उत्तराखण्ड में जनादेश को लूटने से बचाये चुनाव आयोग
उत्तराखण्ड में जनादेश को लूटने से बचाये चुनाव आयोग /
-डाक मतदान की आड़ में हो सकता है प्रदेश में जनादेश का चीर हरण /
-चुनाव परिणाम घोषित होने तक मुख्यमंत्री नहीं राज्यपाल के प्रति जिम्मेदार रहे प्रशासन/,
जिस प्रकार से प्रदेश की जनता ने विधानसभा चुनाव में भारी जोश व खरोश से मतदान में भाग ले कर मतदान किया, उसके बाद अपनी हार से सहमें सत्तारूढ़ भाजपा के मुखिया मेजर जनरल खंडूडी अपनी हार को जीत में बदलने के लिए बैचेन है। वे प्रदेश में 24 दिसम्बर से लगी चुनाव आचार संहिता को हटाने की एक तरफ गुहार लगा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में सैनिक कर्मियों के लिये दी जाने वाली डाक मतदान (पोस्टल मतदान) का तानाबाना बुनने में लगे हुए है। गौरतलब है कि प्रदेश में 1.19 लाखे से लेकर 1.37 लाख डाक मतदाताओं के होने की खबरें छन कर आ रही है। सेना के अवकास प्राप्त उच्च अधिकारी का भी मानना है कि पोस्टल मतदान में युनिट से सेंटर से जिलाधिकारी तक की यात्रा में खंडूडी जैसे हुक्मरान होने के कारण धांधली की काफी संभावनायें हैं,। इसे देख कर ही लोगों की डाकमतों के नाम पर खंडूडी शासन पर उठ रही आशंका को नजरांदाज नहीं किया जा सकता। वेसे भी 2008 में पौड़ी लोकसभा सीट के उप चुनाव में भी खण्डूडी के ही नेतृत्व वाली प्रदेश सरकार के रहते हुए जिस प्रकार से जनता द्वारा दिये गये मतों के आधार पर चुनावी समर में मुंह की खाने के बाबजूद इन्हीं पोस्टल मतों के दम पर भाजपा का प्रत्याशी विजय हुआ था। ऐसा ही 2007 के विधानसभा चुनाव में नरेन्द्र नगर की विधानसभा सीट पर भी हुआ। इससे लोगों को यह भय निरंतर सता रहा है कि इतने भारी मतदान के बाद भी कहीं पोस्टल मतदान के नाम पर विगत चुनावों में जो खेल खेला गया उससे इस बार का भी जनादेश का एक प्रकार से चीर हरण तो न किया जाय।
प्रदेश की आधी से अधिक सीटों पर सीधे कांटे की टक्कर हैं, उन सीटों पर पोस्टल वोटों की आड़ में जनादेश का हरण करके को ठेंगा दिखाने के लिए प्रदेश सरकार के मुखिया भुवनचंद खंडूडी ने जिस प्रकार से प्रदेश में विकास के कार्य में रूकावट के नाम पर आचार संहिता को हटाने की गुहार लगायी, उससे
2008 के पौड़ी लोकसभा सीट के उपचुनाव व 2007 के नरेंद्रनगर में विधानसभा चुनाव में पोस्टल बैलेट के कारण भारी विवाद हुआ है। और पीड़ित पक्ष ने विरोधी दलों पर पोस्टल बैलेट के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया है। वर्ष 2008 में जनरल खंडूड़ी के मुख्यमंत्री बनने के बाद पौड़ी लोकसभा के उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सतपाल महाराज ईवीएम की गणना में लगभग 20 हजार मतों से जीत गए थे जबकि पोस्टल बैलेट की गणना के बाद भाजपा प्रत्याशी टीपीएस रावत से 6 हजार मतों के अंतर से हार गए। ऐसा ही 2007 के विधानसभा चुनावों में नरेंद्रनगर विस सीट पर हुआ। उत्तराखण्ड में 1.19 लाख डाक मतदाता में सबसे अधिक पौड़ी जनपद में 22779 व सबसे कम जनपद उत्तरकाशी 2339 में है। अन्य जनपदों में चमोली 13214 रुद्रप्रयाग 4874 टिहरी 4976 देहरादून 9745 हरिद्वार 2867 पौड़ी 22779 पिथौरागढ़ 15306 बागेर 4928 अल्मोड़ा 6799 चंपावत 2663 नैनीताल 5373 व ऊधमसिंह नगर 4464 में डाक मतदाता है।
