देश में पहली बार डाकमत भी बने चुनाव में निर्णायक
देश में पहली बार डाकमत भी बने चुनाव में निर्णायक/
- उत्तराखण्ड की 70सदस्यीय विधानसभा में 32 सीटों पर निर्णायक होंगें डाकमत/
देश में पहली बार किसी विधानसभा के भाग्य का फेसला वहां के डाकमत पत्र करेंगे। देश में पहली बार पूरे प्रदेश स्तर पर डाकमतों के लिए सियासी जंग छिडी। देश में पहली बार मीडिया को भी डाकमतों की शक्ति का अहसास व चर्चा सुनने को मिली। खुद पहली बार डाकमतों की शक्ति का अहसास निर्वाचन आयोग को भी हुआ। पहली बार देश के राजनेताओ ंका ध्यान डाकमत पत्रों की तरफ गया। सियासी दलों का पहली बार सैन्य डाकमतों की महता का अहसास हुआ। इस बार उत्तराखण्ड में रिकार्ड तोड़ सवा लाख डाक मत पत्र जारी किये गये। पहली बार देश के अब तक के चुनाव में किसी भी प्रदेश का भाग्य का फेसला पोस्टल मतों के द्वारा होने का हब्बा राजनेताओं में ही नहीं आम जनता में भी छाया हुआ है। डाक मत पत्रों की महता का पता इसी बात से चलता है कि 70 सदस्यीय विधानसभा में से 32 सीटों के भाग्य का फेसला इन्हीं मतपत्रों पर टिका हुआ है। भाजपा जहां इन्हीं डाकमतों के भरोसे सरकार फिर से बनाने का सपना बुन रही है तथा कांग्रेस इन्हीं मतपत्रों को अपनी प्रदेश की सत्ता में आसीन होने के सपने पर ग्रहण लगने का कारण मान रही है। इससे एक बात उभर कर सामने आयी कि कांग्रेस जहा इन डाकमत मत्रों को केसे हासिल किया जाय इसके प्रति उदासीन रही वहीं भाजपा कई चुनाव में इनका अधिक से अधिक प्रयोग करने का महारथ हासिल कर चूकी है।
डाकमत पत्रों का महत्व प्रदेश में इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि पर्वतीय क्षेत्रों की विधानसभा सीटों में हार जीत का फैसला काफी कम अंतर से होता है। इस बार 32 विधानसभा क्षेत्रों के भाग्य के फेसला इन्हीं डाक मतों के द्वारा होने की आशंका से कांग्रेस के बाद अब भाजपा भी आशंकित है। 30 जनवरी को हुए विधानसभा चुनाव 2012 के चुनाव के बाद प्रदेश की राजनेतिक दलों का पूरा ध्यान प्रदेश में सवा लाख के करीब डाकमत पत्रों पर
लग गया।
मुख्य निर्वाचन कार्यालय के सुत्रों के अनुसार पोस्टल बैलेट के जरिए हुए मतदान का प्रतिशत 31 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर चुका है। जो राज्य गठन के बाद से कभी भी हुए डाक पत्र मतदान से सबसे अधिक है। 2007 के विधानसभा चुनाव में 81319 सर्विस मतदाताओं में केवल 15564 ने ही यानी 19 प्रतिशत पोस्टल बैलेट के जरिए ही वोट डाले गए थे। 2009 के लोकसभा चुनाव में भी 93326 पोस्टल मतदाओं में से 19265 ने यानी 21 प्रतिशत पोस्टल मतपत्रों से मतदान किया गया। प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2012 में सर्विस एवं चुनाव ड्यूटी से जुड़े 1,20,778 वोट हैं। जिसमें सेना,अर्धसैनिक व अन्य के 1,02,220 वोट हैं एवं 20.558 चुनाव कर्मचारियों के वोट हैं। उत्तराखंड निर्वाचन कार्यालय नें पौड़ी के पोस्टल मतदाताओं के लिए 22727, पिथौरागढ़ के लिए 15306, चमोली के लिए 13158, देहरादून के लिए 9743 और अल्मोड़ा के लिए 6799 पोस्टल मतपत्र भेजे थे। इसके अलावा प्रदेश में 20558 ऐसे सर्विस मतदाता है जो चुनाव ड्यूटी पर थे और उन्होंने भी पोस्टल मत दिया है। डाक मतपत्र प्रदेश के चुनावों में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। विधानसभा वार देखा जाए तो प्रदेश के 5 विधानसभा क्षेत्रों में डाक मतपत्रों की संख्या 5 हजार से ज्यादा है। 4 विधानसभा क्षेत्रों में तीन से चार हजार, 9 विधानसभा क्षेत्रों में दो से तीन हजार, 16 विधानसभा क्षेत्रों में एक से दो हजार और 36 विधानसभा क्षेत्रों एक हजार से नीचे है।
