वाररूम में खुद हुए बेनकाब कांग्रेसी महारथी
वाररूम में खुद हुए बेनकाब कांग्रेसी महारथी/
भीतरघात नहीं होता तो उत्तराखण्ड में 70 में से कांग्रेस 45 से अधिक सीटे जीतती/
‘खोदा पहाड़ निकला चूहा’ साबित हुआ वाररूम में उत्तराखण्ड कांग्रेस प्रत्याशियों की बैठक/
नई दिल्ली (प्याउ)। वाररूम यानी व्यूह रचना कक्ष, प्रायः वाररूम का प्रयोग सेना में किया जाता है। जहां सेना नायक अपने कमांडरों के साथ युद्ध की रणनीति बनाते है। शायद इस शब्द को राजनीति में भी राजनीति के चोधरियों ने अपने अपने दलों की अंतिम रणनीति या गुप्त नीति बनाने के लिए अपना लिया हो। मेरे कानों में यह शब्द वेसे जब देश पर युद्ध के बादल मंडराने लगते थे तब सुनाई देता था। परन्तु कुछ महिनों पहले मुझे पता चला कि कांग्रेस का कोई वार रूम है। भाजपा का वाररूम कहां हैं यह तो मुझे नहीं पता, आम राजनीति का राजनैतिक समझ रखने वाला आदमी भी कहेगा शायद झण्डेवालन या नागपुर में होगा। क्योंकि भाजपा में अतिम व मुख्य रणनीति संघ ही बनाता है।
ऐसा ही यदि कोई पूछे कि कांग्रेस का वार रूम कहां है तो अधिकांश प्रबुद्ध लोग कहेंगे कि दस जनपत। क्योंकि कांग्रेस का अंतिम निर्णय 10 जनपत यानी वहां पर रहने वाली कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी करती है। यह शतः प्रतिशतः सही भी है। परन्तु कांग्रेस का वाररूम 10 जनपत नहीं अपितु 15 रकाबगंज रोड दिल्ली में यानी मायावती जी की पार्टी बसपा के केन्द्रीय मुख्यालय के ठीक सामने है। कांग्रेस के वार रूम में कहते हैं मीडिया और आम आदमी के लिए भी प्रवेश निषेद्ध है। ऐसा मुझे तब बताया गया जब एक दिन में किसी मित्र के साथ वहां पर कुछ पल के लिए गया। आज 22 फरवरी दोपहर 3 बजे भी कांग्रेस के वार रूम में उत्तराखण्ड प्रदेश में हाल में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के तमाम प्रत्याशियों की पोस्टल बेलेट पेपर की समस्या के निदान के लिए विशेष बैठक बुलायी गयी। मैं अपने पत्रकार मित्रों के साथ वहां पर पंहुचा तो देखा की वहां पर कांग्रेस के उत्तराखण्ड के तमाम कांग्रेसी प्रत्याशी एक एक करके पंहुच रहे थे। 15 रकाबगंज वाली विशाल कोठी, जिस पर कोई बोर्ड या प्लेट तक नहीं लगी है वहां पर लगे सुरक्षा कर्मी उनके पास वार रूम की 3 बजे वाली बैठक के सम्मलित होने वाले लोगों का नाम वालों को ही अंदर जाने दे रहे थे। प्रदेश के प्रभारी व कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव चैधरी वीरेन्द्र सिंह, केन्द्रीय कृर्षि राज्य मंत्री हरीश रावत, सांसद विजय बहुगुणा, प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य, नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत सहित अधिकांश विधायक प्रत्याशी पंहुचे हुए थे। इनके अलावा सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अवतार सिंह रावत, कांग्रेस अधिवक्ता सेल के प्रमुख अधिवक्ता मलिक, मेजर जनरत पंत व समाजसेवी के सी पाण्डे भी उपस्थित थे। सभा में सम्मलित एक विधायक प्रत्याशी ने जब इस वार रूम में आयोजित इस बैठक में कांग्रेस के इन रणनीतिकारों का हल्कापन देखा तो वह झल्लाते हुए बोले इतनी दूर