प्रदीप टम्टा को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाना चाहते हैं तिवारी!
देहरादून (प्याउ)। क्या कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नारायणदत्त तिवारी अपने प्रबल विरोधी हरीश रावत के सबसे करीबी सिपाहे सलार सांसद प्रदीप टम्टा को उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस का नया
देहरादून (प्याउ)। क्या कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नारायणदत्त तिवारी अपने प्रबल विरोधी हरीश रावत के सबसे करीबी सिपाहे सलार सांसद प्रदीप टम्टा को उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस का नया
अध्यक्ष बनाना चाहते है। गत सप्ताह देहरादून में एफआरआई परिसर में स्थित तिवारी के अनन्त वन आवास में हुई प्रदीप टम्टा के साथ भेंटवार्ता के बाद तिवारी का यह कथन की ‘मेरी इच्छा है कि प्रदीप टम्टा प्रदेश की राजनीति में भी सक्रिय हो’, से तो कम से कम यहीं अर्थ लोग लगा रहे है। गौरतलब है कि सपा प्रमुख मुलायमसिंह के साथ पींगे बढ़ा रहे पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के साथ केन्द्रीय मंत्री हरीश रावत व सांसद प्रदीप टम्टा की भैंट होने से प्रदेश की राजनीति में नया समीकरण बनने के कायस लगाया जा रहा है।
जिस प्रकार से तिवारी के कई कृत्यों व प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए उनके कुशासन से प्रदेश की जनता में तिवारी के प्रति निरंतर आक्रोश बढ़ने के कारण कांग्रेस आला नेतृत्व ने तिवारी से दूरियां बना ली थी। इसी को भांपते हुए प्रदेश कांग्रेस में भी तिवारी से दूरियां बनायी गयी। इसके बाबजूद प्रदेश की राजनीति में तिवारी समर्थकों का दबदबा रहा और उनसे छत्तीस का आंकडा रखने वाले हरीश रावत संगठन व सरकार दोनों में अपना वर्चस्व रखने में असफल रहे। संगठन में जहां यशपाल आर्य व मुख्यमंत्री के पद पर विजय बहुगुणा आसीन हुए दोनों ही तिवारी के समर्थक ही माने जाते रहे। दोनों का समय समय पर हरीश रावत व उनके समर्थक निरंतर अप्रत्यक्ष रूप से विरोध करते रहते है। तिवारी व उनके केन्द्र में समर्थकों के लाख न चाहने के बाबजूद हरीश रावत केन्द्रीय मंत्री बनने में सफल हो गये और प्रदेश में मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा भी अपने ढ़ग से सरकार चलाते देख कर तिवारी व उनके समर्थक खुद को अपमानित महसूस कर रहे है। इसी का लाभ उठाते हुए मुलायम सिंह उप्र व उत्तराखण्ड में 2014 में और मजबूती के लिए तिवारी को अपने साथ लेने का दाव चलने की तैयारी कर रहे है। शायद इसी की भनक लगते ही कांग्रेस नेतृत्व के इशारे को समझते हुए इस पखवाडे केन्द्रीय मंत्री हरीश रावत व बाद में उनके सिपाहेसलार प्रदीप टम्टा ने तिवारी जी से मुलाकात की। हालांकि दोनों मुलाकात को दोनों नेता केवल सामान्य शिष्टाचार की भेंट बता रहे है। परन्तु जिस प्रकार से तिवारी जी का बयान समाचार पत्रों में आया कि उनकी इच्छा है कि सांसद प्रदीप टम्टा प्रदेश संगठन में भी सक्रिय भूमिका निभाये। गौरतलब है कि तिवारी से न तो हरीश रावत व नहीं सांसद प्रदीप टम्टा जो हरीश रावत के करीबी सिपाहेसलार माने जाते हैं, उनका दोस्ताना सम्बंध रहा। तिवारी व हरीश दोनों के नरसिंह राव के कार्यकाल से ही 36 का आंकडा रहा है जो वर्तमान में आज तक भी जारी है। ऐसे में प्रदेश कांग्रेस को अपनी इच्छा से नचाने की हसरत दिल में छुपा कर अपने समर्थक क्षत्रपों द्वारा अपनी उपेक्षा की जाने से आहत तिवारी अपने विरोधियों के साथ भी हाथ मिला सकते है। सुत्रों के अनुसार तिवारी इन दिनों अपने समर्थक समझे जाने वाले यशपाल आर्य, विजय बहुगुणा व सतपाल महाराज से पहले की तरह खुस नहीं है।