इस साल 30 जनवरी को सम्पन्न हुए विधानसभा 2012 के चुनाव के मतदान के लिए डाक मतदान के लिए 24 फरवरी तक 25,057 सर्विस वोट एवं 14,515 चुनाव ड्यूटी के वोट राज्य निर्वाचन आयोग से प्राप्त हुए हैं। जिनकी कुल संख्या 39,572 है। साथ ही 25,985 वोट बैरंग आए। शेष 56,221 वोटों की वास्तविक स्थिति का स्पष्ट नहीं हुई इससे प्रदेश में सत्तासीन होने की आश लगाये हुए भाजपा की आशाओं पर एक प्रकार से ग्रहण ही लग गया है। पहली बार कांग्रेस को डाकमतों के महत्व का 2008 के लोकसभा उपचुनाव में पता चला। जब डाकमतों के कारण कांग्रेस ने जीती हुई बाजी हार दी थी। 2008 में जनरल भुवनचंद खंडूड़ी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके इस्तीफा देने से रिक्त हुई पौड़ी लोकसभा के उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सतपाल महाराज सीधे मतदान की गणना में लगभग 20 हजार मतों से जीत गए थे जबकि डाकमतों की मतगणना में वह तत्कालीन भाजपा प्रत्याशी ले. जनरल तेजपाल सिंह रावत से 6 हजार मतों से पराजित हो गये। हालांकि इससे पहले 2007 के विधानसभा चुनाव में भी नरेंद्रनगर विस क्षेत्र में सीधे मतो की गणना में जीत चुके सुबोध उनियाल डाकमतों की गणना के बाद उत्तराखंड क्रांति दल के ओमगोपाल से मात्र 4 मतों से हार गए थे पर इस विवाद पर लोगों ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। यह विवाद न्यायालय में में लटका रहा ।नहीं तो डाकमतों का भाजपा इससे पहले चुनाव में लाभ उठाती रहती थी। इसी कारण कांग्रेस नेता सतपाल महाराज ने सबसे पहले इस मामले को प्रमुखता से उठाया, हालांकि कई लोग उनकी इस पहल का पहले मजाक भी उडाते देखे गये परन्तु जब इस बात की गहराई में जा कर देखा गया कि प्रदेश की इन चुनाव में 32 सीटों का भाग्य पोस्टल मतदान बदल सकते हैं तो कांग्रेस ने कमर कसते हुए सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अवतार सिंह रावत के द्वारा केन्द्रीय चुनाव आयोग में गुहार लगायी, सभी प्रत्याशियों की दिल्ली स्थित कांग्रेस वार रूम में इस पर चिंतन भी हुआ। अब सबकी नजर 6 मार्च को होने वाली मतगणना पर लगी हुई है। इसी के बाद इन मतपत्रों की शक्ति का सही पता चल पायेगा। परन्तु यह सच है कि डाकमतों की शक्ति से सभी सियासी दल आशंकित हैं।
शेष श्री कृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।
- उत्तराखण्ड की 70सदस्यीय विधानसभा में 32 सीटों पर निर्णायक होंगें डाकमत/
देश में पहली बार किसी विधानसभा के भाग्य का फेसला वहां के डाकमत पत्र करेंगे। देश में पहली बार पूरे प्रदेश स्तर पर डाकमतों के लिए सियासी जंग छिडी। देश में पहली बार मीडिया को भी डाकमतों की शक्ति का अहसास व चर्चा सुनने को मिली। खुद पहली बार डाकमतों की शक्ति का अहसास निर्वाचन आयोग को भी हुआ। पहली बार देश के राजनेताओ ंका ध्यान डाकमत पत्रों की तरफ गया। सियासी दलों का पहली बार सैन्य डाकमतों की महता का अहसास हुआ। इस बार उत्तराखण्ड में रिकार्ड तोड़ सवा लाख डाक मत पत्र जारी किये गये। पहली बार देश के अब तक के चुनाव में किसी भी प्रदेश का भाग्य का फेसला पोस्टल मतों के द्वारा होने का हब्बा राजनेताओं में ही नहीं आम जनता में भी छाया हुआ है। डाक मत पत्रों की महता का पता इसी बात से चलता है कि 70 सदस्यीय विधानसभा में से 32 सीटों के भाग्य का फेसला इन्हीं मतपत्रों पर टिका हुआ है। भाजपा जहां इन्हीं डाकमतों के भरोसे सरकार फिर से बनाने का सपना बुन रही है तथा कांग्रेस इन्हीं मतपत्रों को अपनी प्रदेश की सत्ता में आसीन होने के सपने पर ग्रहण लगने का कारण मान रही है। इससे एक बात उभर कर सामने आयी कि कांग्रेस जहा इन डाकमत मत्रों को केसे हासिल किया जाय इसके प्रति उदासीन रही वहीं भाजपा कई चुनाव में इनका अधिक से अधिक प्रयोग करने का महारथ हासिल कर चूकी है।
डाकमत पत्रों का महत्व प्रदेश में इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि पर्वतीय क्षेत्रों की विधानसभा सीटों में हार जीत का फैसला काफी कम अंतर से होता है। इस बार 32 विधानसभा क्षेत्रों के भाग्य के फेसला इन्हीं डाक मतों के द्वारा होने की आशंका से कांग्रेस के बाद अब भाजपा भी आशंकित है। 30 जनवरी को हुए विधानसभा चुनाव 2012 के चुनाव के बाद प्रदेश की राजनेतिक दलों का पूरा ध्यान प्रदेश में सवा लाख के करीब डाकमत पत्रों पर
लग गया।
