ईरान को तबाह करने से अमेरिका को रोक पायेगा नपुंसक विश्व?
ईरान को तबाह करने से अमेरिका को रोक पायेगा नपुंसक विश्व?
-परमाणु चैधरियों की दादागिरी से सहमा विश्व!
ईरान द्वारा किया गया परमाणु शक्ति प्रदर्शन के बाद अमेरिका व उनके मित्र राष्ट्र किसी भी कीमत पर अब ईरान को भी इराक, लीबिया व अफगानिस्तान की तरहज तबाह करने का मन बना चूके है। अमेरिकी मित्र किसी भी कीमत पर ईरान को अपने विरोध में सर उठाये खड़ा देखना नहीं चाहते। इस्राइल की सुरक्षा का हवाला दे कर ईरान को भी इराक व लीबिया की तर्ज पर कब्जा करके यहां के संसाधनों को जहां लूटने के लिए अपने प्यादों को यहां पर सत्तासीन किया जायेगा। यह दुनिया इराक व लीबिया पर हुए हमले की तरह ही नपुंसकों की तरह मूक रह कर विश्व सम्मान को रौंदने के इस कृत्य को देख कर अमेरिका की दया की भीख मांगेगी।
इसी पखवाड़े ईरान ने अपने परमाणु रिएक्टर में पहली बार देश में ही संवर्दि्धत परमाणु ईंधन रॉड लगाने का खुद ही विश्व के समक्ष जैसे खुलाशा किया अमेरिका सहित विश्व के स्वयंभू परमाणु चैधरियों ने ईरान को धमकाते हुए उस पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान कर दिया। जहां ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को शांतिपूर्ण प्रयोग में लाने की बात कह रहा है वहीं परमाणु चैधरियों की जमात अपने अलावा पूरे विश्व में किसी को भी परमाणु शक्ति का किसी भी प्रकार का प्रयोग में लाने के अधिकार को ही सिरे से नकार रहे है। आज सवाल यह है कि क्या विश्व में कोई देश परमाणु शक्ति का मानवीय कल्याण के लिए उपयोग भी नहीं कर सकता। क्या इस कल्याणकारी ताकत का प्रयोग केवल पूरा विश्व इन स्वयंभू परमाणु चैधरियों की दया पर रहेगी। आखिर अमेरिका ब्रिटेªन, फ्रांस, रूस व चीन जैसे चैधरियों को किसने यह अधिकार दिया कि वे खुद तो पूरे विश्व को तबाह करने वाले हथियार रखे, पूरे विश्व की शांति नष्ट करें। सारे संसार में अपनी ताकत के बल पर गरीब व पिछडे देशों के संसाधनों की खुली लूट खसोट करे और अगर कोई अन्य देश अपने संसाधनों का व अपने सामथ्र्य से परमाणु शक्ति का कल्याणकारी उपयोग करता है तो उसको विश्व शांति का दुश्मन बता कर उसको रौंदने का काम करे। क्या संयुक्त राष्ट्र संघ इन परमाणु शक्ति सम्पन्न चैधरियों के हाथों का मोहरा है? जब भारत ने भी परमाणु ताकत हाशिल की थी तब भी इन स्वयंभू चैधरियों ने विश्व भर से भारत पर प्रतिबंध लगाया था। विश्व में अमन, ज्ञान व परम शांति का अनादि काल से संदेश देने वाले भारत पर प्रतिबंध लगाने वाले ये देश व इनका इतिहास ही पूरे विश्व की शांति को तबाह करने का है। खुद अमेरिका ने आतंकबाद के खात्मे के नाम पर आज अफगानिस्तान, ईराक, लीबिया ही नहीं विश्व के 75 देशों में अपनी ताकत के दम पर शांति को रौंद रखा हे। चीन के दमन से तिब्बती आज भी कराह रहे है। वहीं फ्रांस, रूस व ब्रिटेन के दमन के निशान आज भी विश्व में विद्यमान है। माना परमाणु बम विनाशकारी है। इसका दुरप्रयोग विनाशकारी है। परन्तु संसार में केवल इन परमाणु चैधरी ही इस हथियार को रखेंगे और नहीं, यह विधान बनाने वाले ये कौन होते है। ईरान पर परमाणु बम से इस्राइल को तबाह करने की बात कही जा रही है। ईरान के हुक्मरान दिमाग से पैदल भी नहीं है उन्हें मालुम है कि इस्राइल व उसके आका अमेरिका उसको पूरी तरह से तबाह कर देगे। पूरा अरब इस्राइल की शक्ति से त्राही त्राही कर रहा है। चंद अमेरिका द्वारा