आम आदमी पार्टी के खेवनहार क्यों नहीं जीत पा रहे हैं अपनो का ही विश्वास
नई दिल्ली (प्याउ)।एक तरफ देश को भ्रष्टाचार व स्थापित दलों की अलोकशाही प्रवृति से मुक्ति दिलाने के नाम पर देश में एक नयी राजनैतिक दल ‘आम आदमी पार्टी’ के गठन का ऐलान अन्ना हजारे के नेतृत्व में जनलोकपाल गठन की देशव्यापी जनांदोलन के सबसे प्रमुख सिपाहेसलार अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसौदिया व साथी 24 नवम्बर को देश की सर्वोच्च संस्था संसद भवन के करीब काॅस्टीटयूशन क्लब में कर रहे थे। वहीं उसी समय अण्णा, रामदेव सहित देश के तमाम जनांदोलनों के निर्णायक संघर्ष का कुरूक्षेत्र रहे संसद की चैखट जंतर मंतर पर इंडिया अगेन्सट करप्शन के पुराने साथी श्रीओम अर्जव अपने साथियों के साथ सरकार से अण्णा व अरविन्द दोनो पर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए अविलम्ब लोकपाल विधेयक को संसद के इसी सत्र पारित करने की मांग को लेकर धरना दे रहे थे।
ऐसा नहीं कि केवल राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर में ही एआईसी के पूर्व साथी विरोध कर रहे थे। जैसे ही काॅस्टीट्यूशन क्लब में अपने आम आदमी पार्टी की घोषणा करते हुए बताया गया कि इस पार्टी की करीब 350 संस्थापक सदस्य होंगे तो इस पर भी वहां पर एआईसी से प्रारम्भ से जुडे लोग ही हैरान हो गये।इस बारे में अपना विरोध अशोक अरोड़ा नामक आईटी के विजिटिग प्रोफेसर मनीष सिसौदिया के फेसबुक पर किये कमेंटस में स्पष्ट लिखा की जब हजारों लोगों ने अपने खून पसीने से एआईसी को सींचा तो केवल 350 ही लोगों को किस आधार पर संस्थापक सदस्य माना गया। उन्होंने अपने कमेंटस में लिखा भी उनके साथ तिलक नगर विधानसभा क्षेत्र के कार्यकत्र्ताओं ने इस बारे में प्रश्न पूछा तो उन्होंने भी इसका सीधा उतर देने के बजाय बाद में स्पष्ट करेंगे कह कर उपेक्षा की। इसके बाद गोपाल राय ने भी इसी प्रकार का उतर दिया। इस प्रकार से किसी ने भी उनके इस प्रश्न का कोई उतर नहीं दिया। भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने वाले आईटी के समर्पित कार्यकत्र्ता इस बात से हैरान थे कि पार्दिर्शता की दुहाई देने वाले अरविन्द व साथी अपने साथियों से निर्णय लेने पर क्यों ऐसा खुद आत्मसात नहीं करते? इसके साथ अपने कमेंटस में उनकी आम आदमी वाली कथनी व करनी पर भी प्रश्नचिन्ह खडे किये।
हालांकि 25 नवम्बर को इस नवगठित दल आम आदमी पार्टी ने अरविन्द केजरीवाल को अपना राष्ट्रीय संयोजक बनाने की घोषणा की। इसके साथ पंकज गुप्ता को राष्ट्रीय सचिव व कृष्णकांत को कोषाध्यक्ष बनाया गया है। इनका चुनाव 23 राष्ट्रीय कार्यकारणी के सदस्यों ने आम सहमति से किया। अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, आने वाले 2014 व उससे पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव में क्या रंग दिखायेगी। परन्तु उससे बडे सवाल यह है कि कांग्रेस व भाजपा को देश में लोकतंत्र को कमजोर करने का आरोप लगाते हुए जनता का विश्वास अर्जित करने की दिशा में जनांदोलन की राह के राही बने अरविन्द केजरीवाल क्यों अपने साथियो का विश्वास नहीं जीत पा रहे हैं? क्यों उनकी शंकाओं का निवारण कर पा रहे है? क्यों दो साल के संघर्ष की राह में उनके ख्यातिप्राप्त रहुनुमा अण्णा हजारे एवं किरण वेदी, मेघा पाटेकर, राजेन्द्र सिंह व अरविन्द गोड सहित अनैक साथी एक एक करके उनसे किनारा कर रहे है?
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