-सरकारी सेवा में केवल सरकारी विद्यालय से पढ़े को मिले नियुक्ति

उत्तराखण्ड में सरकारी विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था के पतन के लिए जिम्मेदार है  हुक्मरान/
-मुख्यमंत्री खण्डूडी की विधानसभा क्षेत्र में  हुए प्रकरण पर खंडूडी   का शर्मनाक मौन क्यो?
-सरकारी सेवा में केवल सरकारी विद्यालय से पढ़े को मिले नियुक्ति
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 गत सप्ताह मेरे पास मेरे राज्य आंदोलन के साथ श्याम प्रसाद खंतवाल ने एक चैकाने वाला पत्र दिया। पत्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूडी के  चुनाव क्षेत्र का है। जहां पर उनकी सरकार के कारनमों का एक ऐसा कच्चा चिट्ठा उजागर हुआ जो प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था से खिलवाड़ करने वाले हुक्मरानों का पूरा चेहरा ही बेनकाब कर देता है पत्र में क्षेत्र की जनता की तरफ से कहा गया कि हम समस्त क्षेत्रवासी आपका ध्यान जनपद पौड़ी गढ़वाल के विकास खंड जयरीखाल, ब्लाक के अंर्तगत जूनियर हाई स्कूल-असनखेत की तरफ दिलाना चाहते हैं। यहाॅ पर रबच मशीन द्वारा दिनांक 24.12.2011 को धनश्याम खंतवाल पब्लिक स्कूल तक जाने के लिए निजी सड़क बनाते हुए बिना अनुमति की सरकारी जूनियर हाई स्कूल की दीवार ही गिरा दी गयी। प्रदेश में चुनाव आचार संहिता लगने के दौरान यहां पर अनुदान द्वारा इस प्राइवेट स्कूल का ग्राउॅड बनाया जा रहा था।  इस ग्राउड को बनाने के लिए जिसके लिए 50 (पचास) लाख रूपये आये है। जबकि इस स्कूल में 100 कम छात्र पढ़ रहे हैं।  जिस सरकारी स्कूल की दिवार तोड़ी गई उसका  उच्चीकरण स्थानीय विधायक  जनरल टी.पी.एस रावत द्वारा 2006-07 में किया गया था और उसके बाद नौंवी एवं दसवीं की कक्षाएं केवल एक साल ही चली। परन्तु इसके बाद मेजर जनरल भुवन चन्द्र खंडूरी की सरकार ने रहस्यमय ढ़ग से इस सरकारी  स्कूल का उच्चीकरण बंद करा दिया। 2008 में पुनः जूनियर हाई स्कूल बना दिया श्री खंतवाल के अनुसार इस सरकारी स्कूल के खुलने से यहां के गरीब बच्चे जो इस प्राइवेट स्कूल की मंहगी फीस देने में असमर्थ होने के कारण हाई स्कूल नहीं कर सकते थे वे भी इस स्कूल में पढ़ कर दसबीं पास कर सकते थे। परन्तु न जाने क्यों जनरल खंडूडी की सरकार ने इस गरीबों की आशा का सूर्य बने इस विद्यालय का उच्चीकरण रद्द कर दिया। राज्य आंदोलन के साथी श्याम प्रसाद खंतवाल का कहना है कि लोगों में यह धारणा फेली हुई है कि इस प्राइवेट स्कूल के हितों की रक्षा के लिए यह सरकारी स्कूल बंद कर गरीब बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया गया। गौरतलब है कि इस प्राइवेट स्कूल में वर्तमान में भी 100 से कम छात्र है। स्वयं सरकारी नीतियों के कारण बेरोजगारी का सितम झेल रहे श्याम प्रसाद खंतवाल अपनी बच्ची को इस स्कूल में दाखिला दिलाने व उसकी फिस माफी के लिए गुहार लगायी जिसे स्कूल प्रशासन ने ठुकरा दिया। श्याम प्रसाद खंतवाल ने कहा कि एक तरफ खंडूडी सरकार ने सरकारी स्कूल बंद किये वहीं आम आदमी को प्राइवेट स्कूल में मोटी फीस देने के लिए मजबूर किया जा रहा है। यहां के गरीब आदमियों के पास धनाभाव के कारण बच्चों की 100 रूपये फीस भी देना बड़ा भारी होता है। श्री खंतवाल के अनुसार चुनावी आचार संहिता के अनुसार इस स्कूल में मैदान बनाने का काम किया गया जिसमें सरकारी स्कूल की दिवार तोड़ दी गयी।  