पोषित आतंकियो को छोड़ कर किसी की हिम्मत नहीं कि इस्राइल की तरफ आंख भी उठा सके। फिर पूरे विश्व में संभावित विरोधियों को सफाया करने की अमेरिका व उसके मित्र राष्ट्रो की प्रवृति किसी भी रूप में संसार में मान्य नहीं हैं । ईरान ने भी पश्चिमी देशों पर विज्ञान, विशेष तौर पर परमाणु तकनीक पर एकाधिकार जमाने का आरोप लगाया है। ईरान द्वारा परमाणु शक्ति सम्पन्न बनने वाले इस पूरे कार्यक्रम का जहां सीधा प्रसारण किया गया वहीं पूरे देश में ईरानियों ने इसे ईरानी गौरव के तौर पर आत्मसात किया। ईरान के सरकारी टीवी चैनल से इस समारोह का सीधा प्रसारण दिखाया गया जिसमें ईरान के राष्ट्रपति ने कहा, ईरान ने 3000 नए सेंट्रीफ्यूज बनाए हैं और अधिकतर देश में बने हैं. बिना मदद के ईरान में ही हजारों वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। ये पूरी मानवता की उपलब्धी है। हम इन्हें अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के निरीक्षण में रखेंगे और सभी सदस्यों से जानकारी को सांझा करेंगे.।
अमेरिकी व उनके समर्थकों पर कड़ा प्रहार करते हुए राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने कहा कि उन्होंने 80 अरब डॉलर एक परमाणु बम पर खर्च करते हैं और एक बम से पाँच लाख लोग मर सकते हैं। पश्चिमी देश कई बार पृथ्वी को ध्वस्त कर सकते हैं. क्या इसी को प्रगति कहते हैं? वे कहते हैं बात करना चाहते हैं. वे हमें मेज पर बुलाकर चाहते हैं कि हम हस्ताक्षर कर दें...क्या इसे बातचीत कहते हैं? उन्होंने जोर दे कर कहा कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम केवल शांतिपूर्ण मकसदों के लिए है।वहीं अमेरिकी समर्थक लाबी को भय है कि ईरान इससे परमाणु हथियार बना कर इन्हें इस्राइल व उसके खिलाफ दुरप्रयोग करेगा। इसी कारण वह किसी भी प्रकार से ईरान को परमाणु शक्ति सम्पन्न होता देख नहीं सकता है। अमरीका और इसराइल ईरान पर परमाणु हथियार कार्यक्रम चलाने का आरोप लगाते हैं जबकि ईरान इसका खंडन करता है. हथियार बनाने लायक यूरेनियम कम से कम 85 प्रतिशत संवर्दि्धत होना चाहिए। ईरान ने घोषणा की है उसने परमाणु संवर्द्धन के प्रयासों में 3000 अतिरिक्त सेंट्रीफ्यूज लगाए हैं और अब उसके पास ऐसे 9000 परमाणु उपकरण हैं।
ईरान में 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद विश्व को झकझोरने वाले इस समारोह में राष्ट्र के नाम संबोधन में ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने अमेरिका और पश्चिमी देशों को घमंडी ताकतें हैं और उन्हें सबक सिखाना होगा । अपने संबोधन में राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने कहा कि परमाणु का मतलब सिर्फ बम ही नहीं होता। ईरान अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु कार्यक्रम पर आगे बढ़ रहा है और उसे अब रोका नहीं जा सकता। अहमदीनेजाद ने कहा कि हमने आईएईए (अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा संगठन) से मदद मांगी थी लेकिन उसने मदद नहीं की तो हमने खुद ही परमाणु ईधन विकसित कर लिया। ज्ञान और विज्ञान पर किसी एक देश का एकाधिकार नहीं हो सकता। ईरान आगे बढ़ रहा है और घमंडी ताकतें उसे अब नहीं रोक सकती। ईरान के खिलाफ दुष्प्रचार हो रहा है लेकिन उससे अब कुछ नहीं होगा। अमेरिका अब ताकतवर नहीं है, दुनिया अब बदल रही है, घमंडी ताकतों का एकाधिकार अब नहीं चलेगा। इस धमकी के बाद अमेरिकी नौसेना अपने युद्धक