महाकाल यानी भगवान बदरीनाथ का चमत्कार है 6 का दिव्य संयोग (उत्तराखण्ड के लिए )
-6 साल में राज्य, 6 साल में नाम और 6 साल में गैरसेंण विधानसभा
-500 से अधिक शहादत देने वाला व 5 दशक से अधिक प्रचण्ड आंदोलन करने वाला तेलांगना आज भी राज्य गठन के
—-6 साल में राज्य, 6 साल में नाम और 6 साल में गैरसेंण विधानसभा
-500 से अधिक शहादत देने वाला व 5 दशक से अधिक प्रचण्ड आंदोलन करने वाला तेलांगना आज भी राज्य गठन के
लिए तरस रहा है।
भगवान बदरीनाथ का चमत्कार है 6 का दिव्य संयोग है उत्तराखण्ड के लिए । इसे आप लोग इसे संयोग कह कर टाल सकते हैं परन्तु यह विचित्र संयोग है। 1994 में राज्य गठन जनांदोलन के बाद ठीक 6 साल बाद सन् 2000 में उत्तराखण्ड राज्य का गठन हुआ। परन्तु प्रदेश की जनता को अपना नाम उत्तराखण्ड की बजाय इसको जबरन उत्तरांचल नाम थोपा गया। इस थोपशाही के कलंक को मिटा कर अपना नाम हासिल करने के लिए 6 साल का संघर्ष किया गया और सन 2006 में उत्तराखण्डियों को अपना नाम उत्तराखण्ड हासिल हुआ। इसी प्रकार आज जो घोषणा गैरसेंण में विधानसभा बनाने की, की गयी उससे लगता है कि 2006 से 6 साल बाद ही उत्तराखण्ड को यह एक महत्वपूर्ण सफलता हासिल हुई । जहां तक मेरे कुछ साथी इसको जनता का संघर्ष कह सकते हैं। बलिदान कर सकते है। मैं राज्य गठन जनांदोलन के प्रमुख संगठन उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा का अध्यक्ष रूपि सिपाई कै तौर उत्तराखण्ड राज्य गठन के लिए 1994 से 2000 राज्य गठन तक संसद की चैखट जंतर मंतर दिल्ली राष्ट्रीय धरना स्थल पर सैकडों प्रदर्शन, गोष्टियां, रैलियां व अखण्ड धरना देते हुए मुझे राज्य गठन आंदोलन के एक एक दिनों का आज भी याद है कि कैसे राज्य गठन आंदोलन को जीवित रखने के लिए मेरे आंदोलनकारी साथियों ने सपा-बसपा, कांग्रेस व भाजपा ही नहीं अन्य स्वार्थी तत्वों के तमाम छल प्रपंच का सडक से लेकर बेचारिक संघर्ष के द्वारा बचाया। कितने विकट स्थिति में राजनैतिक दलों के षडयंत्रों,, पुलिस प्रशासन के तमाम लाठी, आंसूगैस व अमानवीय दमन , अवसरवादी तत्वों के कुप्रचार व समाज की उदासिनता तथा तमाम विकट परिस्थितियों में कंपकंपाती सर्दी, भयंकर लू की थप्पेडों, मूसलाधार वर्षा को सह कर भी आंदोलन की लौ को एक नहीं पूरे 6 साल राज्य गठन तक जींदा रखा।
राज्य गठन के बाद अखण्ड धरना के समापन 16 अगस्त 2000 को ही करने के बाबजूद राज्य के नाम व राजधानी गैरसेंण, मुजफरनगर काण्ड के अभियुक्तों व जनसंख्या पर आधारित परिसीमन सहित अनैक ज्वलंत मुद्दों पर आंदोलन जारी रहा। मेरे राज्य गठन के आंदोलनकारी साथी रवीन्द्र बत्र्वाल से बतियाते हुए मैने कहा भी की भाई 6 साल के जनांदोलन से राज्य का गठन हुआ, उसके बाद 6 साल के संघंर्ष के बाद राज्य को अपना नाम उत्तराखण्ड हासिल हुआ। इस राज्य का अपना नाम 2006 में उत्तराखण्ड हासिल करने के बाद अब 2012 में राज्य को गैरसेंण में विधानसभा बनाने का ऐलान आज प्रदेश की सरकार के मंत्रीमण्डल में किया गया। इसके लिए विधानसभा भवन का शिलान्यास की तारीख भी तय हो गयी। इसका शुभ मुर्हत 13 जनवरी 2013 को मकर संक्रांति के दिन तय हो गया।