सबसे चैकान्ने वाली बात यह है कि इस प्राइवेट स्कूल को किस ने 50 लाख रूपये अनुदान देने का काम किया। स्वयं राज्य आंदोलनकारी खंतवाल ने इस पूरे प्रकरण की शिकायत जिलाधिकारी पोड़ी को लिखित में करते हुए सरकारी स्कूल व पुराने रास्ते को ध्वस्थ करने वाले प्रकरण को उजागर किया वहीं इस प्राइवेट स्कूल के हित साधने के लिए दिये गये 50 लाख रूपये के अनुदान करने वाली संस्था की जांच की मांग की। इसी प्रकरण से प्रदेश के हुक्मरानों द्वारा आम जनता के हितों को अपने निहित स्वार्थो के लिए खिलवाड करने वाला प्रकरण भी उजागर हुआ।
 इस स्कूल के प्रांगण में बिल्कुल स्कूल के कमरों के दरवाजों के साथ-साथ गाड़ी मोटर, एवं गांव के घोडे़ खच्चर आदि पशुओं और आम जनता का आना-जाना स्कूल के अंदर से लगातार हो रहा है। जबकि जनता इस स्कूल के उच्चीकरण की मांग करती आ रही है। प्राईवेट स्कूल में गरीब जनता द्वारा बच्चों को पढ़ाना बड़ा मुश्किल है। एक तरफ तो सरकार गरीब बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देने कि लिए करोड़ों रूपये खर्च कर रही है और दूसरी तरफ प्राईवेट स्कूलों का बढ़ावा दे रही है। यह स्कूल इस बात का प्रमाण है। इसके साथ-साथ गांव में आने-वाला पुराना रास्ता भी ध्वस्त कर दिया गया। जिस पर लाखों रूपये कुछ समय पहले दुरस्त करके के लिए लगाये गए थे। उसे मलबे में दबा दिया गया।
पिछले सप्ताह मैने उत्तराखण्ड कांग्रेस के अध्यक्ष यशपाल आर्य से दिल्ली के उत्तराखण्ड निवास में भैंट करते हुए प्रदेश सरकार आने पर प्रदेश की राजधानी गेरसैंण, मुजफरनगरकाण्ड के अभियुक्तों को दण्डित कराने, प्रदेश की जमीनों को कोडियों के भाव उद्योग व एनजीओं को लुटवाने, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने व प्रदेश की पटरी से उतर चूकी शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकारी सेवा केवल उन्हीं को मिलेगी जो सरकारी स्कूलों से पढ़ेंगे और अध्यापकों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ाये जाने का कड़ा कानून बनाने की मांग की। इस दौरान यमुनौत्री से कांग्रेस विधायक केदारसिंह रावत व सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता भी उपस्थित थे। इन सभी बिन्दुओं पर यशपाल आर्य ने सहमति प्रकट करते हुए प्रदेश की बदहाली को दूर करने के लिए मजबूत कदम उठाने का आश्वासन दिया। हाल में सूचना के अधिकार के तहत कार्यकत्र्ता एस एस नेगी को मिली सरकारी जानकारी के अनुसार प्रदेश के 14847 प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत 34 हजार प्राथमिक अध्यापकों में से केवल 1617 बच्चे ही सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे है। इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता हे कि प्रदेश में शिक्षा की स्थिति दिन प्रति दिन क्यों बदहाल हो रही है। उत्तराखण्ड में 14847 प्राइमरी, 4067 जूनियर