आतंकियों से अधिक खतरनाक साबित हो रहे है देश की सुरक्षा के लिए सत्तांध हुक्मरान

आतंकी पाक से क्रिकेट खेल कर या आतंकियों को रिहा कराके नहीं कैसे होगी  देश की रक्षा 

कारगिल, संसद व मुम्बई पर आतंकी हमलों के बाद भी क्यों आत्मघाती नींद में सोये हैं भारतीय हुक्मरान

मुम्बई पर आतंकी हमले की बरसी पर अमेरिका में जेल में बद अमेरिकी ऐजेन्ट हेडली की मांग करे भारत
एक तरफ देश 26 नवम्बर को मुम्बई पर हुए हमले की बरसी मना रहा है। देश के हुक्मरान घडियाली आंसू बहा कर आतंकबाद का मुंहतोड़ जवाब देने की कसमें खा रहा है। पूरा देश इस काण्ड में जहां इस काण्ड पर मातम मना कर श्रद्धांजलि दे रहा है । वहीं इस काण्ड के मुख्य गुनाहगार अमेरिका व पाक में बैठ कर हमारे हुक्मरानों की नपुंसकता पर उपहास उडाते हुए उल्टा भारत पर फिर हमले की धमकी दे रहे है। देश के हुक्मरानों की नपुंसकता का इससे ज्यादा परिचय क्या होगा कि इस काण्ड के मुख्य गुनाहगार पाक में जश्न मना  रहा है हमारे देश के हुक्मरान उसी आतंकियों के संरक्षणदाता पाक के साथ क्रिकेट मेच खेलने व उनके हुक्मरानों से पींगे बढ़ाने के लिए बेशर्मी से लालायित है। अगर हमारे देश के हुक्मरानों में जरा सा भी देश से प्रेम होता और जरा सा भी स्वाभिमान होता तो वे अमेरिका से सीख ले कर आतंकियों व उनके रहनुमाओं को सजा देने का काम करते। वे अनुसरण करते कि कैसे अमेरिका ने आतंकियों  द्वारा 9/11 को अमेरिका पर किये गये हमले का मुंहतोड़ जवाब सात समुद्रपार जा कर अफगानिस्तान व पाक में आतंकियों को तहस नहस किया। आतंकियों को संरक्षण देने वाली अफगानिस्तानी तालिवान सरकार को उखाड़ फेंका व पाक में छुपु हुए आतंकी सरगना ओसमा बिन लादेन को पाक में ही घुस कर मार डाला। यही नहीं आतंकियों के शरणस्थलों पर ड्रोन हमला करके तबाह किये। आज इसी के कारण अमेरिका में 9/11 के बाद कोई आतंकी हमला करने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहा है। परन्तु भारत में सरकार संसद पर हमला के दोषी आतंकी को ही फांसी की सजा देने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रही है। यही नहीं यहां केन्द्र सरकार ही नहीं राज्य सरकार भी देशद्रोहियों को धर्म से जोड़ कर उनको वोट बेंक समझ कर शर्मनाक खेल खेल रही है। देश के राजनैतिक दलों का राष्ट्रहित के बजाय अपने निहित दलीय स्वार्थ को वरियता देते हुए आतंकियों को दण्डित करने के बजाय उनको संरक्षण देते हुए छोड़ने की रहकतों पर न्यायालय भी हैरान है। अपनी जान से इन आतंकियो को पकड़ने वाले सुरक्षा बलों की मेहनत पर पानी फेरते हुए अपनी कुर्सी के लिए राष्ट्रघाती तुष्टिकरण करते हुए आतंकियों को रिहा करने का आत्मघाती कृत्य करने को उतारू देख कर समझ में नहीं आता है कि ये देश के हितैषी हुए तो दुश्मन किसे कहेंगे?।देश के हुक्मरान कितने नपुंसक है कि संसद व मुम्बई पर हुए आतंकी हमले के बाबजूद वे न तो इन हमलों के लिए दोषी पाक से दो टूक बात ही कर पाया व नहीं वह अमेरिका सहित पाक में इस काण्ड के दोषियों को भारत में लाने की हिम्मत ही कर पाया। हिम्मत तो रही दूर वह अमेरिका में जेल में बंद अमेरिकी व पाक दोनों के डब्बल ऐजेन्ट हेडली को भारत को सौंपने की पुरजोर मांग तक अमेरिका से नहीं कर पाया।