तिवारी व हरीश रावत के मेल मिलाप से एक अर्थ यह भी लगाया जा रहा है आगामी लोकसभा चुनाव में तिवारी ने जहां नैनीताल से चुनाव लडने की हुंकार भरी है, उसकी रणनीति को अंजाम देते हुए वे नैनीताल से पार्टी के संभावित दावेदार डा महेन्द्रपाल को भी किसी सूरत में प्रदेश अध्यक्ष बन कर अपनी राह में कांटे नहीं बोना चाहते। इसके साथ ही वे यशपाल ही नहीं सतपाल व विजय बहुगुणा को भी संकेत देना चाहते हैं कि अगर उनकी उपेक्षा की गयी तो वे प्रदीप टम्टा को आगे करके उनकी राह विकट कर सकते है। राजनीति के चतुर खिलाड़ी तिवारी यह भी भांप चूके हैं कि प्रदेश में हरीश रावत से मजबूत कोई छत्रप नहीं है इसलिए उन पर हाथ रख कर वे बाकी की राजनीति गोटियां चल सकते है। या हरीश रावत के एक सिपाहेसलार को अपने पक्ष में करके हरीश को मात देने का दाव चल रहे है। पर जो भी हो प्रदेश कांग्रेस की इस राजनीति से साफ हो गया कि प्रदेश कांग्रेस के नेताओं में भी नैतिकता व जनहितों के प्रति जरा सी भी स्थान नहीं रह गया। वे अपने पद को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए तिवारी या मुलायम जैसे लोगों के भी शरण में जा सकते हैं।
जिस प्रकार से तिवारी के कई कृत्यों व प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए उनके कुशासन से प्रदेश की जनता में तिवारी के प्रति निरंतर आक्रोश बढ़ने के कारण कांग्रेस आला नेतृत्व ने तिवारी से दूरियां बना ली थी। इसी को भांपते हुए प्रदेश कांग्रेस में भी तिवारी से दूरियां बनायी गयी। इसके बाबजूद प्रदेश की राजनीति में तिवारी समर्थकों का दबदबा रहा और उनसे छत्तीस का आंकडा रखने वाले हरीश रावत संगठन व सरकार दोनों में अपना वर्चस्व रखने में असफल रहे। संगठन में जहां यशपाल आर्य व मुख्यमंत्री के पद पर विजय बहुगुणा आसीन हुए दोनों ही तिवारी के समर्थक ही माने जाते रहे। दोनों का समय समय पर हरीश रावत व उनके समर्थक निरंतर अप्रत्यक्ष रूप से विरोध करते रहते है। तिवारी व उनके केन्द्र में समर्थकों के लाख न चाहने के बाबजूद हरीश रावत केन्द्रीय मंत्री बनने में सफल हो गये और प्रदेश में मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा भी अपने ढ़ग से सरकार चलाते देख कर तिवारी व उनके समर्थक खुद को अपमानित महसूस कर रहे है। इसी का लाभ उठाते हुए मुलायम सिंह उप्र व उत्तराखण्ड में 2014 में और मजबूती के लिए तिवारी को अपने साथ लेने का दाव चलने की तैयारी कर रहे है। शायद इसी की भनक लगते ही कांग्रेस नेतृत्व के इशारे को समझते हुए इस पखवाडे केन्द्रीय मंत्री हरीश रावत व बाद में उनके सिपाहेसलार प्रदीप टम्टा ने तिवारी जी से मुलाकात की। हालांकि दोनों मुलाकात को दोनों नेता केवल सामान्य शिष्टाचार की भेंट बता रहे है। परन्तु जिस प्रकार से तिवारी जी का बयान समाचार पत्रों में आया कि उनकी इच्छा है कि सांसद प्रदीप टम्टा प्रदेश संगठन में भी सक्रिय भूमिका निभाये। गौरतलब है कि तिवारी से न तो हरीश रावत व नहीं सांसद प्रदीप टम्टा जो हरीश रावत के करीबी सिपाहेसलार माने जाते हैं, उनका दोस्ताना सम्बंध रहा। तिवारी व हरीश दोनों के नरसिंह राव के कार्यकाल से ही 36 का आंकडा रहा है जो वर्तमान में आज तक भी जारी है। ऐसे में प्रदेश कांग्रेस को अपनी इच्छा से नचाने की हसरत दिल में छुपा कर अपने समर्थक क्षत्रपों द्वारा अपनी उपेक्षा की जाने से आहत तिवारी अपने विरोधियों के साथ भी हाथ मिला सकते है। सुत्रों के अनुसार तिवारी इन दिनों अपने समर्थक समझे जाने वाले यशपाल आर्य, विजय बहुगुणा व सतपाल महाराज से पहले की तरह खुस नहीं है।
तिवारी व हरीश रावत के मेल मिलाप से एक अर्थ यह भी लगाया जा रहा है आगामी लोकसभा चुनाव में तिवारी ने जहां नैनीताल से चुनाव लडने की हुंकार भरी है, उसकी रणनीति को अंजाम देते हुए वे नैनीताल से पार्टी के संभावित दावेदार डा महेन्द्रपाल को भी किसी सूरत में प्रदेश अध्यक्ष बन कर अपनी राह में कांटे नहीं बोना चाहते। इसके साथ ही वे यशपाल ही नहीं सतपाल व विजय बहुगुणा को भी संकेत देना चाहते हैं कि अगर उनकी उपेक्षा की गयी तो वे प्रदीप टम्टा को आगे करके उनकी राह विकट कर सकते है। राजनीति के चतुर खिलाड़ी तिवारी यह भी भांप चूके हैं कि प्रदेश में हरीश रावत से मजबूत कोई छत्रप नहीं है इसलिए उन पर हाथ रख कर वे बाकी की राजनीति गोटियां चल सकते है। या हरीश रावत के एक सिपाहेसलार को अपने पक्ष में करके हरीश को मात देने का दाव चल रहे है। पर जो भी हो प्रदेश कांग्रेस की इस राजनीति से साफ हो गया कि प्रदेश कांग्रेस के नेताओं में भी नैतिकता व जनहितों के प्रति जरा सी भी स्थान नहीं रह गया। वे अपने पद को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए तिवारी या मुलायम जैसे लोगों के भी शरण में जा सकते हैं।
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