खुद के भ्रष्टाचारों को बेनकाब होने से आक्रोशित सरकार, भानिमप(केग) के पर कतरने को तैयार

4 जी स्पेक्ट्रम के सबसे बडे रहस्यमय सौदे पर विपक्ष, कैग, अण्णा,  केजरीवाल आदि मूक क्यों

 2 जी स्पेक्ट्रम की बेहद कम नीलामी होना कहीं केग को झूठा ठहराने का षडयंत्र तो नहीं?



एक तरफ सरकार घोटालों से बदरंग हुए धृर्णित चेहरे को छुपाने के लिए केग के पर कतरने के लिए तैयारी कर रही है। वहीं दूसरी तरफ 2 जी स्पेक्ट्रम से कई गुना बडे 4 जी का हुआ रहस्यमय सौदे पर कहीं शौर नहीं? विपक्ष मूक, कैग मूक, केजरीवाल या अण्णा आदि सब मूक? आखिर क्या रहस्य है। यह पूरा सौदा किसी और ने नहीं अपितु केवल मुकेश अम्बानी ने ही लिया। बताया जा रहा है कि इसकी बोली लगाने में देश की कोई अन्य संचार निजी कम्पनियों मैदान में आयी नहीं।
आज यही सबसे बडा सवाल यह है कि 2 जी पर तो शोर मच रहा है। पर 4 जी पर हुए रहस्यमय  सौदे पर सभी मौन क्यों? क्या किसी अन्य द्वारा बोली न लगाया जाना भी एक षडयंत्र है?
जिस प्रकार से 2जी स्पेक्ट्रम की सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर हुई नीलामी में टेलीकाॅम कम्पनियों ने जो उदासीनता दिखाई क्या वह सरकार व टेलीकाॅंम कम्पनियों की मिली भगत से केग को नीचा दिखाने का षडयंत्र है या 3 जी या 4 जी के कारण अब संचार कम्पनियों का इस 2जी लाईसेंस पर मोह भंग होना है। परन्तु सबसे चोंकाने वाला तत्थ्य यह है कि जिस प्रकार से इस नीलामी को हथियार बना कर केन्द्र सरकार भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी केग के पर कतरने का ताना बाना बुन रही है उससे यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है। क्योंकि इस नीलामी पर केन्द्रीय संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने टिप्पणी करते हुए कहा कि  सीएजी का दावा और सच्चाई देश के सामने है। सीएजी ने  बढ़ाचढ़ कर आंकड़े पेश किये। गौरतलब है कि सीजीए ने 2जी घोटाले की आशंका व्यक्त की थी और देश को 1.77 लाख करोड़ रुपए का घाटा होने का अनुमान लगाया था। इससे देश में सरकार की न केवल किरकिरी हुई अपितु सर्वोच्च न्यायालय ने भी सीएजी की रिपोर्ट को आधार मानते हुए इन लाइसेंसों को ही रद्द कर दिया। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर फिर से नीलामी की गयी थी।  हालांकि सरकार ने इसका लक्ष्य 28 हजार करोड़ रखा था। जबकी 5 मेगाहर्टज के स्पेक्ट्रम के लिए 14  हजार करोड़  रूपये का रिजर्व प्राइस रखा था। जो जानकारों के अनुसार काफी ऊंची मानी जा रही है। यह आशंका तब ही निर्मूल होगी जब सरकार या निष्पक्ष जांच ऐजेन्सी इसकी जांच करे कि क्यों इसमें लक्ष्य को प्राप्त करने में सरकार असफल रही और क्यों संचार कम्पनियों ने इस नीलामी में दिलचस्पी नहीं दिखाई।
सरकार द्वारा घोषित लक्ष्य 40000 करोड़ की एक ति जिस प्रकार से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2जी के लाइसैंस को प्रदान करने के मामले में हुए केग द्वारा सरकार की आवंटन की नीति पर उठाये गये प्रश्न के आधार पर 2जी के 122 लाइसेंसों को रद्द करने के बाद सरकार व संचार क्षेत्र से जुडी दिग्गज कम्पनियों की किरकिरी हुइ्र थी। उसके बाद सरकार ही नहीं देश के इन संचार कम्पनियों की नजरों में खटकने लगा था। क्योंकि केग ने ही सबसे पहले इस मामले में सरकार व इन संचार कम्पनियों की मिली भगत से देश को हजारों करोड़ रूपये का चूना लगाने का आरोप लगाया था। इसके बाद पूरे देश में इस विवाद को इतना तुल मिला कि संचार मंत्री को न केवल अपने पद से इस्तीफा देना पडा अपितु इसके साथ उनको जेल की हवा भी खानी पड़ी। पूरा देश देश को सरकार में आसीन लोगों, नौकरशाहों व उद्यमियों के नापाक गठबंधन से खूल आम लूटने की खबर से स्तब्ध था। इसी को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रकरण में संदेह के घेरे में आयी 122 लाइसंस ही रद्द करके फिरसे इनकी नीलामी कराने का आदेश दिया।
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद जिस प्रकार से 2जी के 176 में से केवल 101 ब्लाक की ही बोली लग कर केवल 9407 करोड़ बिक्री हुई।
केग पर अंकुश लगाने के लिए सरकार बहाना ढ़ंूढ रही थी। सरकारें यह तनिक सा भी सहन नहीं कर पा रही है कि कोई उनके कार्यो में मीन मेख निकाले। जिस प्रकार से सरकार के विभिन्न विभागों के घोटालों को केग ने बेनकाब किया उससे देश की जनता में एक संदेश गया कि देश या राज्य में किसी भी दल की सरकारें हों इनके भ्रष्टाचार करने की प्रवृति में कोई कमी नहीं है। भ्रष्टाचार करने के लिए सब एक समान ही है। केग की इसी साफगोही से आहत अधिकांश राजनैतिक दल अंदर ही अंदर इस पर अंकुश लगाने के लिए कैग को बहुसदस्यी आयोग बनाने का षडयंत्र रच रहे हैं।

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