पृथ्वी का सबसे खंूखार, खुदगर्ज व तानाशाह जीव बना मनुष्य

पृथ्वी के जल, थल व नभ पर काबिज हो कर मनुष्य ने और जीव जन्तुओं का कत्लेआम करके उनको बनाया अपना गुलाम

आप हम मनुष्य हैं पर आज मनुष्य इस सृष्टि के पृथ्वी ग्रह का सबसे खूंखार, खुदगर्ज व तानाशाह हो कर इसकी शांति पर ग्रहण लगाने वाला कलंक बन गया है। मनुष्य भी एक प्राणी है। अन्य प्राणियों की तरह वह अपने परिवार व समुदाय के साथ जीवन जीता है। मनुष्य सबसे ताकतवर जीव तो नहीं । हाथी, रीछ, ह्वेल, सार्क, अजगर, गैंडा, बैल, भैंस, गाय, सुअर आदि मनुष्य से साररिक दृष्टि से बेहद मजबूत प्राणी हैं। परन्तु इसने अपनी बुद्धि से  संगठित जिसे हम राज्य या देश आदि बना कर पूरी पृथ्वी को आज अपना गुलाम बना दिया है।  सबसे शर्मनाक स्थिति यह है कि मनुष्य ने प्रकृति द्वारा सबके लिए बनायी गयी व्यवस्था में काबिज होने की कुचेष्टा करके पूरी पृथ्वी के जल, थल व नभ में अपना एकाधिकार समझ कर दूसरे जीव, जन्तुओं को निर्ममता से निवाला बना रहा है और जो रह गये उनको गुलाम बना दिया है । इस पृथ्वी के तमाम जीव जन्तु ही नहीं पैड़, पहाड़,  नदी,  सागर व नभ पर मनुष्य का एकक्षत्र राज हो गया है और पृथ्वी के अरबों खरबों जीव जन्तु एक प्रकार से उसकी दया पर अपना जीवन जी रहे हैं। दूसरे जीव जन्तुओं के जीवन पर ग्रहण लगाने वाले मनुष्य को यह सोचना चाहिए कि अगर कोई दूसरा जीव उनके साथ भी इसी प्रकार का कत्लेआम व गुलाम बनाता तो उनको कैसे लगता। मनुष्य ने प्रकृति की सुन्दर कृति को मात्र अपने लिए संसाधन समझ कर नदी, पहाड़ जंगल, व समुद्र आदि का अंधाधुंध दौहन करके प्रकृति के साथ आत्मघाती खिलवाड़ कर रहा है।
इस पृथ्वी में ही नहीं सारी सृष्टि में सभी जीव जन्तुओं के जीने के लिए बनायी। इस धरती पर हर जीव का भी उतना ही जीने का अधिकार है जितना मनुष्य का। जब तक एक जीव दूसरे जीव के जीवन पर संकट या खतरा उत्पन्न नहीं करता तब तक उसको मारने का कोई अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए। जीवो और जीने दो ही इस प्रकृति का सबसे बडा मूल मंत्र है। जो भी इस सृष्टि के मूलाधार से खिलवाड करता है प्रकृति अपने ढ़ग से ऐसे आततायी जीव को सबक सिखाती है।
अगर मनुष्य अपनी बुद्धि का सदप्रयोग करके प्रकृति के इस नियम के अनुकुल सबको जीने का अवसर देने व सबके हक हकूकों का सम्मान करते हुए कल्याणकारी व्यवस्था बनाता तो उसकी बुद्धि से पूरे पृथ्वी के जीव जन्तु लाभान्वित होते परन्तु दुर्भाग्य यह है कि मनुष्य केवल अपने निहित स्वार्थ के लिए पृथ्वी के अन्य जीव जन्तुओं व सृष्टि के नियमों का निर्मता से हनन कर रहा है।

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