हाई स्कूल,, 837 हाई स्कूल और 1118 इण्टर कालेज हैं । सुत्रों के अनुसार जिनमें कुल 11783 शिक्षकों के पद खाली है। हाई स्कूल तथा इण्टर कालेजों में गणित, विज्ञान और अंग्रेजी जैसे विषयों के शिक्षक नहीं है। सबसे चैकान्ने वाले तथ्य यह है कि राज्य में हर साल लगभग 25 हजार बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं। सन 2009 से लेकर 2011 तक कुल 15665 प्राइमरी स्कूलों के 1084624 विद्यार्थियों में से 21309 ने स्कूल छोड़ दिया। केवल हरिद्वार में ही दो वर्षों में प्राइमरी स्कूलों में बच्चों की संख्या में बढोत्तरी हुई है। सवाल यह है कि भारत में कभी जिस उत्तराखण्डी शिक्षा का सिक्का कायम था आज वह कैसे पटरी से उतर गया। राज्य के शिक्षा विभाग से एक सूचना के अधिकार के तहत  समाजसेवी एस एस नेगी को मिली जानकारी समाचार पत्रों द्वारा सार्वजनिक हुई उसके अनुसार राज्य के कुल 34 हजार प्राइमरी शिक्षकों के केवल 1617 बच्चे ही प्राइमरी स्कूलों में पढ़ रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि उन्हें अपने एवं अपने समकक्ष अध्यापकों की योग्यता पर भरोसा नहीं है। यही वजह है कि अधिकांश सरकारी स्कूलों के अध्यापक केवल रोजगार की मजबूरी में स्कूलों में पढाघ् तो रहे है परंतु अपने बच्चों को वहां पढाने से परहेज कर रहे हैं।  जिले बागेश्वर में शिक्षकों केसबसे कम 29 बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं। इसके बाद रुद्रप्रयाग में 45, देहरादून में 95, हरिद्वार में 115, अल्मोडा में 195, ऊधम सिंह नगर में 179, चमोली में 167, पौडी में 177, पिथौरागढ़ में 241 और नैनीताल में शिक्षकों के 225 बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ रहे हैं।  इसके अलावा केन्द्र सरकार के सर्वशिक्षा अभियान समेत विभिन्न प्रयासों के बावजूद राज्य में हर साल लगभग 25 हजार बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं।
अगर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश की सरकार ने इस गंभीर विषय पर कोई ठोस कदम उठाते हुए प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए युद्ध स्तर पर काम नहीं किया तो आने वाले समय में स्थिति सरकार के काबू से बाहर हो जायेगी।
प्रदेश सरकार को प्रदेश की आम गरीब जनता के हित में एक कानून स्पष्ट बनाना होगा कि प्रदेश के सरकारी शिक्षकों, जनप्रतिनिधियों व सरकारी कर्मचारियों को जहां अपना बच्चा सरकारी स्कूल में ही पढ़ाना होगा। वहीं प्रदेश की सरकारी नौकरी में उन्हीं प्रत्याशियों को वरियता दी जायेगी जो सरकारी विद्यालयों से पढ़े हो। अगर ये दोनों कानून बन जायेगे तो प्रदेश की पटरी से नीचे उतर चूकी शिक्षा व्यवस्था चमत्कारिक रूप से जींदा हो जायेगी। असनखेत स्कूल प्रकरण व प्रदेश के अध्यापकों के खुद के बच्चे सरकारी स्कूलों में न पड़ने वाली घटना भले अलग अलग हो परन्तु इसकी कडियां जोड़ कर जो तस्वीर बनाती है वह प्रदेश कीपटरी से उतर चूकी शिक्षा व्यवस्था की हकीकत को बयान करती है। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्।

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