मोदी या आडवाणी के बजाय क्या गडकरी को प्रधानमंत्री बनाना चाहता है संघ

गोविन्दाचार्य व आडवाणी को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाला संघ गडकरी के आगे लाचार क्यों?

गडकरी प्रकरण पर क्यों लगा संघ व भाजपा में नैतिक शक्ति पर ग्रहण




भारत में ही नहीं विदेशों में रहने वाले प्रबुद्ध भारतीय यह देख कर आश्चर्यचकित हैं कि थोपशाही, परिवारवाद, भ्रष्टाचार जेसे अनैतिक आचरण के लिए कांग्रेस को पानी पी पी कर कोसने वाली संघ व उसके द्वारा पोषित भाजपा में आखिर ऐसी क्या मजबूरी हो गयी कि जिन्ना प्रकरण पर आडवाणी जैसे शीर्ष नेता व मुखोटा प्रकरण पर गोविन्दाचार्य जैसे शीर्ष व वरिष्ट स्वयंसेवक तथा वरिष्ठ नेताओं को अपने पदों से इस्तीफा देने के लिए मजबूर करने वाली संघ व उसकी पोषित भाजपा आज पूर्ति व दाउद को विवेकानन्द के समकक्ष आईक्यू बताने वाले प्रकरणों में घिरे भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष नितिन गडकरी को आडवाणी व गोविन्दाचार्य की तर्ज पर ही नैतिकता का पाठ पढ़ाते हुए अपने पद से इस्तीफा देने का आदेश देने का साहस तक क्यों नहीं जुटा पा रही है? जबकि गडकरी के उक्त विवादों में घिरे रहने के कारण नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने के लिए केवल भाजपा सांसद राम जेठमलानी या उनके भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारणी के सदस्य पुत्र महेश जेठमलानी या शेट्टिगर ही नहीं अब भाजपा के अंदर इसी प्रकार की आत्मघाती प्रवृति से क्रोधित हो कर अपनी नयी पार्टी बनाने के लिए उतारू कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदिरूप्पा ने गडकरी को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाने की शर्त ही रख दी है।
क्या संघ व भाजपा के आला नेतृत्व के आगे क्या गडकरी, आडवाणी व गोविन्दाचार्य से श्रेष्ठ है या उनकी ऐसी कौन सी सेवायें ऐसी की है जो संघ ने उनको तमाम वरिष्ठ नेताओं को नजरांदाज करके प्रदेश स्तर के नेता को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया? आखिर संघ को गडकरी में ऐसी क्या योग्यतायें नजर आयी जो उन्होंने गडकरी को दूसरी बार भी अध्यक्ष बनाने के लिए भाजपा के संविधान में भी संसोधन कर डाले। जबकि मुरली मनोहर जोशी व राजनाथ सिंह जैसे नेताओं पर संघ ने पार्टी संविधान में संसाधन करने की सुध क्यों नहीं ली।
क्या संघ नेतृत्व जो कभी ‘सादा जीवन उच्च विचार व न्यायार्थ अपने बंधु को भी दण्ड देना धर्म है’ को अपना आदर्श समझ कर माॅं भारती के लिए अपना सर्वस्व निछावर करता था। आज गडकरी दर्शन जो नागपुर में उनके बेटे की शादी व उनके उत्थान का पथ है क्या अब इसी को अपना आदर्श संघ मानेगा। जिस प्रकार से संघ गडकरी का बचाव कर रहा है या भाजपा के नेताओं से करा रहा है उससे लगता है कि अगर कल भाजपा को सत्तासीन होने का अवसर मिले तो संघ गडकरी को राष्ट्रीय अध्यक्ष की तरह ही प्रधानमंत्री के पद पर आसीन कर दे तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा। क्योंकि जिस प्रकार से संघ के आंखों के आगे सुषमा स्वराज को नेता प्रतिपक्ष व निशंक को देवभूमि उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है।
साफ छवि के संघ के शेषाद्रिचारी व मोहनसिंह ग्रामवासी जैसे वरिष्ट स्वयंसेवकों को महत्वपूर्ण पदों से वंचित करके नेताओं के प्यारों को मुख्यमंत्री, मंत्री व सांसद तथा राज्य सभा सांसद बनाया जाने पर भी संघ भीष्म पितामह की तरह हस्तिनापुर की अंध प्रतिबद्धता के लिए समर्पित रहे तो इसका नतीजा जग जाहिर है। संघ को चाहिए कि वह भारतीय संस्कृति को मनसा, वाचा ही नहीं अपितु कर्म में भी आत्मसात करे व कराये। संघ भाजपा में साफ छवि के जनसमर्पित समाजसेवियों को ही बिना जाति, क्षेत्र व धर्म के भेदभाव के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन करना चाहिए। किसी भी सूरत में भ्रष्ट, नैतिक विहिन व जनसेवा से दूर रहने वाले लोगों को न तो सरकार व नहीं संगठन में कोई महत्वपूर्ण दायित्व देना चाहिए।
संघ को समझना चाहिए कि आज देश की जनता मनमोहनी सरकार के कुशासन से आक्रोशित है। जनता आज कांग्रेस को भ्रष्टाचार, मंहगाई, आतंकवाद से देश व देशवासियों का जीना हराम करना वाला मान कर उसको आगामी 2014 में देश की सत्ता से बेदखल करना चाहती है। परन्तु जनता के सामने भाजपा का भी कांग्रेसीकरण की सी स्थिति देख कर उसका भाजपा से भी मोह भंग हो रहा है। आज गडकरी प्रकरण में भाजपा के जेठमलानी जेसे देश के अग्रणी कानूनविद व भाजपा सांसद सहित कई और भाजपा नेता भी गडकरी से नैतिक आधार पर इस्तीफा मांग रहे है परन्तु क्या मजाल संघ व भाजपा के आला नेताओ की गडकरी के मोह में सोई हुई आत्मा जागृत तो हो जाय। उल्टा भाजपा के सुषमा-जेटली जैसे वरिष्ट नेताओं से संघ के गुरूमूर्ति द्वारा गडकरी को पाक साफ बताने की जल्दबाजी भी लोगों के गले में नहीं उतर रही है। आज हिमाचल से लेकर गुजरात के चुनाव में गडकरी प्रकरण के कारण लोगों की नजरों में कांग्रेस जो भ्रष्टाचार की कालिख में लिप्त राजनैतिक दल नजर आ रही थी अब गडकरी प्रकरण के बाद भाजपा भी उनको कांग्रेस की तरह ही नजर आ रही है। अब फेसला संघ को करना है अगर संघ समय पर फेसला करने में असफल रहता तो वक्त खुद अपना फेसला संघ भाजपा को सुना देगा। देखना यह है कि गडकरी प्रकरण से संघ व भाजपा किस तरह से उबर पाते हैं। परन्तु यह साफ है कि गडकरी प्रकरण ने भाजपा को ही नहीं संघ व उनके समर्थकों को भी अंदर तक बुरी तरह से झकझोर कर रख दिया है।

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