हालांकि इसके खिलाफ सत्ता की प्रबल दावेदार कांग्रेस में भी बेचेनी छायी हुई है। पार्टी के सतपाल महाराज सहित अनैक नेता चुनाव आयोग से डाकमत के दुरप्रयोग को रोकने की भी मांग कर चूके है। इन डाकमतों के लिए एक पूर्व निधार्रित समय सीमा तय नहीं की तो प्रदेश में जनादेश को ठेगा दिखाने का काम किये जाने की पर्याप्त संभावनायें विद्यमान हे। इसे देखते हुए प्रदेश में डाक मतों के मतदान की पूरी प्रक्रिया पर ही जहां सवालिया निशान भी लगा हैं वहीं इस प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने की जरूरत भी महसूस कि जा रही है। इसके साथ चुनाव आयोग द्वारा मतदान के इतने लम्बे समय तक चुनाव परिणाम के लिए लटाये जाने पर भी गहरे प्रश्न खडे हुए है। वहीं प्रदेश की सत्तासीन सरकारें चुनाव संहिता हटाने से डाकमतों को प्रभावित कर सकती है। इसलिए आदर्श चुनाव संहिता के रहने तक सारा तंत्र राज्यपाल के नियंत्रण में रहना चाहिए। अगर चुनाव आयोग ने समय पर ठोस ढ़ंग से ध्यान नहीं दिया तो प्रदेश में जनादेश का हरण होने की आशंका विद्यमान है।
-डाक मतदान की आड़ में हो सकता है प्रदेश में जनादेश का चीर हरण /
-चुनाव परिणाम घोषित होने तक मुख्यमंत्री नहीं राज्यपाल के प्रति जिम्मेदार रहे प्रशासन/,
जिस प्रकार से प्रदेश की जनता ने विधानसभा चुनाव में भारी जोश व खरोश से मतदान में भाग ले कर मतदान किया, उसके बाद अपनी हार से सहमें सत्तारूढ़ भाजपा के मुखिया मेजर जनरल खंडूडी अपनी हार को जीत में बदलने के लिए बैचेन है। वे प्रदेश में 24 दिसम्बर से लगी चुनाव आचार संहिता को हटाने की एक तरफ गुहार लगा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में सैनिक कर्मियों के लिये दी जाने वाली डाक मतदान (पोस्टल मतदान) का तानाबाना बुनने में लगे हुए है। गौरतलब है कि प्रदेश में 1.19 लाखे से लेकर 1.37 लाख डाक मतदाताओं के होने की खबरें छन कर आ रही है। सेना के अवकास प्राप्त उच्च अधिकारी का भी मानना है कि पोस्टल मतदान में युनिट से सेंटर से जिलाधिकारी तक की यात्रा में खंडूडी जैसे हुक्मरान होने के कारण धांधली की काफी संभावनायें हैं,। इसे देख कर ही लोगों की डाकमतों के नाम पर खंडूडी शासन पर उठ रही आशंका को नजरांदाज नहीं किया जा सकता। वेसे भी 2008 में पौड़ी लोकसभा सीट के उप चुनाव में भी खण्डूडी के ही नेतृत्व वाली प्रदेश सरकार के रहते हुए जिस प्रकार से जनता द्वारा दिये गये मतों के आधार पर चुनावी समर में मुंह की खाने के बाबजूद इन्हीं पोस्टल मतों के दम पर भाजपा का प्रत्याशी विजय हुआ था। ऐसा ही 2007 के विधानसभा चुनाव में नरेन्द्र नगर की विधानसभा सीट पर भी हुआ। इससे लोगों को यह भय निरंतर सता रहा है कि इतने भारी मतदान के बाद भी कहीं पोस्टल मतदान के नाम पर विगत चुनावों में जो खेल खेला गया उससे इस बार का भी जनादेश का एक प्रकार से चीर हरण तो न किया जाय।