इस तरह 1994 से 18 सालों बाद का जब मैं इतिहास पर नजर डालता हॅू तो मुझे इस बात का पूरा अहसास है कि यह केवल भगवान श्रीकृष्ण यानी भगवान बदरीनाथ की कृपा से ही संभव हुआ। अगर संघर्ष के बल पर राज्य कोई पहले बनता तो वह राज्य होता तेलांगाना। 500 से अधिक शहादतें देने व पांच दशक से अधिक प्रचण्ड आंदोलन करने तथा इस क्षेत्र से अपने अधिकांश विधायक व सांसद जीताने के बाबजूद तथा वर्तमान केन्द्र सरकार में आसीन कांग्रेस की घोषणा के बाबजूद तेलांगना राज्य का गठन नहीं हो पाया। इसका अफसोस उत्तराखण्ड गठन करते समय सत्तासीन रही भाजपा को आज भी है। तमाम राजनैतिक हुक्मरानों को न चाहने के बाबजूद उत्तराखण्ड राज्य का गठन हुआ। तमाम दल बाहरी मन से उत्तराखण्ड के हितैषी होने का दंभ भरते, हकीकत इनका मुखोटा तब बैनकाब हुआ जब राज्य का गठन किया गया। ना प्रदेश को अपना नाम ही दिया गया व नहीं प्रदेश को अपनी सर्वमान्य राजधानी गैरसेंण तथा नहीं प्रदेश के लिए मांगी गयी राज्य की सीमा। यही नहीं प्रदेश के संसाधनों की जिस प्रकार से गंगा-यमुना-प्राधिकरण बना कर किया गया उससे इन तमाम राजनैतिक दलों के मुखोटे बेनकाब हो गये। बाकी रही कसर प्रथम मुख्यमंत्री नित्यानन्द स्वामी व राज्यपाल बरनाला को बना की साफ कर दिया। वहीं कांग्रेस ने उत्तराखण्ड के घोर विरोधी रहे नारायणदत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बना कर बेनकाब हो गयी।
राज्य गठन आंदोलन के दौरान संसद की चैखट पर 6 साल के निरंतर धरने पर जब कभी महान रहस्यमय शक्तियों के स्वामी व अग्रणी सामाजिक चिंतक काला बाबा मेरी तपस्या को देख कर कई बार व्यथित हो कर कहते देवी तुम्हारा संघर्ष देख कर मैं यही कहता हॅू कि राज्य तो बनेगा परन्तु इस राज्य में भी माफियाओं का शिकंजा जकडा रहेगा। जिस प्रकार मैं आजादी के आंदोलन में सबकुछ समर्पित होने के बाद आज आजादी के नाम पर खुली लूट देख कर दुखी हॅू कल तुम भी प्रदेश में राजनेताओं के नाम पर माफियाओं की जमात द्वारा की जा रही लूट पर दुखी होंगे। आज बाबा के हर शब्द मुझे बरबस याद आते है। भगवान श्रीकृष्ण की अपार कृपा से मै इस महान ऐतिहासिक घटनाओं का सहभागी बनने का साक्षी रहा हॅू। पर एक बात मुझे साफ नजर आ रहा है कि वह है महाकाल यानी भगवान बदरीनारायण की अपार कृपा। मैने स्वयं निशंक जी से प्रदेश की राजधानी गैरसेंण बनाने की पुरजोर मांग इस निवेदन के साथ किया था कि निशंक जी आप श्रेय का भागी बनो गैरसेंण पर ऐतिहासिक निर्णय ले कर, इसके साथ मेने उनको कहा था कि जो भगवान बदरीनाथ उत्तराखण्ड के खिलाफ काम करने वाले राव-मुलायम तिवारी, खंण्डूरी को बेताज व निश्तेज कर सकते हैं तो आप तो उनके पतन से सबक ले कर सही काम करो। निशंक जी ने यह चेतावनी शायद हल्के में ली। आज निशंक अगर बात को जरूर मन ही मन प्रायश्चित कर रहे होंगे।
