नेतृत्व न तो पाक से संसद की सुरक्षा कर पाया व नहीं चीन से देश की सीमाओं की रक्षा ही कर पाया। इस लिए देश को मजबूत सेना के साथ साथ मजबूत नेतृत्व की जरूरत है । देश को मनमोहन सिंह या अटल जैसे कमजोर नेतृत्व की कोई जरूरत नहीं है। जो पदलोलुप नेतृत्व न देश में सुशासन दे सके व नहीं देश की सीमा व सम्मान की रक्षा ही कर पाये, ऐसे नेतृत्व की देश को क्या जरूरत? शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।

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