मुख्य निर्वाचन कार्यालय के सुत्रों के अनुसार पोस्टल बैलेट के जरिए हुए मतदान का प्रतिशत 31 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर चुका है। जो राज्य गठन के बाद से कभी भी हुए डाक पत्र मतदान से सबसे अधिक है। 2007 के विधानसभा चुनाव में 81319 सर्विस मतदाताओं में केवल 15564 ने ही यानी 19 प्रतिशत पोस्टल बैलेट के जरिए ही वोट डाले गए थे। 2009 के लोकसभा चुनाव में भी 93326 पोस्टल मतदाओं में से 19265 ने यानी 21 प्रतिशत पोस्टल मतपत्रों से मतदान किया गया। प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2012 में सर्विस एवं चुनाव ड्यूटी से जुड़े 1,20,778 वोट हैं। जिसमें सेना,अर्धसैनिक व अन्य के 1,02,220 वोट हैं एवं 20.558 चुनाव कर्मचारियों के वोट हैं। उत्तराखंड निर्वाचन कार्यालय नें पौड़ी के पोस्टल मतदाताओं के लिए 22727, पिथौरागढ़ के लिए 15306, चमोली के लिए 13158, देहरादून के लिए 9743 और अल्मोड़ा के लिए 6799 पोस्टल मतपत्र भेजे थे। इसके अलावा प्रदेश में 20558 ऐसे सर्विस मतदाता है जो चुनाव ड्यूटी पर थे और उन्होंने भी पोस्टल मत दिया है। डाक मतपत्र प्रदेश के चुनावों में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। विधानसभा वार देखा जाए तो प्रदेश के 5 विधानसभा क्षेत्रों में डाक मतपत्रों की संख्या 5 हजार से ज्यादा है। 4 विधानसभा क्षेत्रों में तीन से चार हजार, 9 विधानसभा क्षेत्रों में दो से तीन हजार, 16 विधानसभा क्षेत्रों में एक से दो हजार और 36 विधानसभा क्षेत्रों एक हजार से नीचे है।
इस साल 30 जनवरी को सम्पन्न हुए विधानसभा 2012 के चुनाव के मतदान के लिए डाक मतदान के लिए 24 फरवरी तक 25,057 सर्विस वोट एवं 14,515 चुनाव ड्यूटी के वोट राज्य निर्वाचन आयोग से प्राप्त हुए हैं। जिनकी कुल संख्या 39,572 है। साथ ही 25,985 वोट बैरंग आए। शेष 56,221 वोटों की वास्तविक स्थिति का स्पष्ट नहीं हुई इससे प्रदेश में सत्तासीन होने की आश लगाये हुए भाजपा की आशाओं पर एक प्रकार से ग्रहण ही लग गया है। पहली बार कांग्रेस को डाकमतों के महत्व का 2008 के लोकसभा उपचुनाव में पता चला। जब डाकमतों के कारण कांग्रेस ने जीती हुई बाजी हार दी थी। 2008 में जनरल भुवनचंद खंडूड़ी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके इस्तीफा देने से रिक्त हुई पौड़ी लोकसभा के उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सतपाल महाराज सीधे मतदान की गणना में लगभग 20 हजार मतों से जीत गए थे जबकि डाकमतों की मतगणना में वह तत्कालीन भाजपा प्रत्याशी ले. जनरल तेजपाल सिंह रावत से 6 हजार मतों से पराजित हो गये। हालांकि इससे पहले 2007 के विधानसभा चुनाव में भी नरेंद्रनगर विस क्षेत्र में सीधे मतो की गणना में जीत चुके सुबोध उनियाल डाकमतों की गणना के बाद उत्तराखंड क्रांति दल के ओमगोपाल से मात्र 4 मतों से हार गए थे पर इस विवाद पर लोगों ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। यह विवाद न्यायालय में में लटका रहा ।नहीं तो डाकमतों का भाजपा इससे पहले चुनाव में लाभ उठाती रहती थी। इसी कारण कांग्रेस नेता सतपाल महाराज ने सबसे पहले इस मामले को प्रमुखता से उठाया, हालांकि कई लोग उनकी इस पहल का पहले मजाक भी उडाते देखे गये परन्तु जब इस बात की गहराई में जा कर देखा गया कि प्रदेश की इन चुनाव में 32 सीटों का भाग्य पोस्टल मतदान बदल सकते हैं तो कांग्रेस ने कमर कसते हुए सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अवतार सिंह रावत के द्वारा केन्द्रीय चुनाव आयोग में गुहार लगायी, सभी प्रत्याशियों की दिल्ली स्थित कांग्रेस वार रूम में इस पर चिंतन भी हुआ। अब सबकी नजर 6 मार्च को होने वाली मतगणना पर लगी हुई है। इसी के बाद इन मतपत्रों की शक्ति का सही पता चल पायेगा। परन्तु यह सच है कि डाकमतों की शक्ति से सभी सियासी दल आशंकित हैं।
शेष श्री कृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।
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