आज भगवान के इस चमत्कार यानी विजय बहुगुणा की सरकार से गैरसेंण में विधानसभा बनाने का ऐलान करने की ऐतिहासिक चमत्कारिक घोषणा का विरोध दो टूक राजधानी घोषणा न करने को आधार बना कर करने वाले मेरे साथियों को इस बात का अहसास तो होगा कि आज भाजपा व कांग्रेस का एक भी सांसद या विधायक ही नहीं एक जिला पंचायत सदस्य भी इस मांग के समर्थन में अपने पद से इस्तीफा देने के लिए तैयार नहीं है। भाजपा व कांग्रेस तो बहुत दूर जब उक्रांद के तीस सदस्य विधानसभा में थे तब भी उन्होंने यह साहस नहीं करा,। आज तो विधायक ही उक्रांद के साथ कितना है यह टिहरी लोकसभा उपचुनाव से स्पष्ट हो गया। यही नहीं मूल निवास प्रमाण पत्र पर जिस प्रकार उत्तराखण्ड रक्षा मोर्चा का नकाब ही उतर गया उससे प्रदेश की राजनैतिक शक्ति की हकीकत का ज्ञान होना चाहिए। उत्तराखण्ड की आम जनता व सामाजिक संगठन जब मुजफरनगर काण्ड के शहीदों को श्रद्धांजलि देने व इस काण्ड के दोषियों को सजा दिलाने के लिए संसद की चैखट पर आने के बजाय अपने क्षेत्र में रंगारंग कार्यक्रम करने में मस्त रहते तो हमें आज समाज की स्थिति को भी समझना चाहिए। प्रयत्न करें परन्तु भगवान की अपार कृपा के बिना कुछ भी हासिल नहीं हो सकता। तेलंगाना व उत्तराखण्ड का 6 का चमत्कारी संयोग इस का जीवंत उदाहरण है। शेष श्री कृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।
भगवान बदरीनाथ का चमत्कार है 6 का दिव्य संयोग है उत्तराखण्ड के लिए । इसे आप लोग इसे संयोग कह कर टाल सकते हैं परन्तु यह विचित्र संयोग है। 1994 में राज्य गठन जनांदोलन के बाद ठीक 6 साल बाद सन् 2000 में उत्तराखण्ड राज्य का गठन हुआ। परन्तु प्रदेश की जनता को अपना नाम उत्तराखण्ड की बजाय इसको जबरन उत्तरांचल नाम थोपा गया। इस थोपशाही के कलंक को मिटा कर अपना नाम हासिल करने के लिए 6 साल का संघर्ष किया गया और सन 2006 में उत्तराखण्डियों को अपना नाम उत्तराखण्ड हासिल हुआ। इसी प्रकार आज जो घोषणा गैरसेंण में विधानसभा बनाने की, की गयी उससे लगता है कि 2006 से 6 साल बाद ही उत्तराखण्ड को यह एक महत्वपूर्ण सफलता हासिल हुई । जहां तक मेरे कुछ साथी इसको जनता का संघर्ष कह सकते हैं। बलिदान कर सकते है। मैं राज्य गठन जनांदोलन के प्रमुख संगठन उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा का अध्यक्ष रूपि सिपाई कै तौर उत्तराखण्ड राज्य गठन के लिए 1994 से 2000 राज्य गठन तक संसद की चैखट जंतर मंतर दिल्ली राष्ट्रीय धरना स्थल पर सैकडों प्रदर्शन, गोष्टियां, रैलियां व अखण्ड धरना देते हुए मुझे राज्य गठन आंदोलन के एक एक दिनों का आज भी