-गैरसेंण राजधानी बनने से कोई ताकत नहीं रोक सकेगी

-गैरसेंण में प्रदेश मंत्रीमण्डल की बैठक गैरसेंण राजधानी बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी


-देवभूमि की जनंाकांक्षाओं को रौंदने वाले हुक्मरानों का हस्र तिवारी, खण्डूडी व निशंक की तरह होगा

- उत्तराखण्ड के भूत, वर्तमान व भविष्य का प्रतीक बन गया है गैरसैंण, 

गैरसेंण में इस समय मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा, विधानसभा अध्यक्ष गोविन्दसिंह कुंजवाल, सांसद सतपाल महाराज व प्रदेश के सभी मंत्री, प्रमुख सचिव सहित तमाम शासन प्रशासन के उच्च अधिकारी पंहुचे है। भारतीय आजादी के महा नायक वीरचंन्द्रसिंह गढ़वाली की मूर्ति को माल्यार्पण करके इस पावन धरती को नमन् किया गया।  गैरसैंण विकासखण्ड के मुख्यालय के सभागार में प्रदेश मंत्रीमण्डल की बैठक शुरू हो गयी है। यह प्रदेश की राज्य गठन आंदोलनकारियों, शहीदों व बाबा मोहन उत्तराखण्डी की शहादत की जीत है कि जो गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी बनाने की पुरजोर मांग को विगत 12 साल से  शर्मनाक ढ़ंग से रौंदने वाले हुक्मरान व शासन प्रशासन आज कैबिनेट की बैठक के बहाने ही सही आधे अधूरे मन से गैरसेंण में करने के लिए मजबूर हुए।
आज मैं इस बैठक का स्वागत करते हुए प्रदेश के हुक्मरानों को आगाह भी करना चाहता हॅू कि जो भी मुख्यमंत्री प्रदेश की इस जनांकांक्षा को सत्तामद में रौंदते हुए उपेक्षित करेगा उसको भगवान बदरीनाथ का अभिशाप लगेगा और तिवारी, खण्डूरी व निशंक की तरह न केवल सत्ताच्युत होंगे अपितु बेनकाब भी होंगे। देवभूमि उत्तराखण्ड में गैरसेंण को राजधानी बनने से कोई ताकत नहीं रोक सकती है जो भी इसमें बाधा बनेगें उसको भगवान बदरीनाथ का अभिशाप लगेगा। ंइसलिए विजय बहुगुणा सरकार को भी केवल जनता की आंखों में मंत्रीमण्डल की बैठक करके अपना कर्तव्य इति न समझे अपितु प्रदेश के भूत, वर्तमान व भविष्य का प्रतीक बन गया है गैरसैंण को राजधानी बना कर लोकशाही की रक्षा करने के दायित्व को पूरा करें नहीं तो उनका भी वहीं हस्र होगा जो तिवारी आदि उत्तराखण्ड विरोधियों का हुआ। महाकाल हर जनविरोधी को उसके कृत्यों का दण्ड देता है।
आज 3 नवम्बर को उत्तराखण्ड की जनांकांक्षाओं और प्रदेश में लोकशाही के भूत, वर्तमान व भविष्य का प्रतीक बन गयी गैरसेंण में हो रही प्रदेश सरकार के मंत्रीमण्डल की बैठक का इस आशा के साथ मैं उत्तराखण्ड राज्य गठन, जनांदोलन के प्रमुख संगठन उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष के रूप में हार्दिक स्वागत करता हॅू कि यह बैठक प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनाने के मार्ग में मील का पत्थर साबित होगा। भले ही मैं प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के अलोकशाही तरीक से ताजपोशी व उनके कई कायो्र  का प्रखर विरोधी हॅू परन्तु गैरसेंण को राजधानी बनाने की राज्य गठन आंदोलनकारियों की मांग की दिशा में अब तक की सरकारों ने एक सकारात्मक कदम तक न उठाने के लिए जहां मैं राज्य गठन के बाद अब तक की सरकारों की कड़ी भत्र्सना करता हॅू वहीं विजय बहुगुणा सरकार के इस आधे अधूरे प्रयास से राज्य की स्थाई राजधानी गैरसेंण बनाने के लिए आम जनता की इस प्रबल मांग रूपि जनभावनाओं को सत्तामद में विगत 12 साल से बेशर्मी से रौंद रहे कांग्रेस व भाजपा  सहित शासन प्रशासन को लोकशाही का सम्मान करने की सीख मिलेगी।
