प्रखर राज्यगठन आंदोलनकारी मनमोहन तिवारी की पावन स्मृति को शतः शतः नमन्

प्रखर राज्यगठन आंदोलनकारी मनमोहन तिवारी की पावन स्मृति को शतः शतः नमन्
उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के प्रखर आंदोलनकारी मनमोहन पाठक नहीं रहे। 15 फरवरी की प्रातः जेसे ही मैने फेसबुक को खोल कर अपने मित्रों के संदेश पढ़ना शुरू किया तो, मुझे हल्द्वानी से अधिवक्ता चन्द्र शेखर करगती का मनमोहन तिवारी के आकस्मिक देहान्त की खबर पढ़ कर सन्न रह गया। 40 साल की उम्र में ही नैनीताल हाईकोर्ट में वकालत करने वाले मनमोहन तिवारी राज्य गठन जनांदोलन के प्रारम्भिक दिनों जब हमारा अनिश्चित कालीन धरना संसद की चैखट जंतर मंतर पर चल रहा था, उस समय वे कुमाऊं विश्वविद्यालय के छात्र नेता तरूण पंत के साथ मोहन पाठक व मोहन तिवारी भी पंहुचे थे। इसी दौरान उन्होंने संसद की दर्शक दीर्घा से उत्तराखण्ड राज्य गठन के समर्थन में नारे लगा कर इस आंदोलन को मजबूती दी। इस प्रकरण में वे जेल भी गये। 1994 में ये घटना हुई। मुझे मालुम है कि संसद में नारेबाजी करना कितना, साहसिक कार्य होता है, मैने भी खुद देश को अंग्रेजियत की गुलामी से मुक्ति के लिए 21 अप्रेल 1989 को जिस दिन कर्नाटक की हैगड़े सरकार को बर्खाश्त करके वहां पर राष्ट्रपति शासन लगाया गया था।
मनमोहन तिवारी से इन राज्य गठन के बाद एकाद बार भी टेलीफोन से बात हुई। वह भी मेरे उद्यमी मित्र के सी पाण्डे जी के द्वारा। पिछले सप्ताह भी पाण्डे जी बता रहे थे कि स्व. मनमोहन तिवारी दिल्ली में आ कर मुख्यमंत्री खंडूडी से उनके दिल्ली प्रवास के दौरान मिले थे । आज जब मुझे मनमोहन तिवारी जी के निधन की खबर मिली तो मैने सांय के सी पाण्डे जी से दूरभाष पर बात की। वे लखनऊ में चुनावी अभियान में गये थे, उनको जब मैने इस बारे में पता किया तो उन्होने कहा उन्हें मालुम नहीं। इसके बाद उन्होंने तुरंत मनमोहन तिवारी के भाई की धर्मपत्नी से इस खबर की पुष्टि की। श्री पाण्डे भी सन्न थे। पिछले ही सप्ताह मनमोहन तिवारी उनसे दिल्ली में मिले थे।
मैं उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के अग्रणी संगठन उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा, (जो संसद के समक्ष निरंतर 6 साल तक धरना प्रदर्शन के साथ उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन के प्रतीक के रूप में उत्तराखण्ड सहित देश विदेश के लोगों में जाना जाता रहा) का अध्यक्ष रूपि सिपाई होने के कारण एक एक कर अपने आंदोलन के साथियों के आकस्मिक निधन से व्यथित हॅू। उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन में पौड़ी, खटीमा-मसूरी, मुजफरनगरकाण्ड, नैनीताल, श्रीयंत्र, देहरादून में आंदोलन के दौरान शहीदों की शहादत का दर्द के साथ साथ राज्य गठन के बाद प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री तिवारी के कार्यकाल में प्रदेश की स्थाई राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए आमरण अनशन के दौरान शहीद हुए बाबा मोहन उत्तराखण्डी हो या आंदोलनकारियों पर दर्ज मुकदमों को वापस लेने की मांग को लेकर शहीद हुए आंदोलनकारी स्व. कठैत की शहादत हो या प्रदेश में शराब निलामी को रौकने के लिए अपनी शहादत देने वाले आंदोलनकारी साथी निर्मल पण्डित का विछोह आज भी रह रह कर मुझे व्यथित कर रहा है। राज्य गठन आंदोलन के साथी नरेन्द्र भाकुनी का अंतिम संस्कार तो हमने अपने हाथों से दिल्ली में भरे दिल से किया। राज्य गठन आंदोलन में आजादी के महान क्रांतिकारी नायक भवानीसिंह रावत के सुपुत्र एस एस रावत उर्फ पीटीआई वाले रावत व इडिया टुडे के पत्रकार प्रहलाद गुसांई का देहांत भी व्यथित करने वाला रहा। राज्य गठन आंदोलन के अग्रणी साथी रहे इन्द्रमणि बडोनी, विपिन त्रिपाठी से पहले राज्य गठन आंदोलन के अग्रणी महिला नेत्री कोशल्या डबराल का निधन की वेदना सही। कई अन्य साथी इस राह में बिछुड गये।
आज भी जब मै राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर जाता हॅू तो वह मेरी तपस्थली मुझे बार बार राज्य गठन के उन 6 सालों (1994 से 2000) की याद रह रह कर दिलाती है। मानो शहीदों की आत्मा मुझे धिक्कार रही हो कि प्रदेश में तिवारी, खंडूडी व निशंक जेसे सत्तांध राज कर रहे हैं जो मुलायम-राव से अधिक उत्तराखण्डी हितों को रौंद रहे है। क्यों आज भी उत्तराखण्डी जनता इन सत्तालोलुपुओं द्वारा मुजफरनगरकाण्ड के अभियुक्तों को दण्डित न करने पर, गैरसैंण राजधानी बन बनाने पर, प्रदेश में जनसंख्या पर आधारित परिसीमन थोपने पर, प्रदेश की संसाधनों की बंदरबांट व प्रदेश को भ्रष्टाचार की गर्त में धकेलने पर मूक हैं। क्यों आज उत्तराखण्ड में जनप्रतिनिधी प्रदेश के हितों को रौंद रहे है। आंदोलन के साथी मनमोहन तिवारी के इसी सप्ताह निधन से इस जख्म को और कुरेद दिया है। भगवान उनकी आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दे। एक बार फिर उत्तराखण्ड के मान सम्मान व विकास के लिए चले राज्य गठन जनांदोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले अपने साथी मनमोहन तिवारी की स्मृति को अपने सभी आंदोलनकारी साथियों की तरफ से शतः शतः नमन् करता हॅू।

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