क्या इसी लिए बुलाया गया। कोई ठोस रणनीति नहीं, इस सभा में सम्मलित एक प्रतिष्ठित व्यक्ति ने टिप्पणी की कि अगर ऐसे लोग प्रदेश का शासन संभाल कर क्या दिशा देंगे यह उनके समझ से बाहर है। उनके अनुसार अधिकांश सम्मलित प्रत्याशियों के हाव भाव व चेहरे मुरझाये हुए थे, उत्साह उनमें कहीं दूर दूर तक नहीं दिखाई दे रहा था। न हीं वार रूम में प्रदेश प्रभारी व अध्यक्ष तथा न किसी के सम्बोधन ही प्रेरणादायक या उत्साहजनक रहा। कुल मिला कर प्रदेश में सरकार बनाने वाला उत्साह कहीं दूर तक इन प्रतिनिधियों में दिखाई ही नहीं दिया। कुल मिला कर कांग्रेस के प्रभारी द्वारा सुदूर उत्तराखण्ड से प्रत्याशियों को दिल्ली बुला कर कोई ऐसी मंत्रणा तक या दिशा निर्देश तक नहीं दिया गया जिसकी आश में वे वार रूम में पंहुचे। इस बैठक के प्रति आयोजक कितने गंभीर थे, इस बैठक में 5 में से तीन सांसद सतपाल महाराज, प्रदीप टम्टा व के सी बाबा ही नहीं दिखे। सतपाल महाराज जो स्वयं देश की रक्षा समिति के अध्यक्ष होने के साथ साथ इस मुद्दे पर सबसे अधिक प्रखर भी हैं। वहीं सांसद प्रदीप टम्टा व केसी बाबा की इन चुनाव में जिस प्रकार से शर्मनाक उपेक्षा प्रदेश प्रभारी की जानकारी में निरंतर की जा रही है उससे दोनों सांसद ही नहीं उनके समर्थक भी अपने आप को अपमानित महसूस कर रहे है। देहरादून में राहुल गांधी की प्रथम चुनावी रेली में ही दोनों सांसदों को मंच पर जहां आसीन नहीं किया गया वहीं उनको चुनाव की अधिकांश महत्वपूर्ण समितियों में नजरांदाज किया गया। जहां तक कांग्रेसी नेता पोस्टल मतों पर भले ही हल्ला मचा रहे हों परन्तु अपने अपने क्षेत्र में व केन्द्रीय स्तर पर पोस्टल मतों को हासिल करने के लिए कोई रणनीति बनाने के बारे में सोचे भी नहीं । कहने को प्रदेश कांग्रेस कमेटी में दो जनरल स्तर के ले.जनरल नेगी व मेजर जनरल पंत को विशेष आमंत्रित सदस्य बनाया गया हो परन्तु उनका मार्गदर्शन तक इस दिशा में नहीं लिया गया। निस्तेज प्रभारी, अपनो के भीतरघात से मर्माहित प्रदेश अध्यक्ष के अलावा इस बैठक में आपस में एक ही गुस्सा अधिकांश वरिष्ठ कांग्रेसी नेता प्रकट कर रहे थे कि अगर प्रदेश के दिग्गज कांग्रेसी भीतरघात नहीं करते तो 70 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस उत्तराखण्ड में कम से कम 45 सीट जीतती। हालांकि इसके बाबजूद सभी इस बात के लिए आश्वस्त थे कि कांग्रेस प्रदेश मेें सरकार बना रही है।
इस बैठक में सम्मलित अधिकांश प्रत्याशियों को इस बात का भले ही संतोष होगा कि उन्होंने कांग्रेस का वार रूम देख तो लिया। नहीं तो कांग्रेस के अधिकांश नेता इस वार रूम में झांक भी नहीं सकते। यहां पर कांग्रेस के वरिष्ठ व विशेष रणनीतिकार ही कांग्रेस आला नेतृत्व के मार्गदर्शन को कैसे अमलीजामा पहनाना है इस रणनीति की व्यूह रचना होती होगी। हालांकि यहां पर प्रायः प्रणव मुखर्जी, मोती लाल बोरा, एंथोनी, अहमद पटेल, दिग्विजय सिंह, गुलाम नबी आजाद, जर्नाजन द्विवेदी जैसे नेता ही मंत्रणा करते होगे। अब कपिल सिब्बल भी शायद इस टीम में सम्मलित होगे। राहुल गांधी द्वारा कांग्रेस की कमान संभालने के बाद उनकी टीम का यहां पर दखल बड़ गया होगा।