मेरा साफ मानना है कि गैरसेंण राजधानी का गठन राज्य गठन के समय ही हो जाना चाहिए था। इस मांग को षडयंत्र के रूप में रौंदने का कृत्य अब तक की सरकारों ने ही नहीं राज्य गठन का महत्वपूर्ण कार्य करने वाली सप्रंग सरकार ने कांग्रेस से मिल कर किया। अगर उसी समय अटल सरकार जनभावनाओं का सम्मान करते हुए स्थाई राजधानी गैरसेंण घोषित कर देते तो आज प्रदेश की लोकशाही व विकास पर यह ग्रहण नहीं लगा। नहीं प्रदेश के करोड़ों रूपये के संसाधन राजधानी चयन आयोग जेसे गैरजरूरी आयोग पर विगत दस सालों तक बेवजह से लुटवाये जाते। प्रदेश में राजधानी चयन आयोग के बजाय गैरसेंण राजधानी बनाने में सरकार ईमानदारी से कार्य करती तो आज प्रदेश की तस्वीर ही दूसरी होती। परन्तु दुर्भाग्य से प्रदेश की सत्ता या तो तिवारी जैसे घोर उत्तराखण्ड विरोधी आदमी के हाथों में थोपी गयी या खण्डूडी व निशंक जैसे जमीन से कटे व सत्ता के मठाधीशों के प्यादों के हाथों में सोंपी गयी। इन सभी हुकमरानों के पार न तो उत्तराखण्ड की उन जनभावनाओं को साकार करना तो रहा दूर इनको समझने की भी कुब्बत नहीं रही। नहीं इनके पास इतनी दूरदृष्टि व दृढ़ राजनैतिक इच्छा शक्ति ही रही कि ये समाज के दूरगामी हितों को साकार करने वाले गैरसेंण राजधानी बनाने, उत्तराखण्ड के मान सम्मान को मुजफरनगर काण्ड-94 आदि से रौदने के गुनाहगारों को दण्डित करने, प्रदेश में जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई परिसीमन का प्रबल विरोध करने, प्रदेश में षडयंत्र की तरह घुसे बलात घुसपेटियों को बाहर खदेडने, प्रदेश के जल, जंगल व जमीन की रक्षा करने तथा प्रदेश में जातिवाद, क्षेत्रवाद व भ्रष्टाचार रहित विकासोनुमुख रोजगार प्रदान करने वाला सुशासन स्थापित  करने को प्राथमिकता देतें।
इन उत्तराखण्ड के लिए राव-मुलायम सिंह से बदतर साबित हुए प्रदेश के आस्तीन के सांपों से साथ प्रदेश के जनप्रतिनिधी भी इतने विवेकहीन व पदलोलुपु हैं कि उनको न तो अपने राजनैतिक दायित्व का बोध है। इसी कारण प्रदेश की जनता के बलिदानों के बाद गठित उत्तराखण्ड राज्य जिसमें हिमाचल की तरह देश का सबसे ईमानदार व विकासोनुमुख पर्वतीय राज्य बनने की अपार क्षमता है केवल यशवंत सिंह परमार जैसे जमीन से जुडे दूरदृष्टि विहिन नेताओं के अभाव के कारण आज देवभूमि कहलाये जाना वाला उत्तराखण्ड देश के सबसे भ्रष्टत्तम राज्य बन यहां की कीर्ति को कलंकित कर रहा है। इसका एक कारण दिल्ली के भाजपा व कांग्रेस के मठाधीशों का बौनापन भी काफी जिम्मेदार है जिनके पास न तो साफ छवि के जननेताओं को पहचानने व उनको महत्वपूर्ण स्थान पदद आसीन करने की बुद्धि ही है नहीं आज उनकी प्राथमिकता देश व प्रदेश के विकास की है। अपितु आज दिल्ली के मठाधीशों को केवल इन संवैधानिक पदों पर ऐसे व्यक्ति को आसीन करने की है जो उनके संकीर्ण स्वाथो्र के साथ उनकी तिजोरी भरने का काम करे। इसी के कारण इन दलों ने प्रदेश की जनभावनाओं को न समझते हुए अपने समर्पित जनता से जुडे साफ छवि के नेताओं को प्रदेश की बागडोर सोंपने के बजाय जनता द्वारा नकारे व दुत्कारे लोगों को ही यहां का भाग्य विधाता बनाया गया।
