शराब के अन्तर राज्य तस्करों के शिकंजे में जकडा देवभूमि उत्तराखण्ड 

शराब से तबाह समाज की रक्षा के लिए आगे आयें महिला और बुद्धिजीवी 

शराब को सरेआम चुनाव में बांटने वाले नेता, शादी व्याह आदि कार्यक्रमों में शराब परोसने वाले है समाज के दुश्मन



देवभूमि के रूप में विख्यात उत्तराखण्ड में शराब की बढ़ती खपत को देख कर अन्तरराज्य गिराहो का भी मकड़ जाल दिन प्रति दिन और मजबूत हो रहा है। यहां पर घोर सत्तालोलुपु राजनेताओं, भ्रष्ट नोकरशाहों के चलते पावन उत्तराखण्ड आज शराब के तस्करों की ऐशगाह बन चूका है। अधिकांश स्थानों पर शराब माफियाओं से नेताओं व पुलिस प्रशासन की मिली भगत से शराब के ठेकों का जाल पूरी तरह से फेल गया है। उत्तराखण्ड में ऐसी स्थिति हो गयी है कि यहां पर शराब माफिया ही यहां पर आबकारी नीति का ही नहीं प्रदेश के संसाधनों पर काबिज होने के ताकत रखने के साथ साथ सरकारों को बनाने व बिगाडने वाले बन गये है।
कुछ ही दिन पहले देहरादून पुलिस ने इस सप्ताह पुलिस अन्तर राज्य शराब तस्करों के गिरोह को दबोचा। इनसे 200 पेटियों में शराब की 2400 बोतलें बरामद की गयी हैं। तस्कर उसे दीपावली के अवसर पर पहाड़ों में सप्लाई करने वाले थे। इन पकडे गये शराब तस्करों की पहचान नरेश कुमार कमोदा पीपली कुरुक्षेत्र (हरियाणा) ,रूपलाल निवासी जैतपुरा अंबाला तथा कुलदीप नरवाना जिला जिन्द के रूप में दी। यह केवल सडक छाप गिरोह हो सकता है यहां पर काबिज शराब के माफियाओं से यहां के नेताओं व नौकरशाहों की ही नहीं यहां के समाजसेवकों के रिश्ते सार्वजनिक हो जायं तो इन्हें देख कर जनता को खुद को विश्वास ही नहीं आयेगा।
वहीं दूसरी तरफ पिथोरागढ़ रैंज के उपमहानिरीक्षक गणेश सिंह मर्तोलिया शराब में तबाह होते उत्तराखण्डी समाज को देख कर बेहद चिंतित है। वे चाहते हैं कि इससे बचने के लिए पुलिस, बुद्धिजीवी, महिलायें व स्वयं सेवी संगठन आगे आयें। बागेश्वर में पत्रकारों से वार्ता करते हुए उन्होंने यह चिंता जाहिर की। वे चाहते हैं कि पहाड़ में शराब जैसी बुराई को समाप्त करने के लिए पुलिस गांवों में जागरूकता अभियान चलाएगी। इसके लिए गांवों में महिलाओं के समूह बनेंगे तथा एनजीओ का भी सहारा लिया जाएगा। कपकोट के गुलेर निवासी श्री मर्तोलिया जहां शराब से तबाह हो रहे उत्तराखण्डी समाज को बचाना चाहते वहीं वे गांवों से हो रहे पलायन से बेहद दुखी हैं। यह केवल एक पुलिस अधिकारी की चिंता का विषय नहीं है। यह चिंता हम सबकी होनी चाहिए। क्योंकि गंगा यमुना की उदगम स्थली व देवताओं की भूमि उत्तराखण्ड शराब का गटर बन कर इसकी पवित्रता को कलंकित कर रही है।
भले ही जनहित व लोकशाही में निर्वाचित होने की दंभ भरने वाली सरकारें जनहित में कितना काम करती है यह देश व प्रदेश में निरंतर मानव समाज को पथभ्रष्ट कर रही शराब के प्रति सरकार के नजरिये से ही बेनकाब हो जाता है। हकीकत यह है कि लोकशाही की सरकारें भारत के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में पानी, बिजली, विधालय, मोटर रोड व चिकित्सालय आदि समाज को विकास के पथ पर बढाने वाली सुविधाओं को उपलब्ध कराने में तो नकाम रह रही है परन्तु दूरस्थ से दूरस्थ क्षेत्रों में शराब पंहुचाने में निरंतर बेशर्मी से लगी हुई है। वहीं देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखण्ड में भी इन दिनो शराब ने पूरी तरह से पूरे समाज को अपनी जकड़ में ले लिया है। कई स्थानों पर प्रबुद्ध महिलायें व समाजसेवी हैं जिन्होंने सरकार के इस नापाक इरादों का पुरजोर विरोध करने की ठानी है। पर देखा यह जा रहा है कि अधिकांश समाज में खुशी या गम दोनों के आयोजनों में शराब से लोग तरोबतर है। इससे न केवल नयी पीढी बर्बाद हो गयी है अपितु समाज में निरंतर हिंसा, असंतोष व राग द्वेष बढ़ रहा है। कभी प्रतिभा व ईमानदार कर्मठ लोगों के समाज के रूप में जाना जाने वाला समाज अब शराबियों की जमात के रूप में जाना जाने लगा है। कई स्थानों पर जागरूक महिला मंगल दलों ने अपने गांव में शादी व्याह सहित किसी आयोजन में सार्वजनिक रूप से शराब परोसने वाली कुप्रथा पर अंकुश लगा दिया है परन्तु अपनी झूठी शान का छदम प्रदर्शन करने के पागलपन के दौर में आज लोग लोक दिखावा करने के लिए इस प्रकार शराब की पार्टी का आयोजन कर रहे हैं। इससे छोटे बच्चे तक शराब की जकड़ में आ गये है। कई स्थानों पर महिलाओं ने इन कच्ची व पक्की शराब की भट्टियों के साथ साथ सरकार द्वारा खोले जा रहे ठेकों का भी विरोध कर इन्हें बंद करने में सफलता हासिल की। ऐसी स्थिति में उत्तराखण्ड के बुद्धिजीवियों,नौजवानों व जागरूक महिलाओं को चाहिए कि वह ऐसे जनप्रतिनिधियों, लोगों व प्रशासनिक अधिकारियों का बहिष्कार करे जो समाज में अपने स्वार्थ के खातिर शराबी बनाने के लिए चुनाव, शादी व्याह या अन्य आयोजनों में शराब परोसते है। यहां सवाल कच्ची या पक्की शराब का नहीं यहां सवाल है इसकी जकड़े से तबाह हो रहे समाज को बचाने का है। हालांकि यहां शराब बिना पुलिस प्रशासन व नेताओं की मिली भगत से नहीं मिल सकती परन्तु इसको बढावा देने में समाज के प्रभावशाली तबके व उन लोगों का हाथ है जो अपनी झूठी शान के लिए शादी व्याह सहित अन्य आयोजनों में शराब को सार्वजनिक रूप से परोसने की धृष्ठता करके समाज को पतन के गर्त में धकेल रहे हैं।

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