महाराष्ट्र नगरपालिका चुनाव परिणाम से उजागर हुआ लोकशाही से चुनाव आयोग का मजाक

महाराष्ट्र नगरपालिका चुनाव परिणाम से उजागर हुआ लोकशाही से चुनाव आयोग का  मजाक
नई दिल्ली (प्याउ)। देश में इन दिनों 5 राज्यों के चुनाव के साथ साथ महाराष्ट्र की 9 नगरमहापालिका के चुनाव हो रहे हे। महाराष्ट्र के 9 नगर महा पालिका के चुनाव परिणाम चुनाव होने के चंद दिनों में यानी 17 फरवरी को इस समय घोषित किये जा रहे है। वहीं तीन राज्यों मणिपुर, पंजाब व उत्तराखण्ड के चुनाव एक महिने व 5 दिन तक लटकाये इस लिए जा रहे हैं कि ताकि उप्र व अन्य राज्य में होने वाले चुनाव प्रक्रिया को ये परिणाम प्रभावित न कर पाये। इससे बड़ा मजाब दूसरा क्या हो सकता हे। महाराष्ट्र महानगर पालिका के चुनाव इन छोटे राज्यों से कम महत्वपूर्ण नहीं है, आज चुनाव चाहे नगर पालिका के हों, या नगरनिगम या त्रिस्तरीय पंचायत या लोकसभा या विधानसभा के सभी जगह के परिणाम लोगों के मन को प्रभावित करते है। एक हवा बनाने का काम करते हें कि वहां लोग अमूक पार्टी के पक्ष में चल रहे हैं या लहर इस पार्टी की है। ये चुनाव परिणाम उस हवा को प्रभावित करने का काम करता है जो चुनाव आयोग के अनुसार मतदाता को प्रभावित करते हे। यदि चुनाव आयोग को इन पांच राज्यों का चुनाव परिणाम एक साथ निकालना था तो उसने महाराष्ट्र में हो रहे चुनाव परिणामों को भी साथ ही घोषित करने थे। या जिन राज्यों में चुनाव हो चूके हैं वहां भी इतना लम्बा चुनाव परिणाम लटकाने का अब औचित्य नहीं रहा। अगर वे चुनाव परिणाम प्रभावित कर सकते हैं तो महाराष्ट्र महानगरपालिका के चुनाव परिणाम कैसे प्रभावित नहीं कर सकते। आज सवाल स्थानीय निकाय या विधानसभा का नहीं है सवाल है आज सूचनाक्रांति के बाद कहीं व किसी भी स्तर के चुनाव परिणाम दूसरे जगह हो रही चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करती है। वैसे भी महाराष्ट्र महानगरपालिका के चुनाव में प्रदेश के करोड़ों लोग उसी तरह से भाग लेते हैं जिस तरह से लोकसभा व विधानसभा चुनाव में। यह महाराष्ट्र की जनता का जनमत की पूर्ण अभिव्यक्ति है। जो कई छोटे राज्यों से बड़ कर है। ऐसे में चुनाव आयोग द्वारा इस को नजरांदाज करना एक प्रकार से लोकशाही का उपहास उडाने से कम नहीं है। अपनी इस कृत्य के कारण जहां चुनाव आयोग पर धार्मिक  तुष्टिकरण करने का आरोप भी लगा वहीं अब शायद इसी भूल को सुधारने के लिए कहीं चुनाव आयोग 6 मार्च को होने वाली मतगणना को 8 मार्च को होली के त्यौहार के नाम पर 10 मार्च को न कर दे।
 जहां 5 राज्यों का चुनाव 28 जनवरी से लेकर 3 मार्च तक होने हैं, मतगणना पहले 4 मार्च को होनी थी परन्तु चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश में 4 फरवरी को होने वाले प्रदेश के प्रथम चरण के त्योहार के कारण न केवल प्रथम चरण का मतदान की तिथि को बदल कर 3 मार्च करने के साथ पूर्व में घोषित 5 राज्यों के विधानसभा के चुनाव परिणाम 4 मार्च के बजाय उसे बदल कर 6 मार्च को कर दिया।  परन्तु उत्तराखण्ड जैसे हिमालयी व दुर्गम प्रदेश में भरे हिमपात में चुनाव 30 जनवरी में भारी ठण्ड में कराने के बजाय फरवरी के अंतिम सप्ताह में कराने की पुरजोर मांग को सुनने की भी चुनाव आयोग ने अलोकतांत्रिक रूख अपनाते हुए भारी शीतलहर में ही चुनाव प्रक्रिया पूरी कर दी।
वहीं पोस्टल मतों पर अभी तक चुनाव आयोग पुरानी ही लकीर पिट रहा है जब मतदान के एक सप्ताह के अंदर मतगणना हो जाती थी। चुनाव आयोग को चाहिए कि वह 35 दिन लम्बे मतगणना के परिणाम को देखते हुए पूरी चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले लाखों पोस्टल मतों का सहारा लेकर जनादेश का हरण करने वालों के खेल की इजाजत न दे। इसके लिए नये कानून का निर्माण या दिशा तय करे।
चुनाव आयोग को सजग रहना चाहिए। हालांकि चुनाव आयोग की शक्ति से कालेधन पर काफी अंकुश लगा, परन्तु अधिकांश पार्टियों व उम्मीदवारों ने बहुत ही धूर्तता से जी भर कर धन, शराब व अन्य औछे हथकण्डों का प्रयोग किया। चुनाव आयोग को बहुत गंभीरता से चुनाव प्रक्रिया को संचालित करना चाहिए।


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