भीतरघात नहीं होता तो उत्तराखण्ड में 70 में से कांग्रेस 45 से अधिक सीटे जीतती/
‘खोदा पहाड़ निकला चूहा’ साबित हुआ वाररूम में उत्तराखण्ड कांग्रेस प्रत्याशियों की बैठक/
नई दिल्ली (प्याउ)। वाररूम यानी व्यूह रचना कक्ष, प्रायः वाररूम का प्रयोग सेना में किया जाता है। जहां सेना नायक अपने कमांडरों के साथ युद्ध की रणनीति बनाते है। शायद इस शब्द को राजनीति में भी राजनीति के चोधरियों ने अपने अपने दलों की अंतिम रणनीति या गुप्त नीति बनाने के लिए अपना लिया हो। मेरे कानों में यह शब्द वेसे जब देश पर युद्ध के बादल मंडराने लगते थे तब सुनाई देता था। परन्तु कुछ महिनों पहले मुझे पता चला कि कांग्रेस का कोई वार रूम है। भाजपा का वाररूम कहां हैं यह तो मुझे नहीं पता, आम राजनीति का राजनैतिक समझ रखने वाला आदमी भी कहेगा शायद झण्डेवालन या नागपुर में होगा। क्योंकि भाजपा में अतिम व मुख्य रणनीति संघ ही बनाता है।
ऐसा ही यदि कोई पूछे कि कांग्रेस का वार रूम कहां है तो अधिकांश प्रबुद्ध लोग कहेंगे कि दस जनपत। क्योंकि कांग्रेस का अंतिम निर्णय 10 जनपत यानी वहां पर रहने वाली कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी करती है। यह शतः प्रतिशतः सही भी है। परन्तु कांग्रेस का वाररूम 10 जनपत नहीं अपितु 15 रकाबगंज रोड दिल्ली में यानी मायावती जी की पार्टी बसपा के केन्द्रीय मुख्यालय के ठीक सामने है। कांग्रेस के वार रूम में कहते हैं मीडिया और आम आदमी के लिए भी प्रवेश निषेद्ध है। ऐसा मुझे तब बताया गया जब एक दिन में किसी मित्र के साथ वहां पर कुछ पल के लिए गया। आज 22 फरवरी दोपहर 3 बजे भी कांग्रेस के वार रूम में उत्तराखण्ड प्रदेश में हाल में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के तमाम प्रत्याशियों की पोस्टल बेलेट पेपर की समस्या के निदान के लिए विशेष बैठक बुलायी गयी। मैं अपने पत्रकार मित्रों के साथ वहां पर पंहुचा तो देखा की वहां पर कांग्रेस के उत्तराखण्ड के तमाम कांग्रेसी प्रत्याशी एक एक करके पंहुच रहे थे। 15 रकाबगंज वाली विशाल कोठी, जिस पर कोई बोर्ड या प्लेट तक नहीं लगी है वहां पर लगे सुरक्षा कर्मी उनके पास वार रूम की 3 बजे वाली बैठक के सम्मलित होने वाले लोगों का नाम वालों को ही अंदर जाने दे रहे थे। प्रदेश के प्रभारी व कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव चैधरी वीरेन्द्र सिंह, केन्द्रीय कृर्षि राज्य मंत्री हरीश रावत, सांसद विजय बहुगुणा, प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य, नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत सहित अधिकांश विधायक प्रत्याशी पंहुचे हुए थे। इनके अलावा सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अवतार सिंह रावत, कांग्रेस अधिवक्ता सेल के प्रमुख अधिवक्ता मलिक, मेजर जनरत पंत व समाजसेवी के सी पाण्डे भी उपस्थित थे। सभा में सम्मलित एक विधायक प्रत्याशी ने जब इस वार रूम में आयोजित इस बैठक में कांग्रेस के इन रणनीतिकारों का हल्कापन देखा तो वह झल्लाते हुए बोले इतनी दूर क्या इसी लिए बुलाया गया। कोई ठोस रणनीति नहीं, इस सभा में सम्मलित एक