निकाय चुनाव में गैरसैंण मुद्दे की नहीं, अपितु कांग्रेस के कुशासन की हुई हार 


अपने स्वार्थो के लिए नहीं अपितु सत्तांधों को सिखाती है सबक उत्तराखण्ड की जनता 

प्यारा उत्तराखण्ड की विशेष रिपोर्ट-


30 अप्रैल को उत्तराखण्ड में सम्पन्न हुए निकाय चुनाव के परिणाम में गैरसैंण क्षेत्र में भी प्रदेश के अन्य क्षेत्र की जनता की तरह ही यहां से कांग्रेस को करारी पराजय मिली। तो उत्तराखण्ड की राजधानी गैरसैण बनाने की जनभावनाओं के  विरोधियों व नासमझ पत्रकारों ने इसे बहुगुणा सरकार की गैरसैंण विधानसभा बनाने की पहल को जनता द्वारा ठुकराने वाला फैसला बता कर गैरसैंण में राजधानी बनाने की मुहिम पर पानी फेरने का षडयंत्र रच रहे हैं। प्यारा उत्तराखण्ड समाचार पत्र ने कही बार, नरसिंह राव व अटल से लेकर मनमोहन तक जितने भी प्रधानमंत्री रहे तथा तिवारी से लेकर विजय बहुगुणा तक जितने भी मुख्यमंत्री रहे सबसे एक ही निवेदन करता रहा कि सत्तांध हो कर कभी जनभावनाओं को न रोंदो महाकाल कभी किसी दुशासन को माफ नहीं करता। परन्तु सत्तांध कहां सुनने वाले अब जब सत्ता हाथ से निकल जाती तो तब इनको अक्ल आती है। परन्तु का वरसा जब कृषि सुखानी।
उत्तराखण्ड के हितों पर कुठाराघात करने वाले इन काठ के उल्लूओं को क्या मालूम कि उत्तराखण्डी अपने स्वाभिमान व हक हकूकों पर चोट करने वालों के तमाम बडे से बडा प्रलोभन ठुकराते हुए उनको दण्डित करने का काम करते है। इसके लिए चुनाव चाहे हेमवती नन्दन बहुगुणा बनाम कांग्रेस के बीच हुए ऐतिहासिक गठवाल लोकसभा उपचुनाव में उत्तराखण्ड की स्वाभिमानी जनता ने तमाम प्रलोभनों को ठुकरा कर तत्कालीन सत्तांध इंदिरा गांधी को सबक सिखाने वाला हो  या उत्तराखण्ड राज्य का गठन के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने राज्य गठन करने वाली तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा को राज्य के संसाधनों व हितों को रौदने के लिए दण्डित किया तो भाजपा सहित पूरा देश भौचंक्का रह गया। या गत विधानसभा व लोकसभा चुनाव में रामदेव, अण्णा-केजरीवाल आदि के कांग्रेसी विरोध के बाबजूद प्रदेश की जनता ने विधानसभा चुनाव में जन विश्वास को रोंदने वाली भाजपा व उनके जरूरी खण्डूडी को सत्ता से उखाड़ फेंकने का काम किया। यही नहीं वर्तमान निकाय चुनाव व इससे पहले हुए टिहरी लोकसभा उपचुनाव में प्रदेश के जनादेश को रौंद कर विजय बहुगुणा को प्रदेश का मुख्यमंत्री बलात थोपने का दण्ड प्रदेश की जागरूक जनता ने कांग्रेस को उसके सत्तामद में चूर हो कर प्रदेश की जनांकांक्षाओं को रौंदने के लिए दण्डित किया।  प्रदेश की जनता ऐसे तमाम जनांकांक्षाओं को धनबल व सत्तामद मे चूर हो कर रौंदने वालो के तमाम प्रलोभनों को ठुकरा कर सबक सिखा कर लोकतंत्र की रक्षा करती है।  उत्तराखण्ड की जनता ने हमेशा अपने निहित स्वार्थो से उपर उठ कर अनादिकाल से इस देश की सुरक्षा व सम्मान की रक्षा के लिए अपनी शहादतें दी।
जहां तक गैरसेंण को राजधानी बनाने का जनादेश है वह उत्तराखण्ड की जनता ने राज्य गठन से पहले ही व्यापक जनांदोलन में उतरी उत्तराखण्ड की लाखों जनता ने इस पर मुहर लगा दी थी। यही नहीं राज्य गठन के बाद गैरसैंण राजधानी बनाने सहित प्रमुख जनांकांक्षाओं को रौंद रहे प्रथम निर्वाचित कांग्रेसी मुख्यमंत्री तिवारी की आंखें खोलने के लिए गैरसैण में राजधानी बनाने के लिए बाबा मोहन उत्तराखण्डी के बलिदान ने इस पर मुहर लगा दी थी।