याद है कि कैसे राज्य गठन आंदोलन को जीवित रखने के लिए मेरे आंदोलनकारी साथियों ने सपा-बसपा, कांग्रेस व भाजपा ही नहीं अन्य स्वार्थी तत्वों के तमाम छल प्रपंच का सडक से लेकर बेचारिक संघर्ष के द्वारा बचाया। कितने विकट स्थिति में राजनैतिक दलों के षडयंत्रों,, पुलिस प्रशासन के तमाम लाठी, आंसूगैस व अमानवीय दमन , अवसरवादी तत्वों के कुप्रचार व समाज की उदासिनता तथा तमाम विकट परिस्थितियों में कंपकंपाती सर्दी, भयंकर लू की थप्पेडों, मूसलाधार वर्षा को सह कर भी आंदोलन की लौ को एक नहीं पूरे 6 साल राज्य गठन तक जींदा रखा।
राज्य गठन के बाद अखण्ड धरना के समापन 16 अगस्त 2000 को ही करने के बाबजूद राज्य के नाम व राजधानी गैरसेंण, मुजफरनगर काण्ड के अभियुक्तों व जनसंख्या पर आधारित परिसीमन सहित अनैक ज्वलंत मुद्दों पर आंदोलन जारी रहा। मेरे राज्य गठन के आंदोलनकारी साथी रवीन्द्र बत्र्वाल से बतियाते हुए मैने कहा भी की भाई 6 साल के जनांदोलन से राज्य का गठन हुआ, उसके बाद 6 साल के संघंर्ष के बाद राज्य को अपना नाम उत्तराखण्ड हासिल हुआ। इस राज्य का अपना नाम 2006 में उत्तराखण्ड हासिल करने के बाद अब 2012 में राज्य को गैरसेंण में विधानसभा बनाने का ऐलान आज प्रदेश की सरकार के मंत्रीमण्डल में किया गया। इसके लिए विधानसभा भवन का शिलान्यास की तारीख भी तय हो गयी। इसका शुभ मुर्हत 13 जनवरी 2013 को मकर संक्रांति के दिन तय हो गया।
इस तरह 1994 से 18 सालों बाद का जब मैं इतिहास पर नजर डालता हॅू तो मुझे इस बात का पूरा अहसास है कि यह केवल भगवान श्रीकृष्ण यानी भगवान बदरीनाथ की कृपा से ही संभव हुआ। अगर संघर्ष के बल पर राज्य कोई पहले बनता तो वह राज्य होता तेलांगाना। 500 से अधिक शहादतें देने व पांच दशक से अधिक प्रचण्ड आंदोलन करने तथा इस क्षेत्र से अपने अधिकांश विधायक व सांसद जीताने के बाबजूद तथा वर्तमान केन्द्र सरकार में आसीन कांग्रेस की घोषणा के बाबजूद तेलांगना राज्य का गठन नहीं हो पाया। इसका अफसोस उत्तराखण्ड गठन करते समय सत्तासीन रही भाजपा को आज भी है। तमाम राजनैतिक हुक्मरानों को न चाहने के बाबजूद उत्तराखण्ड राज्य का गठन हुआ। तमाम दल बाहरी मन से उत्तराखण्ड के हितैषी होने का दंभ भरते, हकीकत इनका मुखोटा तब बैनकाब हुआ जब राज्य का गठन किया गया। ना प्रदेश को अपना नाम ही दिया गया व नहीं प्रदेश को अपनी सर्वमान्य राजधानी गैरसेंण तथा नहीं प्रदेश के लिए मांगी गयी राज्य की सीमा। यही नहीं प्रदेश के संसाधनों की जिस प्रकार से गंगा-यमुना-प्राधिकरण बना कर किया गया उससे इन तमाम राजनैतिक दलों के मुखोटे बेनकाब हो गये। बाकी रही कसर प्रथम मुख्यमंत्री नित्यानन्द स्वामी व राज्यपाल बरनाला को बना की साफ कर दिया। वहीं कांग्रेस ने उत्तराखण्ड के घोर विरोधी रहे नारायणदत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बना कर बेनकाब हो गयी।