हालांकि प्रदेश की राजनीति पर जरा सी नजर दौडाये तो आज यहां इतना शर्मनाक स्थिति है कि एक भी विधायक व सांसद या मंत्री या मुख्यमंत्री रहे नेताओं में प्रदेश के हक हकूकों के लिए शहीदों व आंदोलनकारियों की तरह समर्पित हो कर काम करने की सामथ्र्य व नैतिक इच्छा शक्ति भी नहीं है। अपने पद व हितों के लिए अपने दलों के आकाओं व प्रदेश की राजनीति में उठापटक करने वााले या समर्थकों को लामबद करने वालों ने कभी यहां की जनांकांक्षाओं का गला घोंटने या इनको पूरा करने के लिए सडक पर नहीं उतरे । नहीं अपने समर्थकों के साथ अपनी पार्टी के आकालाओं के दर पर या अपने ही घर पर ऐसा धरना प्रदर्शन तक किया। मैं आज न केवल प्रदेश के लिए नक्कारा साबित हो चूके तिवारी, खण्डूडी, निशंक, विजय बहुगुणा से निराश हॅू अपितु यहां पर स्थापित तथाकथित दिग्गज नेता भगतसिंह कोश्यारी,हरीश रावत, सतपाल महाराज,  प्रदीप टम्टा, हरक सिंह रावत आदि दिग्गज नेताओं से भी निराश हॅू। हालांकि भगत सिंह कोश्यारी को छोड़ कर बाकी इन नेताओं के हाथों में अभी प्रदेश की मजबूती से मुख्यमंत्री के रूप में अपनी पूरी प्रतिभा दिखाने की बागडोर नहीं मिली । परन्तु इनके दिलों में वह छटपटाहट कहीं प्रदेश की जनांकांक्षाओं के लिए नहीं दिखता जो इनको पद या सम्मान न मिलने पर दिखाई देती। इनमें से किसी को मेने अभी तक प्रदेश के मुजफरनगर काण्ड-94 के दोषियों को सजा दिलाने, जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई परिसीमन थोपने, राजधानी गैरसेंण बनाने, व प्रदेश में मूल निवास तथा जल, जंगल जमीन आदि के हितों पर हो रहे निरंतर कुठाराघात के खिलाफ अपने दल के आकाओं व सरकार से सीधे दो टूक बात करने की हिम्मत तक करते नहीं देखा। गैरसेंण मुद्दे पर जो पहल वर्तमान में विजय बहुगुणा ने वहां पर कैविनेट बैठक बुलाने की है पहल की है उसके पीछे सतपाल महाराज का गैरसेंण को ग्रीष्म कालिन राजधानी बनाने की मांग का दवाब रहा है। वहीं सांसद प्रदीप टम्टा गैरसैंण राजधानी बनाने की मांग करते आये। परन्तु अफसोस यह है कि सतपाल महाराज व प्रदीप टम्टा भी इस मांग को लेकर वह दवाब बनाने के लिए पहल नहीं कर पाये जो वे कर सकते थे।
भले ही देश विदेश में रहने वाले सवा करोड़ उत्तराखण्डियों की टकटकी लगी है वहीं प्रदेश में लोकशाही की दुर्दशा के जानकार लोग भले ही इस बैठक को सामान्य या जनता की आंखों में धूल झोंकना मान रहे हैं। पर मैं जानता हॅू कि गैरसेंण में हो रही इस बैठक में बहुगुणा सरकार प्रदेश की स्थाई राजधानी गैरसैण बनाने की ऐतिहासिक घोषणा करने का नैतिक साहस नहीं करेगी। इतनी दूरदृष्टि में आज उत्तराखण्ड  के किसी भी नेता में नहीं देख रहा हॅू। परन्तु गैरसेंण राजधानी बनाने की मांग को जिस बेशर्मी से प्रदेश के हुक्मरान विगत 12 साल से बेशर्मी से रौंद रहे थे उससे  राज्य गठन आंदोलन के लाखों आंदोलनकारी, शहीद व गैरसेंण राजधानी बनाने की मांग के लिए शहीद हुए बाबा मोहन उत्तराखण्डी के संघर्ष व शहादत को रौंदने कर इसको नजरांदाज करने का अलोकतांत्रिक कृत्य कर रहे थे, उसको देखते हुए यह गैरसेंण में प्रदेश सरकार की बैठक भी आयोजित होनी शहीदों व आंदोलनकारियों के साथ साथ प्रदेश की लोकशाही में विश्वास करने वाली जनता की पहली जीत है। इन सत्तामद में डुबे व लोकशाही को अपमानित करने वाले हुक्मरानों व शासन प्रशासन को इतनी सुध तो आयी वे गैरसेंण में मंत्रीमण्डल की बैठक बुला कर अप्रत्यक्ष रूप से यहां की जनता की भावनाओं को सम्मान पूरे दिल से न भी करें परन्तु यह बैठक इस दरकिनारे की गयी मांग को फिर से जनता व राजनेतिक दलों के जेहन में प्रमुखता से उभर का समाने आयी। यह सत्तामद में दबाई गयी मांग को फिर से मजबूत हवा मिली। अब इस मांग को लम्बे समय तक कोई सरकार दबा नहीं पायेगी।

Comments

  1. उपर वाला करे आपकी मुराद पूरी हो

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