बेड़ों के साथ हरमुज स्ट्रेट को पार कर आगे बढ़ गए। अमेरिका, इजराइल का मानना है कि ईरान एटमी हथियार बना रहा है। ये सारी तैयारी इजराइल पर हमले के लिए है। वहीं ईरानियों के अलावा कई तटस्थ लोगों का भी आरोप है कि यह सब अमेरिका सहित पश्चिमी देशों द्वारा ईरान के तेल भण्डारों पर भी ऐन केन प्रकार से कब्जा करने की कार्यवाही ही है। क्योंकि ईरान दुनिया का चैथा सबसे बड़घ तेल उत्पादक देश है। इराक, कुवैत के तेल कुओं पर कब्जे वाला फॉर्मूला अमेरिका यहां भी आजमाना चाहता है। लेकिन रूस, चीन और भारत का साथ नहीं मिलने की वजह से वह सीधी कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। क्यों नाराज है ईरान ईरान पर एटमी तैयारियों का आरोप लगाते हुए अमेरिका के प्रभाव वाले यूरोपीयन संघ ने ईरान से तेल आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था। दूसरी तरफ ईरान खुद ही यूरोपीय देशों ब्रिट्रेन, नीदरलैंड, इटली, स्पेन, यूनान, पुर्तगाल और फ्रांस की तेल आपूर्ति बंद करने का मन बना चूका है।
तेहरान में इस विश्व को उद्देलित करने वाले समारोह के दौरान पहली परमाणु संवर्दि्धत रॉड रिएक्टर में डालने के बाद राष्ट्रपति महमूद अहमदिनेजाद ने कहा, ईरान के खिलाफ कुप्रचार, प्रतिबंधों के प्रस्ताव और दबाव लाया गया लेकिन इससे ईरान को कोई फर्क नहीं पड़ा है. वे (पश्चिमी देश) नहीं चाहते की ज्ञान और प्रगति पूरी दुनिया तक फैले. जो देश तरक्की करना चाहता है उसे इन दबावों और रूकाबटों के खिलाफ लड़ना पड़ेगा.।पश्चिमी देशों पर ईरानी विज्ञानिकों की हत्या का आरोप लगाते हुए ईरानी राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने कहा, ‘समय बदल गया है...ये साम्राज्यों का समय नहीं है. लोग बदल गए हैं, संस्कृति बदल गई है. जब ईरान की बात होती है तो वे (पश्चिमी देश) कहते हैं सभी विकल्प खुले हैं. तो खुले हो...मेरी सलाह है कि वे अपना रुख बदलें...हमारे परमाणु कार्यक्रम का विरोध करना बंद करें.। वहीं ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने घोषणा की है ईरान अपने कार्यक्रम के तहत इस्तेमाल किए जा रहे परमाणु उपकरणों को अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के निरीक्षण के लिए रखेगा और आईएईए के सभी सदस्य देशों के साथ परमाणु जानकारी सांझा करेगा। गौरतलब है कि ईरान के अनुसार इन रॉड्स में 20 प्रतिशत संवर्दि्धत यूरेनियम ईंधन है. ईरान ने नई पीढ़ी के आधुनिक सेंट्रीफ्यूज इस्तेमाल करने की भी घोषणा की है जो पहले इस्तेमाल में लाए जाने वाले सेंट्रीफ्यूज से तीन गुना बेहतर हैं।
अब ईरान के लिए निर्णायक घडियों का सामना करने का समय है। देर न सबेर उसे इस्राइल ही नहीं अमेरिकी हमले का मुकाबला करना पडेगा। या तो अमेरिका सीधा हमला करेगा या ईरान में ही लीबिया व इराक की तरह विरोध को प्रायोजित करके ईरान को तबाह किया जायेगा। परन्तु अमेरिका अब किसी भी कीमत पर ईरान को इस रूप में देखने के लिए तैयार नहीं। आज रूस व चीन भले ही अमेरिका का विरोध कर रहे हैं परन्तु जब अमेरिका सीधा प्रहार करेगा तो ये दोनों देश किसी भी तरह उसका सीधा मुकाबला नहीं करेगे, इन दोनों की नपुंसकता इराक व लीबिया प्रकरण से पूरी तरह उजागर हो चूकी है। भारत जेसे देश में काबिज अमेरिकी परस्त नेतृत्व से इसकी आश भी करना मूर्खतापूर्ण होगा। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।
-परमाणु चैधरियों की दादागिरी से सहमा विश्व!