प्रतिष्ठित व्यक्ति ने टिप्पणी की कि अगर ऐसे लोग प्रदेश का शासन संभाल कर क्या दिशा देंगे यह उनके समझ से बाहर है। उनके अनुसार अधिकांश सम्मलित प्रत्याशियों के हाव भाव व चेहरे मुरझाये हुए थे, उत्साह उनमें कहीं दूर दूर तक नहीं दिखाई दे रहा था। न हीं वार रूम में प्रदेश प्रभारी व अध्यक्ष तथा न किसी के सम्बोधन ही प्रेरणादायक या उत्साहजनक रहा। कुल मिला कर प्रदेश में सरकार बनाने वाला उत्साह कहीं दूर तक इन प्रतिनिधियों में दिखाई ही नहीं दिया। कुल मिला कर कांग्रेस के प्रभारी द्वारा सुदूर उत्तराखण्ड से प्रत्याशियों को दिल्ली बुला कर कोई ऐसी मंत्रणा तक या दिशा निर्देश तक नहीं दिया गया जिसकी आश में वे वार रूम में पंहुचे। इस बैठक के प्रति आयोजक कितने गंभीर थे, इस बैठक में 5 में से तीन सांसद सतपाल महाराज, प्रदीप टम्टा व के सी बाबा ही नहीं दिखे। सतपाल महाराज जो स्वयं देश की रक्षा समिति के अध्यक्ष होने के साथ साथ इस मुद्दे पर सबसे अधिक प्रखर भी हैं। वहीं सांसद प्रदीप टम्टा व केसी बाबा की इन चुनाव में जिस प्रकार से शर्मनाक उपेक्षा प्रदेश प्रभारी की जानकारी में निरंतर की जा रही है उससे दोनों सांसद ही नहीं उनके समर्थक भी अपने आप को अपमानित महसूस कर रहे है। देहरादून में राहुल गांधी की प्रथम चुनावी रेली में ही दोनों सांसदों को मंच पर जहां आसीन नहीं किया गया वहीं उनको चुनाव की अधिकांश महत्वपूर्ण समितियों में नजरांदाज किया गया। जहां तक कांग्रेसी नेता पोस्टल मतों पर भले ही हल्ला मचा रहे हों परन्तु अपने अपने क्षेत्र में व केन्द्रीय स्तर पर पोस्टल मतों को हासिल करने के लिए कोई रणनीति बनाने के बारे में सोचे भी नहीं । कहने को प्रदेश कांग्रेस कमेटी में दो जनरल स्तर के ले.जनरल नेगी व मेजर जनरल पंत को विशेष आमंत्रित सदस्य बनाया गया हो परन्तु उनका मार्गदर्शन तक इस दिशा में नहीं लिया गया। निस्तेज प्रभारी, अपनो के भीतरघात से मर्माहित प्रदेश अध्यक्ष के अलावा इस बैठक में आपस में एक ही गुस्सा अधिकांश वरिष्ठ कांग्रेसी नेता प्रकट कर रहे थे कि अगर प्रदेश के दिग्गज कांग्रेसी भीतरघात नहीं करते तो 70 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस उत्तराखण्ड में कम से कम 45 सीट जीतती। हालांकि इसके बाबजूद सभी इस बात के लिए आश्वस्त थे कि कांग्रेस प्रदेश मेें सरकार बना रही है।
इस बैठक में सम्मलित अधिकांश प्रत्याशियों को इस बात का भले ही संतोष होगा कि उन्होंने कांग्रेस का वार रूम देख तो लिया। नहीं तो कांग्रेस के अधिकांश नेता इस वार रूम में झांक भी नहीं सकते। यहां पर कांग्रेस के वरिष्ठ व विशेष रणनीतिकार ही कांग्रेस आला नेतृत्व के मार्गदर्शन को कैसे अमलीजामा पहनाना है इस रणनीति की व्यूह रचना होती होगी। हालांकि यहां पर प्रायः प्रणव मुखर्जी, मोती लाल बोरा, एंथोनी, अहमद पटेल, दिग्विजय सिंह, गुलाम नबी आजाद, जर्नाजन द्विवेदी जैसे नेता ही मंत्रणा करते होगे। अब कपिल सिब्बल भी शायद इस टीम में सम्मलित होगे। राहुल गांधी द्वारा कांग्रेस की कमान संभालने के बाद उनकी टीम का यहां पर दखल बड़ गया होगा।
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