आज से चार साल पहले बुधवार, 26 नवंबर 2008 की रात भाड़े के दस आतंकियों ने  मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस स्टेशन, ताज होटल, होटल ओबेरॉय, लियोपोल्ड कैफे, कामा अस्पताल तथा दक्षिण मुंबई के अन्य अनेक स्थानों पर आतंकियों ने अंधाधुंध गोलीवारी करके इस हमले को अंजाम दिया।
इस हमले के एकमात्र जीवित दोषी आतंकी मोहम्मद अजमल कसाब को 21 नवम्बर 2012 को पुणे की यरवदा जेल में दी गयी फांसी पर पाकिस्तान  स्थित आतंकी संगठन तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान के प्रवक्ता एहसानुल्लाह एहसान ने सीधे भारत को धमकी देते हुए कहा कि कसाब को फांसी पर लटकाए जाने का बदला संगठन भारत और अन्य जगहों पर हमलों के साथ लेगा।  गौरतलब  है  कि मुम्बई में आतंकी हमलों के गुनाहगार कसाब उन 10 पाकिस्तानी आतंकियों में एकमात्र ऐसा आतंकी था जिसको जीवित पकड़ने में भारत के सुरक्षाबल सफल हुए थे। इन 10 पाक के आतंकियों ने, समुद्र के रास्ते मुंबई में दाखिल होकर 26/11 हमले को अंजाम दिया था। इस हमले में 165 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि कई लोग घायल हो गए थे। लम्बे समय से इन गुनाहगारों को फांसी न दिये जाने से देश की जनता सरकार की नपुंसकता से आक्रोशित थी। सवाल कसाब को फांसी देने या संसद हमले के दोषी अफजल गुरू को फांसी न देने का नहीं अपितु सवाल है देश की समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा नीति का जो यहां के हुक्मरानों के दलीय स्वार्थ व सत्तामोह
के कारण वोटबेंक को करियता देने के आत्मघाति कुनीति के कारण दम तोड़ रही है। इन आत्मघाती सरकारों को इसका भान ही नहीं कि जब देश ही सुरक्षित नहीं रहेगा तो इनका राज ताज कहां से सुरक्षित रहेगा। देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि न तो यहां के हुक्मरानों व न हीं किसी राजनैतिक पार्टी की देश के हित में कोई ठोस राष्ट्रीय नीति है । आज चीन, अमेरिका, इस्राइल ही नहीं पाक की भी एक ठोस राष्ट्रीय सुरक्षा नीति है। परन्तु दुर्भाग्य यह है कि संसार का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश व सबसे प्राचीन सभ्यता व संस्कृति वाला देश भारत की न केवल अपनी राष्ट्रवादी नीति है व नहीं अपना कोई आत्मसम्मान ही। केवल यहां के सत्तासीन अपनी कुर्सी के लिए देश की जनता को जाति, धर्म व क्षेत्र के नाम पर बांट कर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हुए देश की सुरक्षा से खिलवाड कर रहे है। सच तो यह है देश की सुरक्षा के लिए आतंकियो से अधिक गुनाहगार देश के हुक्मरान हो गये। आतंकियों से तो हमारे सुरक्षाा बल देश की रक्षा करते ही आ रहे है परन्तु  इन आत्मघाती राजनैतिक दलों व हुक्मरानों का कैसे मुकाबला देश करेगा जो जाति, धर्म व क्षेत्र के नाम पर देश को कमजोर कर रहे हैं और पकडे गये आतंकियों का संरक्षण कर रहे है।आज इसी कारण देश पूरी तरह से भ्रष्टाचार, आतंक व कुशासन की गर्त में धंसा जा रहा है। एक तरफ अमेरिका व पाक और दूसरी तरफ चीन इस देश को तबाह करने के लिए दशकों से लगे हुए है। यह सब कुछ जानने के बाबजूद देश के हुकमरान देश हित में ठोस राष्ट्रीय सुरक्षा नीति बनाने के बजाय अपने दलीय व सत्ता स्वार्थ के लिए तुष्टिकरण का दाव खेल कर राष्ट्रीय हितों व सुरक्षा से खिलवाड कर  रहे हैं। आज जरूरत है देश की जनता को जागृत होने की। देश के हितों को समझने की। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।

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