ईरान द्वारा किया गया परमाणु शक्ति प्रदर्शन के बाद अमेरिका व उनके मित्र राष्ट्र किसी भी कीमत पर अब ईरान को भी इराक, लीबिया व अफगानिस्तान की तरहज तबाह करने का मन बना चूके है। अमेरिकी मित्र किसी भी कीमत पर ईरान को अपने विरोध में सर उठाये खड़ा देखना नहीं चाहते। इस्राइल की सुरक्षा का हवाला दे कर ईरान को भी इराक व लीबिया की तर्ज पर कब्जा करके यहां के संसाधनों को जहां लूटने के लिए अपने प्यादों को यहां पर सत्तासीन किया जायेगा। यह दुनिया इराक व लीबिया पर हुए हमले की तरह ही नपुंसकों की तरह मूक रह कर विश्व सम्मान को रौंदने के इस कृत्य को देख कर अमेरिका की दया की भीख मांगेगी।
इसी पखवाड़े ईरान ने अपने परमाणु रिएक्टर में पहली बार देश में ही संवर्दि्धत परमाणु ईंधन रॉड लगाने का खुद ही विश्व के समक्ष जैसे खुलाशा किया अमेरिका सहित विश्व के स्वयंभू परमाणु चैधरियों ने ईरान को धमकाते हुए उस पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान कर दिया। जहां ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को शांतिपूर्ण प्रयोग में लाने की बात कह रहा है वहीं परमाणु चैधरियों की जमात अपने अलावा पूरे विश्व में किसी को भी परमाणु शक्ति का किसी भी प्रकार का प्रयोग में लाने के अधिकार को ही सिरे से नकार रहे है। आज सवाल यह है कि क्या विश्व में कोई देश परमाणु शक्ति का मानवीय कल्याण के लिए उपयोग भी नहीं कर सकता। क्या इस कल्याणकारी ताकत का प्रयोग केवल पूरा विश्व इन स्वयंभू परमाणु चैधरियों की दया पर रहेगी। आखिर अमेरिका ब्रिटेªन, फ्रांस, रूस व चीन जैसे चैधरियों को किसने यह अधिकार दिया कि वे खुद तो पूरे विश्व को तबाह करने वाले हथियार रखे, पूरे विश्व की शांति नष्ट करें। सारे संसार में अपनी ताकत के बल पर गरीब व पिछडे देशों के संसाधनों की खुली लूट खसोट करे और अगर कोई अन्य देश अपने संसाधनों का व अपने सामथ्र्य से परमाणु शक्ति का कल्याणकारी उपयोग करता है तो उसको विश्व शांति का दुश्मन बता कर उसको रौंदने का काम करे। क्या संयुक्त राष्ट्र संघ इन परमाणु शक्ति सम्पन्न चैधरियों के हाथों का मोहरा है? जब भारत ने भी परमाणु ताकत हाशिल की थी तब भी इन स्वयंभू चैधरियों ने विश्व भर से भारत पर प्रतिबंध लगाया था। विश्व में अमन, ज्ञान व परम शांति का अनादि काल से संदेश देने वाले भारत पर प्रतिबंध लगाने वाले ये देश व इनका इतिहास ही पूरे विश्व की शांति को तबाह करने का है। खुद अमेरिका ने आतंकबाद के खात्मे के नाम पर आज अफगानिस्तान, ईराक, लीबिया ही नहीं विश्व के 75 देशों में अपनी ताकत के दम पर शांति को रौंद रखा हे। चीन के दमन से तिब्बती आज भी कराह रहे है। वहीं फ्रांस, रूस व ब्रिटेन के दमन के निशान आज भी विश्व में विद्यमान है। माना परमाणु बम विनाशकारी है। इसका दुरप्रयोग विनाशकारी है। परन्तु संसार में केवल इन परमाणु चैधरी ही इस हथियार को रखेंगे और नहीं, यह विधान बनाने वाले ये कौन होते है। ईरान पर परमाणु बम से इस्राइल को तबाह करने की बात कही जा रही है। ईरान के हुक्मरान दिमाग से पैदल भी नहीं है उन्हें मालुम है कि इस्राइल व उसके आका अमेरिका उसको पूरी तरह से तबाह कर देगे। पूरा अरब इस्राइल की शक्ति से त्राही त्राही कर रहा है। चंद अमेरिका द्वारा पोषित आतंकियो को छोड़ कर किसी की हिम्मत नहीं कि इस्राइल की तरफ आंख भी उठा सके। फिर पूरे विश्व में संभावित