प्रदेश की राजधानी गैरसैंण में ही बनेगी तो यह पूरे प्रदेश के लिए बनेगा। उत्तराखण्ड में जहां 6नगर निगमों के चुनाव में कांग्रेस का पूरी तरह सफाया हुआ। नगर पालिका व नगर पंचायत के अध्यक्ष के चुनाव में पहले स्थान पर निर्दलीय रहे व दूसरे स्थान पर भाजपा वाले तथा तीसरे स्थान पर रही कांग्रेस। वहीं प्रदेश में हुए निकाय चुनाव के परिणामों को गैरसैण में दूसरे ही चश्में से देखने की प्रवृति और कुछ नहीं अपितु प्रदेश की राजधानी गैरसैण बनाने की जनभावनाओं को रौदने का षडयंत्र का हिस्सा मात्र है। गैरसैंण नगर पंचायत में भी भाजपा प्रत्याशी विजय रहे। गैरसैंण में 7 में से 4 सीटों को भाजपाई व कांग्रेस मात्र 2 ही वार्डो में फतह हासिल कर पायी।  पर काबिज हुई। गैरसैंण नगर पंचायत अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस का उम्मीदवार की स्थिति बेहद शर्मनाक रही। इसके लिए कांग्रेस का प्रदेश में कुशासन  ही जिम्मेदार है। वेसे भी गैरसैण पर कांग्रेस का कभी ईमानदार दृष्टिकोण नहीं रहा। कांग्रेस ने हमेशा जनभावनाओं को अपने निहित स्वार्थ के लिए छलने का काम किया। अगर कांग्रेस ईमानदार होती तो वह गैरसैण में विधानसभा भवन बनाने के निर्णय के बाद देहरादून में भी विधानसभा के लिए नये भवन बनाने का निर्णय नहीं लेती। इसी निर्णय ने विजय बहुगुणा के 12 साल में पहली बार किये गये सराहनीय प्रयास पर पानी फेर दिया। वहीं सतपाल महाराज ने गैरसैंण मुद्दे पर सराहनीय प्रयास किया परन्तु वह भी गैरसैण में राजधानी नहीं केवल ग्रीष्मकालीन राजधानी तक सीमित रखना चाहते। इसी लिए जनता ने देखा कि केवल हरीश रावत के करीबी सिपाहेसलार विधानसभा अध्यक्ष कुंजवाल व सांसद प्रदीप टम्टा ही प्रदेश की राजधानी गैरसेण बनाने के लिए खुल कर आ रहे है। कांग्रेस के बीच इस प्रकार के द्वंद ने  जनता की नजरों में सतपाल महाराज के विशेष प्रयास से गैरसैण में विधानसभा भवन बनाने का निर्णय व मंत्रीमण्डल की बैठक गैरसैंण में आयोजित करने  का मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के ऐतिहासिक सराहनीय पहल भी देहरादून में भी नये विधानसभा भवन बनाने के निर्णय ने बेनकाब कर दिया।  अगर विजय बहुगुणा सरकार ने राज्य गठन के बाद पहली बार जो सबसे महत्वपूर्ण कार्य गैरसैंण राजधानी बनाने की दिशा में आधे अधूरे मन से किया अगर उसमें ईमानदारी होती और जनभावनाओं का सम्मान करते हुए जनहित में कार्य करते तो जनता उनको सर आंखों में रखती। परन्तु तिवारी, खण्डूडी व निशंक की तरह प्रदेश की जनभावनाओं को रौदने व प्रदेश को कुशासन के गर्त में धकेलने वालों को प्रदेश की जनता ने कभी माफ नहीं किया तो विजय बहुगुणा जेसे जो खुद को उत्तराखण्डी नहीं बंगाल मूल का मानने वाले को जनता कंहा माफ करती। खासकर आस्तीन के सांपों व आत्मसम्मान को रौंदने वाले गुनाहगारों से गलबहियां करके प्रदेश की जनाकांक्षाओं को रौंदने वालों को तो उत्तराखण्ड की जनता कभी माफ नहीं करती। इस प्रकरण से एक संदेश सत्तांध राजनेताओं को है कि जो जनता, जनहित में कार्य करने वालों को पगड़ी पहनाती है वही जनता विश्वासघात करने पर उसी नेता को धूल भी तो चटाती है। देखा नहीं आपने तिवारी, खण्डूडी, निशंक को हाल। अब इन्हीं पगड़ी पहने हुए नेता विजय बहुगुणा की दुर्दशा जनता ने टिहरी संसदीय उपचुनाव व प्रदेश में हुए निकाय चुनाव में कर दी है। जनता के इस महान जज्वे को सलाम।

ना सांप नाथ रहेगा व नहीं नाग नाथ रहेगा
जो भी जनहितों को रौंदने का काम करेगा
उसका हस्र राव मुलायम तिवारी, खण्डूडी,
खुराना निशंक व बहुगुणा की तरह होगा।

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