प्रदेश की आधी से अधिक सीटों पर सीधे कांटे की टक्कर हैं, उन सीटों पर पोस्टल वोटों की आड़ में जनादेश का हरण करके को ठेंगा दिखाने के लिए प्रदेश सरकार के मुखिया भुवनचंद खंडूडी ने जिस प्रकार से प्रदेश में विकास के कार्य में रूकावट के नाम पर आचार संहिता को हटाने की गुहार लगायी, उससे
2008 के पौड़ी लोकसभा सीट के उपचुनाव व 2007 के नरेंद्रनगर में विधानसभा चुनाव में पोस्टल बैलेट के कारण भारी विवाद हुआ है। और पीड़ित पक्ष ने विरोधी दलों पर पोस्टल बैलेट के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया है। वर्ष 2008 में जनरल खंडूड़ी के मुख्यमंत्री बनने के बाद पौड़ी लोकसभा के उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सतपाल महाराज ईवीएम की गणना में लगभग 20 हजार मतों से जीत गए थे जबकि पोस्टल बैलेट की गणना के बाद भाजपा प्रत्याशी टीपीएस रावत से 6 हजार मतों के अंतर से हार गए। ऐसा ही 2007 के विधानसभा चुनावों में नरेंद्रनगर विस सीट पर हुआ। उत्तराखण्ड में 1.19 लाख डाक मतदाता में सबसे अधिक पौड़ी जनपद में 22779 व सबसे कम जनपद उत्तरकाशी 2339 में है। अन्य जनपदों में चमोली 13214 रुद्रप्रयाग 4874 टिहरी 4976 देहरादून 9745 हरिद्वार 2867 पौड़ी 22779 पिथौरागढ़ 15306 बागेर 4928 अल्मोड़ा 6799 चंपावत 2663 नैनीताल 5373 व ऊधमसिंह नगर 4464 में डाक मतदाता है।
हालांकि इसके खिलाफ सत्ता की प्रबल दावेदार कांग्रेस में भी बेचेनी छायी हुई है। पार्टी के सतपाल महाराज सहित अनैक नेता चुनाव आयोग से डाकमत के दुरप्रयोग को रोकने की भी मांग कर चूके है। इन डाकमतों के लिए एक पूर्व निधार्रित समय सीमा तय नहीं की तो प्रदेश में जनादेश को ठेगा दिखाने का काम किये जाने की पर्याप्त संभावनायें विद्यमान हे। इसे देखते हुए प्रदेश में डाक मतों के मतदान की पूरी प्रक्रिया पर ही जहां सवालिया निशान भी लगा हैं वहीं इस प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने की जरूरत भी महसूस कि जा रही है। इसके साथ चुनाव आयोग द्वारा मतदान के इतने लम्बे समय तक चुनाव परिणाम के लिए लटाये जाने पर भी गहरे प्रश्न खडे हुए है। वहीं प्रदेश की सत्तासीन सरकारें चुनाव संहिता हटाने से डाकमतों को प्रभावित कर सकती है। इसलिए आदर्श चुनाव संहिता के रहने तक सारा तंत्र राज्यपाल के नियंत्रण में रहना चाहिए। अगर चुनाव आयोग ने समय पर ठोस ढ़ंग से ध्यान नहीं दिया तो प्रदेश में जनादेश का हरण होने की आशंका विद्यमान है।
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