विरोधियों को सफाया करने की अमेरिका व उसके मित्र राष्ट्रो की प्रवृति किसी भी रूप में संसार में मान्य नहीं हैं । ईरान ने भी पश्चिमी देशों पर विज्ञान, विशेष तौर पर परमाणु तकनीक पर एकाधिकार जमाने का आरोप लगाया है। ईरान द्वारा परमाणु शक्ति सम्पन्न बनने वाले इस पूरे कार्यक्रम का जहां सीधा प्रसारण किया गया वहीं पूरे देश में ईरानियों ने इसे ईरानी गौरव के तौर पर आत्मसात किया। ईरान के सरकारी टीवी चैनल से इस समारोह का सीधा प्रसारण दिखाया गया जिसमें ईरान के राष्ट्रपति ने कहा, ईरान ने 3000 नए सेंट्रीफ्यूज बनाए हैं और अधिकतर देश में बने हैं. बिना मदद के ईरान में ही हजारों वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। ये पूरी मानवता की उपलब्धी है। हम इन्हें अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के निरीक्षण में रखेंगे और सभी सदस्यों से जानकारी को सांझा करेंगे.।
अमेरिकी व उनके समर्थकों पर कड़ा प्रहार करते हुए राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने कहा कि उन्होंने 80 अरब डॉलर एक परमाणु बम पर खर्च करते हैं और एक बम से पाँच लाख लोग मर सकते हैं। पश्चिमी देश कई बार पृथ्वी को ध्वस्त कर सकते हैं. क्या इसी को प्रगति कहते हैं? वे कहते हैं बात करना चाहते हैं. वे हमें मेज पर बुलाकर चाहते हैं कि हम हस्ताक्षर कर दें...क्या इसे बातचीत कहते हैं? उन्होंने जोर दे कर कहा कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम केवल शांतिपूर्ण मकसदों के लिए है।वहीं अमेरिकी समर्थक लाबी को भय है कि ईरान इससे परमाणु हथियार बना कर इन्हें इस्राइल व उसके खिलाफ दुरप्रयोग करेगा। इसी कारण वह किसी भी प्रकार से ईरान को परमाणु शक्ति सम्पन्न होता देख नहीं सकता है। अमरीका और इसराइल ईरान पर परमाणु हथियार कार्यक्रम चलाने का आरोप लगाते हैं जबकि ईरान इसका खंडन करता है. हथियार बनाने लायक यूरेनियम कम से कम 85 प्रतिशत संवर्दि्धत होना चाहिए। ईरान ने घोषणा की है उसने परमाणु संवर्द्धन के प्रयासों में 3000 अतिरिक्त सेंट्रीफ्यूज लगाए हैं और अब उसके पास ऐसे 9000 परमाणु उपकरण हैं।
ईरान में 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद विश्व को झकझोरने वाले इस समारोह में राष्ट्र के नाम संबोधन में ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने अमेरिका और पश्चिमी देशों को घमंडी ताकतें हैं और उन्हें सबक सिखाना होगा । अपने संबोधन में राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने कहा कि परमाणु का मतलब सिर्फ बम ही नहीं होता। ईरान अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु कार्यक्रम पर आगे बढ़ रहा है और उसे अब रोका नहीं जा सकता। अहमदीनेजाद ने कहा कि हमने आईएईए (अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा संगठन) से मदद मांगी थी लेकिन उसने मदद नहीं की तो हमने खुद ही परमाणु ईधन विकसित कर लिया। ज्ञान और विज्ञान पर किसी एक देश का एकाधिकार नहीं हो सकता। ईरान आगे बढ़ रहा है और घमंडी ताकतें उसे अब नहीं रोक सकती। ईरान के खिलाफ दुष्प्रचार हो रहा है लेकिन उससे अब कुछ नहीं होगा। अमेरिका अब ताकतवर नहीं है, दुनिया अब बदल रही है, घमंडी ताकतों का एकाधिकार अब नहीं चलेगा। इस धमकी के बाद अमेरिकी नौसेना अपने युद्धक बेड़ों के साथ हरमुज स्ट्रेट को पार कर आगे बढ़ गए। अमेरिका, इजराइल