शिवमहारात्रि का परम कल्याण का दिव्य रहस्य
वन्दे उमापतिं सुरगुरुं वन्दे जगत्कारणम् ।
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम् ।।
वन्दे सूर्य शशाङ्क वह्निनयन वन्दे मुकुन्द प्रियम् ।
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ।।
शिवमहारात्रि का परम कल्याण का दिव्य रहस्य
अनन्तकोटी ब्रहमाण्ड का कल्याणकारी हरि हर के एकारूप भगवान शिव की पावन शिवमहारात्रि पर हम उनके पावन चरणों में हरपल नमन् करते हुए अपना शेष जीवन सबके कल्याण के लिए समर्पित करने का संकल्प लें। क्योंकि भगवान शिव की सच्ची पूजा व भक्ति उपवास, देवालय में पूजन कीर्तन ही नहीं अपितु इन सबसे बड़ कर है सृष्टि में हर जड़ चेतन को शिव रूप मानते हुए उनके कल्याण के लिए भगवान शिव की तरह अपने आप को हर पल समर्पित करना। सर्वभूत्हितेरता व वासुदेव सर्वम् यानी सभी जड़ चेतन को परमेश्वर का स्वरूप मानते हुए उनका सम्मान व उनके हित में सदैव रत रहना ही सवसे बड़ी तपस्या, भक्ति व पूजा तथा यही सबसे परम् धर्म है। भगवान, अल्ला, वाहे गुरू व ईसा का नाम या पूजन करके किसी दूसरे जीव से धृणा, शोषण, दमन, हत्या व दुख देना ही सबसे बड़ा ईशद्रोह है। यही सनातन धर्म है। यही धर्म का सार है। आओ हम इसस परम सत्य को आत्मसात करके शेष जीवन को आनन्दमय बनायें। यह ध्यान रहे मनसा, वाचा व कर्म से किसी का अहित करना भी हिंसा व सबकी खुशी में अपनी खुशी देखना ही सबसे बड़ी पूजा है। दूसरों का शोषण करके व दूसरों का हित मार कर धर्नाजन व संग्रह करने वाले सबसे बड़े अपराधी है। आओ इसी पल हम सब संकल्प लें न हम इसी पावन पर्व के इसी पल से संकल्प लें की न हम किसी से अन्याय करेंगे व नहीं किसी पर भी हो रहे अन्याय को सहन करेंगे। यही सदाचार है यही परमधर्म है। इसी से भ्रष्टाचार, अज्ञानता, राग द्वेष, हिंसा सभी मिटेगी और इसी से परम कल्याणकारी रामराज्य की स्थापना होगी। -देवसिंह रावत (शिवरात्रि 20 फरवरी 2012, प्रातः 9बजे)
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम् ।।
वन्दे सूर्य शशाङ्क वह्निनयन वन्दे मुकुन्द प्रियम् ।
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ।।
शिवमहारात्रि का परम कल्याण का दिव्य रहस्य
अनन्तकोटी ब्रहमाण्ड का कल्याणकारी हरि हर के एकारूप भगवान शिव की पावन शिवमहारात्रि पर हम उनके पावन चरणों में हरपल नमन् करते हुए अपना शेष जीवन सबके कल्याण के लिए समर्पित करने का संकल्प लें। क्योंकि भगवान शिव की सच्ची पूजा व भक्ति उपवास, देवालय में पूजन कीर्तन ही नहीं अपितु इन सबसे बड़ कर है सृष्टि में हर जड़ चेतन को शिव रूप मानते हुए उनके कल्याण के लिए भगवान शिव की तरह अपने आप को हर पल समर्पित करना। सर्वभूत्हितेरता व वासुदेव सर्वम् यानी सभी जड़ चेतन को परमेश्वर का स्वरूप मानते हुए उनका सम्मान व उनके हित में सदैव रत रहना ही सवसे बड़ी तपस्या, भक्ति व पूजा तथा यही सबसे परम् धर्म है। भगवान, अल्ला, वाहे गुरू व ईसा का नाम या पूजन करके किसी दूसरे जीव से धृणा, शोषण, दमन, हत्या व दुख देना ही सबसे बड़ा ईशद्रोह है। यही सनातन धर्म है। यही धर्म का सार है। आओ हम इसस परम सत्य को आत्मसात करके शेष जीवन को आनन्दमय बनायें। यह ध्यान रहे मनसा, वाचा व कर्म से किसी का अहित करना भी हिंसा व सबकी खुशी में अपनी खुशी देखना ही सबसे बड़ी पूजा है। दूसरों का शोषण करके व दूसरों का हित मार कर धर्नाजन व संग्रह करने वाले सबसे बड़े अपराधी है। आओ इसी पल हम सब संकल्प लें न हम इसी पावन पर्व के इसी पल से संकल्प लें की न हम किसी से अन्याय करेंगे व नहीं किसी पर भी हो रहे अन्याय को सहन करेंगे। यही सदाचार है यही परमधर्म है। इसी से भ्रष्टाचार, अज्ञानता, राग द्वेष, हिंसा सभी मिटेगी और इसी से परम कल्याणकारी रामराज्य की स्थापना होगी। -देवसिंह रावत (शिवरात्रि 20 फरवरी 2012, प्रातः 9बजे)
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