जनादेश लेने से क्यों डर रहे  हैं मनमोहन 


प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 15 मई बुधवार को असम से राज्यसभा सदस्य बनने के लिए नामांकन पत्र को दाखिल करने से एक सवाल देश भर की जनता पूछ रही है कि आखिर क्यों प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जनादेश लेने से इतना डर रहे है।  गौरतलब है कि मनमोहन सिंह को ही नहीं कांग्रेस नेतृत्व को भी इस बात का भरोसा नहीं है कि अगर प्रधानमंत्री देश की किसी सीट से लोकसभा के लिए चुनाव में उतरे तो वे जीत ही जायेंगे। इसी आशंका से ग्रसित हो कर शायद खुद मनमोहन सिंह व उनकी पार्टी राज्य सभा से निर्वाचित होना पसंद करती है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह बेलगाम मंहगाई, भ्रष्टाचार व आतंकवाद को रोक पाने में पूरी तरह से असफल होने के कारण जनता के बीच बेहद अलोकप्रिय हैं। इसी को देखते हुए अधिकांश चुनावी समीक्षक ही नहीं कांग्रेसियों को भी 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दुबारा से सत्तारूढ़ होने पर संदेह है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 1991 से राज्य सभा से ही सांसद बनते रहे। यह उनका पांचवां नामंकन है। इससे यह भी सवाल खडे हो रहे हें कि एक दशक से मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हैं, इसके बाबजूद वे देश की किसी भी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का साहस तक क्यों नहीं जुटा पा रहे है। क्या उनको खुद व अपनी सरकार की लोकप्रियता पर भरोसा नहीं रहा है। हालांकि संविधानिक दृष्टि से प्रधानमंत्री के लिए लोकसभा से चुनाव जीत कर आने की बंदिश नहीं हैं परन्तु लोकतंत्र में ऐसी आशा कि जाती है कि देश में लोकशाहीी की बागडोर जिसके हाथों में हो वह कम से कम जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुन कर आये। एकाद बार राज्यसभा में निर्वाचित होने को जनता स्वीकार कर सकती है परन्तु लगातार कई बार राज्य सभा यानी ऊपरी सदन के रास्ते से निर्वाचित हो कर सांसद बनना अपने आप में जरूर सवाल खडे करते हैं। वहीं जनभावनाओं को नजरांदाज करते हुए 80 वर्षीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहते हैं कि असम की जनता ने ही उन्हें केंद्र में भेजा है। असम से वे बतौर सांसद 21 साल तक रह चुके हैं। राज्य सांसद के रूप में उनका वर्तमान  कार्यकाल 14 जून को खत्म हो रहा है।

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