का मानना है कि ईरान एटमी हथियार बना रहा है। ये सारी तैयारी इजराइल पर हमले के लिए है। वहीं ईरानियों के अलावा कई तटस्थ लोगों का भी आरोप है कि यह सब अमेरिका सहित पश्चिमी देशों द्वारा ईरान के तेल भण्डारों पर भी ऐन केन प्रकार से कब्जा करने की कार्यवाही ही है। क्योंकि ईरान दुनिया का चैथा सबसे बड़घ तेल उत्पादक देश है। इराक, कुवैत के तेल कुओं पर कब्जे वाला फॉर्मूला अमेरिका यहां भी आजमाना चाहता है। लेकिन रूस, चीन और भारत का साथ नहीं मिलने की वजह से वह सीधी कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। क्यों नाराज है ईरान ईरान पर एटमी तैयारियों का आरोप लगाते हुए अमेरिका के प्रभाव वाले यूरोपीयन संघ ने ईरान से तेल आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था। दूसरी तरफ ईरान खुद ही यूरोपीय देशों ब्रिट्रेन, नीदरलैंड, इटली, स्पेन, यूनान, पुर्तगाल और फ्रांस की तेल आपूर्ति बंद करने का मन बना चूका है।
तेहरान में इस विश्व को उद्देलित करने वाले समारोह के दौरान पहली परमाणु संवर्दि्धत रॉड रिएक्टर में डालने के बाद राष्ट्रपति महमूद अहमदिनेजाद ने कहा, ईरान के खिलाफ कुप्रचार, प्रतिबंधों के प्रस्ताव और दबाव लाया गया लेकिन इससे ईरान को कोई फर्क नहीं पड़ा है. वे (पश्चिमी देश) नहीं चाहते की ज्ञान और प्रगति पूरी दुनिया तक फैले. जो देश तरक्की करना चाहता है उसे इन दबावों और रूकाबटों के खिलाफ लड़ना पड़ेगा.।पश्चिमी देशों पर ईरानी विज्ञानिकों की हत्या का आरोप लगाते हुए ईरानी राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने कहा, ‘समय बदल गया है...ये साम्राज्यों का समय नहीं है. लोग बदल गए हैं, संस्कृति बदल गई है. जब ईरान की बात होती है तो वे (पश्चिमी देश) कहते हैं सभी विकल्प खुले हैं. तो खुले हो...मेरी सलाह है कि वे अपना रुख बदलें...हमारे परमाणु कार्यक्रम का विरोध करना बंद करें.। वहीं ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने घोषणा की है ईरान अपने कार्यक्रम के तहत इस्तेमाल किए जा रहे परमाणु उपकरणों को अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के निरीक्षण के लिए रखेगा और आईएईए के सभी सदस्य देशों के साथ परमाणु जानकारी सांझा करेगा। गौरतलब है कि ईरान के अनुसार इन रॉड्स में 20 प्रतिशत संवर्दि्धत यूरेनियम ईंधन है. ईरान ने नई पीढ़ी के आधुनिक सेंट्रीफ्यूज इस्तेमाल करने की भी घोषणा की है जो पहले इस्तेमाल में लाए जाने वाले सेंट्रीफ्यूज से तीन गुना बेहतर हैं।
अब ईरान के लिए निर्णायक घडियों का सामना करने का समय है। देर न सबेर उसे इस्राइल ही नहीं अमेरिकी हमले का मुकाबला करना पडेगा। या तो अमेरिका सीधा हमला करेगा या ईरान में ही लीबिया व इराक की तरह विरोध को प्रायोजित करके ईरान को तबाह किया जायेगा। परन्तु अमेरिका अब किसी भी कीमत पर ईरान को इस रूप में देखने के लिए तैयार नहीं। आज रूस व चीन भले ही अमेरिका का विरोध कर रहे हैं परन्तु जब अमेरिका सीधा प्रहार करेगा तो ये दोनों देश किसी भी तरह उसका सीधा मुकाबला नहीं करेगे, इन दोनों की नपुंसकता इराक व लीबिया प्रकरण से पूरी तरह उजागर हो चूकी है। भारत जेसे देश में काबिज अमेरिकी परस्त नेतृत्व से इसकी आश भी करना मूर्खतापूर्ण होगा। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।
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