राज्य गठन आंदोलन के दौरान संसद की चैखट पर 6 साल के निरंतर धरने पर जब कभी महान रहस्यमय शक्तियों के स्वामी व अग्रणी सामाजिक चिंतक काला बाबा मेरी तपस्या को देख कर कई बार व्यथित हो कर कहते देवी तुम्हारा संघर्ष देख कर मैं यही कहता हॅू कि राज्य तो बनेगा परन्तु इस राज्य में भी माफियाओं का शिकंजा जकडा रहेगा। जिस प्रकार मैं आजादी के आंदोलन में सबकुछ समर्पित होने के बाद आज आजादी के नाम पर खुली लूट देख कर दुखी हॅू कल तुम भी प्रदेश में राजनेताओं के नाम पर माफियाओं की जमात द्वारा की जा रही लूट पर दुखी होंगे। आज बाबा के हर शब्द मुझे बरबस याद आते है। भगवान श्रीकृष्ण की अपार कृपा से मै इस महान ऐतिहासिक घटनाओं का सहभागी बनने का साक्षी रहा हॅू। पर एक बात मुझे साफ नजर आ रहा है कि वह है महाकाल यानी भगवान बदरीनारायण की अपार कृपा। मैने स्वयं निशंक जी से प्रदेश की राजधानी गैरसेंण बनाने की पुरजोर मांग इस निवेदन के साथ किया था कि निशंक जी आप श्रेय का भागी बनो गैरसेंण पर ऐतिहासिक निर्णय ले कर, इसके साथ मेने उनको कहा था कि जो भगवान बदरीनाथ उत्तराखण्ड के खिलाफ काम करने वाले राव-मुलायम तिवारी, खंण्डूरी को बेताज व निश्तेज कर सकते हैं तो आप तो उनके पतन से सबक ले कर सही काम करो। निशंक जी ने यह चेतावनी शायद हल्के में ली। आज निशंक अगर बात को जरूर मन ही मन प्रायश्चित कर रहे होंगे।
आज भगवान के इस चमत्कार यानी विजय बहुगुणा की सरकार से गैरसेंण में विधानसभा बनाने का ऐलान करने की ऐतिहासिक चमत्कारिक घोषणा का विरोध दो टूक राजधानी घोषणा न करने को आधार बना कर करने वाले मेरे साथियों को इस बात का अहसास तो होगा कि आज भाजपा व कांग्रेस का एक भी सांसद या विधायक ही नहीं एक जिला पंचायत सदस्य भी इस मांग के समर्थन में अपने पद से इस्तीफा देने के लिए तैयार नहीं है। भाजपा व कांग्रेस तो बहुत दूर जब उक्रांद के तीस सदस्य विधानसभा में थे तब भी उन्होंने यह साहस नहीं करा,। आज तो विधायक ही उक्रांद के साथ कितना है यह टिहरी लोकसभा उपचुनाव से स्पष्ट हो गया। यही नहीं मूल निवास प्रमाण पत्र पर जिस प्रकार उत्तराखण्ड रक्षा मोर्चा का नकाब ही उतर गया उससे प्रदेश की राजनैतिक शक्ति की हकीकत का ज्ञान होना चाहिए। उत्तराखण्ड की आम जनता व सामाजिक संगठन जब मुजफरनगर काण्ड के शहीदों को श्रद्धांजलि देने व इस काण्ड के दोषियों को सजा दिलाने के लिए संसद की चैखट पर आने के बजाय अपने क्षेत्र में रंगारंग कार्यक्रम करने में मस्त रहते तो हमें आज समाज की स्थिति को भी समझना चाहिए। प्रयत्न करें परन्तु भगवान की अपार कृपा के बिना कुछ भी हासिल नहीं हो सकता। तेलंगाना व उत्तराखण्ड का 6 का चमत्कारी संयोग इस का जीवंत उदाहरण है। शेष श्री कृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।
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